ग्राउंड रिपोर्टः श्रीलंका में मुसलमानों पर हमले क्यों?
मोहम्मद थाइयूप (76) 5 मार्च की घटना को याद करते हुए कहते हैं, "हिंसा दोपहर 2.30 से 2.45 बजे के बीच शुरू हुई. वो मुसलमानों के घरों को निशाना बना रहे थे. मेरा घर उनमें से एक था."
थाइयूप की दुकान श्रीलंका के कैंडी ज़िले के दिगाना में है. हाथ में कांच की टूटी बोतल और डंडे लिए भीड़ ने उनकी दुकान को लक्ष्य बनाया.
श्रीलंका में हाल ही में मुसलमानों और सिंहली समुदाय के बीच सांप्रदायिक हिंसा भड़क उठी थी.
समुदायों में हिंसा की कई घटनाओं के बीच कई ख़बरें ऐसी भी आईं जिसमें लोग अपने पड़ोसियों को हमलों से बचाने के लिए बाहर निकले और बौद्ध भिक्षुओं ने लोगों से शांति की अपील की.
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'पड़ोसी किस बात के लिए हैं?'
मोहम्मद थाइयूप (76) 5 मार्च की घटना को याद करते हुए कहते हैं, "हिंसा दोपहर 2.30 से 2.45 बजे के बीच शुरू हुई. वो मुसलमानों के घरों को निशाना बना रहे थे. मेरा घर उनमें से एक था."
थाइयूप की दुकान श्रीलंका के कैंडी ज़िले के दिगाना में है. हाथ में कांच की टूटी बोतल और डंडे लिए भीड़ ने उनकी दुकान को लक्ष्य बनाया.
11 सदस्यों का उनका परिवार दुकान और अपने ड्राइवर बेटे की कमाई पर निर्भर करता है.
उन्होंने कहा, "मैं यहां 36 साल से रहता हूं मैंने आज से पहले कभी इस तरह का कुछ होते नहीं देखा है. स्थानीय सिंहली लोगों की मदद के बिना ऐसा कुछ भी करना असंभव है. क्योंकि मेरे बगल वाली दुकान पर हमले नहीं किए गए, जो एक सिंहली व्यक्ति का है. लेकिन उसके ठीक बगल वाली दुकान एक मुसलमान का है, उस पर भी हमले किए गए."
थाइयूप कहते हैं, "चूंकि हमले का लक्ष्य मुसलमानों के घर और दुकान थे, हम घर के अंदर बेहद डरे हुए थे. इसके बावजूद, घर के बाहर निकलने में भी डर लग रहा था. तभी मेरे पड़ोसी निमल समरासिंगे ने मुझे और मेरे परिवार को अपने घर पर रहने के लिए बुलाया. हमारे परिवार में 11 लोग थे इसलिए मैं झिझक रहा था, लेकिन उन्होंने अपनी राय नहीं बदली."
शाम 7 बजे के बाद थाइयूप के घर पर पत्थरबाजी शुरू हई. उनका परिवार पूरी रात अपने पड़ोसी के घर पर रुका.
उन्होंने कहा, "मैं यह नहीं कह रहा हूं कि हमले में हमें मार दिया जाता. लेकिन, जब हम डरे हुए थे तब हमारे पड़ोसी ने मदद की. यह बताना ज़्यादा ज़रूरी है."
निमल, जो एक टीवी मकेनिक हैं, ने कहा, "सामान्य सिंहली लोगों को किसी से कोई समस्या नहीं है. मुझे नहीं लगता कि हमलावर स्थानीय लोग थे."
मदद करने के विषय पर वो कहते हैं, "हम इसे बड़ी बात नहीं मानते. अगर आप ज़रूरत के वक़्त काम नहीं आएंगे तो फिर पड़ोसी किस बात के हैं."
थाइयूप ने हमले में नष्ट हुए अपने दुकान पर अब तक काम करना शुरू नहीं किया है. अभी तक कुछ भी साफ़ नहीं किया गया है.
वो कहते हैं, "मुझे दुकान की सफ़ाई के लिए दो हज़ार रुपए मजदूरी देनी होगी. मेरे पास एक पैसा भी नहीं है. मुझे नहीं पता दोबारा ज़िंदगी कैसे शुरू करूं."
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बौद्ध भिक्षु जिसने समय पर काम किया
दिगाना के हिजिरा शहर में स्थित श्री हिंदुसारा विहाराई मठ के बौद्ध भिक्षुक कारादिकाला संथाविमाला थेरेरा हमले को लेकर कहते हैं, "यह अच्छा नहीं है. बौद्ध धर्म हमेशा हमें शांति सिखाता है."
सशस्त्र और आक्रामक भीड़ ने जब उनके इलाके में इकट्ठा होना शुरू किया, तो उन्होंने सहजता से काम किया और अपने मठ के आसपास कई मुसलमानों को बचाया.
संथाविमाला याद करते हैं, "इलाके में क़रीब पांच हज़ार मुसलमान परिवार रहते हैं. मैं तुरंत मठ पहुंचा और सिंहली लोगों को इकट्ठा करना शुरू कर दिया."
उन्होंने कई सिंहली लोगों को इकट्ठा किया और मुसलमानों की सुरक्षा सुनिश्चित करने को कहा. उन्होंने बीबीसी को बताया कि उन्होंने मुसलमानों को चार दिनों तक सुरक्षा प्रदान की. उन्होंने कहा कि वो कथित हमलावरों के विषय में कुछ नहीं जानते.
उनकी ही तरह, कुछ और बौद्ध भिक्षुकों ने अपने इलाक़े के मुसलमानों की रक्षा की.
कैंडी ज़िले में हुए इस हमले में 150 से अधिक दुकानें, धार्मिक स्थानों और घरों को जला दिया गया.
हालांकि इस मामले में 150 से अधिक लोगों को गिरफ़्तार किया गया है, लेकिन इससे जुड़ी कोई जानकारी नहीं दी गई.
20 फ़रवरी को, तेल्देनिया इलाक़े में एक ड्राइवर को चार मुसलमानों ने पीटा. यह ड्राइवर सिंहली समुदाय का था जिसकी कुछ दिनों बाद इलाज के दौरान मौत हो गई.
संभव है, इस मामले की वजह से ही दिगाना में संघर्ष की शुरुआत हो सकती है क्योंकि इनमें से एक मुसलमान व्यक्ति दिगाना का रहने वाला था.