अफगानिस्तान से खरबों डॉलर का दुर्लभ 'खजाना' निकालने पहुंचा चीन, धन्नासेठ बनेगा तालिबान?
विशेषज्ञों का मानना है कि पाकिस्तान खनिज संपदा के दोहन और तालिबान शासन के साथ भारत की भूमिका को रोकने में चीन के साथ साझेदारी करने की कोशिश करेगा।
काबुल, नवंबर 24: अफगानिस्तान की धरती में छिपे खरबों रुपये के दुर्लभ खजाने को निकालने की कोशिश चीन ने शुरू कर दी है। समाचार एजेंसी एएनआई की रिपोर्ट के मुताबिक, पृथ्वी के नीचे छिपे खरबों रुपये के दुर्लभ धातुओं को कैसे बाहर निकाला जाए, कैसे उसका प्रोडक्शन किया जाए, इस बात की खोज करने के लिए चीनी प्रतिनिधिमंडलों की टीम अफगानिस्तान पहुंच चुका है और अपने काम कर लग चुका है। चीनी प्रतिनिधिमंडल की ये टीम अफगानिस्तान के गर्भ में छिपे बेहद दुर्लभ माने जाने वाली धातु लिथियम का खोज करेंगे।
अफगानिस्तान में प्रतिनिधिमंडल
रिपोर्ट के मुताबिक, चीन का प्रतिनिधिमंडल अफगानिस्तान में लिथियम निकालने की संभावनाओं पर विचार कर रहा है और उन जगहों पर निरिक्षण की जा रही है, जहां पर लिथियम होने की संभावना है। आपको बता दें कि, लिथियम को बेहद दुर्लभ धातु कहा गया है और आने वाले वक्त में लिथियम जिसके पास होगा, वही दुनिया को अपनी उंगलियों पर नचाएगा। चीनी अखबार ग्लोबल टाइम्स की रिपोर्ट के मुताबिक, चीन की कई कंपनियों ने अफगानिस्तान से दुर्लभ धातुओं को निकालने में दिलचस्पी दिखाई है, लेकिन ग्लोबल टाइम्स की रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि, अफगानिस्तान में अभी भी नीति, सुरक्षा और इन्फ्रास्ट्रक्चर को लेकर अनिश्चितताएं बनी हुई हैं।
अफगानिस्तान में पांच चीनी कंपनियां
ग्लोबल टाइम्स की रिपोर्ट के मुताबिक, चीन की पांच कंपनियों के अधिकारियों को अफगानिस्तान में दुर्लभ धातुओं के परीक्षण के लिए विशेष वीजा दिया गया है, जो इस वक्त अफगानिस्तान में उन जगहों पर मौजूद हैं, जहां पर लिथियम होने की संभावना जताई गई है। ये टीम शुरूआती जांच करेगी और फिर उसकी रिपोर्ट चीन की सरकार को सौंपेगी। इस टीम के डायरेक्टर यू मिंगहुई ने कहा कि, ''वे चाइनाटाउन पहुंचे हैं और अपनी योजना के अनुसार अफगानिस्तान में निरिक्षण कर रहे हैं''। उन्होंने कहा कि, ''चीन की कंपनियां अफगानिस्तान में व्यापार के अवसरों का पता लगाने में मदद कर रही हैं''। ग्लोबल टाइम्स की रिपोर्ट के मुताबिक, ''इन कंपनी प्रतिनिधियों को चीनी निवेशकों को जारी किए गए विशेष वीजा का पहला बैच मिला है''।
तालिबान का व्यापारिक भागीदार बनेगा चीन
अगस्त में अफगानिस्तान की सत्ता में वापसी के बाद से तालिबान को देश चलाने के लिए पैसों की जरूरत है और जापानी अखबार निक्केई एशिया ने दावा किया है कि, चीन खुद को तालिबान का प्रमुख अंतर्राष्ट्रीय व्यापारिक भागीदार बनाने के लिए पूरी तरह से तैयार है और तालिबान इस बात को जानता है कि, अफगानिस्तान में पैर जमाने के लिए चीन से बेहतर उसका विकल्प कोई और नहीं बन सकता है। रिपोर्ट में कहा गया है कि, अफगानिस्तान में एक ट्रिलियन से 2 ट्रिलियन डॉलर की दुर्लभ सामग्री मौजूद है। खासकर अफगानिस्तान में लिथियम का अपार भंडार छिपा हुआ है।
अमेरिका ने खोजा था खजाना
2004 में अमेरिका द्वारा तालिबान की सत्ता को बर्खास्त कर दिया गया। जिसके बाद अमेरिकन जियोलॉजिकल सोसायटी के सर्वेक्षण ने अफगानिस्तान के अंदर एक सर्वेक्षण शुरू किया था। 2006 में अमेरिकी शोधकर्ताओं ने चुंबकीय गुरुत्वाकर्षण और हाइपरस्पेक्ट्रल सर्वेक्षणों के लिए हवाई मिशन भी किए थे। जिसमें पता चला था कि अफगानिस्तान में अकूत मात्रा में लोहा, तांबा, कोबाल्ट, सोना के अलावा औद्योगिक रूप से महत्वपूर्ण लिथियम और नाइओबियम के विशालकाय खनिज मौजूद है। ये ऐसे खनिज हैं, जो रातों रात किसी भी देश की तकदीर को हमेशा के लिए बदल सकते हैं। वहीं, नाटो के 16वें सुप्रीम एलाइड कमांडर जेम्स स्टावरिडिस ने कहा है कि, ''चीन माइक्रोचिप्स से लेकर इलेक्ट्रिक कार बैटरी तक हर चीज के लिए रणनीतिक आपूर्ति श्रृंखला पर जितना हो सके उतना नियंत्रण मजबूत करना चाहता है, इसीलिए वो काबुल में प्रधानता चाहते हैं।'
पाकिस्तान भी मारेगा एंट्री?
विशेषज्ञों का मानना है कि पाकिस्तान खनिज संपदा के दोहन और तालिबान शासन के साथ भारत की भूमिका को रोकने में चीन के साथ साझेदारी करने की कोशिश करेगा। 19वीं शताब्दी में अफगानिस्तान में ज्यादातर वक्त तक रूस और ब्रिटेन ने अफगानिस्तान में संघर्ष किया है। वहीं, भू-राजनीतिक प्रतिस्पर्धा ने अफगानिस्तान की रणनीतिक स्थिति और दक्षिण एशिया को प्रभावित करने की इसकी क्षमता को मान्यता दी। वहीं, पाकिस्तान की भूमिका पर कुछ विश्लेषकों का मानना है कि, पाकिस्तान निश्चित तौर पर भागीदारी करना चाहेगा, लेकिन उसकी भूमिका क्या होगी, इसपर शक है। क्योंकि, पाकिस्तान के पास निवेशक बनने के लिए पैसे नहीं है और प्रोजेक्ट में पाकिस्तानी मजदूरों को शामिल नहीं किया जाएगा, लिहाजा पाकिस्तान के लिए अफगानिस्तान में बतौर व्यापारी एंट्री करना काफी मुश्किल होगा।
बेहद दुर्लभ धातु है लिथियम
इन सब खनिजों में से लिथियम की मांग के कारण अफगानिस्तान को 'सऊदी अरब' भी कहा जाता है। दरअसल, कार से लेकर लैपटॉप और मोबाइल की बैटरी में लिथियम का इस्तेमाल होता है। अमेरिकी रक्षा विभाग पेंटागन ने ही कहा था कि अफगानिस्तान का लिथियम सऊदी अरब बन जाएगा। जलवायु परिवर्तन को देखते हुए यह तय है कि आने वाले वक्त में जीवाश्म ईंधन की जगह इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों की मांग काफी ज्यादा बढ़ने वाली है। ऐसे में लिथियम जैसे खनिजों की भारी मौजूदगी अफगानिस्तान की किस्मत हमेशा हमेशा के लिए बदल सकती है, बशर्ते उसका सही तरीके से इस्तेमाल है और वो इस्तेमाल अफगानिस्तान के अंदर बनने वाली सरकार करे। उसपर किसी बाहरी शक्ति का नियंत्रण ना हो।
जीभ लपलपा रहा है ड्रैगन
अफगानिस्तान में नरम धातु नाइओबियम भी पाया जाता है, जिसका उपयोग सुपरकंडक्टर स्टील बनाने के लिए किया जाता है। और आपको बता दें कि सुपरकंडक्टर कितना जरूरी है, इसका अंदाजा आप इसी से लगा सकते हैं कि इस साल नामी कार कंपनियों को सुपरकंडक्टर के अभाव की वजह से अपना प्रोडक्शन बंद करना पड़ा है। वहीं, अभी भी वैश्विक कार बाजार में प्रोडक्शन काफी कम हो चुका है। इतने दुर्लभ खनिजों की मौजूदगी के कारण यह माना जाता है कि आने वाले समय में दुनिया तेजी से खनन के लिए अफगानिस्तान की तरफ रुख करेगी। अब तक अमेरिका यहीं बना हुआ था और उसने एक तरह से अफगानिस्तान की खनिज संपदा की रक्षा ही की है, लेकिन अब चीन अफगानिस्तान तक पहुंच गया है।
अफगानिस्तान का दोहन करेगा चीन?
चीन ने अफगानिस्तान में मौजूद उस दुर्लभ खजाने को हासिल करने के लिए करीब 62 अरब डॉलर की बेल्ट एंड रोड परियोजना के तहत अफगानिस्तान तक सीपीसी यानि चीन पाकिस्तान कॉरिडोर का विस्तार करने की कोशिश काफी तेज कर दी है। एक बार अगर बेल्ट एंड रोड परियोजना बन जाता है, तो फिर अफगानिस्तान की खनिज संपदा को चीन के हाथ में जाने से कोई नहीं रोक सकता है। क्योंकि, सब जानते हैं कि अफगानिस्तान के अंदर मची लड़ाई का फायदा उठाने में चीन कोई कमी नहीं करेगा।
अब तक गरीब क्यों है अफगानिस्तान?
एक रिपोर्ट के अनुसार अफगानिस्तान में एक ट्रिलियन डॉलर के संसाधन हैं, लेकिन हर साल सरकार को खनन से 30 करोड़ डॉलर के राजस्व का नुकसान ही होता है। अफ़ग़ानिस्तान खराब सुरक्षा, कानूनों की कमी और भ्रष्टाचार के कारण अपने खनिज क्षेत्र को ना विकसित कर पाया है और ना ही उसकी पुरक्षा करने में समर्थ नजर आ रहा है। बिगड़ते बुनियादी ढांचे के कारण अफगानिस्तान में परिवहन व्यवस्था भी बेहद खराब है साथ ही सरकार के पास इतने पैसे नहीं हैं कि वो खनिजों का खनन कर सके। इन सब वजहों से खनन ने देश के सकल घरेलू उत्पाद में केवल 7-10% का योगदान दिया। ऐसे में अगर चीन अफगानिस्तान में अपनी जड़ें जमाता है तो जाहिर तौर पर अफनागिस्तान को फायदा से ज्यादा नुकसान होगा
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