PLA पर और मजबूत हुई जिनपिंग की पकड़, चीन ने रक्षा कानूनों में किया ये बड़ा बदलाव
बीजिंग। Xi Jinping Powers: चीन में सेना को लेकर बड़े फैसले करने वाली सेंट्रल मिलिट्री कमीशन (CMC) की ताकत बढ़ाने के लिए चीन के रक्षा कानून में बदलाव किया गया है। इसके चलते अब सीएमसी को एक जनवरी के बाद सीएमसी को देश और विदेश में सैन्य और नागरिक संसाधनों को जुटाने की ताकत मिल गई है।
बदलाव को एनपीसी से मंजूरी
कानून में बदलाव के बाद अब चीन की स्टेट काउंसिल की ताकत सेना के ऊपर कमजोर हुई है। सैन्य योजना बनाने की पूरी ताकत अब सीएमसी के पास आ गई है।
साउथ चाइना मार्निंग पोस्ट के मुताबिक ये पहली बार है कि पहली बार कानून में सैन्य बलों की तैनाती और उनके संचालन के साथ ही विकास हितों की रक्षा और उनके विघटन की जिम्मेदारी भी कानून में जोड़ी गई है।
इस बदलाव को बीते 26 दिसम्बर को चीन की सबसे शक्तिशाली संस्था नेशनल पीपल्स कांग्रेस (NPC) से मंजूरी मिली थी। इस दौरान 3 अनुच्छेद हटाए गए जबकि 50 नए जोड़े गए। इन नए बदलावों का मुख्य उद्येश्य ऐसे राष्ट्रीय सहयोग कार्यतंत्र को विकसित करना है जिसके तहत सरकारी और प्राइवेट उद्यमों को रक्षा तकनीक में इस्तेमाल किया जा सके जिसमें पारम्परिक हथियारों के साथ ही साइबर सिक्योरिटी, अंतरिक्ष और इलेक्ट्रोमैग्नेटिक भी शामिल हों।
जिनपिंग को मिली ताकत
विश्लेषक रक्षा कानून में इन नये बदलावों को राष्ट्पति शी जिनपिंग के अंदर आने वाले सैन्य नेतृत्व की ताकत को बढ़ाने की कवायद के रूप में देख रहे हैं। साउथ चाइना मार्निंग पोस्ट के मुताबिक इन बदलावों की अहम वजह चीन और अमेरिका के बीच बढ़ रहा तनाव है। इन बदलावों का मुख्य उद्देश्य चीन के विशेष राजनीतिक और सैन्य ढांचे को कानूनी जामा पहनाना और उसे लागू करना है। खास तौर कम्युनिष्ट शासन पर देश में या विदेश में किसी तरह के खतरे से निपटने की बात हो।
इस बदलाव में विकास हित के लिए सेना को भेजने और युद्ध को शामिल करने से चीन को राष्ट्रीय विकास हितों की रक्षा के लिए युद्ध शुरू करने के लिए एक वैध आधार भी मिल गया है। वहीं सैन्य विश्लेषकों का कहना है कि चीन की स्टेट काउंसिल अब ऐसी संस्था बनकर रह गई है जो सेना को मदद उपलब्ध कराएगी। इस कानून का ये सबसे बड़ा बदलाव है। ये इजरायल, जर्मनी और फ्रांस की तरह है जहां पर सैन्य बल सरकार के अधीन होते हैं।
कहीं ताइवान के लिए चाल तो नहीं ?
इस बदलावों को ताइवान के संबंध में भी देखा जा रहा है। माना जा रहा है राष्ट्रीय हित की रक्षा के लिए सेना को भेजने का इस्तेमाल ताइवान में आजादी की बात करने वालों पर भी किया जा सकता है। ताइवान को चीन अपना क्षेत्र मानता है। दशकों से चीन ताइवान पर अपना दावा जताता है और मानता है कि उसे एक दिन मुख्य रूप से मिला लिया जाएगा जबकि ताइवान के लोग खुद को स्वतंत्र रखना चाहते हैं। हालांकि ताइवान को संयुक्त राष्ट्र से मान्यता नहीं मिली है फिर भी अमेरिका के उससे संबंध वाणिज्यिक संबंध हैं। बीते साल ही अमेरिका ने ताइवान को हथियार बेचने का सौदा किया है जिससे चीन चिढ़ा हुआ है।