पापुआ न्यू गिनी: दुनिया के दूसरे छोर से भारत क्यों रहा दूर? पीएम मोदी का प्रशांत क्षेत्र में फिर कदम...
प्रधानमंत्री मोदी दूसरी बार प्रशांत क्षेत्र का दौरा कर रहे हैं, जबकि सबसे पहले इंदिरा गांधी 1991 में फिजी की यात्रा पर गईं थीं। लेकिन, अगले 33 सालों तक किसी भी भारतीय प्रधानमंत्री प्रशांत क्षेत्र नहीं गये।
Papua New Guinea PM Modi: साल 1991 में फिजी का दौरा करने के बाद किसी भारतीय प्रधानमंत्री को फिर से प्रशांत द्वीप का दौरा करने में 33 साल लग गये और 2014 में प्रधानमंत्री मोदी जब फिर से फिजी पहुंचे, तब जाकर फिर से प्रशांत क्षेत्र से भारत के तार जुड़े।
सैकड़ों सवाल उठे, कि आखिर भारत 33 सालों तक दुनिया के दूसरे छोर के प्रति उदासीन क्यों रहा? रणनीतिक तौर पर बेहद महत्वपूर्ण क्षेत्र, जिससे भारत काफी आसानी से जुड़ सकता था, उससे इतना दूर क्यों रहा?
प्रधान मंत्री मोदी प्रशांत क्षेत्र के सबसे बड़े देश पापुआ न्यू गिनी का दौरा करने वाले हैं और आज पीएम मोदी भारत के पहले प्रधानमंत्री बन जाएंगे, जो पापुआ न्यू गिनी में कदम रखेंगे। जिसके बाद प्रशांत क्षेत्र से भारत के जुड़ाव का चैप्टर-2 शुरू हो जाएगा।
पापुआ न्यू गिनी.. भारत के लिए क्यों है अहम?
हालांकि, प्रशांत द्वीप भारत के लिए कई मायनों में अहम है, लेकिन मुख्य तौर पर दो कारक काफी अहम हैं।
पहला
कारण
रणनीतिक
है।
भारत
का
लक्ष्य
प्रशांत
क्षेत्र
में
अपने
आर्थिक
और
सामरिक
हितों
को
सुरक्षित
करना
है
और
बढ़ते
चीनी
प्रभाव
के
खिलाफ
संतुलन
बनाने
के
लिए,
एक
बहुध्रुवीय
हिंद-प्रशांत
को
बढ़ावा
देना
है।
प्रशांत क्षेत्र के साथ नई दिल्ली के जुड़ाव को बढ़ाने वाला दूसरा और महत्वपूर्ण कारक, भारत की वैश्विक शक्ति बनने की दिशा में बड़ा कदम है। कई देशों में इसे इसी नजरिए से देखा जा रहा है। जिसके तहत भारत, व्यापक इंडो-पैसिफिक को शामिल करते हुए अपनी रणनीतिक महत्वाकांक्षाओं को बढ़ावा दे रहा है।
रणनीतिक लिहाज से देखें, तो प्रशांत क्षेत्र भारत के तत्काल पड़ोस से काफी दूर है और ऊपक से देखने पर लगता नहीं है, कि यहां भारत का कोई महत्वपूर्ण भू-राजनीतिक हित है, जिनका भारत को प्रशांत क्षेत्र में बचाव करना चाहिए...
लेकिन, जब बात भारत की अपने सहायता कार्यक्रम को बढ़ाने की आती है, जो परंपरागत रूप से दक्षिण एशिया में अपने निकट पड़ोसियों पर केंद्रित रहा है। तो भारत की 'एक्ट ईस्ट' नीति प्रशांत क्षेत्र में अपने क्षितिज का विस्तार करने के लिए तैयार दिखाई देती है।
पीएम मोदी का पापुआ न्यू गिनी अहम क्यों है?
पापुआ न्यू गिनी की प्रधान मंत्री मोदी की यात्रा, प्रशांत क्षेत्र में अपनी भागीदारी में विविधता लाने के भारत के अभियान के सामरिक उद्देश्यों पर प्रकाश डालती है।
परंपरागत रूप से, नई दिल्ली ने अभी तक अपने सांस्कृतिक संबंधों और आर्थिक ताकत की वजह से पैसिफिक आइलैंड्स फोरम (पीआईएफ) में फिजी के साथ संबंध मजबूत करने पर ध्यान दिया है।
पैसिफिक आइलैंड्स फोरम (पीआईएफ), प्रशांत क्षेत्र का एक प्रमुख क्षेत्रीय संगठन है, जिसके माध्यम से प्रशांत द्वीप देश अपनी अर्थव्यवस्थाओं, शासन और सुरक्षा को सामूहिक रूप से मजबूत करने में सहयोग करते हैं।
लेकिन, बात अगर पापुआ न्यू गिनी की करें, तो भारत पापुआ न्यू गिनी में गैस, खनिज और ऊर्जा क्षेत्रों में रणनीतिक निवेश कर सकता है। भारत अपनी बढ़ती ऊर्जा डिमांड को सुरक्षित करना चाहता है।
साल 2010 से भारत की गैस अथॉरिटी ऑफ इंडिया (GAIL) का पापुआ न्यू गिनी में गैस टर्मिनल में स्टेक खरीदने की बात चल रही है और ये बातचीत अब और भी तेज हो गई है। लिहाजा, हो सकता है, कि पीएम मोदी के इस दौरे के दौरान, गेल और पापुआ न्यू गिनी के बीच गैस प्लेटफॉर्म बनाने की घोषणा हो जाए।
पापुआ न्यू गिनी में भारत के आर्थिक हित
पापुआ न्यू गिनी में भारत के आर्थिक हित को कम करके नहीं आंका जाना चाहिए। पीएम मोदी की यात्रा से पहले कुछ कूटनीतिक चुनौतियां भी थीं, क्योंकि 22 मई को ही अमेरिका के राष्ट्रपति जो बाइडेन भी इस देश में आने वाले थे।
लिहाजा, शुरूआत में पीएम मोदी के साथ भारतीय व्यापारिक प्रतिनिधिमंडल को पोर्ट मोरेस्बी लाने की योजना तैयार की गई थी, जिसे अब रद्द कर दिया गया है, क्योंकि अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन का पापुआ न्यू गिनी का दौरा भी रद्द हो गया है।
वहीं, अब फोरम फॉर इंडिया-पैसिफिक आइलैंड्स कोऑपरेशन (FIPIC) शिखर सम्मेलन का आयोजन किया जाएगा, जिसकी मेजबानी पापुआ न्यू गिनी और भारत करेगा। FIPIC का ये तीसरा शिखर सम्मेलन हो रहा है, जिसमें प्रशांत द्वीप क्षेत्र के सभी देश हिस्सा लेंगे।
प्रशांत द्वीपों के साथ संस्थागत संबंधों को बढ़ाने के लिए, भारत ने 2014 में FIPIC की शुरुआत की थी। यह क्षेत्र-व्यापी संवाद प्राथमिक मंच के रूप में कार्य करता है, जिसके माध्यम से भारत प्रशांत द्वीप के राज्यों के साथ जुड़ता है, जो यह सुनिश्चित करने में मदद करता है, कि प्रशांत क्षेत्र के लिए भारत की विकास सहायता योजना सही से चल रही हैं।
यह एक ऐसा मंच है, जो सभी प्रशांत द्वीप देशों को शामिल करता है और FIPIC विशिष्ट राज्यों के साथ अलग अलग जुड़ाव के बजाय, ज्यादा समावेशी क्षेत्र-व्यापी सहयोग को पूरा करता है। लिहाजा, पीएम मोदी का ये दौरा रणनीतिक तौर पर काफी अहम माना जा रहा है।