चीन ने भूटान और भारत के रिश्तों में दरार डालने के लिए चली चाल
नई दिल्ली। चीन बीते कुछ समय से भूटान पर अपना प्रभाव बढ़ाने की कोशिश कर रहा है। चीन की कोशिश है कि वो किसी तरह से भारत और भूटान के संबंधों में सेंध लगाने में सफल हो सके। यह बात दीगर है कि अगले साल भूटान में चुनाव है। इसके दौरान चीन के वरिष्ठ अधिकारी भूटान का दौरा कर चकु हैं। चीन की इन गतिविधियों पर भारत की नजर और वो सतर्क है। भूटान की राजनीति में चीन की ओर से दखल देने की कोशिश पर भारत की पैनी नजर है।
आमने सामने हैं सेनाएं
गौरतलब है कि भूटान के पश्चिमी क्षेत्र में भारत और चीन की सेनाएं आमने सामने खड़ी हैं। यह मामला बीते 2 महीने से डोकलाम को लेकर गतिरोध बना हुआ है। साल 2008 में भूटान में बड़ा राजनीतिक बदलाव हुआ था। भूटान में राजशाही की जगह संवैधानिक राजसत्ता आ गई थी। 2018 में यहां तीसरा संसदीय चुनाव होगा। इसके मद्देनजर चीन अपने अधिकारियों को यहां के नेताओं और अन्य प्रभावी लोगो के बीच पहुंचकर उन पर अपनी छाप छोड़ना चाह रहा है।
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भूटान है भारत के साथ
इन सबके बीच यह बात भी सामने आई है कि दिल्ली स्थित चीनी दूतावास के अधिकारी भी भूटान जा रहे हैं। डोकलाम पर अभी भी गतिरोध बना हुआ है फिर भी चीनी अधिकारी लगातार भूटान जा रहे हैं। दूसरी ओर भूटान, डोकलाम के मसले पर पूरी तरह से सहमत है। भूटान ने यह स्पष्ट किया है कि डोकलाम में सड़क बनाने की चीनी कोशिशों का वो विरोध करेग। भूटान ने डोकलाम पर भारत की रणनीति पर अपनी सहमति व्यक्त की है। भूटान का कहना है कि चीन का कदम एकतरफा है।
भूटान का राजपरिवार...
गौरतलब है कि भूटान राजपरिवार पारंपरिक तौर से भारत के साथ रिश्तों का पक्षधर रहा है। भूटान नरेश वांगचुक भी भारत के समर्थक माने जाते हैं। भारत का भी यह मानना है कि भूटानी राजपरिवार उनके साथ आगे भी खड़ा रहेगा। चीन अगले साल यहां होने वाले चुनाव में DPT पार्टी को समर्थन देने की कोशिश में है। दरअसल DPT साल 2013 के संसदीय चुनावों में हार गई थी। अगर चीन अगले साल होने वाले चुनाव में किसी तरह का हस्तक्षेप करने की कोशिश में सफल रहा तो भारत के लिए दिक्कतें आ सकती हैं।
भूटान चाहता है कि...
भूटान में भी एक ऐसा वर्ग है जो अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अपने संबंध बढ़ाना चाहता है इनमें चीन से संबंध बढ़ाने की सोच रखन वाले लोग भी शामिल हैं। लेकिन एक बड़ा वर्ग है जो चीन समते बाकी दुनिया से अपने संबंध सीमित रखना चाहता है क्योंकि उनके जेहन में साल 1949 के बाद तिब्बत में चीनी भूमिका कायम है।