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ईरान या अमरीका-किसके साथ खड़ा होगा भारत

भारत ने हाल के दिनों में चीन और रूस के साथ संबंध बढ़ाने की कोशिश की है. भारत के इस क़दम से अमरीका की नाराज़गी और बढ़ेगी.

भारत चीन और रूस के जैसा ताक़तवर भी नहीं है कि अमरीका से टकराव का रास्ता चुन ले. वो अपने आप को भले ही क्षेत्रीय ताक़त या आर्थिक पावरहाउस समझता हो, लेकिन अमरीका के नज़दीक उसकी हैसियत एक जूनियर पार्टनर से ज़्यादा नहीं है.

By BBC News हिन्दी
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मोदी और रूहानी
Getty Images
मोदी और रूहानी

अमरीका अगले हफ़्ते ईरान के ख़िलाफ़ नए और बेहद सख़्त प्रतिबंध लागू करने के मुद्दे पर भारत के साथ बातचीत करने वाला है.

अमरीका ईरान के साथ परमाणु समझौते से अलग होने के बाद पहली पाबंदियां छह अगस्त और आख़िरी पाबंदियां चार नवंबर को लागू करेगा.

अमरीका ने भारत से कहा है कि वो ईरान के साथ अपने संबंधों की समीक्षा करे और चार नवंबर तक ईरान से तेल का आयात पूरी तरह बंद कर दे.

भारत चीन के बाद ईरान से कच्चा तेल ख़रीदने वाला दूसरा सबसे बड़ा ख़रीददार है. वहीं ईरान अपना दस प्रतिशत तेल निर्यात सिर्फ़ भारत को करता है.

ईरानी अख़बार तेहरान टाइम्स ने लिखा है कि साल 2012 से 2016 के बीच ईरान के ख़िलाफ़ अमरीका और यूरोपीय संघ के प्रतिबंधों के बावजूद ईरान भारत को कच्चा तेल बेचने वाला सबसे बड़ा देश था.

इसी साल फ़रवरी में ईरानी राष्ट्रपति हसन रूहानी के दिल्ली दौरे के बाद ईरान में पेट्रोलियम, ग़ैर और ऊर्जा के क्षेत्र में भारत की हिस्सेदारी तेज़ी से बढ़ी है.

भारत ईरान में चाबहार बंदरगाह का निर्माण भी कर रहा है जो अफ़ग़ानिस्तान के लिए एक नया रास्ता भी खोलेगा.

पूर्व अमरीकी राष्ट्रपति बराक ओबामा के दौर में अमरीका ने भारत को ईरान से तेल ख़रीदने और चाबहार बंदरगाह के निर्माण के मामले में छूट दे रखी थी.

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चाबहार
AFP
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भारत कच्चे तेल का भुगतान का कुछ हिस्सा तुर्की के एक बैंक के ज़रिए यूरो में करता है और बाक़ी भुगतान भारतीय रुपए में करता है. अमरीका और यूरोपीय देशों के साथ परमाणु समझौते के बाद भारत और ईरान के बीच आर्थिक और व्यापारिक संबंध तेज़ी से सुधर रहे थे.

लेकिन अमरीकी राष्ट्रपति डोनल्ड ट्रंप के अमरीका को ईरान के परमाणु समझौते से अलग करने के ऐलान के कुछ हफ़्ते बाद भारतीय विदेश मंत्री सुषमा स्वराज ने एक प्रेस कांफ्रेंस में कहा था कि भारत किसी की पाबंदियों को स्वीकार नहीं करता और वह सिर्फ़ संयुक्त राष्ट्र की ओर से लगाए गए प्रतिबंधों को मानेगा.

ईरान ने भारत के इस रवैये की प्रशंसा की थी और इसे एक सैद्धांतिक मानक कहा था. लेकिन अमरीका में इसकी अच्छी प्रतिक्रिया नहीं हुई थी.

संयुक्त राष्ट्र में अमरीका की दूत निकी हेली जून में दिल्ली के दौरे पर आईं थीं. उन्होंने भारत से साफ़ शब्दों में कहा कि वो ईरान से अपने आर्थिक संबंधों की समीक्षा करे और नवंबर के निर्धारित समय तक ईरान से तेल ख़रीदना पूरी तरह बंद करे.

अभी निकी हेली दिल्ली में ही थीं कि 27 जून को वाशिंगटन में अमरीकी प्रशासन ने ऐलान किया कि भारत और अमरीका के विदेश मंत्रियों और रक्षा मंत्रियों के बीच छह जुलाई को होने वाली वार्ता टाल दी गई है.

हालांकि अमरीका ने इसकी वजह अमरीकी विदेश मंत्री का उत्तर कोरिया के मुद्दे पर व्यस्त होना बताया था लेकिन भारत में इसे ईरान के सवाल से ही जोड़कर देखा गया. बीते दिनों अमरीकी अधिकारियों ने साफ़ कर दिया कि भारत की जो कंपनियां ईरान के साथ व्यापार कर रही होंगी उन को भी अमरीका की ओर से लगाए जाने वाले उन प्रतिबंधों का सामना करना होगा जो दूसरी कंपनियों पर लगेंगे.

भारत ने अभी ये साफ़ नहीं किया है कि उसने ईरान से तेल की ख़रीद के सिलसिले में क्या फ़ैसला लिया है. क्या वो ईरान को छोड़ कर अमरीका के साथ खड़ा होगा या वो अपने सैद्धांतिक मानकों को मानते हुए ईरान का साथ देगा और अमरीका की नाराज़गी का ख़तरा मोल लेगा.

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EPA
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तेहरान टाइम्स हाल के दिनों में छपे एक लेख में लिखा कि भारत की तेल कंपनियों ने अपनी रिफ़ाइनरियों से कहा है कि वो नवंबर में ईरान से तेल की सप्लाई बंद होने के लिए ख़ुद को तैयार रखें. तेल की क़ीमतें पहले ही बढ़ रही हैं और ईरानी तेल की सप्लाई बंद होने से क़ीमतों का बढ़ना तय है.

भारत के लिए ये एक मुश्किल स्थिति है. एक तरफ़ ईरान से उसके संबंध गहरे हैं और दूसरी ओर वो ईरान परमाणु समझौते से अमरीका के अलग होने के फ़ैसले से भी सहमत नहीं है. चीन और तुर्की ने अमरीका की पाबंदियों को अस्वीकार कर दिया है जबकि यूरोपी देशों ने भी कहा है कि वो ईरान से परमाणु समझौते को बरक़रार रखेंगे.

भारत पर इस समय अमरीकी दबाव बढ़ता जा रहा है. अगले कुछ हफ़्तों में अमरीकी अधिकारी भारत से बातचीत शुरू कर रहे हैं.

डोनल्ड ट्रंप के राष्ट्रपति बनने के बाद भारत में काफ़ी उम्मीदें पैदा हुईं थीं कि दोनों जगह दक्षिणपंथी नज़रिए वाली सरकारें होने से दोनों देशों के रिश्तों में ज़बरदस्त बेहतरी आएगी लेकिन वो शुरुआती जोश अब ठंडा पड़ चुका है. ट्रंप के कई फ़ैसलों से भारत को नुक़सान पहुंचा हैं.

भारत ने हाल के दिनों में चीन और रूस के साथ संबंध बढ़ाने की कोशिश की है. भारत के इस क़दम से अमरीका की नाराज़गी और बढ़ेगी.

भारत चीन और रूस के जैसा ताक़तवर भी नहीं है कि अमरीका से टकराव का रास्ता चुन ले. वो अपने आप को भले ही क्षेत्रीय ताक़त या आर्थिक पावरहाउस समझता हो, लेकिन अमरीका के नज़दीक उसकी हैसियत एक जूनियर पार्टनर से ज़्यादा नहीं है.

भारत को ईरान के मामले पर जल्द ही कोई फ़ैसला करना होगा. कांग्रेस पार्टी का कहना है कि ईरान से तेल की ख़रीद बंद करना देश के हित में नहीं होगा लेकिन क्या भारत अमरीका की पाबंदियों का सामना करने के लिए तैयार है?

या फिर वो पाबंदियों के ज़रिए ईरान को आर्थिक तौर पर तबाह करने के लिए अमरीका, इसराइल और सऊदी अरब जैसे ईरान विरोधी देशों के साथ खड़ा होगा?

भारत के सामने ये बहुत बड़ी कूटनीतिक, आर्थिक और नैतिक चुनौती है. भारत के पास वक़्त कम और दबाव बहुत ज़्यादा है.

BBC Hindi
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English summary
Iran or America with whom will India stand
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