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1965: जब हंटर्स ने पाकिस्तानी ट्रेन को उड़ाया..

उनसे कुछ ही मीटर पीछे आ रहे खुल्लर ने देखा कि रॉकेट ठीक निशाने पर लगे. ट्रेन का इंजन और तीन डिब्बे हवा में उछले और तभी खुल्लर ने बाकी बचे डिब्बों को अपना निशाना बनाया.

By रेहान फ़ज़ल - बीबीसी संवाददाता
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100 फीट की ऊंचाई और 580 नौट्स की रफ़्तार से उड़ते हुए चार हंटर विमानों ने भारतीय सीमा पार की. बर्की पर इच्छोगिल नहर पार करने के बाद वो 30 डिग्री बाएं मुड़े और कुछ ही मिनटों में रायविंड रेलवे स्टेशन के उत्तर में पहुंच गए.

सुनिए: पठानकोट हवाई ठिकाने पर बड़ा हमला

फ़्लाइट लेफ़्टिनेंट सी केके मेनन ने ऊपर से देखा कि उसी समय एक मालगाड़ी स्टेशन के यार्ड में घुस रही है और उसमें भारी मात्रा में टैंक और बख़्तरबंद गाड़ियाँ भरी हुई हैं. मेनन ने अपने साथी पायलटों खुल्लर, नेगी और भूप बिश्नोई को इशारा किया कि वो इस ट्रेन को निशाना बनाएंगे.

वो विमानभेदी तोपों को धोखा देने के लिए जानबूझ कर स्टेशन के ऊपर से उड़े. नीचे विमानभेदी तोपों का संचालन करने वालों ने समझा कि शायद हंटर्स हथियारों से भरी ट्रेन को नहीं देख पाए हैं.

ट्रेन के डिब्बे हवा में उछले

हंटर्स उड़ते हुए दूर चले गए. वो मुड़े और मेनन ने हमला करने के लिए तेज़ डाइव ली. विमानभेदी तोपों की फ़ायरिंग के बीच मेनन ने इंजन पर निशाना साधा.

उन्होंने अपने निशाने की जाँच करने के लिए पहले कैनन फ़ायर किया और फिर टी 10 रॉकेट्स की झड़ी लक्ष्य पर डाल दी. मेनन 100 फ़ीट की ऊंचाई पर फ़ायर करते हुए आगे चले गए और ये नहीं देख पाए कि उनके रॉकेट लक्ष्य पर लगे या नहीं.

उनसे कुछ ही मीटर पीछे आ रहे खुल्लर ने देखा कि रॉकेट ठीक निशाने पर लगे. ट्रेन का इंजन और तीन डिब्बे हवा में उछले और तभी खुल्लर ने बाकी बचे डिब्बों को अपना निशाना बनाया. पूरी ट्रेन में भरे विस्फोटक ज़बरदस्त आवाज़ करते हुए फटने लगे.

पीछे आ रहे नेगी और बिश्नोई ने बाकी बची ट्रेन के पिछले हिस्से पर अपना ध्यान केंद्रित किया.. एक एक कर हर डिब्बे में विस्फोट होता रहा और पल भर में पूरी ट्रेन और रेलवे लाइन दोनों तहसनहस हो गए.

टैंकों और वाहनों पर हमला

अभी एक्शन ख़त्म नहीं हुआ था. आगे उड़ते हुए हंटर्स के इस समूह ने कसूर के पास के हथियारबंद कालम को देखा. उन्होंने उस पर भी हमला बोला. मेनन और खुल्लर ने अपने रॉकेट्स से कुछ टैंक तबाह किए.

बिश्नोई और नेगी के सभी रॉकेट्स ख़त्म हो चुके थे. इसलिए उन्होंने नीचे चल रहे वाहनों पर कैनन से हमला किया. कम से कम 30 हल्के वाहन इस हमले की चपेट में आए. बाद में रेडियो ट्रैफ़िक के इंटरसेप्ट से पता चला कि सिर्फ़ इस हमले की वजह से हर पाकिस्तानी टैंक के पास फ़ायर करने के लिए औसतन सिर्फ़ 30 गोले बचे थे.

हंटर में कई छेद

बीबीसी दफ़्तर में रेहान फ़ज़ल के साथ एयर मार्शल भूप बिश्नोई.
BBC
बीबीसी दफ़्तर में रेहान फ़ज़ल के साथ एयर मार्शल भूप बिश्नोई.

जब हंटर अपने बेस पर आए तो देखा गया कि उनके जहाज़ों में नीचे से आई फ़ायरिंग की वजह से कई छेद हो गए थे.

भूप बिश्नोई ने बीबीसी को बताया, "मेरे जहाज़ में मैंने गिना पांच छेद थे. उसमें से एक छेद तो इतना बड़ा था कि मैं उसके अंदर अपना हाथ डाल सकता था."

मेनन का एयर स्पीड इंडीकेटर भी एकाएक फ़ायर से उड़ चुका था लेकिन चारों पायलट सुरक्षित अपने बेस पर वापस लौटे.

रॉकेट और गोला बारूद ख़त्म

अगले दिन यानी 9 सितंबर को 7 और 27 स्कवार्डन की मिली-जुली टीम को बढ़ते हुए पाकिस्तानी टैंकों को नष्ट करने का एक और लक्ष्य दिया गया.

इस बार टीम के लीडर भूप बिश्नोई थे. बिश्नोई याद करते हैं, "हमने हलवारा से टेक ऑफ़ किया. टारगेट एरिया में पहुंचे. और उस जगह को स्पॉट किया जहां ये टैंक थे. मैं अपने विमान को 300 फ़ीट की ऊँचाई पर ले गया और फिर मैंने तीन टैंकों के समूह पर आठ राकेटों के साथ हमला किया. दूर उड़ते हुए मैंने देखा कि तीन पाकिस्तानी टैंक आग की लपटों से घिरे हुए थे."

अहूजा और शर्मा ने भी टैंकों पर रॉकेट्स से हमला किया. उन्होंने बार-बार अपने लक्ष्य के ऊपर उड़ान भरी और तब तक हमले करते रहे जब तक उनके सारे रॉकेट और गोला बारूद ख़त्म नहीं हो गए.

पारुलकर के कंधे में गोली

सबसे अंत में हमले के लिए डाइव की उनके नंबर चार फ़्लाइंग अफ़सर डीके पारुलकर ने. जैसे ही वे नीचे आए उनके हंटर पर विमानभेदी तोप का एक गोला लगा. उस बीच नीचे से आई एक गोली भी उनके कॉकपिट को भेदते हुए निकल गई.

उन्होंने पहली चीज़ नोट की कि अचानक पूरे विमान में हवा का दबाव कम हो गया है. गोली ने पहले कॉकपिट की सतह को पार किया और फिर वो पारुलकर के दाहिने कंधे को चीरते हुए उनकी सीट के हेडरेस्ट के पास से होते हुए विमान की कनोपी को चीरती हुई निकल गई. पारुलकर भाग्यशाली थे.

जब गोली आई तो वो नीचे की तरफ़ झुके हुए थे, इसलिए गोली उनके हेड रेस्ट को छूती हुई निकली, वर्ना उनका सिर गोली के रास्ते में आता. हवा का दबाव कम होने से काकपिट की विंड स्क्रीन धुंधली हो गई जिससे उन्हें देखने में दिक़्क़त होने लगी.

पारुलकर याद करते हैं, "अचानक मुझे दाहिने हाथ में दर्द महसूस हुआ और मेरा फ़्लाइंग सूट ख़ून से तरबतर हो गया. मैंने बिश्नोई को ये बात नहीं बताई क्योंकि मुझे लगा कि ये सुनते ही वो मुझे हमला रोककर वापस जाने के लिए कहेंगे."

इजेक्ट! इजेक्ट!

हमला ख़त्म होने के बाद पारुलकर ने अपने घायल होने की बात बिश्नोई को बताई. बिश्नोई ने सलाह दी कि वो भारतीय सीमा शुरू होते ही विमान से इजेक्ट कर जाएं.

पारुलकर ने इस सलाह को नहीं माना और बिश्नोई को आशवस्त किया कि वो जहाज़ को लैंड कर पाने में सफल होंगे.

सच्चाई ये थी कि पारुलकर एक हाथ से जहाज़ तो उड़ा सकते थे लेकिन लैंड करने के लिए उन्हें दोनों हाथों की ज़रूरत पड़ने वाली थी. तय ये हुआ कि पारुलकर सबसे आख़िर में लैंड करेंगे ताकि अगर लैंडिंग फ़ेल हो जाए तो उनकी वजह से रनवे न ब्लाक हो जाए.

दो विमान टकरा गए

तभी एक और दुर्घटना हुई. लैंड करने की कोशिश करते हुए शर्मा का जहाज़ अहूजा के जहाज़ के पंख से टकराया. लैंडिंग की कोशिश करते हुए पारुलकर ये दृश्य देख कर दहल गए.

अहूजा का विमान अचानक नियंत्रण से बाहर हुआ और एयर बेस की बाउंड्री के नज़दीक ज़मीन से टकराया और आग के गोले में बदल गया. अहूजा को बेल करने तक का मौका नहीं मिला. बिश्नोई ने सबसे पहले लैंड किया. इसके बाद शर्मा ने अपने बुरी तरह से क्षतिग्रस्त हंटर को लैंड कराया. अब पारुलकर के लैंड करने की बारी थी.

पारुलकर याद करते हैं, "तब तक काफ़ी ख़ून बह चुका था. मुझे लग रहा था कि कहीं मैं लैंडिंग से पहले ही बेहोश न हो जाऊँ. लेकिन मैंने अपने दूसरे प्रयास में जहाज़ को सफलतापूर्वक नीचे उतारा. मेरा पूरा ओवर ऑल ख़ून से भीग चुका था. लेकिन वहाँ पहले से ही एंबुलेंस तैयार खड़ी थी. मुझे तुरंत बेस अस्पताल ले जाया गया जहाँ स्कवार्डन लीडर प्रुद्वी ने मेरे घाव पर टाँके लगाए."

आधे बेहोश

बाद में पता चला कि नीचे से आई गोली उनके ड्रोग पेराशूट और मुख्य पैराशूट को जोड़ने वाली लाइन को भेद गई थी. कहने का मतलब यह कि अगर पारुलकर ने अपने बुरी तरह से घायल हो चुके हाथ से इजेक्ट का बटन दबाया भी होता तो उनका पैराशूट नहीं खुलता और वो एक भारी पत्थर की तरह ज़मीन से जा टकराते.

पारुलकर ने जब लैंड किया तो उन्हें इस बात की बिल्कुल भनक नहीं थी कि उनके पास पैराशूट से कूदने का विकल्प समाप्त हो चुका था. बिश्नोई याद करते हैं, "पारुलकर ने लैंड तो कर लिया लेकिन वो जहाज़ को मोड़ नहीं पा रहे थे. इसलिए उन्होंने जहाज़ को रन वे पर ही छोड़ा. बाद में उसे ट्रैक्टर से टो करके ले जाना पड़ा. जब हमने उन्हें जहाज़ से निकाला तो वो आधे बेहोश हो चुके थे."

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English summary
1965: When Hunters blew up the Pakistani train.
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