निकी हेले ने दिया भारत को दोष, कहा मां के जज बनने के रास्ते में आए देश के हालात
यूनाइटेड नेशंस (यूएन) में अमेरिका की राजदूत निकी हेले ने कहा उनकी मां बन सकती थी एक जज लेकिन भारत में महिलाओं के साथ भेदभाव के चलते ऐसा नहीं हो सका। निकी को यूएन में देखकर मां काफी खुश।
न्यूयॉर्क। यूनाइटेड नेशंस (यूएन) में अमेरिका की राजदूत निकी हेले ने कहा है कि उनकी मां को महिला होने के कारण भारत में जज नहीं बनने दिया गया। निकी के मुताबिक उनकी मां इसके काबिल थी, लेकिन क्योंकि वह महिला थी इसलिये वह ऐसा नहीं कर पाईं। निकी ने यह बात एक कार्यक्रम को संबोधित करते हुए कही।
मां के पास थी जज बनने की क्षमता
निकी ने बताया कि उनकी मां निकी के यूएन में अमेरिकी राजदूत चुने जाने पर काफी खुश हैं। निकी ने कहा कि अगर मेरी मां जज बनती तो वह भारत की पहली महिला जजों में से एक होती। निकी ने यह बात उस सवाल के जवाब में कही जिसमें उनसे विदेशी संबंधों के संगठनों में महिलाओं के रोल के बारे में पूछा गया था। निकी ने कहा, 'जब भारत में महिलाओं के पास ज्यादा शिक्षा के अवसर नहीं थे, उनकी मां लॉ स्कूल में जाने के लायक थीं। वह भारत की पहली महिला जज बन सकती थी लेकिन उस समय देश के हालात ऐसे नहीं थे कि उन्हें इस पद पर भेजा जाता।' निकी ने कहा लेकिन आज उनकी मां यह देखकर काफी खुश हैं कि उनकी बेटी अमेरिका के साउथ कैरोलिना राज्य की पहली महिला गर्वनर और यूएन में अमेरिका की राजदूत है।
तथ्यों को जान लें निकी
जिस
समय
निकी
यह
बात
कह
रही
थीं,
उस
समय
वह
भूल
गई
कि
भारत
को
पहली
महिला
जज
वर्ष
1937
में
ही
मिल
गई
थी।
भारत
की
पहली
महिला
जज
अन्ना
चांडी
थीं
जो
कि
त्रावणकोर
की
रहने
वाली
थीं।
वह
वर्ष
1948
में
डिस्ट्रिक्ट
जज
बनीं
तो
वर्ष
1959
में
हाईकोर्ट
की
जज
बनी
थीं।
यानी
देश
की
आजादी
के
10
वर्ष
पहले
ही
भारत
को
महिला
जज
मिल
चुकी
थी।
निकी
के
पिता
का
नाम
अजित
सिंह
रंधावा
और
उनकी
माता
का
नाम
राज
कौर
रंधावा
है।
उनके
पिता
पंजाब
के
अमृतसर
में
पंजाब
एग्रीकल्चर
यूनिवर्सिटी
में
प्रोफेसर
थे।
वर्ष
1969
में
पिता
अजित
को
पीएचडी
की
डिग्री
मिली।
इसके
बाद
उन्हें
साउथ
कैरोलिना
के
वूरहीस
कॉलेज
से
प्रोफेसर
की
पोस्ट
ऑफर
हुई
और
यहां
से
निकी
का
पूरा
परिवार
साउथ
कैरोलिना
आ
गया।