रूस ने एक बार फिर नहीं दिया दोस्त भारत का साथ, नाराज होकर भी चुप रह गये इंडियन डिप्लोमेट
दोस्त रूस के बयान से भारत काफी असहज स्थिति में है, हालांकि भारत ने अभी तक रूस के बयान पर आपत्ति नहीं जताई है।
मॉस्को, अक्टूबर 22: दोस्त रूस ने एक बार फिर से अफगानिस्तान के मुद्दे पर भारत का साथ नहीं दिया है, जिसकी वजह से भारत नाराज तो है, लेकिन दोस्ती का लिहाज करते हुए भारतीय डिप्लोमेट्स ने कोई आपत्ति नहीं जताई है। अफगानिस्तान के मुद्दे पर ये एक और मौका है, जब दोस्त रूस ने भारत को अकेला छोड़ दिया है। इससे पहले भी रूस ने भारत को बड़ा झटका दिया था।
रूस ने नहीं दिया भारत का साथ
तालिबान से बात करने और अफगानिस्तान मुद्दे पर शांतिपूर्वक नतीजे तक पहुंचने के लिए ट्रॉइक प्लस का निर्माण किया गया था, जिसमें भारत को भी शामिल करने की मांग की गई थी, लेकिन तमाम मांगों को अनसुना करते हुए रूस ने भारत को उस ग्रुप में शामिल नहीं किया था और अब जब अफगानिस्तान में तालिबान का शासन स्थापित हो चुका है, तो एक बार फिर से रूस ने भारत को झटका दिया है। रूस में पिछले हफ्ते मॉस्को फॉर्मेट वार्ता का आयोजन किया गया था, जिसमें इस बार रूस ने भारत को तो बुलाया था, लेकिन वहां पर रूस की तरफ से जो बयान दिया गया है, वो भारत को असहज करने वाला था।
भारत को झटका देने वाला बयान
मॉस्को में होने वाली बैठक में इस बार अमेरिका शामिल नहीं हुआ था और बुधवार को वार्ता के बाद जो बयान जारी किया गया है, उसके बारे में ऐसा माना जा रहा है कि, वो भारत को असहज स्थिति में डालने वाला बयान था। लेकिन, भारत ने दोस्ती का लिहाज करते हुए रूस के बयान पर कोई आपत्ति नहीं जताई, लेकिन ऐसी रिपोर्ट है कि रूस के बयान से भारत के मन में नाराजगी है। मॉस्को में आयोजित की गई बैठक में भारत के अलावा चीन, रूस और पाकिस्तान भी शामिल हुआ था, लेकिन बैठक के बाद जो बयान जारी किया गया है, उसमें पूरी तरह से भारतीय हितों की उपेक्षा की गई है।
भारत के हितों की उपेक्षा
ऐसी रिपोर्ट है कि, मॉस्को फॉर्मेट के बयान में अफगानिस्तान का असली शासक तालिबान को मान लिया गया है, जैसा की चीन और पाकिस्तान लगातार चाह रहे हैं। लाइव मिंट की रिपोर्ट के मुताबिक, इस बयान में कहा गया है कि, अफगानिस्तान के साथ जुड़ाव में तालिबान की वास्तविकता का ध्यान रखना होगा और अफगानिस्तान की हकीकत ये है कि देश में तालिबान का शासन है। लिहाजा, अफगानिस्तान में मानवीय सहायता भेजने के लिए अफगानिस्तान की नई वास्तविकता का ध्यान रखना होगा। बैठक के बाद जारी किया गया ये बयान भारतीय हितों के साफ खिलाफ है और पाकिस्तान के मन-मुताबिक है।
बयान में तालिबान को बताया 'सरकार'
मॉस्को के बयान में अफगानिस्तान में तालिबान को अफगानिस्तान के नये सरकार के तौर पर प्रस्तुत किया गया है और उससे अफगानिस्तान की शासन प्रणाली में सुधार लाने और देश में समावेशी सरकार बनाने के लिए और कदम उठाने का आह्वान किया गया, जो "देश में सभी प्रमुख जातीय-राजनीतिक ताकतों के हितों" को दर्शाता है। दरअसल, भारत का मानना है कि, तालिबान असल में पाकिस्तान के हाथों की कठपुतली है और अगर जल्दबाजी में तालिबान को अफगानिस्तान का सरकार बताया जाने लगा, तो फिर भारत के लिए स्थिति सही नहीं होगी। लेकिन, भारत के साथ दिक्कत ये है कि, कि ये बयान करीबी दोस्त रूस की तरफ से जारी किया गया है, लिहाजा भारत की तरफ से कोई आपत्ति दर्ज नहीं कराई गई है।
क्यों चुप है भारत?
विश्लेषकों का मानना है कि, चूंकी अफगानिस्तान के सभी पड़ोसी देश तालिबान के पक्ष में झुके हुए हैं, लिहाजा भारत नहीं चाहता है कि वो रूस के खिलाफ जाकर उसके बयान पर आपत्ति जताए और खुद को इस ग्रुप के बयान से अलग कर ले। भारत ने रूस की बयान की आलोचना भी नहीं की है, लेकिन अभी तक एक बात साफ नहीं हो पाई है कि, जो बयान जारी किया गया है, वो सभी देशों की सहमति के आधार पर जारी की गई है, कि या फिर इस बयान का लेना-देना सिर्फ रूस से है? मिंट की रिपोर्ट के मुताबिक, अभी के लिए भारत, जिसका प्रतिनिधित्व जेपी सिंह ने किया था, वो पाकिस्तान-अफगानिस्तान-ईरान डेस्क के प्रमुख हैं और भारतीय विदेश मंत्रालय में यूरेशिया के प्रभारी संयुक्त सचिव आदर्श स्विका ने अपनी-अपनी बेचैनियों को अपने तक ही सीमित कर रखा है।
तालिबान के दावे पर भारत
नई दिल्ली ने भी तालिबान के एक वरिष्ठ नेता के हवाले से उन खबरों का खंडन नहीं किया है, जिनमें कहा गया है कि भारत अफगानिस्तान को खाद्य सहायता भेजने के लिए तैयार है। यह बयान बुधवार को तालिबान टीम के साथ मास्को वार्ता में भारतीय प्रतिनिधिमंडल की मुलाकात के बाद आया था। संयुक्त राष्ट्र विश्व खाद्य कार्यक्रम (डब्ल्यूएफपी) के एक वरिष्ठ अधिकारी ने पहले कहा था कि, संगठन अफगानिस्तान को खाद्य सहायता के मुद्दे पर नई दिल्ली के संपर्क में है। वरिष्ठ अधिकारी ने कहा कि, "यह बातचीत अब कुछ हफ्ते से चल रही है। इसलिए उम्मीद है कि हम इसे एक अच्छे निष्कर्ष पर ला सकते हैं और उम्मीद है कि हम मदद कर पाएं, क्योंकि अफगानिस्तान को वास्तविक मदद की जरूरत है"।
FATF क्या है, जिसने पाकिस्तान के 'भाईजान' तुर्की को भी ग्रे लिस्ट में डाला? जानिए क्या होगा असर