ग्वादर पोर्ट: पाकिस्तान-चीन की बीच नई डील, जानिए क्यों है भारत के लिए रणनीतिक खतरा?
इस्लामाबाद। पाकिस्तान और चीन ने अपने व्यापार को बढ़ावा देने के लिए ग्वादर पोर्ट में विकास के लिए नए समझौते पर हस्ताक्षर किए हैं। पाकिस्तान की राजधानी इस्लामाबाद में अरब सागर में ग्वादर पोर्ट और अपने फ्री इकनॉमिक जोन में इंटरनेशन बिजनेस को बढ़ावा देने के लिए सोमवार को दोनों देशों के प्रतिनिधियों के बीच एक अहम बैठक हुई है। पाकिस्तानी प्रधानमंत्री शाहिद खकान अब्बासी ने ग्वादर पोर्ट में फ्री इकनॉमिक जोन का उद्घाटन किया। इस क्षेत्र में क्षमताओं और विकास को बढ़ावा देने के लिए दोनों देशों के बीच छह समझौतों पर हस्ताक्षर हुए हैं।
हर साल मिलेगा 790.5 मिलियन डॉलर का आउटपुट
इस मीटिंग में पाकिस्तान और चीन की 200 से ज्यादा कंपनियों ने भाग लिया। वहीं, बीजिंग के राजदूत यो जिंग ने बताया कि उनके छह प्रतिनिधियों को इस्लामाबाद भेज गया था। चीन की झिन्हुआ की रिपोर्ट के मुताबिक, होटल, बैंकिंग, लॉजिस्टिक्स और फिश बिजनेस से जुड़ी बीजिंग की 30 कंपनियां फ्री जोन में रहेगी। इस फ्री जोन में करीब 474.3 मिलियन डॉलर प्रत्यक्ष निवेश करने की योजना है, बदले में यहां से हर साल 790.5 मिलियन डॉलर का आउटपुट प्राप्त होगा।
पाकिस्तान को क्या होगा फायदा?
पाकिस्तान के बलूचिस्तान में स्थित ग्वादर में चीन का बहुत बड़ा निवेश होगा। ग्वादर पोर्ट एक बहुत बड़ा शिपमेंट हब बनने जा रहा है, जो चीन के पश्चिमी क्षेत्र से जुड़ेगा और पाकिस्तान के माध्यम से बीजिंग को एक सुरक्षित और शॉर्ट इंटरनेशनल ट्रेड रूट मिलेगा। ग्वादर चीन-पाकिस्तान इकनॉमिक कॉरिडोर (CPEC) के लिए गेटवे के रूप में उभरेगा। यहीं से होकर शी जिनपिंग अपनी महत्वकांक्षी सिल्क रोड योजना का विस्तार करेंगे, जो एशिया यूरोप और अफ्रीका के 60 देशों को जोड़ेगा। इस जोन में 27 बिलियन डॉलर का प्रोजेक्ट का खत्म हो चुका है। ग्वादर पोर्ट प्रोजेक्ट के बारे में पाकिस्तान के पूर्व पीएम यूसुफ रजा गिलानी तो इसे पर्वतों से भी ऊंचा, महासागरों से भी गहरा, स्टील से भी मजबूत और शहद से भी ज्यादा मीठा बताया है।
भारत को क्यों है दिक्कत?
पहली बार ग्वादर पोर्ट 2002 में लॉन्च किए जाने के बाद से ही भारतीय रणनीति के हिसाब से यह एक प्रमुख डीबेट का मुद्दा बन चुका है। चीन ने वैश्विक शक्ति होने के अपने दावे पर जोर देते हुए, बीते वर्षों में हिंद महासागर क्षेत्र में अपने सैन्य हितों की वृद्धि में विस्तार किया है। ग्वादर पोर्ट पर चीन 2059 तक राज करेगा, जिसके बाद यह क्षेत्र कराची के बाद पाकिस्तान के लिए दूसरा बड़ा नवल बेस के रूप में बदल जाएगा। तब तक ग्वादर में बैठ कर चीन भारत पर पूरी नजर रेखेगा, यह बीजिंग की एक स्ट्रिंग ऑफ पर्ल्स (भारत को घेरने के लिए चीन सामरिक घेराबंदी) पॉलिसी भी है।