क्विक अलर्ट के लिए
अभी सब्सक्राइव करें  
क्विक अलर्ट के लिए
नोटिफिकेशन ऑन करें  
For Daily Alerts
Oneindia App Download

मध्य पूर्व का ये देश क्या एक बार फिर गृहयुद्ध की कगार पर पहुंच गया है?

बेरुत में राजनीतिक तनाव अपने चरम पर था, अर्थव्यवस्था बर्बाद हो रही थी, क़ीमतें आसमान छू रही थीं कि तभी सड़कों पर बंदूक़धारी अचानक से एक बार फिर फायरिंग करने लगे.

By BBC News हिन्दी
Google Oneindia News
लेबनान, बेरुत
EPA
लेबनान, बेरुत

मेरे दोस्त और पड़ोसी रिचर्ड बेरुत के दक्षिणपूर्वी छोर पर स्थित अपने दफ़्तर में ऑनलाइन मीटिंग्स का सिलसिला शुरू करने जा रहे थे कि तभी ऐसा लगा जैसे क़यामत आ गई हो. अगले तीन घंटे उन्होंने बिल्डिंग की ग्राउंड फ़्लोर पर पनाह ली क्योंकि दफ़्तर की इमारत के बाहर भयानक जंग चल रही थी.

बेरुत के अतीत से वास्ता रखने वाले किसी भी शख़्स के लिए ये एक सदमे जैसा ही था. साल 1975 में शुरू हुए उस गृह युद्ध से बेरुत को 15 सालों तक जूझना पड़ा था.

रिचर्ड बताते हैं, "गृह युद्ध की डरावनी यादों का मंज़र मेरी आंखों के सामने आ गया. ग़ुस्सा, डर, बेचैना, बच्चों की फिक्र, तमाम बातें दिमाग में आने लगीं. मुझे महसूस किया कि गृह युद्ध के दिनों में जो ज़िंदगी हमने यहां जी थी, फिर से वही होने जा रहा है."

रिचर्ड जब सुरक्षित घर लौट आए, तो उनके आंसू थम नहीं रहे थे. वो कहते हैं, "मुझे नहीं मालूम कि ये क्यों हुआ और अगले दिन मैं काम पर नहीं जा सकूंगा. ऐसा लगता है कि जंग के बीते दिनों की कड़वी यादें लौट कर आ गई हैं. मैं नहीं चाहता हूं कि ये सब मेरे बच्चों पर गुजरे."

रिचर्ड और उनके जैसे कई लेबनानी लोगों के लिए राजधानी बेरुत में 14 अक्टूबर को अचानक शुरू हुई सांप्रदायिक हिंसा ख़तरे की घंटी है.

बेरूत धमाका: हज़ारों नाराज़ लोग सड़कों पर उतरे

लेबनान में सलमान का पासा सीधा पड़ेगा या उल्टा?

बेरुत, लेबनान
Getty Images
बेरुत, लेबनान

बेरुत में सांप्रदायिक संघर्ष

बेरुत में राजनीतिक तनाव अपने चरम पर था, अर्थव्यवस्था बर्बाद हो रही थी, बिजली और ईंधन की सप्लाई लगभग नदारद थी, क़ीमतें आसमान छू रही थीं कि तभी सड़कों पर बंदूक़धारी अचानक से एक बार फिर फायरिंग करने लगे. क्या लेबनान एक बार फिर से गृहयुद्ध की कगार पर पहुंच गया है?

बेरुत में 14 अक्टूबर को हुई हिंसा की अहमियत इसलिए भी इतनी ज़्यादा है क्योंकि शहर के उसी दक्षिणपूर्वी छोर पर साल 1975 के अप्रैल महीने में गृहयुद्ध की शुरुआत हुई थी. उस वक़्त हिंसा की कुछ घटनाओं के बाद ईसाई मिलिशिया के बंदूक़धारियों ने फलस्तीनियों से भरी एक बस पर हमला कर दिया था जिसमें 20 से ज़्यादा लोग मारे गए थे.

अगले 15 सालों तक ऐन अल रम्मानेह उस गृहयुद्ध को मोर्चा बना रहा. मुक़ाबले में दूसरी तरफ़ शिया मुसलमानों की आबादी वाला चियाह का इलाका था. ऐन अल रम्मानेह और चियाह एक दूसरे से लगे इलाके हैं. 14 अक्टूबर को चियाह से शिया प्रदर्शनकारियों का एक जुलूस ऐन अल रम्मानेह के इलाके में दाखिल हुआ.

इन प्रदर्शनकारियों ने ऐन अल रम्मानेह में सांप्रदायिक हिंसा को भड़काने वाले "शिया, शिया, शिया!" के नारे लगाए. इसके बाद जो हिंसा हुई, उसमें मारे गए सभी सातों लोग शिया मुसलमान थे. मारे गए लोगों में कुछ ईरान समर्थित हिज़बुल्लाह और उससे जुड़े अमाल धड़े से जुड़े लोग थे.

इसराइल ने लेबनान के गांव पर कब्ज़ा किया

लेबनान से जुड़े कुछ तथ्य

इस घटना के बाद हिज़बुल्लाह के नेतृत्व वाले शिया गठबंधन और क्रिश्चियन लेबनानीज़ फोर्स (एलएफ़) पार्टी के बीच तीखे आरोप-प्रत्यारोपों का सिलसिला शुरू हो गया. हिज़बुल्लाह नेता हसन नसरल्लाह ने एलएफ़ पर आरोप लगाया कि उसने गृह युद्ध भड़काने के लिए छतों से गोलियां चलाने के लिए स्नाइपर तैनात किए थे.

उन्होंने कहा कि हिज़बुल्लाह पीछे नहीं हटेगा. उन्होंने चेतावनी दी कि वे अपने एक लाख लड़ाकों को आगे बढ़ने का हुक्म दे सकते हैं जो अपने विरोधियों कुचल देंगे. क्रिश्चियन लेबनानीज़ फोर्स के नेता समीर गिआगा ने इसके जवाब में कहा कि उनकी पार्टी के पास कोई मिलिशिया नहीं है और वे जंग नहीं चाहते हैं.

उन्होंने हिज़बुल्लाह पर आरोप लगाया कि वो बेरुत के बंदरगाह पर पिछले साल हुए धमाके की जांच कर रहे जज को हटाने की मांग करके उस घटना में अपनी संलिप्तता को छुपाने के लिए लीपापोती की कोशिश कर रहा है. 14 अक्टूबर को हुआ शियाओं का प्रदर्शन इसी मुद्दे को लेकर का था.

साल 1975 में कुछ विश्लेषकों ने इसका अंदाज़ा पहले ही लगा लिया था कि लेबनान में व्यापक गृह युद्ध छिड़ने की परिस्थितियां पैदा हो रही हैं. हमारे जैसे कुछ ही लोगों को ये अंदाज़ा था कि आने वाले 15 सालों में इस लड़ाई के तौर-तरीके बदल जाएंगे.

इसराइल और लेबनान में तनाव, तीन सैनिकों की मौत

लेबनान से रॉकेट हमलों के बीच बाइडन और नेतन्याहू के बीच बातचीत

लेबनान, बेरुत
Reuters
लेबनान, बेरुत

राजनीतिक संघर्ष और ध्रुवीकरण

बेरुत के भीतर ही मोर्चाबंदी होने लगेगी और शहर के अलग-अलग इलाके अपनी सरहदें खींचने लगेंगे और ये आज भी जारी हैं. इसलिए प्रदर्शनकारियों की मंशा और सत्ता का संतुलन किसके पक्ष में है, इन बातों को ध्यान में रखें तो ये कहा जा सकता है कि ये ज़रूरी नहीं है कि भविष्य में ऐसा नहीं होगा.

राजनीतिक संघर्ष और ध्रुवीकरण बेरुत में पहले से ही हो रहे हैं. जिस दिन ऐन अल रम्मानेह में हिंसा हुई, उस वक़्त पास के इलाकों में रहने वाले सुन्नी मुसलमान और पूर्वी बेरुत के अशराफिएह ज़िले के ईसाई सशंकित थे. उन्हें डर था कि 'सात मई की तारीख' दोहरा न दी जाए.

साल 2008 में उस दिन हिज़बुल्लाह लड़ाकों ने पश्चिमी बेरुत में सुन्नियों और द्रूज़ लोगों को निशाना बनाने के लिए धावा बोल दिया. सुन्नी मिलिशिया के विश्वस्त सूत्र ने बताया, "अगर इस संघर्ष में ईसाइयों के बजाय सुन्नी शामिल होते तो पूरे देश में घंटे भर के भीतर हम बवाल खड़ा कर सकते थे."

उनकी बातों से ऐसा लगा कि सुन्नियों के मन में हिज़बुल्लाह के लिए बैर का भाव है. उन्होंने कहा, "लोगों की बर्दाश्त की सीमा ख़त्म हो गई थी और हिज़बुल्लाह से लड़ाई आख़िरी विकल्प होती."

एक वरिष्ठ राजनेता ने कहा, "मुझे नहीं लगता है कि गृह युद्ध कल से ही छिड़ जाएगा. इसमें समय लगेगा. लेकिन समय के साथ ये होगा. ऐसी और घटनाएं होंगी... साल 1975 में भी इसी तरह से शुरुआत हुई थीं. आप इसे कैसे रोक सकते हैं?"

लेबनान में ब्रिटिश दूतावास की महिला कर्मचारी मृत पाई गईं

सीरिया-लेबनान:संबंधों का इतिहास

लेबनान के गृह युद्ध के दौरान पश्चिमी बेरुत में सीरियाई सैनिक
Getty Images
लेबनान के गृह युद्ध के दौरान पश्चिमी बेरुत में सीरियाई सैनिक

विदेशी ताक़तें

साल 1975 में लेबनान की भूराजनीतिक परिस्थितियां उस समय के गृह युद्ध को बारूद मुहैया करा रही थीं. इस बार भी वैसा ही कुछ होते हुए दिख रहा है. उस वक़्त दक्षिणपंथी ईसाई धड़ा (जो बाद में एलएफ़ पार्टी में बदल गया) फलस्तीनी लिबरेशन आर्मी (पीएलओ) की ताक़त को बर्बाद कर देने की मुहिम पर लग गया था.

पीएलओ ने लेबनान के भीतर अपना अच्छा-ख़ासा प्रभाव क्षेत्र स्थापित कर लिया था. लेकिन पीएलओ से निपटने का काम ईसाई ताक़तें अकेले नहीं कर सकती थीं. उन्होंने पहले सीरिया से (साल 1976) में और फिर इसराइल से मदद मांगी.

इसका नतीजा ये हुआ कि साल 1982 में इसराइल ने लेबनान पर हमला किया और यासिर अराफात और पीएलओ को लेबनान से बेदखल होना पड़ा. इस बार क्रिश्चियन लेबनानीज़ फोर्स के सामने हिज़बुल्लाह की चुनौती खड़ी है. पीएलओ की तरह हिज़बुल्लाह का प्रभाव क्षेत्र भी लेबनान में काफी बढ़ गया है.

साल 1989 के ताइफ़ समझौते के बाद लेबनान में केवल हिज़बुल्लाह ही ऐसी ताक़त है जिसे हथियार रखने की इजाजत है. लेबनान में गृह युद्ध को रोकने का श्रेय हिज़बुल्लाह को दिया जाता है. कुछ लोग उसे 'इसराइल के ख़िलाफ़ लेबनान का संरक्षक' भी कहते हैं.

इसके बाद से हिज़बुल्लाह ने लेबनान में लगभग अपराजेय ताक़त और खुफ़िया सैनिक क्षमता तैयार कर रही है. लेबनान की अपनी फौज से भी ज़्यादा ताक़तवर हिज़बुल्लाह के लड़ाके माने जाते हैं. लेबनान में हिज़बुल्लाह का बड़ा नेटवर्क है. इसमें सामाजिक सेवाओं, अस्पताल और अन्य तरह के काम भी शामिल हैं.

लेबनान के प्रधानमंत्री ने सऊदी अरब छोड़ा

व्हाट्सऐप पर लगा टैक्स, भड़के लेबनान के लोग

लेबनान, बेरुत
EPA
लेबनान, बेरुत

लेबनान में हिज़बुल्लाह की ताक़त

हिज़बुल्लाह और पीएलओ के बीच एक बड़ा फर्क ये भी है कि हिज़बुल्लाह लेबनानी लोगों का संगठन है. इसके कनेक्शंस ईरान से जुड़े हुए हैं. बहुत से लोग इसे ईरान के प्रॉक्सी के तौर पर भी देखते हैं. इन सब वजहों से किसी संघर्ष की सूरत में इसका जियोपॉलिटिक्स पर बड़ा असर पड़ सकता है.

एक राजनीतिक सूत्र का कहना है, "ईरान और अमेरिका एक दूसरे के ख़िलाफ़ लेबनान, इराक़ और यमन में लड़ रहे हैं. आपको बड़ा फलक देखने की ज़रूरत है."

एक तरफ़, जहां ये माना जाता है कि हिज़बुल्लाह के तार ईरान से जुड़े हुए हैं तो दूसरी तरफ़ इसकी भी चर्चा रहती है कि क्रिश्चियन लेबनानीज़ फोर्स के नेता समीर गिआगा को ईरान के दुश्मन सऊदी अरब से फंडिंग मिल रही है.

इसके बाद से हिज़बुल्लाह ने लेबनान में लगभग अपराजेय ताक़त और खुफ़िया सैनिक क्षमता तैयार कर ली है. लेबनान की अपनी फौज से भी ज़्यादा ताक़तवर हिज़बुल्लाह के लड़ाके माने जाते हैं. लेबनान में हिज़बुल्लाह का बड़ा नेटवर्क है. इसमें सामाजिक सेवाओं, अस्पताल और अन्य तरह के काम भी शामिल हैं.

हिज़बुल्लाह और पीएलओ के बीच एक बड़ा फर्क ये भी है कि हिज़बुल्लाह लेबनानी लोगों का संगठन है. इसके कनेक्शंस ईरान से जुड़े हुए हैं. बहुत से लोग इसे ईरान के प्रॉक्सी के तौर पर भी देखते हैं. इन सब वजहों से किसी संघर्ष की सूरत में इसका जियोपॉलिटिक्स पर बड़ा असर पड़ सकता है.

सऊदी पर लेबनान के ख़िलाफ़ युद्ध छेड़ने का आरोप

'बेरूत रो रहा है, बेरूत चिल्ला रहा है, बेरूत को खाना चाहिए, बेरूत को कपड़े चाहिए'

जंग की क़ीमत

एक राजनीतिक सूत्र का कहना है, "ईरान और अमेरिका एक दूसरे के ख़िलाफ़ लेबनान, इराक़ और यमन में लड़ रहे हैं. आपको बड़ा फलक देखने की ज़रूरत है."

एक तरफ़, जहां ये माना जाता है कि हिज़बुल्लाह के तार ईरान से जुड़े हुए हैं तो दूसरी तरफ़ इसकी भी चर्चा रहती है कि क्रिश्चियन लेबनानीज़ फोर्स के नेता समीर गिआगा को ईरान के दुश्मन सऊदी अरब से फंडिंग मिल रही है.

हसन नसरल्लाह ने समीर गिआगा को जो धमकी दी थी कि वो अपने एक लाख लड़ाकों को आगे बढ़ने का हुक्म दे सकते हैं, उनके इस बयान में लेबनान में सत्ता के असंतुलन का अंदाज़ा लगाया जा सकता है. हर किसी को ये बात मालूम है कि हिज़बुल्लाह कुछ दिनों के अंदर ही मुल्क के हर कोने में मोर्चा खोल सकता है.

लेकिन अगर ऐसा हुआ तो इसका नतीज़ा ये होगा कि लेबनान की ये ताक़ते कभी न ख़त्म होने वाले गृह युद्ध में उलझकर रह जाएंगी. ये बात सिर्फ़ समीर गिआगा की क्रिश्चियन लेबनानीज़ फोर्स पर ही नहीं बल्कि सुन्नियों और द्रूज़ लोगों पर भी लागू होती है.

ईसाई इलाकों पर हमला करने का मतलब होगा कि समीर गिआगा के ईसाई विरोधियो से हिज़बुल्लाह का गठबंधन टूट जाएगा. ये विरोधी हैं राष्ट्रपति माइकल आउन की फ्री पैट्रिऑटिक मूवमेंट और उनके ताक़तवर दामाद गेबरान बासिल. इससे हिज़बुल्लाह की अपनी परेशानियां बढ़ जाएंगी.

साल 2020 के अगस्त में बेरुत के बंदरगाह पर जो धमाका हुआ था, उसमें मारे गए ज़्यादातर लोग ईसाई थे. हिज़बुल्लाह इसकी जांच का विरोध कर रहा है और उसके इस विरोध के कारण हिज़बुल्लाह का एलएफ़ विरोधी ताक़तों से गठबंधन पहले से ही ख़तरे में है.

ईसाई और सुन्नी बिरादरी के करीबी सूत्रों का कहना है कि 14 अक्टूबर को ऐन अल रम्मानेह में जो हिंसा हुई, उसकी वजह से बेरुत के ईसाई समुदाय में समीर गिआगा का कद पहले से बढ़ गया है. लेबनान की आर्थिक बर्बादी के लिए राजनेताओं के भ्रष्टाचार को मुख्य रूप से जिम्मेदार ठहराया जाता है.

आम लोगों के बीच राजनेताओं के लिए एक तरह से अनादर का भाव है और हिज़बुल्लाह भी इसका अपवाद नहीं है. लेबनान के गृह युद्ध को देख चुके एक पूर्व ईसाई सैनिक का कहना है कि हिज़बुल्लाह को लेबनान से ख़त्म करने का सिवाय एक पूर्ण युद्ध के और कोई तरीका नहीं है.

"हिज़बुल्लाह यहां है और हमें उसके साथ ही जीना है. सबसे अच्छा तरीका ये हो सकता है कि लेबनानी फौज को और सशक्त बनाया जाए और संसद में हिज़बुल्लाह की विरोधी ताक़तों को और मजबूत किया जाए. उन्हें किसी न किसी राजनीतिक समझौते का रास्ता निकालना होगा."

लेकिन ये सब होने में वक़्त लगेगा. इस बीच लेबनानी लोग ये उम्मीद कर सकते हैं कि भविष्य की उन आशंकाओं का, जिनका अंदाजा लगाया गया है, उन्हें टाला जा सके और नई सरकार उनकी ज़िंदगी में थोड़ा सुधार ला सके.

(बीबीसी हिन्दी के एंड्रॉएड ऐप के लिए आप यहां क्लिक कर सकते हैं. आप हमें फ़ेसबुक, ट्विटर, इंस्टाग्राम और यूट्यूबपर फ़ॉलो भी कर सकते हैं.)

BBC Hindi
देश-दुनिया की ताज़ा ख़बरों से अपडेट रहने के लिए Oneindia Hindi के फेसबुक पेज को लाइक करें
English summary
Beirut violence fuels fears of return to civil war
तुरंत पाएं न्यूज अपडेट
Enable
x
Notification Settings X
Time Settings
Done
Clear Notification X
Do you want to clear all the notifications from your inbox?
Settings X
X