जी7-ईयू ने रूसी तेल की क़ीमत पर लगाई सीमा, पुतिन बोले- अपनी सुरक्षा को ख़तरे में डाल रहा ईयू
नई सीमा के तहत ये मुल्क समुद्र के रास्ते निर्यात किए जाने वाले रूसी तेल की क़ीमत 60 डॉलर प्रति बैरल से अधिक नहीं देंगे. अमेरिका का कहना है कि इसका असर पुतिन के सबसे महत्वपूर्ण राजस्व स्रोत पर होगा.
अमेरिका ने कहा है कि रूस से निर्यात होने वाले तेल की क़ीमतों पर लगाई गई सीमा का "तुरंत असर पुतिन के सबसे महत्वपूर्ण राजस्व स्रोत पर होगा."
अमेरिका की वित्त मंत्री जैनेट येलेन ने कहा कि कई महीनों की कोशिश के बाद आधिकारिक तौर पर पश्चिम के सहयोगी मुल्कों ने शुक्रवार को तेल की क़ीमतों पर सीमा लगाने को मंज़ूरी दे दी है.
इस समझौते के अनुसार ये मुल्क समुद्र के रास्ते निर्यात किए जाने वाले रूसी तेल की क़ीमत 60 डॉलर प्रति बैरल से अधिक नहीं देंगे. रूसी तेल की क़ीमतों पर ये सीमा पांच दिसंबर या फिर इसके तुरंत बाद लागू हो जाएगी.
जैनेट येलेन ने कहा कि इससे कम और मध्यम आय वाले उन मुल्कों को ख़ास फायदा होगा जो तेल और गैस की और अनाज की बढ़ती क़ीमतों की परेशानी झेल रहे हैं.
उन्होंने रूस-यूक्रेन युद्ध की तरफ इशारा करते हुए कहा कि इससे रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन की आय पर असर पड़ेगा और "बर्बर युद्ध को जारी रखने के लिए मिल रहे राजस्व के स्रोत सीमित होंगे."
अपने बयान में उन्होंने कहा, "रूस की अर्थव्यवस्था पहले की सिकुड़ रही है और उसका बजट पहले ही कम हो रहा है. तेल की क़ीमतों पर लगी सीमा का तुरंत असर पुतिन के सबसे महत्वपूर्ण राजस्व के स्रोत पर होगा."
जी7 और सहयोगी मुल्कों ने दी मंज़ूरी
इसी साल सितंबर में जी7 देशों में शामिल सदस्य देशों (अमेरिका, कनाडा, यूके, फ्रांस, जर्मनी, इटली, जापान और यूरोपीय संघ) ने यूक्रेन युद्ध को चलाए रखने की रूस की क्षमता पर चोट करने के इरादे से रूस से निर्यात होने वाले तेल की क़ीमत पर सीमा लगाने का प्रस्ताव दिया था.
समूह के सभी सदस्य देशों को इसे मंज़ूरी देनी थी. पोलैंड को मनाने की कोशिशों के बाद शुक्रवार को यूरोपीय संघ ने तेल की क़ीमत पर सीमा को मंज़ूरी दे दी थी.
पोलैंड ने इस भरोसे के बाद इस प्रस्ताव को अपना समर्थन दिया था कि तेल की क़ीमतों पर लगी सीमा बाज़ार की दर से पांच फ़ीसदी कम रखी जाएगी.
बताया जा रहा है कि यूरोपीय संघ चाहता था कि तेल की क़ीमत की सीमा 65 से 70 डॉलर प्रति बैरल रखी जाए लेकिन इस प्रस्ताव को मानने से पोलैंड के साथ-साथ लिथुआनिया और इस्टोनिया ने ये कहते हुए मना कर दिया कि ये क़ीमत काफी अधिक है.
पोलैंड चाहता था कि तेल की क़ीमत पर कम से कम सीमा रखी जाए और इसे इस तरह रखा जाए कि ये बाज़ार की दर से नीचे रहे.
इसे लेकर जी7, यूरोपीय संघ और ऑस्ट्रेलिया ने जो साझा बयान जारी किया है उसके अनुसार तेल की क़ीमतों पर सीमा लगाने का उद्देश्य रूस को "यूक्रेन के ख़िलाफ़ युद्ध का फायदा लेने से रोकना है."
ब्रितानी चांसलर जेरेमी हंट ने कहा कि इस मुद्दे पर समर्थन देने में यूके पीछे नहीं हटेगा और वो "युद्ध का वित्तपोषण करने वाले पुतिन के स्रोतों पर लगाम लगाने" के लिए नए रास्तों की तलाश जारी रखेगा.
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रूस तेल की क़ीमतों पर लगाम लगने का ये फ़ैसला यूरोपीय संघ के समंदर के रास्ते निर्यात किए जाने वाले रूसी कच्चे तेल पर लगे बैन के बाद आया है जो पांच दिसंबर से लागू होने वाला है.
यूरोपीय कमिशन की अध्यक्ष उर्सुला फ़ॉन डेल लेयन का कहना है कि इसके तीन उद्देश्य हैं, "पहला इससे हमारी लगाई पाबंदी और असरदार होगी. दूसरा इसका असर रूस के राजस्व के स्रोतों पर पड़ेगा. और तीसरा ये कि इससे अंतरराष्ट्रीय उर्जा बाज़ार में स्थिरता बनी रहेगी क्योंकि इससे संमदर से रास्ते निर्यात होने वाले रूसी तेल का कुछ हिस्सा (जिसकी क़ीमत तय की गई सीमा से कम होगी) यूरोपीय संघ के ऑपरेटरों द्वारा ग़रीब मुल्कों में ट्रांसपोर्ट किया जाएगा."
माना जा रहा है कि इस बैन का असर और तेल की क़ीमतों पर लगाई गई सीमा का असर दुनियाभर में तेल के निर्यात पर पड़ेगा.
जो देश जी7 देशों के नेतृत्व वाली नीतियों को मानेंगे वो समंदर के रास्ते होने वाले तेल और पेट्रोलियम उत्पाद का आयात करते वक्त की तय की गई सीमा से कम क़ीमत में ही इसे ख़रीद सकते हैं.
यूक्रेन के सहयोगी पश्चिमी मुल्क इस बात की भी योजना बना रहे हैं कि रूसी तेल ले जाने वाले ऐसे टैंकर जो तेल पर लगाई गई सीमा को न मानते हों.
उनका इन्शोरेन्स न किया जाए. उनका मानना है कि इससे रूस के लिए तय सीमा से अधिक की क़ीमत पर तेल बेचना मुश्किल हो जाएगा.
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रूस का क्या कहना है?
रूस ने इस फ़ैसले की आलोचना की है और कहा है कि जो देश तेल की क़ीमत पर लगाई गई सीमा के हिसाब से तेल खरीदना चाहते हैं, उन्हें वो तेल नहीं बेचेगा.
विदेशी मामलों की कमिटी के प्रमुख रूस के एक वरिष्ठ नेता लियोनिड स्लुत्स्की ने तास समाचार एजेंसी से कहा कि इस तरह तेल की क़ीमत पर सीमा लगा कर यूरोपीय संघ अपनी उर्जा सुरक्षा को ख़ुद ख़तरे में डाल रहा है.
इंटरनेशनल एनर्जी असोसिएशन के अनुसार युद्ध से पहले, साल 2021 में रूस से होने वाले तेल निर्यात का आधे से अधिक हिस्सा यूरोप जाता था. इनमें सबसे बड़ा आयातक जर्मनी रहा है जिसके बाद नीदरलैंड्स और पोलैंड थे.
लेकिन यूक्रेन के ख़िलाफ़ युद्ध शुरू होने के बाद से यूरोपीय संघ के देश रूस से मिलने वाले तेल और गैस पर निर्भरता कम करने की पूरी कोशिश कर रहे हैं. अमेरिका ने रूसी कच्चे तेल पर पहले ही बैन लगाया हुआ जबकि यूके की योजना इसे चरणबद्ध तरीक़े से इस साल के आख़िर तक रूसी तेल पर निर्भरता ख़त्म करने की है.
माना जा रहा है कि इसका बड़ा असर रूस पर पड़ेगा लेकिन ये भी माना जा रहा है कि भारत और चीन जैसे बाज़ार रूस पर इस क़दम के असर को कम कर सकते हैं. फिलहाल के वक्त में ये दोनों ही रूसी तेल के बड़े खरीदार हैं.
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