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टूटने के कगार पर पहुंचा अफगानिस्तान, डोनेशन के पैसों पर जीने को मजबूर तालिबानी लड़ाके, खाद्य आपातकाल!

अफगानिस्तान में खाद्य आपातकाल की स्थिति उत्पन्न हो चुकी है और तालिबान के लड़ाके डोनेशन पर जी रहे हैं। अफगानिस्तान टूटने के कगार पर पहुंच चुका है।

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काबुल, सितंबर 15: काबुल पर तालिबान के कब्जे के बाद अफगानिस्तान बहुत बुरी तरह से टूटने की स्थिति में आ गया है और भारी आर्थिक संकट का सामना करने को मजबूर है। अमेरिका पहले ही अफगानिस्तान के बैंक खातों को फ्रीज कर चुका है, जिससे अफगानिस्तान में बुरी तरह नकदी संकट पैदा हो गया है। न्यूयॉर्क टाइम्स ने अपनी रिपोर्ट में दावा किया है कि ज्यादातर तालिबान लड़ाकों को कई महीनों से पैसा नहीं दिया गया है और जो माहौल बन रहा है, उसमें अफगानिस्तान की स्थिति पूरी तरह से ऑउट ऑफ कंट्रोल होता दिख रहा है।

ऑउट ऑफ कंट्रोल होता अफगानिस्तान

ऑउट ऑफ कंट्रोल होता अफगानिस्तान

दरअसल, तालिबान की सरकार को ज्यादातर देशों ने मान्यता देने से इनकार कर दिया है और चीन ने सिर्फ तालिबान को आर्थिक मदद का आश्वासन दिया है, पैसे नहीं दिए हैं। जबकि पाकिस्तान खुद इस इंतजार में है कि अफगानिस्तान को जो मदद मिलेगी, उसमें से कुछ पैसे उसके पास भी आए। ऐसे में अफगानिस्तान बड़ी आर्थिक संकट की तरफ बढ़ चला है और देश में नकदी की भारी किल्लत हो चुकी है। अफगानिस्तान पर तालिबान के अधिग्रहण के बाद विदेशी सहायता रोक दी गई है और अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष और विश्व बैंक ने भी कर्ज देना बंद कर दिया है। वहीं, संयुक्त राज्य अमेरिका ने अफगानिस्तान के केंद्रीय बैंक के भंडार में $9.4 बिलियन को भी रोक दिया है। वहीं, फाइनेंशियल एक्शन टास्क फोर्स (FATF) ने भी अपने 39 सदस्य देशों से तालिबान की संपत्ति को ब्लॉक करने को कहा है। ऐसे में अब सवाल ये है कि बंदूक की दम पर सत्ता पर कब्जा करने वाला तालिबान आखिर सरकार कैसे चलाएगा?

चरमराई अफगानिस्तान की अर्थव्यवस्था

चरमराई अफगानिस्तान की अर्थव्यवस्था

अफगानिस्तान की अर्थव्यवस्था चरमरा रही है और देश में हर सामान की कीमतें आसमान छू रही हैं। संयुक्त राष्ट्र ने इसी सप्ताह आगाह किया है कि अफगानिस्तान की 97 प्रतिशत आबादी जल्द ही गरीबी रेखा से नीचे जा सकती है। जबकि तालिबान के देश पर कब्जा करने से पहले देश की 72 प्रतिशत आबादी गरीबी रेखा से नीचे थी। न्यूयॉर्क पोस्ट की रिपोर्ट है कि प्रमुख शहरों के बाहर मौजूद तालिबान लड़ाकों को खाने के लिए काफी कम खाना मिल पाता है और वो ट्रकों में या कहीं जमीन पर सोते हैं। उनके पास रहने के लिए कोई घर नहीं है और वो किसी भी तरह से अपनी जिंदगी को बचा रहे हैं और तालिबान के पास पैसे नहीं हैं कि वो अपने लड़ाकों की मदद कर सके। रिपोर्ट में दावा किया गया है कि, स्थानीय निवास तालिबान के लड़ाकों को खाने-पीने का सामान देते हैं।

नकदी निकालने पर लगा कैप

नकदी निकालने पर लगा कैप

तालिबान ने पहले ही उन नागरिकों पर 200 डॉलर की निकासी की सीमा लगा दी है जो एक शहर का दौरा करने के लिए मीलों की यात्रा करते हैं और फिर नकदी पाने के लिए घंटों कतार में खड़े रहते हैं। तालिबान के अधिग्रहण के बाद से कई बैंक बंद कर दिए गए हैं, और जो खुले हैं उनके पास कैश की किल्लत है। इस बीच, संयुक्त राष्ट्र ने मंगलवार को कहा कि 40 लाख अफगान "खाद्य आपातकाल" का सामना कर रहे हैं और अधिकांश ग्रामीण क्षेत्रों में रहते हैं, जहां आने वाले महीनों में सर्दियों के दौरान गेहूं के रोपण, पशुओं के लिए चारा और नकद सहायता सुनिश्चित करने के लिए 36 मिलियन डॉलर की तत्काल आवश्यकता है। खासकर कमजोर परिवारों, बुजुर्गों और विकलांगों को फौरन मदद की जरूरत है।

खाद्य संकट को लेकर लगा आपातकाल

खाद्य संकट को लेकर लगा आपातकाल

यूएन के फुड एंड एग्रीकल्चर ऑर्गेनाइजेशन ऑफिस ऑफ इमरजेंसी एंड रेजिलिएंस के डायरेक्टर रीन पॉलसेन ने कहा कि जो स्थिति बनने वाली है, उस आपातकाल में भारी संख्या में लोग कुपोषण की तरफ बढ़ेंगे, और मृत्यु दर काफी तेजी से बढ़ने की आशंका है। सोमवार को जिनेवा में संयुक्त राष्ट्र की एक बैठक में, अंतर्राष्ट्रीय समुदाय ने अफगानिस्तान के लोगों को मानवीय सहायता के रूप में एक अरब डॉलर से अधिक प्रदान करने का संकल्प लिया। तालिबान सरकार के कार्यवाहक विदेश मंत्री अमीर खान मुत्ताकी ने मदद के लिए वैश्विक समुदाय को धन्यवाद दिया और कहा कि वे संयुक्त राज्य अमेरिका सहित दुनिया के देशों के साथ अच्छे द्विपक्षीय संबंध चाहते हैं।

उम्मीद की रोशनी बांटने वाली उस अफगान महिला शिक्षक की कहानी, जो तालिबान से मिलने राष्ट्रपति भवन पहुंच गईउम्मीद की रोशनी बांटने वाली उस अफगान महिला शिक्षक की कहानी, जो तालिबान से मिलने राष्ट्रपति भवन पहुंच गई

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English summary
A state of food emergency has arisen in Afghanistan and Taliban fighters are living on donations. Afghanistan is on the verge of collapse.
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