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mRNA वैक्सीन बनाने वाले वैज्ञानिक का दावा, युवाओं में वैक्सीन से खतरा ज्यादा, आंकड़े छिपा रही सरकार

डॉ रॉबर्ट मेलोन ने इंटरव्यू के दौरान दावा किया है कि mRNA वैक्सीन से युवाओं को लाभ होने के बजाए नुकसान ज्यादा होगा।

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वॉशिंगटन, जून 25: एमआरएनए वैक्सीन बनाने वाले अमेरिकी वैज्ञानिक ने चेतावनी देते हुए दावा किया है कि जवानों को कोरोना वायरस वैक्सीन को देने को लेकर सरकार पारदर्शी नहीं है और सरकार को जवानों को वैक्सीन देने के लिए प्रशर नहीं डालना चाहिए और सरकार वैक्सीन लगने के बाद आने वाले खतरे को सही तरीके से बता नहीं रही है। एमआरएनए वैक्सीन बनाने वाले वैज्ञानिक के इस दावे के बाद पूरी दुनिया में तहलका मच गया है और यू ट्यूब ने वैज्ञानिक डॉ. रॉबर्ड मेलोन वीडियो को डिलीट कर दिया है। उन्होंने फॉक्स न्यूज को दिए एक इंटरव्यू में कहा है कि बच्चों और जवानों में जिस एमआरएनए तकनीक से बनाई गई वैक्सीन का इस्तेमाल किया जा रहा है, उस वैक्सीन से कितना ज्यादा रिस्क है, इसको छिपाया गया है।

तहलका मचाने वाला दावा

तहलका मचाने वाला दावा

डॉ रॉबर्ट मेलोन, जिन्होंने एमआरएनए तकनीक का आविष्कार किया था, और जिस तकनीक के आधार पर अमेरिका में मॉडर्ना और फाइजर वैक्सीन बनाई गई है, उस तकनीक पर गंभीर सवाल उठाए हैं। उन्होंने बुधवार रात फॉक्स न्यूज को इंटरव्यू देते हुए एंकर टकर कार्लसन को कहा कि अलग अलग आयु वर्ग के लोगों में एमआरएनए टेक्नोलॉजी का अलग अलग असर हो सकता है और अलग अलग आयु वर्क के लोगों ने इस तकनीक से बनाई गई वैक्सीन का क्या असर होगा, इसका अभी तक अध्ययन ही नहीं किया गया और जो रिसर्च हुआ है, उसका डेटा अभी पर्याप्त नहीं है, और उससे रिस्क के बारे में पता नहीं चला है, इसीलिए एमआरएनए टेक्नोलॉजी के द्वारा बनाए गये वैक्सीन पर फौरन विश्वास नहीं करना चाहिए। खासकर जवान वर्ग, उनमें भी जिनकी उम्र 18 साल से 22 साल के बीच है, उन्हें जबरदस्ती वैक्सीन लगाने के लिए बाध्य नहीं करना चाहिए। क्योंकि उनके ऊपर वैक्सीन का विपरीत असर हो सकता है। उन्होंने इंटरव्यू में कहा कि 'मुझे नहीं लगता है हमें हासिल होने वाला लाभ, उससे होने वाले खतरे से ज्यादा मिलेगा। खासकर 18 से 22 साल उम्र वर्ग वाले जवान लोगों को। लेकिन, दुर्भाग्यवश खतरे को लेकर विश्लेषण नहीं किया जा रहा है।'

सरकार पर बेहद गंभीर आरोप

सरकार पर बेहद गंभीर आरोप

डॉ रॉबर्ट मेलोन ने इंटरव्यू के दौरान दावा किया कि "मेरी चिंता यह है कि मुझे पता है कि रिस्क है। लेकिन हमे डेटा उपलब्ध नहीं करवाए गये हैं। हमारे पास डेटा नहीं है। और इसलिए, मेरी राय है कि लोगों को यह तय करने का अधिकार होना चाहिए कि उन्हें टीका लगवाना है या नहीं। क्योंकि वैक्सीन पूरी तरह से लोगों के ऊपर एक एक्सपेरीमेंट है। रिपोर्ट के मुताबिक डॉ रॉबर्ट मेलोन ने अमेरिका के सेंटर फॉर डिजीज कंट्रोल एंड प्रिवेन्शन के सामने अपनी चिंता जताई थी, जिसपर एडवाइजरी पैनल ने भी माना था कि फाइजर और मॉडर्न की एमआरएनए वैक्सीन लगने के बाद युवाओं को होने वाले हार्ड में होने वाले सूजन के बीच कोई लिंक है, लेकिन एडवाइजरी पैनल ने इस घटना को दुर्लभ माना।

भारत के लिए चिंता की बात नहीं

भारत के लिए चिंता की बात नहीं

आपको बता दें कि अमेरिका में फाइजर और मॉडर्ना वैक्सीन का इस्तेमाल किया जा रहा है और इसे एमआरएनए तकनीक से बनाया गया है। जबकि भारतीय वैक्सीन अलग तकनीक से बनी है। भारत में अभी तक अमेरिकी वैक्सीन का इस्तेमाल नहीं हो रहा है, लिहाजा भारत के लोगों के लिए चिंता की कोई बात नहीं है। वहीं, एक बात जानना और जरूरी है कि कैंसर और एड्स के लिए जो वैक्सीन बनाई जा रही है, उसी वैक्सीन को बनाने के लिए एमआरएनए तकनीक का इजाद अमेरिका के मशहूर वैज्ञानिक डॉ. रॉबर्ड मेलोन ने किया था और उन्होंने ही कोरोना वैक्सीन को लेकर खलबली मचाने वाले आरोप लगाए हैं। वहीं, अमेरिका में इस्तेमाल होने वाली वन शॉट जॉनसन एंड जॉनसन वैक्सीन को पारंपरिक तरीके से वैक्सीन का निर्माण किया है। मेलोन ने अपनी वेबसाइट पर कहा था कि उन्होंने 1988 में मैसेंजर mRNA थैरेप्यूटिक्स टेक्नोलॉजी का आविष्कार किया था। जिसको लेकर आधुनिक वैज्ञानिकों का कहना है कि ये टेक्नोलॉजी कोरोना वायरस वैक्सीन बनाने में मील का पत्थर साबित हो रही है।

जवानों पर ज्यादा खतरा

जवानों पर ज्यादा खतरा

डॉ रॉबर्ट मेलोन के सनसनीखेज दावे के बाद अमेरिका में डॉक्टरों के एक ग्रुप ने भी माना है कि एमआरएनए तकनीक से बनी कोरोना वायरस वैक्सीन का दूसरा डोज लेने के बाद युवाओं में हृदय संबंधी कई बीमारियां पाई गई हैं। डॉक्टरों के मुताबिक युवाओं को मायोकार्डिटिस या पेरीकार्डिटिस का खतरा वैक्सीन का दूसरा डोज लेने के बाद काफी बढ़ जाता है।

क्या है एमआरएनए टेक्नोलॉजी?

क्या है एमआरएनए टेक्नोलॉजी?

आपको बता दें कि अब तक वैक्सीन बनाने के लिए पारंपरिक टेक्नोलॉजी का इस्तेमाल किया जाता था। जिसके तहत किसी वायरस को प्रयोगशाला में काफी कमजोर कर दिया जाता था और फिर उससे वैक्सीन बनाया जाता था। जब वायरस का कमजोर रूप शरीर में जाता है तो हमारे शरीर का प्रतिरोधी सिस्टम काफी एक्टिव हो जाता है और वायरस के खिलाफ एंटीबॉडी बना लेता है। जबकि कमजोर वायरस शरीर को नुकसान नहीं पहुंचा पाता है। जबकि एमआरएनए टेक्नोलॉजी के तहत वायरस के जेनेटिक कोड का इस्तेमाल कर वैक्सीन बनाया जाता है। एमआरएनए वैक्सीन शरीर में जब इंजेक्ट किया जाता है और जब वैक्सीन शरीर के कोशिकाओं में प्रवेश करता है और उन्हें एंटीजन बनाने के लिए प्रेरित करता है। ये एंटीजन प्रतिरक्षा प्रणाली द्वारा पहचाने जाते हैं और इसे कोरोनावायरस से लड़ने के लिए तैयार करते हैं। एमआरएनए वैक्सीन बनाने के लिए वास्तविक वायरस की जरूरत नहीं पड़ती है।

एमआरएनए वैक्सीन का उत्पादन ज्यादा

एमआरएनए वैक्सीन का उत्पादन ज्यादा

एमआरएनए टेक्नोलॉजी से वैक्सीन बनाने के लिए वास्तव में वायरस की जरूरत नहीं पड़ती है, लिहाजा एमआरएनए टेक्नोलॉजी के जरिए काफी तेजी से वैक्सीन का उत्पादन संभव है। अमेरिका में इसीलिए काफी तेजी से वैक्सीन का उत्पादन किया जा रहा है, जबकि भारत में वैक्सीन बनाने के लिए ऑरिजनल वायरस की जरूरत होती है, लिहाजा भारत में वैक्सीन के उत्पादन की गति कम है। वहीं, डॉ रॉबर्ट मेलोन ने कहा है कि अमेरिकी सरकार 12 साल से ज्यादा उम्र वाले लोगों पर वैक्सीन लेने के लिए दवाब बना रही है, जबकि सरकार के पास रिसर्च का पूरा डेटा ही नहीं है और वैक्सीन लेने के बाद होने वाले खतरे का कोई अंदाजा नहीं है। वहीं, अमेरिकी सरकार के प्रमुख महामारी वैज्ञानिक सलाहकार डॉ. एंथनी फाउची ने कहा कि 'डॉ रॉबर्ट मेलोन के पास अपनी बात रखने का अधिकार है और बोलने के अधिकार के तहत वो अपनी बात रखने के हकदार हैं'। जबकि यूट्यूब ने उनके वीडियो को डिलीट कर दिया है।

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English summary
The scientist who invented mRNA technology has said that mRNA vaccine can prove to be dangerous for the youth. The government is negligent.
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