ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी कैंपस में बीफ बैन, स्टूडेंट यूनियन ने दो तिहाई बहुमत से समर्थन में किया वोट
लंदन। दुनिया के अग्रणी शैक्षणिक संस्थानों में से एक ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी में छात्र कैंपस के अंदर कैंटीन और दूसरे फूड स्टॉल पर बीफ परोसने का विरोध कर रहे हैं। कैंपस में बीफ और मेमने के मांस पर रोक लगाने के प्रस्ताव पर ऑक्सफोर्ड स्टूडेंट यूनियन ने दो तिहाई के बहुमत से वोट किया है। ये बैन यूनिवर्सिटी द्वारा संचालित होने वाले कैंटीन और इवेंट्स के लिए है। इसमें कॉलेजों के हॉल में दिया जाने वाला खाना शामिल नहीं है।
डेली मेल की खबर के मुताबिक प्रस्ताव पर स्टूडेंट यूनियन में वोटिंग के बाद भी छात्रों को इसके लिए विश्वविद्यालय प्रशासन से लॉबिंग करनी होगी क्योंकि इस बैन को प्रभावी होने के लिए विश्वविद्यालय की एग्जीक्यूटिव कमेटी से पास होना होगा। फिलहाल प्रस्ताव को यूनिवर्सिटी के मैनेजमेंट को भेज दिया गया है जिस पर मैनेजमेंट को निर्णय लेना है।
जलवायु
परिवर्तन
की
मुहिम
के
लिए
कदम
खास
बात
यह
कि
प्रस्ताव
को
छात्रों
ने
जलवायु
परिवर्तन
की
मुहिम
के
तहत
लाया
है।
कैंपस
में
बीफ
और
मेमने
के
मांस
पर
रोक
का
उद्देश्य
ग्रीन
हाउस
गैसों
का
उत्सर्जन
कम
करना
है।
साथ
ही
इसके
माध्यम
से
लोगों
को
जागरूक
करना
भी
है।
यूनिवर्सिटी के अखबार के मुताबिक छात्रों ने मुहिम ऐसे समय में शुरू की है जब यूनिवर्सिटी ने ये स्वीकार किया कि वह 2021 के लिए तय किए गए कार्बन उत्सर्जन के लक्ष्य को पूरा करने में विफल रही है। इसके बाद छात्रों ने बीफ और मेमने के मांस पर रोक लगाने के अपने अभियान को तेज किया।
ऑक्सफोर्ड
कर
सकता
है
नेतृत्व
प्रस्ताव
में
कहा
गया
है
कि
एक
अग्रणी
संस्थान
के
रूप
में
पूरा
देश
बदलाव
के
लिए
ऑक्सफोर्ड
की
तरफ
देखता
है
लेकिन
जलवायु
परिवर्तन
के
मुद्दे
को
संबोधित
करने
में
ऑक्सफोर्ड
ने
नेतृत्व
की
कमी
दिखाई
है।
यूनिवर्सिटी
के
कैटरिंग
कार्यक्रम
और
आउटलेट
पर
बीफ
और
मेमने
के
मांस
पर
रोक
लगाकर
2030
के
जलवायु
परिवर्तन
के
लक्ष्यों
को
हासिल
करना
सबसे
प्रभावी
तरीका
हो
सकता
है।
प्रस्ताव लिखने वाली टीम का हिस्सा रही एक छात्रा का कहना है कि ऑक्सफोर्ड ऐसा करके इसी मुद्दे पर अलग विचार रखने वाले नेताओं को प्रभावित कर सकता है। साथ ही इस मुद्दे पर एकजुटता दिखाने में भी मदद मिलेगी कि इसमें हम सभी शामिल हैं।
हालांकि जहां प्रस्ताव को व्यापक समर्थन मिला है वहीं कुछ लोग इसका विरोध भी कर रहे हैं। खास तौर पर इसे खाने-पीने की व्यक्तिगत आजादी को नियंत्रित करने के तौर पर देखा जा रहा है। छात्र संघ के एक पदाधिकारी ने कहा कि स्टूडेंट यूनियन को ये नहीं तय करना चाहिए कि कैंपस में कौन क्या खाए और क्या नहीं। लोगों का खान-पान उनकी व्यक्तिगत इच्छा पर निर्भर होना चाहिए।