एक एक कर भारत के सभी पड़ोसी देशों में आर्थिक हाहाकार, PM मोदी की 'पड़ोसी फर्स्ट' नीति का क्या होगा?
पाकिस्तान में स्थिति उस स्तर पर पहुंच गई है, जहां पाकिस्तानी सेना के प्रमुख जनरल कमर जावेद बाजवा ने अमेरिकी उप सचिव वेंडी शेरमेन से आर्थिक मदद की गुहार लगाई है।
नई दिल्ली, जुलाई 30: पहले श्रीलंका और पाकिस्तान, फिर नेपाल और अब बांग्लादेश... एक एक कर भारत के तमाम पड़ोसी देश आर्थिक संकट के भंवर में बुरी तरह से फंस चुके हैं। यूक्रेन युद्ध ने भारत के पड़ोसी देशों पर काफी बुरा प्रभाव डाला है और कोलंबो के बाद इस्लामाबाद भी बेलऑउट पैकेज मांग रहा है, ताकि आर्थिक भंवर से निकला जा सके। पाकिस्तान के पास भी विदेशी मुद्रा भंडार खत्म हो चुका है, लिहाजा अगर वक्त रहते पाकिस्तान को बेलऑउट पैकेज नहीं मिलता है, तो वहां भी श्रीलंका जैसे हालात पैदा हो जाएंगे। वहीं, पाकिस्तान के अलावा म्यांमार, मालदीव और यहां तक कि नेपाल की आर्थिक स्थिति बहुत खराब हो चुकी है। ऐसे में सवाल उठ रहे हैं, कि 'पड़ोसी पर्स्ट' नीति के तहत भारत अपने इन पड़ोसी देशों की कहां तक मदद कर पाएगा?
यूक्रेन युद्ध का महाअसर
24 फरवरी को रूस ने यूक्रेन में 'सैन्य अभियान' चलाने के निर्देश दिए थे और कुछ दिनों में यूक्रेन युद्ध के 6 महीने पूरे हो जाएंगे अभी तक युद्ध समाप्त होने के कोई संकेत नहीं दिख रहे हैं। वहीं, इस युद्ध में रूस जीत की तरफ है और यूक्रेन करीब करीब बर्बाद हो चुका है, वहीं गैस सप्लाई को लेकर मॉस्को ने यूरोप की नाको में नकेल कस चुका है, और यूक्रेन के पूर्वी हिस्से में अपनी स्थिति को मजबूत करने के बाद कीव में शासन परिवर्तन का आह्वान कर रहा है। रूस से गैस की आपूर्ति में 20 फीसदी की कटौती के बाद जहां यूरोपीय संघ की हालत खराब है और मॉस्को पर पश्चिमी देशों द्वारा लगाए गये प्रतिबंधों का ना तो राजनीति असर हो रहा है और ना ही आर्थिक असर हो रहा है, लेकिन कई एशियाई और कई अफ्रीकी देश इस चपेट में आ चुके हैं। इसका मतलब यह है, कि युद्ध तब तक जारी रहेगा, जब तक राष्ट्रपति पुतिन के उद्देश्यों को हासिल नहीं कर लिया जाता और इसका मतलब ये हुआ, कि काफी ज्यादा महंगाई, महंगा कच्चा तेल और भोजन की कमी से उत्पन्न आर्थिक संकट जारी रहेगा। यानि, संक्षेप में समझा जाए, तो भारतीय के पड़ोस में आर्थिक उथल-पुथल है और श्रीलंका ने दिखाया है कि इन देशों में भी राजनीतिॉ में विस्फोट हो सकता है।
पाकिस्तान की अमेरिका से गुहार
पाकिस्तान में स्थिति उस स्तर पर पहुंच गई है, जहां पाकिस्तानी सेना के प्रमुख जनरल कमर जावेद बाजवा ने अमेरिकी उप सचिव वेंडी शेरमेन से आर्थिक मदद की गुहार लगाई है, ताकि आईएमएफ से पाकिस्तान को 1.5 अरब डॉलर का कर्ज मिल सके, क्योंकि इस्लामाबाद ऋण चूक के जोखिम का सामना कर रहा है। घटते विदेशी भंडार के साथ अमरीकी डालर का सख्त होना पाकिस्तान की मुश्किलें बढ़ा रहा है। यह समझा जाता है कि जनरल बाजवा ने अमेरिकी उप सचिव को उस वक्त फोन किया था, जब पाकिस्तानी नेताओं की बात को अमेरिका में गंभीरता से नहीं लिया जा रहा था। पाकिस्तान के अपदस्थ पीएम इमरान खान नियाज़ी अमेरिकी नेतृत्व पर निशाना साधने का कोई मौका नहीं छोड़ रहे हैं और अमेरिका इसे लेकर कई बार सफाई दे चुका है। लेकिन, इस्लामाबाद के पास वाशिंगटन की मदद लेने के अलावा कोई विकल्प नहीं है, क्योंकि उसका आइरन ब्रदर चीन मदद करने की स्थिति में ही नहीं है। पाकिस्तान पर अपने विदेशी ऋण का 25 प्रतिशत से अधिक चीन का बकाया है, जो भारतीय उपमहाद्वीप में नई ईस्ट इंडिया कंपनी का उपनिवेश बन रहा है।
कंगाल हो चुका है श्रीलंका
श्रीलंका, चीन का एक और करीबी दोस्त, उसकी भी स्थिति बदतर हो चुकी है और स्थिति और भी खराब होती जा रही है, क्योंकि विश्व बैंक ने पर्याप्त मैक्रो-इकनॉमिक पॉलिसी फ्रेमवर्क होने तक नए वित्तपोषण की पेशकश करने से इनकार कर दिया है। विश्व बैंक ने एक बयान में कहा कि, मैक्रो-इकोनॉमिक पॉलिसी फ्रेमवर्क में गहन संरचनात्मक सुधारों की आवश्यकता है जो आर्थिक स्थिरीकरण पर ध्यान केंद्रित करते हैं, और मूल संरचनात्मक कारणों को संबोधित करते हैं, ताकि, यह सुनिश्चित हो सके कि श्रीलंका की वसूली लचीला और समावेशी है।
बिगड़ रही है बांग्लादेश की स्थिति
वहीं, ढाका में स्थिति इतनी विकट नहीं है, लेकिन धीरे धीरे वो भी आर्थिक संकट में फंसता जा रहा है और डॉलर के मुकाबले बांग्लादेश की करेंस भी गिर रही है और अमेरिकी डॉलर की आधिकारिक खरीद और काला बाजार के बीच 10 प्रतिशत मूल्य अंतर हो चुका है, जिससे बांग्लादेश में आर्थिक तनाव कम होने के संकेत नहीं मिल रहे हैं। जबकि बांग्लादेश की मुद्रा टका अभी भी क्रैश कर चुके पाकिस्तानी और श्रीलंकाई मुद्रा की तुलना में डॉलर के मुकाबले थोड़ी बेहतर स्थिति में हैं, लेकिन ढाका ने बढ़ती खाद्य और ईंधन की कीमतों को रोकने के लिए आईएमएफ से 4.5 अरब डॉलर का ऋण मांगा है। हालांकि, शेख हसीना के मजबूत नेतृत्व में, बांग्लादेश, देश में बढ़ते इस्लामी कट्टरपंथ को छोड़कर राजनीतिक उथल-पुथल के कोई संकेत नहीं दिखा रहा है।
नेपाल को संभालेगा भारतीय रुपया
हालांकि, एक्सपर्ट्स का कहना है कि, नेपाल की स्थिति भारतीय रुपये की वजह से खराब नहीं हो पाएगी, क्योंकि नेपाल में भारतीय रुपया भी चलता है और भारतीय रुपये के साथ नेपाली रुपये का मैकेनिज्म स्थिति को खराब नहीं होने देगा, लेकिन इसके राजनीतिक नेतृत्व को अब एहसास हुआ है कि आर्थिक रूप से विवेकपूर्ण होना और चीन से ऋण लेना देश के लिए कितना घातक साबित हो सकता है। वहीं, आर्थिक संकट से जूझ रहे म्यांमार की भी स्थिति काफी खराब हो चुकी है और सैन्य तख्तापलट होने के बाद म्यांमार पर कई तरह के आर्थिक प्रतिबंध भी लगे हैं, लिहाजा माना यही जा रहा है, कि म्यांमार की स्थिति भी कुछ महीनों में श्रीलंका जैसी हो सकती है। वहीं, मालदीव के राष्ट्रपति भारत दौरे पर आ रहे हैं और ऐसी रिपोर्ट है, कि वो भारत से मदद मांग सकते हैं। चूंकी भारत और मालदीव के संबंध अच्छे हैं, लिहाजा भारत मदद भी कर सकता है, लेकिन सावल ये हैं, कि सारे पड़ोसी देशों के आर्थिक संकट में फंसने के बाद भला भारत कहां तक मदद कर पाएगा?
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