Meteor showers: कृत्रिम उल्का वर्षा अब सच के करीब, जानें यह पृथ्वी के लिए क्यों है उपयोगी?
विज्ञान कृत्रिम उल्का बारिश के लिए तैयार हो चुका है। जापान की एक कंपनी इस प्रोजेक्ट पर काम कर रही है और वह इसके लिए सैटेलाइट लॉन्च करने वाली है। जलवायु परिवर्तन के लिहाज से यह अहम सफलता साबित हो सकती है।
मशीनों से भी उल्कापात संभव है। जापान की एक कंपनी ने यह तकनीक विकसित कर ली है और जल्द ही इसकी लॉन्चिंग करने की तैयारी की जा रही है। अगर वैज्ञानिक अपने इस प्रोजेक्ट में सफल रहे है तो पृथ्वी के लिए यह बहुत ही उपयोगी मिशन साबित हो सकता है। क्योंकि, इस तकनीक को इस तरह से डिजाइन किया गया है, जिससे आसमान में उन परिस्थितियों का पता लगाने में ज्यादा सहायता मिल सकती है, जो कि जलवायु परिवर्तन या ग्लोबल वार्मिंग जैसी समस्याओं के कारण बन रहे हैं। अभी इंसान के पास जो तकनीक है, वह या तो अंतरिक्ष में पृथ्वी से बहुत ऊपर की घटनाओं का पता लगाने में सक्षम हैं या फिर निचले क्षेत्र में जो मौसम की घटनाओं के लिए जिम्मेदार हैं। लेकिन, नए प्रोजेक्ट के माध्यम से मध्यममंडल (mesosphere)में होने वाली घटनाओं का विवरण जुटाया जाना ज्यादा आसान हो जाएगा।
कृत्रिम
उल्का
वर्षा
अब
सच
के
करीब-रिपोर्ट
उल्कापात
को
सुंदर
खगोलीय
घटनाओं
में
शामिल
किया
जाता
है।
टूटते
तारे
देखने
को
लेकर
अपने
देश
में
अनेक
मान्यताएं
भी
रही
हैं।
लेकिन,
ऐसी
आकाशीय
घटना
को
अपनी
नजरों
से
देखने
का
आनंद
अलग
ही
होता
है।
लेकिन,
अब
जापान
की
एक
कंपनी
ने
कृत्रिम
तरीके
से
उल्कापात
करने
की
तैयारी
कर
ली
है।
इसके
लिए
जल्द
ही
सैटेलाइट
लॉन्च
किया
जाने
वाला
है।
इंडिपेंडेंट
की
एक
रिपोर्ट
के
मुताबिक
टोक्यो
के
एएलई
इसे
2025
में
लॉन्च
करने
जा
रहा
है।
इसे
उम्मीद
है
कि
यह
सैटेलाइट
लॉन्च
होने
के
बाद
दुनिया
भर
के
लोगों
को
'मानव-निर्मित
पहला
उल्का
बारिश
देखने
का
मौका
मिलने
वाला
है।'
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कृत्रिम
उल्कापात
पृथ्वी
के
लिए
क्यों
है
उपयोगी?
इस
प्रोजेक्ट
का
नाम
स्काई
कैनवास
है।
इसे
इस
तरह
से
डिजाइन
किया
गया
है
कि
यह
मध्यमंडल
(mesosphere)
से
वायुमंडलीय
डेटा
जुटा
सकता
है।
मध्यमंडल,
वायुमंडल
का
तीसरा
लेयर
है।
मध्यमंडल
में
होने
वाली
वायुमंडलीय
घटनाओं
के
आंकड़े
जुटाना
इसलिए
चुनौतीपूर्ण
रहता
है,
क्योंकि
पृथ्वी
की
कक्षा
में
घूमने
वाले
सैटेलाइट
के
लिए
यह
बहुत
ही
नीचे
है।
लेकिन,
आजकल
मौसम
की
जानकारी
जुटाने
के
लिए
जो
गुब्बारे
छोड़े
जाते
हैं
या
विमानों
का
इस्तेमाल
होता
है,
उनके
दायरे
से
यह
बहुत
ही
ज्यादा
ऊंचाई
पर
है।
एएलई
की
फाउंडर
और
सीईओ
लेना
ओकाजिमा
का
कहना
है,
'भविष्य
में
महत्वपूर्ण
क्लाइमेट
रिसर्च
को
स्पेस
एंटरटेनमेंट
के
साथ
जोड़कर
हम
जलवायु
परिवर्तन
पर
अपनी
वैज्ञानिक
समझ
को
और
बेहतर
कर
सकते
हैं।
इसके
साथ
ही
साथ
पूरी
दुनिया
के
लोगों
में
अंतरिक्ष
और
ब्रह्मांड
के
प्रति
रूचि
को
भी
उत्सुकता
में
बदल
सकते
है'
8
किमी
प्रति
सेकंड
की
रफ्तार
से
उल्कापात!
2019
में
आई
बीबीसी
की
एक
रिपोर्ट
के
मुताबिक
एएलई
की
योजना
के
तहत
वह
गैस
टैंकों
का
ऐसा
प्रेशर-ड्रिवेन
सिस्टम
तैयार
कर
रहा
है,
जो
कि
8
किलोमीटर
प्रति
सेकंड
की
रफ्तार
से
पेलेट्स
दाग
सकेगा।
यह
जापानी
सैटेलाइट
पहले
2020
में
ही
लॉन्च
होनी
थी।
लेकिन,
एक
सैटेलाइट
में
खराबी
होने
जाने
की
वजह
से
लॉन्चिंग
टालनी
पड़
गई
।
नासा
के
मुताबिक
प्राकृतिक
उल्का
बौछार
की
घटना
तब
होती
है,
जब
धरती
किसी
धूमकेतु
या
क्षुद्रग्रह
के
मलबे
के
पास
से
गुजरती
है।
सदियों
से
देखा
जा
रहा
है
उल्कापात
प्राकृतिक
उल्का
पिंड
चट्टानों
और
बर्फ
का
समूह
होता
है,
जो
सूर्य
का
चक्कर
लगाते
हुए
धूमकेतओं
या
क्षुद्रग्रहों
से
निकल
जाता
है।
पृथ्वी
से
दिखाई
पड़ने
वाले
उल्कापात
की
घटनाएं
हर
साल
करीब
30
की
संख्या
में
होती
हैं।
इनमें
से
कुछ
को
तो
सदियों
से
देखी
जा
रही
हैं।
मसलन,
पर्सिड्स
उल्कापात
जो
लगभग
हर
साल
अगस्त
महीने
में
होता
है,
चीनी
इतिहास
के
मुताबिक
पहली
बार
करीब
2,000
वर्ष
पूर्व
देखा
गया
था।
प्राकृतिक
उल्कापात
का
प्रभाव
पैदा
करने
की
कोशिश
एएलई
को
उम्मीद
है
कि
धातु
के
'तारों'
का
इस्तेमाल
करके,
जो
कि
करीब
1
सेंटीमीटर
के
आकार
का
होता
है,
प्राकृतिक
उल्कापात
के
प्रभाव
को
पैदा
किया
जा
सकता
है।
इस
सिस्टम
को
छोटे
सैटेलाइट्स
के
माध्यम
से
पृथ्वी
की
निचली
कक्षा
में
ले
जाया
जाएगा,
जो
कि
करीब
400
किलोमीटर
ऊंचाई
पर
है।
एक
बार
जैसे
ही
यह
सैटेलाइट
कक्षा
में
स्थापित
हो
जाएगा,
उससे
कृत्रिम
कणों
की
बरसात
शुरू
हो
सकेगी।
यह
कण
पृथ्वी
की
सीमा
में
ही
घूमेंगे
और
आखिरकार
60
से
80
किलोमीटर
की
ऊंचाई
पर
वायुमंडल
में
प्रवेश
कर
जाएंगे।