हर्षवंती बिष्ट: प्रोफ़ेसर से पर्वतारोहण के शिखर तक पहुँचने की कहानी
भारत में पहली बार किसी महिला को इंडियन माउंटेनियरिंग फाउंडेशन का अध्यक्ष चुना गया है.
उत्तराखंड की जानी-मानी पर्वतारोही और अर्जुन पुरस्कार विजेता डॉक्टर हर्षवंती बिष्ट देश के सबसे बड़े पर्वतारोहण संस्थान इंडियन माउंटेनियरिंग फाउंडेशन (आईएमएफ) की अध्यक्ष चुनी गई हैं. वह आईएमए की पहली महिला अध्यक्ष बनी हैं. वह उत्तराखंड से आईएमएफ़ की अध्यक्ष बनने वाली पहली पर्वतारोही भी हैं.
अर्थशास्त्र की प्रोफ़ेसर हर्षवंती बिष्ट का ज़ोर आईएमएफ़ की आर्थिक हालत सुधारने के साथ ही पर्वतारोहियों को पर्यावरण के प्रति ज़्यादा संवेदनशील बनाने पर रहेगा. बीबीसी हिंदी से बातचीत में उन्होंने अपनी योजनाओं के बारे में बताया.
एवरेस्ट की दौड़ का कोई फ़ायदा नहीं
डॉक्टर बिष्ट बताती हैं कि उनका उद्देश्य आईएमफ़ को सुदृढ़ करने के साथ ही पर्वतारोहण को सशक्त करना है. वह कहती हैं, "आजकल जो ये एवरेस्ट की दौड़ हो गई है न और जिस दौड़ में कुछ नहीं है, न क्लाइंबिंग की टेक्नीक है, न चैलेंज है. क्योंकि वहां तो सब सजा हुआ है, आपको तो किसी को पकड़कर चढ़ना है."
"उसकी (एवरेस्ट की) जगह पर ऐसे पहाड़ों की ओर पर्वतारोहियों को ले जाना है भले ही जिनकी ऊंचाई कम हो लेकिन क्लाइंबिंग मुश्किल हो ताकि पर्वतारोहियों की तकनीक की भी टेस्टिंग हो. इससे दुनिया भर के पर्वतारोही भी आकर्षित होते हैं क्योंकि उन्हें रोमांच, चैलेंज मिलता है."
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पर्यावरण की दृष्टि से भी पर्वतारोहियों को संवेदनशील करना है. क्योंकि ऊंची चोटियों पर जो गंदगी फैल रही है उसके लिए पर्वतारोहियों को ज़िम्मेदार माना जाता है. उनमें यह जागरूकता बढ़ानी है कि हम पहाड़ को अगर बेहतर नहीं कर सकते हैं तो कम से कम और गंदा न करें.
ऐसे सुधरेगी आईएमएफ़ की आर्थिक स्थिति
आईएमएफ़ अध्यक्ष पद के चुनाव के दौरान हर्षवंती बिष्ट ने संस्थान की आर्थिक स्थिति को बेहतर करने का वादा किया था. संभवतः इसीलिए उन्हें जीत मिली.
वह कहती हैं कि अभी आईएमएफ़ को सिर्फ़ खेल और युवा कल्याण मंत्रालय से पैसा मिलता है. उनकी योजना पर्वतारोहण के महत्व को समझाकर अन्य मंत्रालयों से भी अनुदान लेने की है. वह कहती हैं कि पर्वतारोहण तो हिमालय में पर्यटन का बड़ा ज़रिया है, इसलिए हम पर्यटन मंत्रालय से भी बात करेंगे.
डॉक्टर बिष्ट कहती हैं कि दुनिया भर में ग्लोबल वॉर्मिंग, क्लाइमेट चेंज की बात हो रही है. कहते हैं कि इसका सबसे पहले असर हिमालय पर पड़ता है, तो विज्ञान-प्रौद्योगिकी मंत्रालय से भी बात करेंगे. इसके अलावा युवाओं को पर्वतारोहण से जोड़ने के लिए यूनिवर्सिटी और कॉलेजों में एडवेंचर क्लब की स्थापना की योजना है. इसके लिए उच्च शिक्षा के मंत्रालय से बात करेंगे.
आईएमएफ़ की नई अध्यक्ष की योजना राज्यों के साथ, कॉर्पोरेट्स के साथ और एडवेंचर क्लब्स के साथ काम करने की भी है ताकि ज़्यादा से ज़्यादा लोगों को पर्वतारोहण से जोड़ा जा सके. कोशिश की जाएगी कि ज़्यादा से ज़्यादा नए क्लब का गठन किया जाए ताकि नए लोग पर्वतारोहण से जुड़ें.
पर्यावरण की चिंता
डॉक्टर हर्षवंती बिष्ट कहती हैं कि पर्वतारोहण की वजह से पर्यावरण को नुकसान भी उठाना पड़ रहा था. चाहे स्थानीय लोग पर्यटकों की ज़रूरतों को पूरा करने के लिए पेड़ काट रहे थे, चाहे पर्यटक जंगलों को नुकसान पहुंचा रहे थे. इसकी वजह से गंगोत्री ट्रैक पर बसा भोजवासा का जंगल लगभग साफ़ हो गया था.
अपने पर्वतारोहण अभियानों के दौरान डॉक्टर बिष्ट ने भोजवासा और चीड़वासा की हालत देखी तो सोचा कि पर्यावरण नष्ट होगा तो पर्वतारोहण कैसे बचेगा? इसलिए उन्होंने 'सेव गंगोत्री' नाम के प्रोजेक्ट की शुरुआत की जिसके तहत भोजवासा में करीब साढ़े 12 हज़ार भोज के पौधे लगाए गए. इनमें से करीब 7000 जीवित हैं.
वह बताती हैं कि इस वृक्षारोपण अभियान के सफल होने का असर यह हुआ है कि बहुत सारी चिड़ियों की प्रजातियां अब भोजवासा में दिखने लगी हैं. स्नो लेपर्ड को भी उन्होंने वहां देखा है.
वह ज़ोर देकर कहती हैं कि पर्यावरण नहीं बचेगा तो क्या पर्यटन, क्या पर्वतारोहण... जीवन ही नहीं बचेगा और पर्यावरण को बचाना हम सबकी ज़िम्मेदारी है.
पर्वतारोही और शिक्षिका
पौड़ी गढ़वाल के बीरोंखाल ब्लॉक के सुरई गांव की डॉक्टर हर्षवंती बिष्ट अर्थशास्त्र की प्रोफ़ेसर रही हैं और हाल ही में पीजी कालेज उत्तरकाशी के प्रिंसिपल पद से रिटायर हुई हैं. कम ही लोग जानते हैं कि वह पहले शिक्षण के क्षेत्र में आईं और फिर पर्वतारोहण में. दरअसल शिक्षण के क्षेत्र की वजह से ही उनका पर्वतारोहण से परिचय हुआ.
वह बताती हैं कि एमए करने के बाद उन्हें गढ़वाल विश्वविद्यालय में अर्थशास्त्र के प्रवक्ता के रूप में नौकरी मिल गई. इसके बाद उन्होंने पर्यटन विषय में पीएचडी करने का फ़ैसला किया और पहाड़ में पर्यटन पर फ़ोकस किया. इसी दौरान उन्होंने नई जगहों को देखने के लिए पर्वतारोहण शुरू किया तो यह इतना भाया कि वह नियमित पर्वतारोहण करने लगीं.
40 साल से भी ज़्यादा समय तक शिक्षण और पर्वतारोहण साथ-साथ चलता रहा.
डॉक्टर हर्षवंती बिष्ट अब देहरादून में रहती हैं और पर्वतारोहण के साथ ही पर्यावरण, सामाजिक मुद्दों पर उनकी सक्रियता बनी हुई है.
महिलाओं का आत्मविश्वास बढ़ेगा
उत्तराखंड में महिला अधिकारों के लिए काम करने वाली एक्टिविस्ट गीता गैरोला राज्य में महिला सामाख्या की अध्यक्ष भी रही हैं. वह डॉक्टर हर्षवंती बिष्ट को बधाई देते हुए कहती हैं कि हर्षवंती आईएमएफ़ की अध्यक्ष बनी है तो वह महिलाओं, पर्यावरण और पर्वतारोहण के लिए बहुत कुछ करेंगी.
गीता गैरोला यह भी कहती हैं कि अक्सर ऐसा भी होता है कि महिलाओं को पद तो मिल जाता है लेकिन काम करने की छूट नहीं मिलती.
लेकिन हर्षवंती के साथ ऐसा नहीं है. उन्होंने कहा है कि वह आईएमएफ़ की आर्थिक स्थिति सुधारेंगी, पर्वतारोहण को मजबूत करेंगी, पर्यावरण संरक्षण के लिए काम करेंगी तो आप विश्वास कीजिए, यह सब होगा.
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