कश्मीर पर मुस्लिम देशों से भी पाकिस्तान को निराशा?
केंद्र की मोदी सरकार ने जम्मू-कश्मीर को मिले विशेष दर्जे को ख़त्म करने की संसद में घोषणा की तो, मानो पाकिस्तान के पाँव तले से ज़मीन खिसक गई हो.
जम्मू-कश्मीर में तीन इलाक़े आते हैं- जम्मू, कश्मीर और लद्दाख. जम्मू हिन्दू बहुल इलाक़ा है तो कश्मीर पूरी तरह से मुस्लिम बहुल और लद्दाख बौद्ध बहुल. मोदी सरकार ने प्रदेश को दो केंद्र शासित इलाक़े में बाँटने का फ़ैसला किया है.
केंद्र की मोदी सरकार ने जम्मू-कश्मीर को मिले विशेष दर्जे को ख़त्म करने की संसद में घोषणा की तो, मानो पाकिस्तान के पाँव तले से ज़मीन खिसक गई हो.
जम्मू-कश्मीर में तीन इलाक़े आते हैं- जम्मू, कश्मीर और लद्दाख. जम्मू हिन्दू बहुल इलाक़ा है तो कश्मीर पूरी तरह से मुस्लिम बहुल और लद्दाख बौद्ध बहुल. मोदी सरकार ने प्रदेश को दो केंद्र शासित इलाक़े में बाँटने का फ़ैसला किया है.
जम्मू-कश्मीर केंद्र शासित प्रदेश होगा, जहां विधानसभा भी होगी लेकिन लद्दाख में कोई विधानसभा नहीं होगी.
भारत सरकार के इस फ़ैसले पर पाकिस्तान की तत्काल और तीखी प्रतिक्रिया आई.
पाकिस्तान ने फ़ैसले की निंदा की और भारत के साथ लगभग सारे द्विपक्षीय संबंध तोड़ दिए. भारत के राजदूत को वापस भेज दिया गया और सारे व्यापारिक रिश्ते ख़त्म करने की घोषणा की.
पाकिस्तान इस मामले को लेकर मुस्लिम देशों के संगठन ऑर्गेनाइजेशन ऑफ़ इस्लामिक को-ऑपरेशन यानी ओआईसी में भी ले गया, जिसके दुनिया भर के 57 मुस्लिम बहुल देश सदस्य हैं. ओआईसी ने भारत के फ़ैसले की निंदा की और कहा कि कश्मीर पर अंतरराष्ट्रीय स्टेटस बनाए रखा जाए.
In a statement delivered on behalf of the Secretary General, the OIC expressed its deep concern over the critical situation in IoK and condemned the gross human rights violations in Jammu and #Kashmir and encouraged the parties for a negotiated settlement.
— OIC (@OIC_OCI) 6 August 2019
पाकिस्तान के विदेश मंत्री शाह महमूद क़ुरैशी भारत की शिकायत लेकर चीन गए. चीन ने भी कहा कि कश्मीर समस्या का समाधान दोनों देश मिलकर सुलझाएं और भारत को चाहिए कि यथास्थिति बनाए रखे. चीन लद्दाख पर अपना दावा पेश करता रहा है इसलिए लद्दाख को केंद्र शासित प्रदेश बनाए जाने से उसे आपत्ति है.
पाकिस्तान ने बहुत ही उम्मीद के साथ मुस्लिम देशों की तरफ़ निगाहें टिकाईं. ख़ास कर मध्य-पूर्व के मुस्लिम देशों की ओर. पाकिस्तान के लिए सबसे झटके वाला रुख़ संयुक्त अरब अमीरात का रहा.
इसी हफ़्ते पाकिस्तान के विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता मोहम्मद फ़ैसल से एक पत्रकार ने पूछा कि भारत का मुक़ाबला पाकिस्तान कैसे करेगा? इस पर उन्होंने कहा, ''हम मुसलमान हैं और हमारी डिक्शनरी में डर नाम का कोई शब्द नहीं है.''
पाकिस्तान इस समस्या को लेकर मुस्लिम देशों की गोलबंदी की कोशिश करता दिख रहा है.
भारत में यूएई के राजदूत ने दिल्ली की लाइन को मान्यता देते हुए कहा कि भारत सरकार का जम्मू-कश्मीर में बदलाव का फ़ैसला उसका आंतरिक मामला है और इससे प्रदेश की प्रगति में मदद मिलेगी. हालांकि इसके बाद यूएई के विदेश मंत्री ने थोड़ी नरमी दिखाते हुए कहा कि दोनों पक्षों को संयम और संवाद से काम लेना चाहिए.
यूएई के बयान की तरह ही मध्य-पूर्व के बाक़ी के मुस्लिम देशों का भी बयान आया. इनमें सऊदी अरब, ईरान और तुर्की शामिल हैं. तीनों देशों ने कहा कि भारत और पाकिस्तान आपस में बात कर मसले को सुलाझाएं और तनाव कम करें.
हालांकि तुर्की को लेकर पाकिस्तानी नेता और मीडिया ने दावा किया कि तुर्की के राष्ट्रपति रेचेप तैय्यप अर्दोवान से प्रधानमंत्री इमरान ख़ान की बात हुई और तुर्की ने पाकिस्तान को इस मसले पर आश्वस्त किया है.
आख़िर मध्य-पूर्व से इतनी ठंडी प्रतिक्रिया क्यों आई?
एक बड़ा कारण तो यह है कि मध्य-पूर्व के मुस्लिम देशों के लिए पाकिस्तान की तुलना में भारत ज़्यादा महत्वपूर्ण कारोबारी साझेदार है. पाकिस्तान की तुलना में भारत की अर्थव्यवस्था का आकार नौ गुना बड़ा है.
ज़ाहिर है भारत इन देशों में कारोबार और निवेश का ज़्यादा अवसर दे रहा है. इसके उलट पाकिस्तान की अर्थव्यवस्था संकट से जूझ रही है. पाकिस्तान की सरकार ने इस साल की शुरुआत में ही सऊदी और चीन से दो-दो अरब डॉलर का आपातकालीन क़र्ज़ लिया था.
दशकों से भारत की सरकार फलस्तीनियों के समर्थन में खड़ी रही है. ऐसा इसलिए भी है कि खाड़ी के मुस्लिम देशों से भारत के ऐतिहासिक और सांस्कृतिक संबंध रहे हैं.
मध्य-पूर्व में भारत की नीति लंबे समय तक इसराइल के विरोध में रही है. लेकिन जब अरब के लोगों ने शांति प्रक्रिया में इसराइल के साथ बैठकें शुरू कीं तो भारत के नेताओं ने मध्य-पूर्व में अपनी नीतियों की समीक्षा शुरू की.
आगे चलकर भारत ने इसराइल से संबंध बढ़ाया और 1999 से इसराइल के साथ हथियारों का सौदा भी बढ़ता गया.
भारत ने इस चीज़ को महसूस किया कि अरब में किसी ख़ास देश से संबंध बढ़ाने के कारण कोई टकराव की स्थिति नहीं है या कश्मीर को लेकर भी कोई नुक़सान नहीं है. भले ओआईसी की तरफ़ से प्रेस रिलीज़ जारी हो जाती है.
ओआईसी में भी भारत का अहम मौक़ों पर समर्थन करने वाले मुस्लिम देश काफ़ी मुखर रहे हैं, वो चाहे ईरान हो या इंडोनेशिया. भारत का संबंध सऊदी से भी अच्छा है और ईरान से भी ख़राब नहीं है. भले सऊदी और ईरान में शत्रुता है.
ईरान कश्मीर मुद्दे पर भारत के साथ रहा है. ऐसा इसलिए भी है कि सीमा पर उसे भी पाकिस्तान के साथ दिक़्क़तें हैं. ईरान पाकिस्तान पर आरोप लगाता रहा है कि वो सऊदी अरब के पीछे आँख मूंदकर चल रहा है और उसके लिए बलोच विद्रोहियों को मदद पहुंचाता है. बलोच विद्रोही ईरानी सुरक्षा बलों को निशाने पर लेते रहते हैं.
पाकिस्तान और ईरान में अफ़ग़ानिस्तान में अपने प्रभाव को लेकर भी विवाद रहता है. अफ़ग़ानिस्तान हिन्द महासागर में व्यवसाय के लिहाज़ से काफ़ी अहम है. पाकिस्तान में सऊदी धार्मिक शिक्षा और मस्जिदों के निर्माण को लेकर मदद करता रहा है.
लोब लॉग की रिपोर्ट के अनुसार, ''ये काम सऊदी पाकिस्तान प्रशासित कश्मीर में भी करता है. हाल ही में ईरान और तुर्की ने भी ये काम शुरू किया है. मध्य-पूर्व में प्रतिद्वंद्वियों के बीच इसे लेकर काफ़ी होड़ है. लेकिन इन कामों का विवाद से कोई सीधा संबंध नहीं है. इनका उद्देश्य शिया और सुन्नी समूहों में अपना प्रभाव जमाना है.'' इसके बावजूद पाकिस्तान चाहता है कि ओआईसी के मंच पर कश्मीर का मुद्दा उठाया जाए.
पाकिस्तान हर हाल में चाहता है कि वो FATF से ब्लैकलिस्ट ना हो. पाकिस्तान इस मसले को संयुक्त राष्ट्र की सुरक्षा परिषद में भी ले जाने के लिए कह रहा है लेकिन उसके क़रीब सहयोगी ही ख़ामोश हैं.