20 करोड़ लोगों से उनका धर्म छीन लेगा चीन, 'नास्तिक' बनाने के लिए शी जिनपिंग ने किया बड़ा ऐलान
बीजिंग, 6 दिसंबर: चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने राष्ट्रीय सुरक्षा के नाम पर धार्मिक गतिविधियों पर सख्ती बढ़ाने का ऐलान कर दिया है। जिनपिंग ने सभी धर्मों को चीनी संस्कृति में बदलने की मुहिम छेड़ दी है, ताकि वो चीन की सत्ताधारी कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ चाइना (सीपीसी) के अंदर रहकर काम करें, जिसकी विचारधारा पूरी तरह से नास्तिक है। बता दें कि जिनपिंग पहले से ही खुद को एक तरह से पूरी जिंदगी के लिए सत्ता पर काबिज कर चुके हैं; और जब दुनियाभर में उनपर दूसरे धर्म के लोगों को कुचलने के आरोप लग रहे हैं, तब उन्होंने उसे सत्ताधारी पार्टी के कंट्रोल में लाने का काम शुरू कर दिया है।
आस्तिकों को नास्तिक बनाने की जिनपिंग ने रची साजिश
चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने वहां धार्मिक मामलों पर सरकार का दखल बढ़ाने के कदम उठाने का आह्वान किया है, जिसका सीधा मतलब है कि सभी धर्मों को अब चीन में सत्ताधारी पार्टी की नीतियों के मुताबिक ही चलना होगा। उन्होंने सभी धर्मों को चीन की संस्कृति (जिसके लिए अंग्रेजी में खास शब्द है- सिनिसाजेशन) के मुताबिक ही चलने पर खास जोर दिया है। 68 वर्षीय जिनपिंग कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ चाइना के प्रमुख तो हैं ही, वहां की शक्तिशाली सेना भी उन्हीं के मातहत है और माना जा रहा है कि उन्होंने अपनी पूरी जिंदगी के लिए के लिए अपनी सत्ता सुरक्षित कर ली है। ऐसे में उनका यह नया कदम ना सिर्फ तिब्बतियों की पहचान मिटा सकता है, बल्कि पहले से ही जुल्मों के शिकार हो रहे उइगर मुसलमानों और करोड़ों ईसाइयों की भी अपनी मूल पहचान खत्म होने का खतरा पैदा हो गया है।
20 करोड़ लोगों से उनका धर्म छीन लेगा चीन
2019 में चीन में एक आधिकारिक श्वेत पत्र जारी हुआ था, जिसके मुताबिक वहां 20 करोड़ से ज्यादा विभिन्न धर्मों से जुड़ी आस्तिक आबादी रहती है। इनमें से बहुसंख्यक बौद्ध हैं, जो तिब्बत के मूल निवासी हैं और इसपर चीन ने अधिकार हासिल किया हुआ है। इनके अलावा वहां 2 करोड़ मुसलमान, 3.8 करोड़ प्रोटेस्टेंट क्रिश्चियन और 60 लाख कैथोलिक ईसाई रहते हैं। चीन में विभिन्न धर्मों के 1,40,000 पूजा स्थल या प्रार्थना स्थल भी हैं। जिनपिंग का मंसूबा है कि एक ही झटके में यह सबकुछ कम्युनिस्ट पार्टी के कैडर्स के कंट्रोल में आ जाए।
चीन में नहीं बचेगी धार्मिक आजादी
अब जरा चीन के तानाशाह बनते जा रहे जिनपिंग की दलील भी देख लीजिए। बीजिंग में पिछले हफ्ते के अंत में धार्मिक मामलों से जुड़े कार्यों को लेकर हुए नेशनल कॉन्फ्रेंस में उन्होंने कहा, 'धार्मिक नेताओं पर लोकतांत्रिक निगरानी और धार्मिक मामलों में कानून का शासन का जोर बढ़ाना और कानून के शासन के बारे में गहन प्रचार और शिक्षित करना आवश्यक है।' इस कॉन्फ्रेंस में चीन की टॉप लीडरशिप शामिल हुई, जो कि 2016 के बाद पहली बार हुई है और एक्सपर्ट के मुताबिक इससे चीन में धार्मिक गतिविधियों को लेकर मापदंड और अगले कुछ साल में उसका रेगुलेशन तय हो गया है।
'चीनी संस्कृति में ढालने' पर जोर देंगे जिनपिंग
चीन की सरकारी न्यूज एजेंसी शिन्हुआ के मुताबिक अपने संबोधन में राष्ट्रपति जिनपिंग ने कहा कि चीन धर्मों को 'चीनी संस्कृति में ढालने' के लिए आगे भी जोर देगा, जिसका लक्ष्य ऑनलाइन धार्मिक गतिविधियों पर नियंत्रण को शक्तिशाली बनाने पर रहेगा, यह देखते हुए कि चीन के संदर्भ में विकासशील धर्मों के सिद्धांत को बनाए रखना अनिवार्य है। वो बोले कि धार्मिक आस्था की स्वतंत्रता पर पार्टी की नीति को पूरी तरह और ईमानदारी से लागू किया जाना चाहिए और धार्मिक समूहों को एक पुल और एक बंधन के रूप में तैयार होना चाहिए जो पार्टी और सरकार को धार्मिक दायरे और विशाल धार्मिक आस्तिकों के साथ जोड़े।
चीन ने बढ़ते दबाव के बीच रची साजिश
साउथ चाइना मॉर्निंग पोस्ट के मुताबिक चीन के इस व्यवहार को उसपर मुसलमानों और ईसाइयों को कुचलने की कोशिशों के आरोपों के मद्देनजर देखा जा सकता है। चीन उन देशों में शामिल है, जिसे अमेरिका ने पिछले महीने ही धार्मिक स्वतंत्रता के उल्लंघन को लेकर 'विशेष चिंता वाले देश' की लिस्ट में रखा है। शिंजियांग प्रांत में तो उइगर मुसलमानों के साथ बर्बरता और उनके नरसंहार की अनेकों खबरें आती रही हैं। कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ चाइना खासकर ईसाई धर्म को लेकर ज्यादा सचेत है, क्योंकि वह देख चुका है कि 1989 में पोलैंड में चर्च आंदोलन ने किस तरह से कम्युनिस्ट सत्ता को उखाड़ फेंका था। इसलिए उन्होंने साफ तौर पर कहा है कि धार्मिक नेताओं और आस्तिकों को समाजवादी मूल्यों को समझना पड़ेगा और उन्हें चीनी संस्कृति को अपनाना और बढ़ाना पड़ेगा।