गूगल-फेसबुक की दादागिरी होगी बंद, डिजिटल न्यूज कंपनियों को देनी होगी हिस्सेदारी, संसद में बिल पेश
वाशिंगटन, 25 अगस्तः अमेरिका सांसदों ने बुधवार को दिग्गज टेक कंपनियों से जुड़े उस बिल का संशोधित संस्करण संसद में पेश किया है जिसे डिजिटल समाचार प्रकाशकों के लिए फायदेमंद और टेक कंपनियों के लिए नुकसानदायक माना जा रहा है। दरअसल इस बिल के लागू होने के बाद डिजिटल पब्लिशर्स को अपने खबरों के लिए गूगल और मेटा जैसी कंपनियों से अपनी फीस के लिए डील करने में आसानी होगी। यानी अपने हक की रकम के लिए वो इस कानून के आने के बाद किसी भी बड़ी कंपनी से आसानी से बातचीत और संवाद कर सकेंगे। इससे वे अपनी उचित शर्तों को मनवा सकेंगे।
मीडिया हाउस को करना पड़ेगा भुगतान
बतादें कि अमेरिका सहित विश्व के सभी देशों में समाचार प्रकाशकों द्वारा प्रकाशित खबरों को अब तक गूगल, फेसबुक की मालिकाना कंपनी मेटा और अन्य टेक कंपनियां बिना कोई पैसा दिए उपयोग कर रही हैं। समाचार एजेंसी रॉयटर्स की रिपोर्ट के मुताबिक, 'द जर्नलिज्म कॉम्पिटिशन एंड प्रिजर्वेशन एक्ट' नाम का ये बिल न्यूज ऑर्गेनाइजेशंस यानी मीडिया हाउसों की कानूनी बाधाओं को दूर करने के साथ उन्हें उचित शर्तों के साथ सही भुगतान का रास्ता खोलेगा। इसके पास होने के बाद इन मीडिया हाउसों को उनके कंटेट का सही भुगतान मिल सकेगा।
छोटे संस्थानों को भी देगा होगा मुनाफा
यह बिल उन कंपनियों के लिए झटका है जो अभी तक नियमित रूप से न्यूज पब्लिशर्स को इसके मूल्य का भुगतान किए उनके न्यूज़ कंटेट का इस्तेमाल कर रहे हैं। वे इनसे हजारों करोड़ का मुनाफा भी कमा रही हैं, लेकिन न्यूज कंपनियों कौ फूटी कौड़ी नहीं दे रही हैं। कुछ सांसदों का मानना है कि गूगल या फेसबुक जैसी कंपनियां कंटेंट की प्रमाणिकता पर कम ध्यान देती हैं। कानून में बदलाव होने से गलत जानकारी और फेक न्यूज को काफी हद तक रोकने में मदद मिलेगी। इससे पहले लाए गए विधेयक में छोटे समाचार संस्थान शामिल नहीं थे, लेकिन संशोधन के बाद 1,500 से कम कर्मचारी संख्या वाले संस्थानों को भी इसमें शामिल किया गया है।
डिजिटल न्यूज पब्लिसर्स एसोशिएशन ने किया स्वागत
भारतीय मीडिया संगठनों के डिजिटल सहयोगी मंच डिजिटल न्यूज पब्लिसर्स एसोशिएशन ने इस बिल को एक अहम टूल बताते हुए कहा है कि यह बिल सही दिशा में उठाया गया एक बड़ा कदम है। DNPA भारत के टॉप मीडिया ऑर्गेनाइजेशन्स के डिजिटल आर्म का एक प्लेटफॉर्म है। डीएनपीए के मुताबिक यह बिल भारत में उनके रुख की पुष्टि करता है क्योंकि वे रेवेन्यू साझा करने के विषय पर इन दिग्गज टेक कंपनियों को अधिक पारदर्शी, समावेशी और अपने अनुकूल बनाने की मांग कर रहे थे। डिजिटल न्यूज पब्लिशर्स एसोसिएशन के सूत्रों ने कहा कि हम बड़ी तकनीक के खिलाफ नहीं हैं लेकिन हमें राजस्व के उचित वितरण की आवश्यकता है।
भारतीय मीडिया को होगा फायदा
ऐसा कहा जा रहा है कि अगर ये कानून जल्द ही अमल में आता है तो निश्चित रूप से दुनियाभर के मीडिया हाउस के साथ भारतीय मीडिया हाउसों को भी भविष्य में इसका फायदा मिलेगा। सबसे बड़ा फायदा यह होगा कि तमाम न्यूज पब्लिशर्स का ध्यान ऑनलाइन ट्रैफिक, पेज व्यू, एसईओ रैंकिंग के साथ न्यूज की क्वालिटी पर लगेगा। ज्यादा इनकम और मुनाफा मिलने से मीडिया कंपनियां अपने संसाधनों में सुधार कर पाएंगी। इससे सही और सटीक न्यूज समय पर पाठकों तक पहुंचाने में काफी मदद मिलेगी। पब्लिशर्स को इससे उनके कंटेंट का सही रेवेन्यू मिलने में मदद मिलेगी।
प्रॉफिट देने से कतराते हैं गूगल-मेटा
आपको बताते चलें कि गूगल-मेटा जैसी कंपनियां न्यूज ऑर्गेनाइजेशन के कंटेंट का इस्तेमाल करती है लेकिन सही मात्रा में रेवेन्यू शेयर नहीं करती। ऐसे में अमेरिका का यह कदम भारत के लिए भी महत्वपूर्ण साबित होगा। भारत सरकार और देश के समाचार संगठन दोनों ही डिजिटल मीडिया स्पेस को डेमोक्रेटाइज करना चाहते हैं और अमेरिका का ये कदम उस दिशा में एक बड़ा कमद है। ऐसा इसलिए क्योंकि अमेरिका को लोकतंत्र और फ्री स्पीच के सिलसिले में एक दिशानिर्देशक के रूप में देखा जाता है।
गूगल-मेटा कर रहा बिल का विरोध
उम्मीद के मुताबिक गूगल और मेटा द्वारा इस विधेयक का विरोध किया जा है। उन्होंने अमेरिका में कंप्यूटर एंड कम्यूनिकेशन इंडस्ट्री एसोसिएशन खड़ी कर ली है। इसके साथ ही उन्होंने नेटचॉइस नाम से भी एक अन्य उद्योग समूह बनाया है। इन दोनों ने अमेरिकी सरकार की मंशा का विरोध किया है।
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