योगी राज के एक साल: जानिए भगवाधारी सीएम के बारे में कुछ दिलचस्प बातें
लखनऊ। आज यूपी की योगी सरकार को एक साल पूरे हो गए हैं लेकिन यूपी उपचुनाव के नतीजों ने भाजपा के जश्न को फीका कर दिया है। फिलहाल बीजेपी मंथन में जुटी है क्योंकि ऐसा माना जाता है कि दिल्ली की सत्ता का रास्ता यूपी की गलियारों से ही गुजरता है, इसलिए उपचुनाव की हार का सफर साल 2019 के लोकसभा चुनावों पर ना पड़े, इसलिए अभी से ही पार्टी के नेतागण रणनीति में जुट गए हैं। फिलहाल राजनीति में तो उठा-पटक चलती ही रहती है लेकिन आज से एक साल पहले जब यूपी की राजनीति में बीजेपी ने 14 साल बाद वापसी की थी, तो वो किसी चमत्कार से कम नहीं था, सबने इस जीत का क्रेडिट पीएम नरेंद्र मोदी को ही दिया था।
आलाकमान ने योगी आदित्यनाथ को यूपी का सीएम बनाया
लेकिन इस प्रचंड जीत के बाद जब आलाकमान ने योगी आदित्यनाथ को यूपी का सीएम बनाया तो हर कोई हैरान रह गया, खुद पार्टी के लोग भी समझ नहीं पाए कि आखिरकार ऐसा कैसे हो गया क्योंकि किसी को उम्मीद नहीं थी कि एक भगवावस्त्रधारी सीएम की कुर्सी पर बैठेगा लेकिन ऐसा हुआ और जनता को इसे स्वीकार भी करना पड़ा। आज योगी राज के सियासी सफर ने एक साल का कार्यकाल पूरा कर लिया है।
योगी सरकार का दावा
हालांकि योगी सरकार ने दावा किया है कि उसने अपने किए गए वादों में से बहुत सारी बातें पूरी कर दी है, पार्टी के मुताबिक उसने 36 हजार करोड़ के प्रावधान से 86 लाख लघु और सीमांत किसानों को कर्जमाफी दी है और बहुत सारी बातों पर काम हो रहा है लेकिन अभी भी उनका नौजवानों को नौकरी देने का वादा पूरा नहीं हुआ है। हालांकि पार्टी को उम्मीद है कि योगी आदित्यनाथ जनता की कसौटी पर जरूर खरे उतरेंगे।
योगी आदित्यनाथ यूपी के तीसरे सबसे यंग सीएम
आप में से शायद बहुत कम लोग जानते होंगे कि भाजपा के कद्दावर नेता और कट्टर छवि वाले 45 साल के योगी आदित्यनाथ प्रदेश के तीसरे सबसे यंग सीएम हैं।इससे पहले बसपा सुप्रीमो मायावती ने 39 साल और सपा नेता अखिलेश यादव ने 38 साल की उम्र में सीएम की कुर्सी संभाली थी। गोरखपुर से सांसद रहे योगी की छवि कट्टर हिंदूवादी नेता की रही है और अक्सर वो अपने विवादित बयानों के लिए चर्चा में रहे हालांकि सीएम पद मिलने के बाद उनके बयानों में थोड़ी नरमी देखी गई है लेकिन कुछ ज्वलंत मु्द्दों पर आज भी उनका रूख काफी तीखा ही है।
26 वर्ष की अवस्था में सांसद बने थे योगी
आदित्यनाथ 26 वर्ष की अवस्था में 1998 में पहली बार गोरखपुर से सांसद चुने गए और देश के सबसे युवा सांसद बने। तब से वह लगातार गोरखपुर से सांसद रहे हैं और इसी कारण जब यहां उपचुनावों में भाजपा हारी तो हार का ठीकरा योगी के सिर पर फूटा है।
योगी ही पार्टी के शीर्ष नेताओं की पहली पसंद बन
ऐसा नहीं है कि बीजेपी शुरू से ही योगी आदित्यनाथ को पसंद करती थी। भाजपा साल 2007 में योगी के कुछ फैसलों के एकदम खिलाफ थी। कहा जाता है कि चुनाव के दौरान योगी आदित्यनाथ और बीजेपी के शीर्ष लीडरों के बीच काफी गहमागहमी थी। योगी अपने क्षेत्र में 100 से ज्यादा सीटें अपनी पसंद के उम्मीदवारों को देना चाहते थे लेकिन भाजपा के शीर्ष लोग इस बात के लिए राजी नहीं हुए थे लेकिन जब भाजपा ने पिछले साल यूपी में जीत का परचम लहराया तो योगी ही पार्टी के शीर्ष नेताओं की पहली पसंद बन गए सीएम पद के लिए।
ना मंत्री ना स्टार प्रचारक
बीजेपी के शीर्ष नेताओं के विरोध के ही चलते योगी आदित्यनाथ पांच बार से लगातार सांसद होने के बावजूद मोदी के कैबिनेट में शामिल नहीं हुए और ना ही उन्हें भाजपा ने उन्हें यूपी चुनावों में अपना स्टार प्रचारक बनाया था। बावजूद इसके आज सीएम की कुर्सी पर वो ही बैठे हैं।
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