चांद से जुड़ा सबसे बड़ा रहस्य सुलझा, दोनों किनारों में अंतर की वजह का पता चला
वाशिंगटन, 19 अप्रैल: वैज्ञानिकों ने चांद के दोनों किनारों में अंतर की वजह का पता लगा लिया है। शोधकर्ताओं को अपनी रिसर्च में पता चला है कि चांद का जो हमसे नजदीक वाला भाग है, उसमें ज्वालामुखी वाले लावा का प्रवाह बना हुआ है, जबकि दूर वाली छोर में ज्वालामुखी की वजह से बने गड्ढों की भरमार है। वैज्ञानिकों की एक बड़ी टीम ने इस अंतर के कारणों का पता लगाया है, जो अबतक अनसुलझा था और चांद पर कदम रखने के पांच दशक बाद भी पता नहीं था। इस शोध से चांद के बारे में और भी जानकारी जुटाने में मदद मिल सकती है।
4.3 अरब साल पहले क्षुद्र ग्रह की टक्कर से पैदा हुआ असंतुलन
इंसान 53 साल पहले ही चांद पर कदम रख चुका है और अभी भी दुनिया भर के देशों में चंद्रमा मिशन की होड़ लगी हुई है। लेकिन, पृथ्वी के इस प्राकृतिक सैटेलाइट के दोनों किनारों में इतना अंतर क्यों है, यह अबतक रहस्य ही बना हुआ था। लेकिन, एक नई रिसर्च में इस रहस्य पर से पर्दा उठ गया है। इस असमानता के पीछे एक प्राचीन क्षुद्र ग्रह है, जो 4.3 अरब साल पहले चंद्रमा की सतह से टकराया था। यह टक्कर इतना जोरदार था कि चंद्रमा का वह सतह, जो धरती से हमें दिखाई देता है और जो हम से दूर वाली छोर पर है (जो हमें नहीं दिखाई पड़ता है), उनमें पूरी तरह से असंतुलन पैदा हो गया।
पृथ्वी से दूर वाली छोर पर गड्ढों की भरमार
चंद्रमा का जो सतह हमसे नजदीक है या जिसे हम देख पाते हैं, उसपर चांद्रसमुद्र (लूनर मेर) का प्रभाव है। मतलब, इधर प्राचीन लावा के गहरे रंग की विशाल धारा प्रावित होती है। वहीं, दूर वाले सतह में ज्वालामुखी की तरह के गड्ढों की भरमार है और एक तरह से यहां बड़े पैमाने पर लावा का प्रवाह नहीं होता। जर्नल साइंस एडवांस में यह शोध प्रकाशित हुआ है, जिसमें वैज्ञानिकों ने चांद की दोनों सतहों के अजीब विपरीत भौगोलिक क्षेत्र के बारे में बताया है, जो कि अरबों साल पहले उस छोटे तारे के प्रभाव की वजह से बना है। इस टक्कर का असर इतना भयानक था कि चंद्रमा के आवरण पर ही कहर बरपा गया।
कैसा था अरबों साल पुराना टक्कर ?
नए शोध से पता चला है कि टक्कर का ऐसा प्रभाव हुआ कि चंद्रमा पर विशाल दक्षिणी ध्रुव ऐटकेन (एसपीए) बेसिन का निर्माण हुआ। यह पूरे सौर मंडल में इस तरह का दूसरा सबसे बड़ा गड्ढा है। इससे अत्यधिक ऊष्मा का भी संचार हुआ, जो चांद के भीतर को ओर गया। शोधकर्ताओं के मुताबिक ऊष्मा का यह झोंका कुछ खास पदार्थों को, जो कि पृथ्वी के लिए दुर्लभ है और ऊष्मा पैदा करने वाले तत्वों को चांद के नजदीकी भाग तक ले गया होगा। ऐसे तत्वों के इकट्ठा होने की वजह से ही ज्वालामुखी पैदा होने में योगदान मिला होगा, जिसकी वजह से हमें वहां ज्वालामुखीय मैदान नजर आता है। स्टडी के लीड ऑथर और ब्राउन यूनिवर्सिटी के पीएचडी कैंडिडेट मैट जोंस ने कहा है, 'हम जानते हैं कि एसपीए जैसे प्रभाव के कारण बहुत ज्यादा ऊष्मा पैदा होगी। सवाल है कि वह ऊष्मा चंद्रमा के आंतरिक डाइनामिक्स को कैसे प्रभावित करती है।'
एक क्षुद्र ग्रह ने चंद्रमा को कर दिया असंतुलित
ब्राउन यूनिवर्सिटी, पर्ड्यू यूनिवर्सिटी, स्टैंडफोर्ड यूनिवर्सिटी और नासा के जेपीएल के शोधकर्ताओं की अगुवाई वाली टीम ने उस विशाल टक्कर से पैदा हुई ऊष्मा के चांद के आंतरिक भाग पर प्रभाव जानने के लिए कंप्यूटर सिम्यूलेशन किया। उन्होंने पाया कि इसकी वजह से चंद्रमा के आवरण के नीचे एक अनोखा बदलाव आया, जिससे सिर्फ पृथ्वी से नजदीक वाला छोड़ ही प्रभावित हुआ।
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चंद्रमा के किनारों में अंतर का इतिहास
चंद्रमा के दोनों किनारों में अंतर है इसका खुलासा अमेरिकी अपोलो मिशन और सोवियत यूनियन के लूना मिशन में ही पता चल गया था। आगे के विश्लेषण से दोनों सतह के भू-रासायनिक संरचना में अंतर का पता भी लगा था। नजदीक वाला भाग संरचना संबंधी विसंगति वाला था, जिसे प्रोसेल्लरम क्रीप टेरन (पीकेटी) के नाम से जाना जाता है। इसमें पोटेशियम (के),रेयर अर्थ एलिमेंट, फॉस्फोरस (पी) और गर्मी पैदा करने वाले तत्व जैसे कि थोरियम की मौजूदगी है। नए शोध में पाया गया है कि जब क्षुद्र ग्रह चांद की सतह से टकराया तो नजदीक वाले हिस्से में लावा बहने से पुराने गड्ढे भर गए।