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अफगान पत्रकारों की स्थिति: ‘तालिबान के सामने झुको या देश छोड़ो’

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काबुल, 08 अक्टूबर। अफगानिस्तान में अगस्त में तालिबान की सत्ता में वापसी के बाद देश के आम लोगों की जिंदगी पूरी तरह बदल गई है. पुरुषों को दाढ़ी कटवाने पर रोक लगा दी गई है, तो महिलाएं अब बुर्के में नजर आ रही हैं. उदारवादी समूह और एलजीबीटी समुदाय के सदस्य भी तालिबान के अतीत से खौफजदा हैं. इन सब के साथ-साथ मीडिया समूह और मीडिया कर्मियों की स्थिति दयनीय हो चुकी है. वे भी डर के साये में जी रहे हैं.

ह्यूमन राइट्स वॉच (एचआरडब्ल्यू) ने हाल ही में एक रिपोर्ट जारी की है. इसके मुताबिक, कई अफगान पत्रकार देश छोड़कर चले गए हैं. जो नहीं जा पाए हैं, उन्हें 'तालिबान के नियमों के अधीन काम करना पड़ रहा है. ये नियम काफी अस्पष्ट हैं. इनके तहत, किसी भी तरह से तालिबान की आलोचना नहीं करनी है.' कुछ मामलों में कई मीडिया कर्मियों को मनमाने ढंग से हिरासत में लिया गया, तो कुछ के साथ हिंसा भी हुई है.

फिलहाल, अफगानिस्तान के सभी इलाकों में तालिबान के नियम एक समान रूप से लागू नहीं हुए हैं, चाहे वह सामान्य लोगों के लिए हो या मीडिया के लिए. ऐसे में पत्रकारों को अलग-अलग जगहों पर अलग-अलग तरह की स्थितियों का सामना करना पड़ रहा है. फिर भी, वे ऐसी समस्याओं की रिपोर्ट कर रहे हैं जिनके स्रोत हमेशा तालिबान नहीं होते.

पूर्वी अफगान प्रांत नंगरहार के एक पत्रकार ने डीडब्ल्यू को बताया, "अब तक तालिबान ने मेरे काम में सीधे तौर पर हस्तक्षेप नहीं किया है और मैं अब भी रिपोर्ट कर सकता हूं. हालांकि, तालिबान हमारे साथ कोई जानकारी साझा नहीं करता है. इससे हमारा काम मुश्किल हो जाता है."

कई पत्रकारों को झेलनी पड़ी परेशानी

नंगरहार प्रांत के ही एक दूसरे पत्रकार कहते हैं, "नंगरहार में एक के बाद एक कई बम धमाके और हत्याएं होने के बाद, मैं कुछ समय के लिए काबुल चला गया." उन्होंने बताया कि उन्हें सीधे तौर पर धमकी नहीं दी गई थी, लेकिन पत्रकार निशाना बन सकते हैं.

उन्होंने छोटे-छोटे हमलों का संदर्भ दिया, जिनमें से अधिकांश हमलों की जिम्मेदारी तथाकथित इस्लामिक स्टेट आतंकी संगठन ने ली थी. यह संगठन प्रांत में कई वर्षों से सक्रिय है.

देश के उत्तर-पूर्वी प्रांत बदख्शां के एक पत्रकार का भी कुछ ऐसा ही कहना है. वह कहते हैं, "मुझे सीधे धमकी नहीं मिली, लेकिन स्थिति खतरनाक है. उदाहरण के लिए, अगर मैं एक रिपोर्ट लिखूं जो तालिबान को पसंद नहीं है, तो मैं मुश्किल में पड़ जाऊंगा क्योंकि तालिबान से जुड़े स्थानीय लोग मुझे अच्छी तरह से जानते हैं. उन्हें मेरा घर भी पता है."

afghanistan journalists encounter tough times under taliban rule

कई पत्रकारों को सीधे तौर पर भी धमकियां दी गई हैं. कुनार प्रांत के एक पत्रकार कहते हैं, "कुछ हथियारबंद लोग मेरे पिता के घर आए. उन्होंने मेरे बारे में पूछा. वजह ये थी कि मैंने कभी-कभी विदेशी पत्रकारों के साथ काम किया था. मुझ पर जिहाद विरोधी प्रचार प्रकाशित करने का आरोप लगाया गया था.Ó इस घटना के बाद से यह पत्रकार छिपकर रह रहा है.

महिला पत्रकारों के कैमरे के सामने आने पर रोक

बदख्शां प्रांत की एक महिला पत्रकार ने डीडब्ल्यू को बताया, "हमारे प्रांत में स्थानीय मीडिया समूहों को परोक्ष रूप से अपना काम बंद करने का दबाव बनाया जा रहा है. जब तालिबान ने बदख्शां की प्रांतीय राजधानी फैजाबाद पर कब्जा कर लिया, तो उन्होंने घोषणा की कि महिला पत्रकारों को कैमरे पर आने की अनुमति नहीं है."

वह आगे कहती हैं, "उन्होंने महिलाओं को रेडियो पत्रकार के रूप में काम करना जारी रखने की अनुमति दी, लेकिन सिर्फ उस स्थिति में जब कार्यक्रम के लिए काम करने वाले सभी कर्मचारी महिलाएं हों. व्यवहारिक रूप से यह शायद ही संभव है. हमारे रेडियो स्टेशन के कुछ तकनीकी कर्मचारी पुरुष हैं, इसलिए हमें मजबूर होकर कार्यक्रम बंद करना पड़ा."

उन्होंने अपने प्रांत की स्थिति के बारे में बताते हुए कहा, "बदख्शां में कोई स्वतंत्र मीडिया नहीं बचा है. जो रिपोर्ट करते हैं, वे तालिबान की बातों को ही दोहराते हैं. इससे अच्छा है कि हम ये काम ही न करें."

बदख्शां के एक पुरुष पत्रकार ने यह भी कहा कि इस क्षेत्र के कई मीडिया संगठन तालिबान के कारण बंद नहीं हुए, बल्कि इसलिए बंद हो गए क्योंकि वे विदेशी फंडिंग पर निर्भर थे. तालिबान के सत्ता में आने के बाद उन्हें आर्थिक सहायता मिलनी बंद हो गई.

चिंताजनक स्थिति

एचआरडब्ल्यू की रिपोर्ट में कहा गया है कि 15 अगस्त को काबुल पर तालिबान के कब्जे के बाद से कम से कम 32 पत्रकारों को अस्थायी रूप से हिरासत में लिया गया है.

काबुल स्थित प्रसिद्ध समाचार पत्र 'एतिलात्रोज' के दो पत्रकारों की बुरी तरह पिटाई की गई. एक को तब तक पीटा गया, जब तक कि वह बेहोश नहीं हो गया. कई अन्य मामलों में, दूसरे पत्रकारों के साथ न सिर्फ दुर्व्यवहार किया गया, बल्कि मनमाने ढंग से हिरासत में भी लिया गया.

नंगरहार के एक पत्रकार ने बताया, "सितंबर महीने में हमारे एक साथी पत्रकार को हिरासत में लिया गया था. पत्रकार संगठनों के काफी प्रयास के बाद, उन्हें आठ दिन बाद रिहा करवाया गया. तालिबान ने उस पत्रकार पर इस्लामिक स्टेट से संबंध रखने का आरोप लगाया, जो सच नहीं था."

अफगानिस्तान में पत्रकारों के साथ इस तरह की मनमानी नई बात नहीं है. पूर्व राष्ट्रपति अशरफ गनी की सरकार के दौरान भी कई ऐसी घटनाएं हुई हैं. जिस पत्रकार को तालिबान ने सितंबर महीने में हिरासत में लिया था, उसी पत्रकार को गनी की सरकार में भी हिरासत में लिया गया था. उस समय पत्रकार के ऊपर तालिबान का सहयोग करने का आरोप लगा था.

हालांकि, पहले के मुकाबले, अभी पत्रकारों के लिए हालात और ज्यादा खराब हो गए हैं. उनके सामने 'तालिबान के सामने झुको या देश छोड़ो' की स्थिति पैदा हो गई है.

(हमने इस रिपोर्ट में डॉयचे वेले के साथ बात करने वाले पत्रकारों का नाम नहीं लिखा है, ताकि उन्हें भविष्य में किसी तरह की परेशानी न हो.)

रिपोर्ट: फ्रांज जे. मार्टी, काबुल से

Source: DW

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English summary
afghanistan journalists encounter tough times under taliban rule
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