क्विक अलर्ट के लिए
नोटिफिकेशन ऑन करें  
For Daily Alerts
Oneindia App Download

वजह कुछ भी हो, महिला को है अबॉर्शन का अधिकार: बॉम्बे हाई कोर्ट

By Rajeevkumar Singh
Google Oneindia News

मुंबई। बॉम्बे हाई कोर्ट ने कहा है कि महिलाओं को अवांछित गर्भपात की अनुमति मिलनी चाहिए चाहे कारण कुछ भी हो। हाई कोर्ट ने यह भी कहा कि अबॉर्शन से संबंधित मेडिकल टर्मिनेशन प्रेग्नेंसी एक्ट का फायदा लिव इन रिलेशनशिप में रहने वाली महिलाओं को भी मिलना चाहिए।

<strong>READ ALSO: सिस्टम की चक्की में पिस गई 16 साल की रेप पीड़िता, पढ़िए दर्दभरी दास्तां</strong>READ ALSO: सिस्टम की चक्की में पिस गई 16 साल की रेप पीड़िता, पढ़िए दर्दभरी दास्तां

court

महिलाओं को है अपनी पसंद की जिंदगी जीने का अधिकार

महिलाओं की अपनी पसंद की जिंदगी जीने के अधिकार का समर्थन करते हुए बॉम्बे हाई कोर्ट ने कहा है कि अबॉर्शन से संबंधित मेडिकल टर्मिनेशन ऑफ प्रेग्नेंसी एक्ट में सिर्फ फिजिकल हेल्थ ही नहीं, महिलाओं के मेंटल हेल्थ का भी ध्यान रखा जाना चाहिए और उनको अवांछित गर्भपात की अनुमति मिलनी चाहिए चाहे इसकी वजह कुछ भी है।

लिव इन रिलेशनशिप की महिलाओं को भी मिले एक्ट का फायदा

जस्टिस वीके ताहिलरमानी और मृदुला भाटकर की बेंच ने कहा कि मेडिकल टर्मिनेशन ऑफ प्रेग्नेंसी एक्ट के तहत अबॉर्शन करने से संबंधित नियमों का फायदा सिर्फ शादीशुदा महिलाओं तक सीमित नहीं रखा जाना चाहिए।

बेंच ने कहा कि इस एक्ट के दायरे में लिव इन रिलेशनशिप की महिलाओं को भी लाना चाहिए।

मेडिकल टर्मिनेशन ऑफ प्रेग्नेंसी एक्ट में सुधार के सुझाव

बेंच ने कहा कि इस एक्ट के तहत 12 सप्ताह से कम समय के भ्रूण को गिराने की अनुमति है। अगर गर्भ 12 से 20 महीने के बीच का है और इससे महिला की जान को कोई खतरा है तो दो मेडिकल प्रैक्टिसनर की मंजूरी मिलने के बाद अबॉर्शन की अनुमति दी जाती है।

लेकिन अगर महिला की जान को कोई खतरा न हो उस हालात में भी 12-20 महीने के गर्भ को गिराने की अनुमति दी जानी चाहिए।

इस घटना पर कोर्ट ने संज्ञान लेकर रखे विचार

हाल में एक रिपोर्ट आई जिसमें यह था कि एक महिला कैदी गर्भपात कराना चाहती थी लेकिन जेल अधिकारियों को सूचना देने के बावजूद उसे हॉस्पिटल नहीं ले जाया गया।

कोर्ट ने कहा कि प्रेग्नेंसी एक महिला के शरीर के भीतर होती है और इससे उसके शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य पर असर होता है। उस प्रेग्नेंसी के बारे में हर फैसला लेने का अधिकार उस महिला को है।

अपने शरीर पर है महिला का हक

कोर्ट ने कहा कि महिला को अपने शरीर और मातृत्व से जुड़े फैसले लेने का हक है। यह महिला पर ही छोड़ा जाना चाहिए।

अपने शरीर के साथ क्या करना है, प्रेग्रेंट होना है या नहीं होना है, इन सारी बातों को तय सिर्फ वही महिला कर सकती है।

उसे यह अधिकार मानव के तौर पर सम्मान के साथ समाज में जीने के अधिकार से मिला है जो संविधान के आर्टिकल 21 के तहत मूल अधिकार है।

<strong>READ ALSO: Video:सेना ने इस वजह से जल्दी दफनाए आतंकियों के शव</strong>READ ALSO: Video:सेना ने इस वजह से जल्दी दफनाए आतंकियों के शव

Comments
English summary
Bombay high court held that woman should be allowed to opt out of an unwanted pregnancy whatever be the reason.
देश-दुनिया की ताज़ा ख़बरों से अपडेट रहने के लिए Oneindia Hindi के फेसबुक पेज को लाइक करें
For Daily Alerts
तुरंत पाएं न्यूज अपडेट
Enable
x
Notification Settings X
Time Settings
Done
Clear Notification X
Do you want to clear all the notifications from your inbox?
Settings X
X