इमरान ख़ान को गिरफ़्तार किया गया तो इसका सियासी फ़ायदा किसको होगा?
पाकिस्तान की सियासत पूर्व प्रधानमंत्री इमरान ख़ान की गिरफ़्तारी को लेकर गर्म है. सवाल है कि अगर वो जेल में होंगे तो इसका फ़ायदा सत्ताधारी गठबंधन को मिलेगा या तहरीक-ए-इंसाफ़ पार्टी को.
शनिवार को पूर्व प्रधानमंत्री इमरान ख़ान के लाहौर के ज़मान पार्क स्थित घर पर पंजाब पुलिस के ऑपरेशन और राजधानी इस्लामाबाद में तोशाख़ाना केस में पेशी के दौरान पीटीआई (पाकिस्तान तहरीक-ए-इंसाफ़) के कार्यकर्ताओं और पुलिस में झड़प हुई.
इसके बाद एक बार फिर इन अफ़वाहों में तेज़ी आई है कि चुनावी मुहिम से पहले दर्जनों जगहों में से किसी एक में इमरान ख़ान को गिरफ़्तार किया जा सकता है.
हालांकि सत्तारूढ़ गठबंधन पीडीएम (पाकिस्तान डेमोक्रेटिक मूवमेंट) ने इमरान ख़ान की गिरफ़्तारी से संबंधित कोई साफ़ बयान नहीं दिया है, लेकिन गृह मंत्री राना सनाउल्लाह ने पिछले दिनों एक निजी टीवी चैनल से बात करते हुए कहा था, "हम गिरफ़्तारी की सोचें भी तो उन्हें (इमरान ख़ान को) ज़मानत मिल जाती है. हम कौन हैं जो उन्हें गिरफ़्तार करने की योजना बनाएं."
तहरीक-ए-इंसाफ़ के अध्यक्ष इमरान ख़ान अपनी गिरफ़्तारी से बारे में कई बार भविष्यवाणी करते रहे हैं और पिछले दिनों उन्होंने 'लंदन प्लान' का दावा करते हुए कहा था कि ज़मान पार्क ऑपरेशन का मक़सद "मेरी अदालत में पेशी सुनिश्चित करना नहीं बल्कि मुझे इस्लामाबाद में गिरफ़्तार कर जेल भेजना है."
इससे पहले जब बीते मंगलवार को पुलिस ने ज़मान पार्क के इलाक़े में ऑपरेशन किया तो इमरान ख़ान ने अपने कार्यकर्ताओं को संदेश दिया, "पुलिस मुझे जेल ले जाने के लिए आई है. उन्हें लगता है कि इमरान ख़ान जेल चला जाएगा तो राष्ट्र सो जाएगा. आपको उन्हें ग़लत साबित करना है."
साथ ही साथ इमरान ख़ान अपनी गिरफ़्तारी से जुड़े तर्क भी देते हैं. उनके शब्दों में, "वह यह इसलिए करना चाहते हैं कि मैं इलेक्शन की मुहिम न चलाऊं. वह मैच खेलना चाहते हैं, लेकिन कप्तान के बिना. वो समझते हैं कि अगर मैं जेल चला जाऊं या अयोग्य क़रार दिया जाऊं तो उनके मैच जीतने की संभावनाएं बेहतर हो जाएंगी."
इन दावों की सच्चाई एक तरफ़ है, लेकिन यह बहस भी धीरे-धीरे ज़ोर पकड़ रही है कि अगर इमरान ख़ान को गिरफ़्तार किया गया तो इसका राजनीतिक लाभ आख़िर किसे होगा.
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क्या क़ैद में इमरान ख़ान ज़्यादा ख़तरनाक होंगे?
अतीत में जब अविश्वास प्रस्ताव सफल होने के क़रीब था तो इमरान ख़ान ने ख़ुद ही कहा था कि वह सरकार से निकल जाने के बाद 'ज़्यादा ख़तरनाक' हो जाएंगे.
जानकारों के मुताबिक़, उन्होंने बतौर विपक्षी नेता अपने इस दावे को कुछ हद तक सही भी साबित किया है.
अब सवाल यह है कि अगर इमरान ख़ान जेल जाते हैं तो क्या वह अपने राजनीतिक प्रतिद्वंद्वियों के लिए पहले से ज़्यादा 'ख़तरनाक' साबित हो सकते हैं और क्या सरकार की सोच के उलट उनकी गिरफ़्तारी उनके दल की लोकप्रियता और समर्थन में और इज़ाफ़े की वजह बनेगी?
इस पर तहरीक-ए-इंसाफ़ के नेता फ़वाद चौधरी का कहना है कि पिछले 11 महीनों में सरकार और इस्टैब्लिशमेंट के तहरीक-ए-इंसाफ़ विरोधी हर क़दम ने इमरान ख़ान को जनता में और लोकप्रिय बनाया है. "इमरान ख़ान के गिरफ़्तार होने के बाद उनकी लोकप्रियता का ग्राफ़ अगर अभी 70 प्रतिशत है तो वह 100 प्रतिशत पर चला जाएगा."
फ़वाद चौधरी का यह भी कहना है, "इस समय सरकार एजेंसियां चला रही हैं. इमरान ख़ान का मुक़ाबला ताक़त से हो रहा है और इसी वजह से देश में राजनीतिक खालीपन पैदा हो रहा है और सरकार का ग्राफ़ हर दिन नीचे जा रहा है."
उन्होंने कहा कि इस समय इस्टैब्लिशमेंट जितनी अलोकप्रिय है उतनी अतीत में कभी नहीं थी और ऐसा पहली बार हो रहा है कि सैन्य प्रतिष्ठान की रेटिंग राजनीतिक लोगों से नीचे है.
तहरीक-ए-इंसाफ़ की राजनीतिक विरोधी मुस्लिम लीग-नून के केंद्रीय नेता अहसन इक़बाल फ़वाद चौधरी के इस दावे को रद्द करते नज़र आते हैं.
उनका कहना है कि तहरीक-ए-इंसाफ़ वह दल है जिसमें बहुत अंदरूनी मतभेद हैं. "इमरान ख़ान के रहते उन समस्याओं पर पर्दा डालना आसान होता है. अगर वह नहीं होंगे तो यह मतभेद खुलकर सामने आ जाएंगे.''
उन्होंने यह भी कहा कि इमरान ख़ान की गिरफ़्तारी से जनता के बीच वह राय भी ग़लत साबित होगी जो इमरान ख़ान ने अपने कार्यकर्ताओं के बीच बनाई है यानी "मैं वह शख़्स हूं जिसने कभी कोई ग़लती नहीं की."
सीनेटर डॉक्टर अफ़नान उल्लाह ने बीबीसी उर्दू को बताया कि यह एक क़ानूनी प्रक्रिया है और इसको सरकार के फ़ायदे या नुक़सान से हटकर क़ानून को लागू करने के तौर पर देखना चाहिए.
उनके अनुसार, ''अगर नवाज़ शरीफ़ 200 से अधिक पेशियां भुगत सकते हैं, क़ैद काट सकते हैं तो कोई भी क़ानून से ऊपर नहीं है.''
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जनता कैसे देखती है और चुनाव पर क्या असर पड़ेगा?
राजनीतिक विश्लेषक अहसन इक़बाल की इस राय से सहमत दिखाई नहीं देते. वरिष्ठ पत्रकार और विश्लेषक सलमान ग़नी का कहना है कि इमरान ख़ान की गिरफ़्तारी के नतीजे में पीडीएम को राजनीतिक तौर पर नुक़सान होगा.
"राजनीतिक गिरफ़्तारियां कार्यकर्ताओं और राजनीतिक दलों में अधिक उत्साह पैदा करती हैं जिसका चुनाव पर असर पड़ता है."
उनका कहना है कि अब तक जो पार्टियां सत्ता में आई हैं, उनकी लीडरशिप की लोकप्रियता दो जगहों पर नोट होती है, एक जनता के बीच और दूसरी इस्टैब्लिशमेंट में.
वह कहते हैं कि इमरान ख़ान ने दूसरी जगह पर अपने आप को रक्षात्मक मोर्चे पर खड़ा कर रखा है. "पाकिस्तान की इस्टैब्लिशमेंट पाकिस्तान की एक बड़ी राजनीतिक सच्चाई भी है और उनकी स्वीकार्यता के बिना किसी भी दल का सत्ता में आना मुश्किल है."
"दूसरी ओर उनका राजनीतिक पक्ष इस हिसाब से जनता में मज़बूत है कि वह सरकार को टारगेट करते हैं.''
इमरान ख़ान के अदालत में पेश न होने के मामले पर तहरीक-ए-इंसाफ़ का यह कहना है कि एक और जहां उनके नेता की जान को ख़तरा है, वहीं सरकार की ओर से उन पर झूठे मुक़दमों की भरमार कर दी गई है और यह संख्या इतनी अधिक है कि किसी इंसान के लिए उतने मामलों में अदालतों में पेश होना मुमकिन नहीं है.
जानकारों के विचार में तहरीक-ए-इंसाफ़ के अपने कार्यकाल में भी विपक्ष के प्रति सत्ता का रवैया कुछ ऐसा ही रहा था. इसलिए यह सवाल भी महत्वपूर्ण है कि क्या मुस्लिम लीग-नून वही कर रही है जो तहरीक-ए-इंसाफ़ ने अतीत में अपने राजनीतिक प्रतिद्वंद्वियों के साथ किया?
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इमरान और नवाज़ शरीफ़ के मामलों में क्या अंतर है?
इस बारे में तहरीक-ए-इंसाफ़ के नेता फ़वाद चौधरी कहते हैं कि यह कहना सही नहीं कि जो हमारे दौर में नून लीग के साथ हुआ वही अब तहरीक-ए-इंसाफ़ के साथ हो रहा है क्योंकि नवाज़ शरीफ़ तो पनामा केस में अयोग्य घोषित हुए और जेल गए जो कि एक अंतरराष्ट्रीय स्कैंडल था.
"वह करप्शन के केस में अंदर गए जबकि इमरान ख़ान के ख़िलाफ़ फ़र्ज़ी मामले बनाए गए हैं. यह लेवल प्लेइंग फ़ील्ड नहीं है, जो हम मांगते हैं. जहां तक रही बात इस्टैब्लिशमेंट की तो उनकी भूमिका तो संविधान और क़ानून से भी बहुत अधिक बनी हुई है, जो अलोकतांत्रिक है."
इस बारे में अहसन इक़बाल का कहना है कि इमरान ख़ान का इस समय सिर्फ़ ये कहना है कि फ़ौज उनका साथ दे. अहसन इक़बाल के अनुसार, "वह यह नहीं कहते हैं कि फ़ौज न्यूट्रल रहे. वह चाहते हैं कि फ़ौज उनकी सत्ता की राह दोबारा आसान करे."
विश्लेषक हबीब अकरम का कहना है कि साफ़ तौर पर यही लगता है कि जो मुस्लिम लीग नून के साथ बतौर विपक्षी पार्टी हुआ, वही अब 'पीटीआई' के साथ हो रहा है.
वह कहते हैं, "लेकिन यहां यह बात बेहद महत्वपूर्ण है कि जनता इन दोनों दलों की लड़ाई को कैसे देखती है."
हबीब अकरम के अनुसार, मुस्लिम लीग-नून की जिस बात के लिए आलोचना हो रही है वह करप्शन है, जबकि इमरान ख़ान पर जो मामले हैं उनमें कोई महत्वपूर्ण केस करप्शन से संबंधित नहीं है.
"केवल एक केस है वह भी तोशाख़ाना का. जनता के लिए यह बहुत बड़ा अंतर है."
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