डबलिन में भारतवासियों के समक्ष प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का पूरा भाषण
डबलिन। अमेरिकी दौरे से पहले आयरलैंड पहुंचे भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने डबलिन में भारतीय समुदाय के लोगों से मुलाकात की। यहां स्वागत समारोह में प्रधानमंत्री ने भाषण दिया जो इस प्रकार है:
आयरलैंड में बसे सभी भारतीयों को नमस्कार,
मुझे सबसे पहले तो आप सबकी क्षमा मांगनी है, क्षमा इसलिए मांगनी है कि मुझे आपको ज्यादा टाइम देना चाहिए था। बहुत लोगों की शिकायत है कि हमें आने के लिए एडमिशन नहीं मिला, प्रवेश नहीं मिला। अच्छा होता मैं जरा ज्यादा समय लेकर आया होता, तो यहां बसे हुए भारतीयों को बहुत बड़ी संख्या में मिल पाता। लेकिन मैं इतना कहूंगा कि यह शुभ शुरूआत है।
आप में से बहुत लोग ऐसे होंगे, शायद बहुत कम ऐसे होंगे, जिनको यह याद होगा कि कभी भारत के प्रधानमंत्री यहां आएं थे। क्योंकि मुझे बताया गया कि करीब 60 साल के बाद भारत के कोई प्रधानमंत्री यहां आए हैं। वैसे दिल्ली से न्यूयॉर्क तो हर बार जाना पड़ता है और आकाश में तो यहीं से गुजरते हैं। तो आप लोगों के प्यार ने मुझे खींच लिया, तो ऊपर से मैं नीचे आ गया।
आज मेरी यहां के प्रधानमंत्री के साथ बड़ी विस्तार से बातें हुई है। अब बहुत समय कम था, लेकिन मीटिंग बहुत बढि़या रही, इतने विषयों पर चर्चा हुई है। कितनी बातों पर सहमति का माहौल है। मैं समझता हूं कि आयरलैंड के साथ भारत के संबंध और अधिक गहरे होने चाहिए। अनेक विषयों के साथ जुड़े हुए होने चाहिए। और 2016 में आयरलैंड अपनी आजादी की शताब्दी मना रहा है, आजादी के संघर्ष की शताब्दी मना रहा है।
भारत भी उसी समय आजादी का संघर्ष कर रहा था और एक प्रकार से भारत भी आजादी की लड़ाई लड़ता था, आयरलैंड भी आजादी की लड़ाई लड़ता था और सच में यह हमारी सांझी विरासत है। हम सोच रहे है कि यह 2016 का, आयरलैंड का आजादी का जो संग्राम है, इस शताब्दी में भारत भी भागीदार बने, भारत भी आयरलैंड हो।
आयरलैंड और भारत की जो विशेषताएं हैं कुछ मूल्य बहुत किसी न किसी कारण से, एक-दूसरे से जुड़े हुए हैं। जैसे भारत में सत्य के लिए जीना-मरना। यह सदियों से हम सुनते आए हैं। एक आदर्श के लिए, विचार के लिए बलि चढ़ जाना। खुद को कष्ट देते हुए जीवन को समाप्त कर देना।
यह हम सदियों से सुनते आए हैं, लेकिन कहते हैं 1920 में आयरलैंड में भूख हड़ताल हुई और यहां के नागरिक ने अपना जीवन समर्पित कर दिया था। यानि वैल्यू हमारे कितने मिलते-जुलते होंगे, इसका अंदाजा लगा सकते हो आप। मानवता से जुड़ी हुई इन बातों में अपनी एक ताकत है। और हमारी कोशिश यही है उन्हीं चीजों को हम बल दे।
अब आईरिश बच्चे संस्कृत में मंत्रोच्चार कर रहे हैं, स्वागत गान गा रहे हैं। और वे रटे-रटाए शब्द बोल रहे थे, ऐसा मुझे नहीं लगा। किस शब्द में उनका क्या भाव था, वो भी अभिव्यक्त हो रहा था, मतलब उन्होंने इस बात को इंटरनलाइज कर लिया था। उनके जो भी शिक्षक इस काम को करते होंगे, मैं उनको बधाई देता हूं। लेकिन ये खुशी की बात है आयरलैंड में तो हम ये कर सकते हैं, लेकिन हिंदुस्तान में कुछ ऐसा करते तो पता नहीं, सेक्युलरिज्म पर सवालिया निशान खड़ा हो जाता।
लेकिन इन दिनों बदलाव आ रहा है। आप देखिए योग, दुनिया उसको योगा कहती है। सारी दुनिया नाक पकड़ने लग गई है। विश्व के सभी देशों ने अंतरराष्ट्रीय योगा दिवस मनाया। भारत के ये हजारों साल पुराना विज्ञान, आज होलिस्टिक हेल्थ केयर के लिए, प्रिवेंटिव हेल्थ केयर के लिए, एक बहुत बड़ी स्वीकार्य, स्वीकृत पद्धति के रूप में पूरे विश्व में फैल चुका है। और पहले हमारे यहां कल्पना क्या थी, अगर इलनेस नहीं है, तो आप स्वस्थ हैं, अब ये विचार भारतीय चिंतन का नहीं है।
बीमारी नहीं, मतलब स्वस्थ! ये हमारी सोच नहीं है। हम उससे दो कदम आगे वेलनेस की चर्चा करते हैं। हमारी कल्पना वेलनेस थी और यही योगा उस वेलनेस से जुड़ा हुआ है। सिर्फ रोग से मुक्त है, इसलिए आप स्वस्थ है ऐसा नहीं है। तो भारत की मूल बातें विश्व स्वीकार करने लगा है, लेकिन दुनिया तब स्वीकारती है जब भारत में दम हो। अगर भारत में दम नहीं हो, तो दुनिया क्यों पूछेगी भाई।
आज पूरे विश्व में भारत के विकास की चर्चा हो रही है। 21वीं सदी ‘एशिया की सदी', यह सारी दुनिया ने मान लिया है। लेकिन 21वीं सदी ‘एशिया की सदी', फिर धीरे-धीरे देखते हैं, तो उनको लगता है यार हो सकता है हिंदुस्तान की हो जाए। यह दुनिया मानने लगी।
एक ब्रिक्स कॉन्सेप्ट आया 1980 के दशक में ब्राजील, रूस, भारत, साउथ अफ्रीका, चीन, ब्रिक्स शब्द पॉपुलर होगा। लेकिन कुछ वर्ष पहले कि B, R, C, S इनकी तो गाड़ी पटरी पर है। आई (I) जो है वो लुढ़क गया है। ऐसी चर्चा थी और लोग यहां तक कहते थे, शायद I (आई) इंडिया की जगह, I (आई) इंडोनेशिया ले लेगा। यह चर्चा थी। आज वर्ल्ड बैंक हो आईएमएफ हो क्रेडिट रेटिंग एजेंसी हों, सब कह रहे हैं कि BRICS में अगर कोई ताकत वाला है, तो I (आई) है। सारी दुनिया की रेटिंग एजेंसी कह रही है कि भारत दुनिया के बड़े देशों की सबसे तेज गति से आगे बढ़ने वाली अर्थव्यवस्था है, सबसे तेज, पूरी दुनिया में।
अगर यह सिलसिला और आगे बढ़ा और ज्यादा नहीं 30 साल, 30 साल अगर हम इस ऊँचाई पर चलते रहे, तो हिंदुस्तान में गरीबी का नामो-निशान नहीं रहेगा। नौजवान को रोजगार मिलेगा, लेकिन 30 साल तक इस गति को बनाए रखना यह बहुत बड़ी चुनौती है। लेकिन यह चुनौती हम पार कर पाएंगे, क्योंकि हम एक ऐसी ताकत के कालखंड में हैं, जिसकी हमने कभी कल्पना तक नहीं की है। और वो है 65 प्रतिशत जनसंख्या हिंदुस्तान की, 35 साल से कम उम्र की है। भारत नौजवान है, भारत नौजवानों का है और भारत नौजवानों की ताकत पर बनने वाला है। यह जो सामर्थ्य मिला है, यह अगले 30 सालों का सपना पूरा कर सकता है।
देश विकास की नई ऊंचाईयों को पार कर रहा है। सभी क्षेत्रों में देश को आगे बढ़ाने के लिए सफल बनाने के प्रयास हो रहे हैं। और विश्वभर में फैले हुए भारतीय जन भी आज सीना तान करके, आँख में आँख मिला करके दुनिया के साथ भारत की बात करने लगे हैं। इससे बड़ा गर्व क्या हो सकता है। अब किसी भारतीय को सर झुकाने के दिन नहीं हैं, सीना तानकर के खड़े रहने का दिन है। और यही बड़ी ताकत होती है, यही बड़ी ताकत होती है।
मैं आप सबको मुझे मिलने का मुझे अवसर मिला, मैं आपका बहुत ही, और इस समय में भी क्योंकि मेरा कार्यक्रम बहुत कम समय में बना। इतनी बड़ी संख्या में आप लोग आए और मुझे आपके राजदूत कह रहे थे कि, इतनी मारामारी चल रही है कि हम किस को रोके, किसको लाएं, ज्यादा समय मिला होता तो अच्छा होता, लेकिन फिर भी मैंने पहले कहा है ऐसे कि ये एक शुभ शुरुआत है, ये रिश्ता और...और नाता जुड़ता रहेगा और भारत के प्रधानमंत्री को यहां आने में अब 60 साल नहीं लगेंगे, ये मैं विश्वास दिलाता हूं आपको।
बहुत-बहुत धन्यवाद।