इमरान ख़ान की ये वज़ीर परवेज मुशर्रफ़ सरकार में भी थी मंत्री
पत्रकार मेहमल सरफ़राज की मानें तो महिलाओं के संदर्भ में सबसे ज़्यादा उदार पाकिस्तान पीपल्स पार्टी ही नज़र आती थी. वे कहती हैं कि बेनज़ीर भुट्टो जिस वक़्त प्रधानमंत्री थी उस समय बाकी विपक्षी दल उनका विरोध महज़ महिला होने के नाम पर कर दिया करते थे.
वहीं पाकिस्तान मुस्लिम लीग (नवाज़) पार्टी के बारे में मेहमल का कहना है, ''पीएमएल में मरियम नवाज़ के राजनीति में आगे बढ़ने के बाद महिलाओं के लिए रास्ते खुलने शुरू हुए हालांकि यह भी सच्चाई है
पाकिस्तान के नए प्रधानमंत्री इमरान ख़ान ने बीते शनिवार को जब प्रधानमंत्री पद की शपथ ली तो उनके साथ 16 अन्य मंत्रियों ने भी पदभार संभाला.
नया पाकिस्तान बनाने के वायदे के साथ सत्ता में पहुंचे इमरान ख़ान की कैबिनेट में कुल 21 नाम हैं, जिनमें से 16 मंत्री हैं जबकि 5 लोग प्रधानमंत्री के सलाहकार के तौर पर काम करेंगे.
इमरान की इस कैबिनेट की चर्चा इस वजह से काफी हुई कि उन्होंने ऐसे लोगों को कैबिनेट में जगह दी है जो पूर्व राष्ट्रपति जनरल परवेज़ मुशरर्फ के वक़्त भी अहम पद संभालते थे.
कैबिनेट में शामिल इन मंत्रियों में तीन महिलाएं भी शामिल हैं. जिनमें फ़हमीदा मिर्जा़, ज़ुबेदा जला और शीरीन मज़ारी शामिल हैं.
ये तीनों ही महिलाएं इमरान ख़ान की कैबिनेट में तीन महत्वपूर्ण मंत्रालय संभालेंगी.
1 फ़हमीदा मिर्ज़ा
डॉक्टर फ़हमीदा मिर्ज़ा इमरान ख़ान की सरकार में इंटर प्रोविज़नल कोऑर्डिनेशन मिनिस्टर नियुक्त हुई हैं. उन्होंने नेशनल असेम्बली-230 बादिन इलाक़े से जीत दर्ज़ की थी.
फ़हमीदा के पास प्रांतीय इलाकों के बीच बेहतर सामंजस्य बनाने की ज़िम्मेदारी रहेगी. दरअसल पाकिस्तान में साल 2011-12 के दौरान हुए 18वें संविधान संशोधन में सभी प्रांतों को कुछ मामलों में स्वायत्ता प्रदान की गई थी.
इस स्वायत्ता के तहत प्रांतों का बजट, स्वास्थ्य और शिक्षा जैसे मामले शामिल किए गए. फ़हमीदा के पास इन सभी प्रांतों का बजट तय करने साथ ही स्वास्थ्य और शिक्षा जैसे मामलों में उचित ताल्लुकात बनाए रखने की ज़िम्मेदारी रहेगी.
फ़हमीदा मिर्ज़ा ग्रैंड डेमोक्रेटिक एलायंस (जीडीए) के टिकट से चुनावी मैदान में उतरी थीं.
वे पांचवीं बार पाकिस्तानी संसद का हिस्सा बनी हैं. लगातार एक ही सीट से पांच बार जीतने वाली फ़हमीदा पहली महिला उम्मीदवार हैं.
डॉक्टर फ़हमीदा ने पहली बार साल 1997 में पीपीपी के टिकट पर नेशनल असेंबली का चुनाव जीता था. उसके बाद वे साल 2002, 2008 और 2013 में पीपीपी की उम्मीदवार के तौर पर जीतती रहीं.
इस साल जून महीने में उन्होंने पीपीपी का साथ छोड़ जीडीए के साथ जाने का फ़ैसला लिया था.
फ़हमीदा मिर्जा के पति ज़ुल्फ़िक़र मिर्ज़ा भी पाकिस्तान के जाने माने राजनेता हैं.
2. ज़ुबेदा जलाल
ज़ुबेदा जलाल पाकिस्तान के क्वेटा इलाके से ताल्लुक रखती हैं. 58 साल की ज़ुबेदा को इमरान ख़ान की कैबिनेट में डिफ़ेंस प्रोडक्शन मंत्री बनाया गया है.
पाकिस्तान की वरिष्ठ पत्रकार और निओ टीवी में सीनियर प्रोड्यूसर मेहमल सरफ़राज बताती हैं कि डिफ़ेंस प्रोडक्शन मिनिस्ट्री सुनने में तो बेहद महत्वपूर्ण मंत्रालय लगता है लेकिन पाकिस्तान में जिस तरह की सरकारें बनती हैं वहां यह मंत्रालय पूरी तरह स्वतंत्र होकर काम नहीं कर पाता.
मेहमल सरफ़राज के अनुसार, ''ज़ुबेदा जलाल को जो मंत्रालय मिला है मोटे तौर पर उसका काम सेना और रक्षा संबंधी हथियार और अन्य चीजों के उत्पादन को देखना होगा, लेकिन पाकिस्तान में इस तरह की ज़िम्मेदारी बड़े स्तर पर सेना अपने हाथों में ही रखती है, इसलिए कहा जा सकता है कि मेहमल के हाथ बहुत आज़ाद नहीं रहेंगे.''
जहां तक ज़ुबेदा जलाल के राजनीतिक इतिहास की बात है तो वे पाकिस्तान की राजनीति में एक पुराना चेहरा हैं. वे बलोचिस्तान इलाके से चुनाव जीती हैं, इस इलाके से नेशनल असेंबली में आने वालीं ज़ुबेदा अकेली महिला हैं.
ज़ुबेदा परवेज़ मुशर्रफ़ के कार्यकाल में साल 2002 से साल 2007 तक शिक्षा मंत्री रह चुकी हैं. उस समय वे पाकिस्तान मुस्लिम लीग के टिकट पर चुनाव जीती थीं. हालांकि 2008 में हुए आम चुनाव में उन्हें हार का सामना करना पड़ा था.
शिक्षा मंत्री रहते हुए ज़ुबेदा ने पाकिस्तान के स्कूली पाठ्यक्रमों में बदलाव किया था. पाकिस्तान की शिक्षा व्यवस्था में साल 1986 के बाद उस समय पहली बार पाठ्यक्रम में बदलाव लाया गया था.
ज़ुबेदा की पहचान एक राजनेता के अलावा शिक्षिका और सामाजिक कार्यकर्ता के रूप में भी है.
3. शिरीन मज़ारी
इमरान सरकार की कैबिनेट में तीसरी महिला मंत्री शिरीन मज़ारी हैं. वे अकेली महिला मंत्री हैं जो पीटीआई से जुड़ी हुई हैं. शिरीन ने पंजाब प्रांत से जीत दर्ज़ की थी.
शिरीन को पाकिस्तान में मानवाधिकार मामलों की मंत्री बनाया गया है. मेहमल सरफ़राज के अनुसार सबसे अहम मंत्रालय शिरीन मज़ारी के हाथों में ही है.
इस मंत्रालय का महत्व समझाते हुए मेहमल बताती हैं, ''पाकिस्तान में ज्यूडिशियल किलिंग के कई मामले होते हैं, फ़ेक एनकाउंटर और कई लोगों के गुमशुदा होने की रिपोर्टें भी आती रहती हैं. इसके साथ-साथ संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार आयोग की रिपोर्ट भी पाकिस्तान में होने वाले मानवाधिकार उल्लंघनों का ज़िक्र करती है. इन सभी बातों के मद्देनज़र मानवाधिकार मंत्रालय बेहद अहम हो जाता है.''
शिरीन साल 2013 से ही नेशनल असेंबली की सदस्य रही हैं. वो स्ट्रैटेजिक टेक्नोलॉजी रिसोर्स की सीईओ और रक्षा विशेषज्ञ रह चुकी हैं. मज़ारी साल 2008 में पाकिस्तान तहरीके इंसाफ़ पार्टी में शामिल हुई थीं.
साल 2009 में वो पीटीआई की सूचना सचिव और प्रवक्ता थीं. इसके बाद मज़ारी पर अपने बारे में गलत जानकारियां साझा करने के आरोप लगे. जिसके चलते साल 2012 में उन्होंने पीटीआई से इस्तीफा दे दिया था.
हालांकि अगले ही साल वे दोबारा पार्टी में शामिल हो गईं. साल 2013 में वो पहली बार पंजाब प्रांत से महिला के लिए आरक्षित सीट पर पीटीआई से टिकट से चुनाव लड़ी और जीतने में कामयाब रहीं.
पाकिस्तान की राजनीति में महिलाएं
पाकिस्तान की राजनीति में महिलाओं की भागीदारी की बात करें तो वह बहुत ज़्यादा देखने को नहीं मिलती. इमरान ख़ान से पहले पाकिस्तान में नवाज़ शरीफ़ की सरकार थी. उसमें भी बमुश्किल तीन महिलाएं ही मंत्रीपद पर मौजूद थीं.
पत्रकार मेहमल सरफ़राज की मानें तो महिलाओं के संदर्भ में सबसे ज़्यादा उदार पाकिस्तान पीपल्स पार्टी ही नज़र आती थी. वे कहती हैं कि बेनज़ीर भुट्टो जिस वक़्त प्रधानमंत्री थी उस समय बाकी विपक्षी दल उनका विरोध महज़ महिला होने के नाम पर कर दिया करते थे.
वहीं पाकिस्तान मुस्लिम लीग (नवाज़) पार्टी के बारे में मेहमल का कहना है, ''पीएमएल में मरियम नवाज़ के राजनीति में आगे बढ़ने के बाद महिलाओं के लिए रास्ते खुलने शुरू हुए हालांकि यह भी सच्चाई है कि जब मरियम राजनीति में ज़्यादा चर्चित होने लगीं तो खुद पार्टी के भीतरी लोगों ने ही उन्हें पीछे करने की कोशिश भी की, महिलाओं के प्रति लगभग ऐसा ही रुख पीटीआई का भी है.''
पाकिस्तान की नेशनल असेंबली में कुल 60 सीटें महिलाओं के लिए आरक्षित हैं. चुनाव के वक़्त हरएक पार्टी को पांच प्रतिशत टिकट महिलाओं को देना भी आवश्यक बनाया गया है.