भारत से 'ज़्यादा' की उम्मीद लगाए बैठे हैं बांग्लादेश के लोग
बांग्लादेश में सियासत तेज़ होती जा रही है क्योंकि आम चुनाव ज़्यादा दूर नहीं.
पड़ोसी होने के नाते भारत में भी इन चुनावों का इंतज़ार है लेकिन उससे ज़्यादा उत्सुकता बांग्लादेश के आम लोगों में दिखाई पड़ती है.
ढाका के धनमोंडी इलाके के एक फ़्लैट में दाखिल होते ही पहले दर्जनों गत्ते ज़मीन पर बिखरे हुए दिखे.
बगल वाले कमरे में दो लोग इन्हीं गत्तों में छोटे-छोटे पैकेट पैक कर रहे हैं.
बांग्लादेश में सियासत तेज़ होती जा रही है क्योंकि आम चुनाव ज़्यादा दूर नहीं.
पड़ोसी होने के नाते भारत में भी इन चुनावों का इंतज़ार है लेकिन उससे ज़्यादा उत्सुकता बांग्लादेश के आम लोगों में दिखाई पड़ती है.
ढाका के धनमोंडी इलाके के एक फ़्लैट में दाखिल होते ही पहले दर्जनों गत्ते ज़मीन पर बिखरे हुए दिखे.
बगल वाले कमरे में दो लोग इन्हीं गत्तों में छोटे-छोटे पैकेट पैक कर रहे हैं.
घर के कारखाने में ही बनी लकड़ी की कलछियों को ढाका के कई सुपरस्टोर्स तक पहुँचाने की तैयारी है.
नित्यानंद और चैती रॉय ने ये घर किराए पर ले रखा है और वे ढाका से 200 किलोमीटर दूर जेशोर के रहने वाले हैं.
दोनों की शादी सात साल पहले हुई थी और अब वे घर से व्यवसाय को बढ़ा रहे हैं.
इन्हें पता है कि इसकी मांग हर जगह बढ़ रही है क्योंकि पिछले साल दोनों किसी रिश्तेदार से मिलने भारत आए और देखा लकड़ी के चमचों-कलछियों की खपत हर जगह है.
लेकिन चैती रॉय मौजूदा नियमों को लेकर निराश हैं.
उन्होंने कहा, "हमारा वुडन स्पून का बिज़नेस बहुत छोटा है इसलिए हमारे पास ट्रेड लाइसेंस भी नहीं है. उसके लिए हमें ये प्रॉब्लम होगी कि हम भारत में व्यापार करने के लिए ज़्यादा प्रॉडक्ट्स नहीं ले जा सकते. अगर दोनों देश इस मामले पर थोड़े और उदार हो जाएं तो बिज़नेस करना आसान होगा इंडिया में."
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भारतीय वीज़ा आवेदन केंद्र के बाहर कतारें
पिछले कुछ सालों में दोनों देशों के बीच व्यापार बढ़ाने की कोशिश हुई है और कई समझौते हुए हैं.
वीज़ा नियमों में भी बदलाव हुए हैं ताकि आवाजाही बढ़ सके और आंकड़े बताते हैं कि बांग्लादेश से भारत के लिए रिकॉर्ड वीज़ा दिए गए हैं.
हालांकि मैं जब ढाका में भारतीय वीज़ा आवेदन केंद्र पहुंचा तो नज़ारा दूसरा ही था.
सुबह पांच बजे से ही वीज़ा आवेदकों की लंबी और न ख़त्म होने वाली कतारें लग जाती हैं.
चिलचिलाती धूप में बच्चे, बूढ़े और महिलाएं घंटों खड़े रहते हैं और बगल की सड़क में काला धुआं उगलते वाहनों के प्रदूषण की शिकायत करते हैं.
इसी कतार में मुझे बांग्लादेश की राष्ट्रीय फ़ुटबॉल टीम के कोच अब्दुर रज़्ज़ाक मिले.
उन्होंने बताया, "हम भारत से बहुत प्यार करते हैं. दोनों देशों में दोस्ती भी रही है. लेकिन वीज़ा मिलना इतना मुश्किल है कि मत पूछिए. दोनों सरकारों को ये बताने की ज़रूरत है कि इस मुश्किल का हल निकालना होगा. हमें वीज़ा की आज़ादी चाहिए".
इतिहास पर ग़ौर करें तो 1971 में बांग्लादेश के बनने में भारत की अहम भूमिका थी.
पर उसके बाद से वहाँ राजनीति दो बड़ी पार्टियों और सेना के बीच करवट लेती रही है.
सत्ता या तो अवामी लीग के पास रही है और या तो बांग्लादेश नैशनलिस्ट पार्टी के हाथ में.
भारत से रिश्तों में भी उतार-चढ़ाव होता रहा है, हालाँकि पिछले कुछ वर्षों में रिश्ते बेहतर हुए हैं.
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भारत को लेकर मिली-जुली राय
इस वर्ष बांग्लादेश में आम चुनाव भी होने हैं तो ज़ाहिर है दिलचस्पी भारत में भी बढ़ी है.
हिंसा के साये में पिछले चुनाव 2014 में हुए थे और विपक्षी बांग्लादेश नैशनलिस्ट पार्टी ने इसका बहिष्कार किया था.
आवामी लीग की मौजूदा शेख हसीना सरकार को भारत का करीबी बताया जाता रहा है.
लेकिन भारत को लेकर ढाका की सड़कों पर राय मिली-जुली है.
शहर के पुराने इलाके में एक चाय की दुकान पर हमारी मुलाक़ात नूर इस्लाम से हुई.
उनका मानना है, "भारत के साथ हम हमेशा अच्छे संबंध चाहते हैं और भारत की इज़्ज़त करते रहे हैं. लेकिन संबंध आम लोगों के बीच होना चाहिए न कि सिर्फ़ सरकारों के बीच. भारत को यहाँ के लोगों की तरफ़ दोस्ती का हाथ बढ़ाने की ज़रुरत है, न कि सरकार या किसी राजनीतिक दल की तरफ़".
वैसे बांग्लादेश में इन दिनों सियासी माहौल गर्म है.
भ्रष्टाचार के एक मामले में पूर्व प्रधानमंत्री ख़ालिदा ज़िया के खिलाफ अदालत का फ़ैसला आ चुका है और उनकी बीएनपी पार्टी ने इसे 'सरकार की साज़िश' बताया है.
फ़ैसले के बाद आगामी चुनाव कैसे होंगे, कौन लड़ेगा, कौन नहीं, इस पर चर्चाएँ भी जारी है और कयास भी.
लेकिन बांग्लादेश में आम लोगों को चुनावी हार-जीत से ज़्यादा सहूलियतें मिलने का इंतज़ार है, चाहे देश में हों या पड़ोस में.
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