OPEC+ के इस फैसले से भारत समेत कई देशों की परेशानी बढ़ी, मंदी के बीच अरब देशों का ये कैसा गेम?
यूक्रेन युद्ध शुरू होने के बाद से ही अमेरिका लगातार ओपेक प्लस देशों से तेल का प्रोडक्शन बढ़ाने की मांग कर रहा है और जो बाइडेन ने इसलिए सऊदी अरब का दौरा भी किया था।
फ्रैंकफर्ट, सितंबर 06: पहले कोविड संकट और फिर यूक्रेन यु्द्ध, इन दो घटनाओं ने पूरी दुनिया की अर्थव्यवस्था पर गंभीर प्रभाव डाला है और इस वजह से कई देश दिवालिएपन की कगार पर आ चुके हैं। दुनिया के ज्यादातर तेल खरीददार देशों के विदेशी मुद्रा भंडार पर काफी गंभीर प्रभाव पड़ा है और निम्न अर्थव्यवस्था वाले देशों में तो त्राहिमाम मच गई है, जिनमें श्रीलंका, पाकिस्तान और बांग्लादेश, चेक रिपब्लिक, केन्या समेत कई और दक्षिण अफ्रीकी देश शामिल हैं। लेकिन, इन सबके बीच तेल उत्पादन को नियंत्रित करने वाले संगठन ओपेक प्लस ने एक बार फिर से तेल का प्रोडक्शन घटाने का फैसला किया है।
तेल उत्पादन घटाने का फैसला
वैश्विक अर्थव्यवस्था में चल रही मंदी के बीच ओपेक प्लस देशों ने सोमवार को तेल प्रोडक्शन में कटौती करने का फैसला किया है। ओपेक प्लस के इस फैसले में रूस भी शामिल है, जिसने तेल प्रोडक्शन कम करने में हामी भरी है। ओपेक प्लस ने तेल प्रोडक्शन कम करने का ऐलान करते हुए कहा कि, ये फैसला करने में उन्हें नाखुशी हो रही है, लेकिन वैश्विक आर्थिक मंदी का खतरा मंडरा रहा है, इसीलिए ये फैसला लिया गया है और इस फैसले से तेल की कीमतों को कम करने में मदद मिलती है। रिपोर्ट के मुताबिक, अगले महीने से ओपेक प्लस ने हर दिन एक लाख बैरल तेल का उत्पादन कम करने पर सहमति जता दी है। आपको बता दें कि, सऊदी अरब के ऊर्जा मत्री ने पिछले महीने ही बयान दिया था. कि ओपेक प्लस गठबंधन किसी भी वक्त तेल के उत्पादन में कमी कर सकता है।
यूएस ने की थी प्रोडक्शन बढ़ाने की मांग
आपको बता दें कि, यूक्रेन युद्ध शुरू होने के बाद से ही अमेरिका लगातार ओपेक प्लस देशों से तेल का प्रोडक्शन बढ़ाने की मांग कर रहा है और अमेरिकी राष्ट्रपति ने इसके लिए सऊदी अरब और संयुक्त अरब अमीरात के राष्ट्राध्यक्षों से टेलीफोन पर बात भी करने की कोशिश की थी, लेकिन उन्होंने अमेरिकी राष्ट्रपति का फोन रिसीव नहीं किया। जिसके बाद जो बाइडेन खुद सऊदी अरब के दौरे पर गये थे। लेकिन, सऊदी अरब जैसे तेल उत्पादकों ने पेट्रोल की कीमतों को कम करने और उपभोक्ताओं पर बोझ को कम करने के लिए अधिक तेल उत्पादन करने के लिए अमेरिकी राष्ट्रपति जो बिडेन के आह्वान का विरोध किया है। ओपेक प्लस ने उसी वक्त तेल का प्रोडक्शन काफी घटा दिया था, जब कोविड की वजह से ज्यादातर देशों में लॉकडाउन लगा दिया गया था।
कीमतों में हो गया था भारी इजाफा
ओपेक प्लस ने तेल का प्रोडक्शन नहीं बढ़ाया और इस साल फरवरी महीने मे यूक्रेन युद्ध शुरू होने के बाद से अंतर्राष्ट्रीय बाजार में कच्चे तेल की कीमत बढ़कर 120 डॉलर प्रति बैरल तक पहुंच गया था, जिसका काफी नकारात्मक असर छोटी अर्थव्यवस्था वाले देशों पर पड़ा। कई यूरोपीय देश भी इससे बच नहीं पाए। हालांकि, अक्टूबर महीने में तेल प्रोडक्शन में होने वाली इस कटौती को लेकर विशेषज्ञों में अलग अलग राय है। फिलहाल, हर दिन ओपेक प्लस 43.8 मिलियन बैरल का उत्पादन करता है, लेकिन कई विश्लेषकों ने उत्पादन में कोई बदलाव नहीं होने की भविष्यवाणियों को गलत बताया। वहीं, प्रोडक्शन कम करने की इस घोषणा के बाद तेल की कीमतों में उछाल आना शुरू हो गया है। इस फैसले के बाद अमेरिकी क्रूड 3.3% बढ़कर 89.79 डॉलर प्रति बैरल हो गया है, जबकि अंतरराष्ट्रीय बेंचमार्क ब्रेंट 3.7% बढ़कर 96.50 डॉलर हो गया।
ओपेक प्लस ने क्यों की कटौती?
कोलंबिया विश्वविद्यालय के ऊर्जा नीति विशेषज्ञ जेसन बोर्डोफ ने ट्वीट करते हुए कहा कि, 'प्रति दिन तेल उत्पादन में ये कटौती की मात्रा "नगण्य लग सकती है, लेकिन आज की कटौती से संदेश स्पष्ट है, ओपेक + को लगता है कि वे काफी नीचे चले गए हैं।'' हाल के महीनों में तेल की कीमतें काफी बढ़ी हैं और मंदी की आशंकाओं ने उन्हें नीचे धकेल दिया है, जबकि यूक्रेन पर इसके आक्रमण पर प्रतिबंधों के कारण रूसी तेल के नुकसान की चिंताओं ने उन्हें धक्का दे दिया है। हाल ही में, मंदी की आशंकाएं काफी बढ़ गई हैं और यूरोप में अर्थशास्त्री इस साल के अंत में ऊर्जा की लागत से बढ़ती महंगाई के कारण मंदी की चपेट में होने की आशंका जता रहे हैं, जबकि कोरोनोवायरस के प्रसार को रोकने के उद्देश्य से चीन के गंभीर प्रतिबंधों ने उसती अर्थव्यवस्था में होने वाले विकास को भी रोक दिया है, लिहाजा वैश्विक मंदी की गहरी आशंका जताई जा रही है और ओपेक प्लस ने तेल प्रोडक्शन में कटौती करने के पीछे सबसे बड़ी वजह यही बताई है, क्योंकि ओपेक प्लस का मानना है, कि वैश्विक मंदी के बीच तेल की डिमांड में कमी आने वाली है।
अमेरिका को हो रहा फायदा
हालांकि, तेल की गिरती कीमतें अमेरिकी ड्राइवरों के लिए एक वरदान रही हैं, जून महीने में 5 डॉलर से ज्यादा की रिकॉर्ड ऊंचाई से गैसोलीन की कीमतें 3.82 डॉलर प्रति गैलन तक चला गया था और ये राष्ट्रपति बाइडेन की चिंता बढ़ाने वाला था, क्योंकि इस साल अमेरिकी सीनेट का चुनाव होना है और पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप काफी आक्रामक अंदाज में चुनाव प्रचार कर रहे हैं। वहीं, व्हाइट हाउस की प्रेस सचिव कारीन जीन-पियरे ने कहा कि,"राष्ट्रपति ने स्पष्ट किया है कि, ऊर्जा आपूर्ति को अमेरिकी उपभोक्ताओं और दुनिया भर के उपभोक्ताओं के लिए आर्थिक विकास और कम कीमतों का समर्थन करने की मांग को पूरा करना चाहिए।" उन्होंने कहा कि, "राष्ट्रपति बाइडेन ऊर्जा आपूर्ति और ऊर्जा की कीमतों को कम करने के लिए हर आवश्यक कदम उठाने के लिए दृढ़ संकल्पित हैं।" जून महीने में इस बात का डर फैला था, कि अमेरिकी और यूरोपीय प्रतिबंधों की वजह से बाजार से रूसी तेल का डिमांड खत्म हो जाएगा, लिहाजा कच्चे तेल की कीमतें 123 डॉलर प्रति बैरल तक पहुंच गईं थीं, लेकिन अब यह स्पष्ट हो गया है, कि रूस अभी भी एशिया में महत्वपूर्ण मात्रा में तेल बेचने का प्रबंधन कर रहा है, लिहाजा तेल की कीमतें एक बार फिर से पटरी पर लौट आईं थीं।
रूसी तेल पर आशंका बरकरार
रूसी तेल आपूर्ति के नुकसान के बारे में चिंताएं अभी भी बनी हुई हैं, क्योंकि ज्यादातर अमेरिकी और यूरोपीय प्रतिबंध इस साल के अंत तक प्रभावी नहीं होंगे और इस साल के अंत तक प्रतिबंध प्रभावी होने के बाद रूसी तेल के प्रोडक्शन पर भी असर पड़ेगा। वहीं, जी-7 देशों के समूह ने भी इस साल तेल की ऊंची कीमत को कम करने के लिए और रूसी तेल मुनाफे को कम करने के उद्येश्य से रूसी तेल मूल्य पर एक कैप लगाने की योजना बना रहा है, जिसका मकसद रूस को तेल से मुनाफा कमाने से रोकना है। लिहाजा, रूस उन देशों और कंपनियों को तेल की आपूर्ति करने से मना कर सकता है जो कैप का पालन कर रहे हैं। जिसका असर भी काफी गंभीर होगा। लिहाजा आने वाले वक्त में तेल की कीमत और काफी इजाफा होने की आशंका है, जिसका प्रभाव यकीनन भारत समेत कई विकासशील देशों पर होंगे, खासकर आर्थिक संकट से जूझ रहे देशों की स्थिति और भी खराब होने की आशंका बन गई है।
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