
NATO और भारत के बीच बंद कमरे में हुई बड़ी बैठक, क्या सैन्य गठबंधन में भारत को होना चाहिए शामिल?
नई दिल्ली, अगस्त 12: सार्वजनिक चकाचौंध से दूर भारत ने नाटो के साथ बातचीत के द्वार खोल दिए हैं और इंडियन एक्सप्रेस ने दावा किया है, कि नाटो और भारत के उच्च स्तरीय अधिकारी के बीच बंद कमरे में पहली बड़ी बातचीत 12 दिसंबर 2019 को हुई थी। इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के मुताबिक, नाटो यानि उत्तरी अटलांटिक संधि संगठन और भारतीय उच्चाधिकारियों के बीच ब्रसेल्स में ये पहली राजनीतिक बातचीत हुई थी और भारत में संबंधित मुद्दों के समाधान के लिए जल्द ही एक और नई बैठक होने की उम्मीद है। रिपोर्ट के मुताबिक, नाटो के साथ हुई इस बैठक में भारत की तरफ से विदेश और रक्षा मंत्रालय के काफी सीनियर अधिकारियों ने भाग लिया था।

12 दिसंबर 2019 को बातचीत
रिपोर्ट के मुताबिक, नाटो और भारतीय टीम के बीच हुई इस बैठक में बातचीत का मुख्य आधार रणनीतिक नहीं होकर राजनीतिक रखा गया था और पता चला है कि, भारत ने बातचीत का मुद्दा पूरी तरह से राजनीतिक इसलिए रखा था, ताकि ये बातचीत किसी तरह की प्रतिबद्धता ना लगे, ना ही सैन्य और ना ही द्विपक्षीय सहयोग संबंधित। द इंडियन एक्सप्रेस ने रिपोर्ट किया है, कि इस बैठक के परिणामस्वरूप, भारतीय प्रतिनिधिमंडल ने अनिवार्य रूप से पारस्परिक हित के क्षेत्रीय और वैश्विक मुद्दों पर सहयोग का आकलन करने का प्रयास किया। लेकिन, अब एक बार फिर से नाटो और भारत के बीच बैठक होने वाली है, लेकिन इस बार भारत अपनी चिंताओं को नाटो के साछ उठाएगा और एक्सपर्ट्स का कहना है, कि भारतीय चिंता का मुख्य आधार चीन हो सकता है।

बेहद महत्वपूर्ण है नाटो के साथ वार्ता
इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट में कहा गया है, कि नाटो यानि उत्तरी अटलांटिक गठबंधन, चीन और पाकिस्तान, दोनों के साथ द्विपक्षीय बैठक में संलग्न रहा है, लिहाजा नाटो के साथ होने वाली आगामी बैठक भारत के लिए काफी महत्वपूर्ण है। नई दिल्ली की रणनीतिक अनिवार्यताओं में बीजिंग और इस्लामाबाद के महत्व को देखते हुए, नाटो तक पहुंचने से अमेरिका और यूरोप के साथ भारत के बढ़ते जुड़ाव में एक महत्वपूर्ण आयाम जुड़ जाएगा। दिसंबर 2019 तक, नाटो ने बीजिंग के साथ नौ दौर की बातचीत की थी, जिसमें ब्रसेल्स में चीनी राजदूत और नाटो के उप महासचिव की तिमाही बैठक हुई थी। नाटो का पाकिस्तान के साथ राजनीतिक बातचीत के साथ साथ सैन्य सहयोग भी रहा है। नाटो पहले पाकिस्तानी अधिकारियों के लिए चुनिंदा प्रशिक्षण खोल चुका है और नवंबर 2019 में नाटो ने पाकिस्तानी सैन्य अधिकारियों के साथ बातचीत के लिए अपना एक सैन्य प्रतिनिधिमंडल भी पाकिस्तान भेज चुका है।

भारत की बातचीत का मकसद क्या था?
इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के मुताबिक, ब्रुसेल्स में नाटो और भारतीय उच्चाधिकारियों की जो बैठक हुई थी, उससे पहले नाटो की तरफ से एक मसौदा एजेंडा भारत को भेजा गया था और फिर पहले दौर की बातचीत को अंतिम रूप दिया गया था। मीडिया रिपोर्टों से पता चलता है कि, मसौदा एजेंडा प्राप्त होने के बाद भारत की तरफ से एक अंतर-मंत्रालयी बैठक बुलाई गई थी, जिसमें विदेश मंत्रालय और रक्षा मंत्रालयों के साथ-साथ राष्ट्रीय सुरक्षा परिषद सचिवालय के प्रतिनिधियों ने भाग लिया था। इंडियन एक्सप्रेस ने भारत सरकार के एक उच्च अधिकारी के हवाले से लिखा है, कि 'नाटो को राजनीतिक वार्ता में शामिल करने से नई दिल्ली को क्षेत्रों की स्थिति और भारत के लिए चिंता के मुद्दों के बारे में नाटो की धारणाओं में संतुलन लाने का अवसर मिलेगा'।

पहले दौर की बैठक में क्या हासिल हुआ?
नाटो के साथ अपने पहले दौर की बैठक के बाद भारतीय अधिकारियों ने महसूस किया, कि रूस और तालिबान पर गठबंधन के साथ उसका कोई साझा आधार नहीं है। यानि, तालिबान और रूस को लेकर नाटो के अपने अलग विचार हैं, जबकि भारत के अपने अलग विचारा हैं और दोनों के विचार आपस में मेल नहीं खाते हैं। वहीं, बैठक में चीन को लेकर भारतीय अधिकारियों को पता चला, कि चीन को लेकर भी नाटो के सदस्य देशों के बीच अलग अलग विचार हैं और सभी सदस्य चीन को लेकर एक विचार नहीं रखते हैं, जबकि भारत के लिए चिंता चीन है और भारत की क्वाड सदस्यता का उद्देश्य भी बीजिंग का मुकाबला करना है। इंडियन एक्सप्रेस ने अपनी रिपोर्ट में उच्च भारतीय आधिकारिक सूत्रों के हवाले से खबर दी है, जिसमें सूत्रों का दावा है, कि अगर नाटो गठबंधन चीन और पाकिस्तान के साथ अलग-अलग जुड़ता है, तो भारतीय चिंता और वैश्विक सुरक्षा मुद्दों पर नाटा का एकतरफा दृष्टिकोण होगा।

भारत से बातचीत के लिए उत्सुक है नाटो
ऐसी रिपोर्ट है, कि नाटो गठबंधन की राजनीतिक मामलों और सुरक्षा नीति की सहायक महासचिव बेटिना कैडेनबैक के नेतृत्व में नाटो प्रतिनिधिमंडल भारत के साथ पारस्परिक रूप से सहमत शर्तों पर जुड़ाव जारी रखने के लिए उत्सुक है। रिपोर्ट के मुताबिक, सूत्रों के अनुसार, भारत अपनी भू-रणनीतिक स्थिति और विभिन्न मुद्दों पर अद्वितीय दृष्टिकोण के कारण अंतर्राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए प्रासंगिक है, और भारत के अपने क्षेत्र और उससे आगे के बारे में गठबंधन को सूचित करने में एक महत्वपूर्ण भागीदार हो सकता है। कहा जाता है कि दोनों पक्षों ने 2020 में नई दिल्ली में संभावित दूसरे दौर पर भी चर्चा की थी, लेकिन ये बैठक कोविड महामारी की वजह से स्थगित कर दिया गया था। सूत्रों के मुताबिक, अगर नाटो भारतीय हितों और क्षेत्रीय समस्याओं को लेकर द्विपक्षीय सहयोग पर कोई प्रस्ताव रखता है, और अगर वाकई नाटो के पास ऐसा कोई प्रस्ताव है, तो फिर भारत प्रारंभिक दौर की अगली बैठक के लिए विचार कर सकता है। नई दिल्ली के आकलन के अनुसार, अफगानिस्तान में पाकिस्तान की भूमिका सहित चीन, आतंकवाद और अफगानिस्तान पर भारत और नाटो दोनों के दृष्टिकोण में अंतर है।

नाटो के क्या क्या नजरिया हैं?
रिपोर्टों के अनुसार, भारत और नाटो के बीच जो पहले दौर की बैठक हुई थी, उसमें भारत को तीन संवेदनशील मुद्दों पर नाटो का नजरिया पता चला था, जिन पर भारत को नाटो के साथ केवल सीमित साझा आधार की उम्मीद थी। पहला, नाटो रूस को यूरो-अटलांटिक सिक्योरिटी के लिए खतरा मानता है और रूस के यूक्रेन मुद्दे और परमाणु हथियारों को लेकर रूस के साथ नाटो की बातचीत आगे बढ़ नहीं पा रही थी। दूसरा बात, नाटो देशों के बीच भिन्नता को देखते हुए, चीन पर उसके विचार को मिश्रित रूप में देखा गया, जबकि इसने चीन की बढ़ती शक्ति पर विचार-विमर्श किया और निष्कर्ष यह था, कि चीन ने एक चुनौती और एक अवसर दोनों प्रस्तुत किए, और iii) अफगानिस्तान में, नाटो ने तालिबान को एक राजनीतिक इकाई के रूप में देखा था, जो भारत की स्थिति से भिन्न था। सितंबर 2021 में तालिबान ने अफगानिस्तान में अंतरिम सरकार का गठन कर लिया था, जिससे दो साल पहले नाटो और भारत की बैठक हुई थी। हालांकि, नाटो के साथ अपने पर्याप्त सामान्य आधार को देखते हुए, भारतीय पक्ष ने समुद्री सुरक्षा को भविष्य में चर्चा के एक प्रमुख क्षेत्र के रूप में देखा था।

क्या है नॉर्थ अटलांटिक ट्रिटी ऑर्गेनाइजेशन?
साल 1949 में नॉर्थ अटलांटिक ट्रिटी ऑर्गेनाइजेशन यानि नाटो का गठन किया गया था और गठन के वक्त इस संगठन का एकमात्र उद्येश्य रूस के खिलाफ एक मजबूत सैन्य गठबंधन का निर्माण करना था और नाटो के गठबंधन के वक्त इसमें अमेरिका, कनाडा, फ्रांस, ब्रिटेन और आठ दूसरे यूरोपीय देश शामिल थे और धीरे धीरे इसमें कई और यूरोपीय देश जुड़ते चले गये और इस वक्त नाटो गठबंधन में 30 देश शामिल हैं और नाटो गठबंधन यूनाइटेड नेशंस के साथ मिलकर काम करता है। नाटो गठबंधन का मुख्यालय ब्रुसेल्स में है और इस गठबंधन की सबसे बड़ी खासियत ये है, कि अगर नाटो गठबंधन में शामिल किसी भी देश पर हमला होता है, तो उसे सभी 30 देश पर हमला माना जाएगा और सभी 30 देश एकसाथ सैन्य कार्रवाई करेंगे। इसीलिए नाटो गठबंधन विश्व का सबसे मजबूत सैन्य गठबंधन है। लिहाजा अकसर सवाल उठते रहते हैं, कि क्या चीन को रोकने के लिए भारत को भी नाटो को सदस्य बन जाना चाहिए, क्योंकि नाटो के निर्माण के बाद से ही भारत को इसमें शामिल होने का कई बार न्योता दिया गया। लेकिन, इतने मतभेदों के साथ भारत का नाटो में शामिल होना काफी मुश्किल माना जा रहा है।

क्या भारत को बनना चाहिए हिस्सा?
अमेरिका और रूस के बीच करीब 30 सालों तक शीत युद्ध चलता रहा और शीत युद्ध के दौरान भारत की दोस्ती अमेरिका के बजाय रूस के साथ ज्यादा रही और शीत युद्ध के दौरान भारत ने ऐसे किसी भी गठबंधन में शामिल होने से साफ इनकार कर दिया था और इसके पीछे भारत का गुटनिरपेक्ष सिद्धांत था। लेकिन, शीत युद्ध खत्म होने के बाद साल 1989 से 91 के बीच नाटो गठबंधन में ऐसे कई देश शामिल हो गये, जो गुट निरपेक्ष गुट का भी हिस्सा थे। और इसके पीछे नाटो की सबसे बड़ी शक्ति अनुच्छेद पांच है, जिसमें कहा गया है कि, नाटो के किसी भी सदस्य देश पर हमला गठबंधन के सभी सदस्य देशों के ऊपर हमला माना जाएगा और नाटो उस देश के खिलाफ संयुक्त सैन्य कार्रवाई करेगा। लिहाजा कई एक्सपर्ट्स का कहना है कि, भारत को अब नाटो का सदस्य बन जाना चाहिए, क्योंकि अगर भारत नाटो का सदस्य बनता है, तो उसे चीन और पाकिस्तान के खिलाफ एक 'कवच' मिल जाएगा।
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