बांग्लादेश के पासपोर्ट पर इसराइल को ग़लतफ़हमी हुई या बात कुछ और है
बांग्लादेश ने अपने पासपोर्ट में ऐसा बदलाव किया कि इसराइल गदगद हो गया, लेकिन कहानी में ट्विस्ट आना बाक़ी था.
बांग्लादेश के विदेश मंत्रालय ने कहा है कि बांग्लादेशी पासपोर्ट वाले लोगों के इसराइल जाने पर पाबंदी अब भी जारी है. दरअसल सारा मामला उस समय शुरू हुआ, जब बांग्लादेश के नए पासपोर्ट पर से 'इसराइल छोड़कर सभी देश' लाइन हटा दी गई.
इतना ही नहीं, मामला उस समय और भी उलझ गया, जब इसराइली विदेश मंत्रालय के एक अधिकारी गिलाड कोहेन ने एक न्यूज़ रिपोर्ट को ट्वीट करते हुए कहा कि बांग्लादेश ने इसराइल जाने पर लगी पाबंदी हटा ली है. उन्होंने इस क़दम का स्वागत किया और बांग्लादेश सरकार से अपील की कि वो इसराइल के साथ कूटनीतिक संबंध स्थापित करे.
https://twitter.com/GiladCohen_/status/1396155072392933378?s=20
इस मामले पर तूल पकड़ता देख बांग्लादेश के विदेश मंत्रालय ने रविवार को बयान जारी करके स्पष्टीकरण दिया है.
विदेश मंत्रालय ने अपने बयान में कहा है- मंत्रालय का ध्यान इस पर गया है कि इसराइली विदेश मंत्रालय ने बांग्लादेश के ई पासपोर्ट में इसराइल पर पाबंदी का ज़िक्र नहीं किया गया है और इसराइल ने इसका स्वागत किया है. ऐसा लगता है कि नए ई-पासपोर्ट से भ्रम पैदा हुआ है, जिसमें 'इसराइल को छोड़कर सभी देश' का ज़िक्र नहीं है. ये लाइन हटाने का फ़ैसला अंतरराष्ट्रीय मानदंडों के हिसाब से किया गया है. बांग्लादेश की मध्य पूर्व को लेकर विदेश नीति में कोई बदलाव नहीं आया है. बांग्लादेशी पासपोर्ट धारकों के इसराइल की यात्रा पर पाबंदी जारी है. बांग्लादेश की सरकार इसराइल को लेकर अपनी स्थिति पर क़ायम है और इसमें कोई बदलाव नहीं आया है.
बयान में आगे लिखा गया है कि बांग्लादेश ने अल अक़्सा मस्जिद और ग़ज़ा में नागरिकों पर इसराइली कार्रवाई की निंदा की है.
बांग्लादेश 1967 से पहले की सीमाओं और पूर्वी यरुशलम को फ़लस्तीनी राज्य की राजधानी के रूप में मान्यता देने वाले संयुक्त राष्ट्र के प्रस्तावों के आलोक में इसराइल-फ़लस्तीनी संघर्ष में दो राष्ट्र के समाधान पर अपनी स्थिति को दोहराता है.
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पिछले दिनों पूर्वी यरुशलम के अल अक़्सा मस्जिद से शुरू हुआ संघर्ष इसराइल और ग़ज़ा के बीच कई दिनों तक चली लड़ाई में तब्दील हो गया था. इसराइल ने ग़ज़ा पर हवाई हमले किए, तो फ़लस्तीनी चरमपंथी संगठन हमास ने भी इसराइल के कई शहरों पर रॉकेट हमले किए.
पिछले दिनों इसराइल संघर्ष विराम पर राज़ी हो गया. लेकिन इसराइली कार्रवाई के दौरान ग़ज़ा में 250 से ज़्यादा लोग मारे गए, जिनमें महिलाएँ और बच्चे भी थे.
विदेश नीति में बदलाव नहीं
बांग्लादेश के विदेश मंत्री डॉक्टर एके अब्दुल मोमेन ने भी कहा है पासपोर्ट एक राष्ट्रीय पहचान है और इससे विदेश नीति को नहीं दर्शाता.
उन्होंने कहा कि इसराइल को लेकर बांग्लादेश की स्थिति में कोई बदलाव नहीं आया है और बांग्लादेश इसराइल को मान्यता नहीं देता है.
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विदेश मंत्री अब्दुल मोमेन ने कहा है कि 'इसराइल को छोड़कर' जैसे शब्द पासपोर्ट से हटाने का मतलब इसराइल की यात्रा पर लगी पाबंदी हटाना नहीं है.
उन्होंने कहा कि बांग्लादेश के गृह मंत्रालय ने क़रीब छह महीने पहले ये महसूस किया था कि किसी भी देश के पासपोर्ट पर ऐसे शब्द नहीं हैं और इसी कारण नए ई पासपोर्ट में बदलाव किए गए ताकि अंतरराष्ट्रीय मानदंडों को बनाए रखा जाए.
फ़लस्तीनी राजदूत को आपत्ति
हालाँकि बांग्लादेश स्थित फ़लस्तीनी राजदूत को बांग्लादेश के इस फ़ैसले पर आपत्ति है. ढाका स्थित फ़लस्तीनी राजदूत यूसुफ़ एसवाई रमादान ने कहा है कि बांग्लादेशी पासपोर्ट से 'इसराइल को छोड़कर' शब्द हटाना स्वीकार्य नहीं है.
उन्होंने बांग्लादेश सरकार के इस तर्क को ख़ारिज कर दिया है कि अंतरराष्ट्रीय मानदंडों को बनाए रखने के लिए ऐसा किया गया है.
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फ़लस्तीनी राजदूत ने कहा कि उन्होंने बांग्लादेश के गृह मंत्री असदुज़्ज़मां ख़ान से मिलने का समय मांगा है.
बांग्लादेशी अख़बार ढाका ट्रिब्यून से बातचीत में उन्होंने कहा, "मैं इस घटनाक्रम से वाकिफ़ हूँ. किसी भी संप्रभु राष्ट्र को पासपोर्ट या किसी अन्य मुद्दे पर फ़ैसला करने का अधिकार है. ये मानते हुए, मैं ये कहूँगा कि बांग्लादेश की सरकार का ये फ़ैसला हमें स्वीकार नहीं है."
इसराइल पर बांग्लादेश का रुख़
ग़ज़ा में चल रही इसराइली कार्रवाई के दौरान बांग्लादेश में फ़लस्तीनियों के समर्थन में कई बड़ी बड़ी रैलियाँ हुईं. फ़लस्तीनी राजदूत ने भी समर्थन के लिए बांग्लादेश के लोगों का आभार जताया था.
1971 अपने गठन के बाद से ही बांग्लादेश ने इसराइल को मान्यता नहीं दी है. बांग्लादेश का कहना है कि वो अलग फ़लस्तीनी राष्ट्र का समर्थन करता है और वो ये चाहता है कि 1967 से पहले वाली स्थिति क़ायम की जाए और फ़लस्तीनी अलग राष्ट्र को मान्यता दी जाए.
इतना ही नहीं बांग्लादेश पूर्वी यरुशलम को फ़लस्तीनी राष्ट्र की राजधानी का दर्जा देता है. पूर्वी यरुशलम के अल अक़्सा मस्जिद से ही ताज़ा संघर्ष शुरू हुआ है. मुसलमान और यहूदी दोनों इसे अपना पवित्र स्थल मानते हैं.
नवंबर 2003 में बांग्लादेश के एक पत्रकार सलाह चौधरी ने तेल अवीव जाने की कोशिश की थी. लेकिन उन्हें गिरफ़्तार कर लिया गया था. उन पर देशद्रोह, राजद्रोह और ईशनिंदा का मामला चला था. उन्हें सात साल जेल की सज़ा हुई थी.
बीबीसी बांग्ला सेवा के संवाददाता शुभज्योति घोष के मुताबिक़ गठन के समय बांग्लादेशी पासपोर्ट पर तीन देशों का ज़िक्र था, जहाँ की यात्रा बांग्लादेश पासपोर्ट धारक नहीं कर सकते थे. ये देश थे- दक्षिण अफ़्रीका, ताइवान और इसराइल. दक्षिण अफ़्रीका का ज़िक्र उसकी रंगभेद की नीति के कारण और ताइवान का बांग्लादेश की वन चायना नीति के समर्थन के कारण और इसराइल का फ़लस्तीनी राष्ट्र के समर्थन के कारण.
बांग्लादेश ने बाद में पासपोर्ट से दक्षिण अफ़्रीका और ताइवान का नाम हटा दिया. लेकिन इसराइल का नाम अभी तक था.
जहाँ तक इसराइल बांग्लादेश संबंध की बात है, आधिकारिक तौर पर बांग्लादेश इसराइल को मान्यता नहीं देता. लेकिन बीबीसी संवाददाता शुभज्योति घोष का कहना है कि जानकार बताते हैं कि बांग्लादेश गुप्त रूप से इसराइल से बहुत कुछ ख़रीद रहा है. लेकिन सरकार ने खुले तौर पर कभी इस पर कुछ नहीं कहा.
उन्होंने बताया कि बांग्लादेश इसराइल से जासूसी उपकरण जैसे सर्वेलांस डिवाइस और फोन टेपिंग उपकरण धड़ल्ले से ख़रीदता है और उसका बांग्लादेश इस्तेमाल भी ख़ूब करता है.
इसराइल का संयुक्त अरब अमीरात और बहरीन के साथ कूटनीतिक रिश्ते बहाल होने के बाद से अरब जगत में ये चर्चा है कि अगला नंबर सऊदी अरब का हो सकता है. अमेरिका भी इसकी कोशिश में है कि इसराइल और सऊदी अरब के रिश्ते बहाल हो जाएँ.
जानकारों का कहना है कि अगर सऊदी अरब और इसराइल के रिश्ते सामान्य हो गए, तो बांग्लादेश भी उसी रास्ते पर जा सकता है. क्योंकि इसराइल ने खुलकर बांग्लादेश के साथ रिश्ते बहाल करने की पैरवी की है.
बांग्लादेश पर भी इसराइल के साथ कूटनीतिक रिश्ते बहाल करने का दबाव है, लेकिन बांग्लादेश अपनी आंतरिक स्थिति और धार्मिक भावनाओं के कारण इस पर खुलकर कुछ नहीं कहता.
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