पीएम मोदी के वीडियो दिखाकर बीजेपी के वोट काट पाएंगे राज ठाकरे?: लोकसभा चुनाव 2019
सोशल मीडिया की इस हलचल का नाता राज ठाकरे और उनके मोदी के ख़िलाफ़ चलाए जा रहे अभियान है. राज ठाकरे आजकल मोदी सरकार की योजनाओं की आलोचना कर रहे हैं और साथ में आंकड़े भी पेश कर रहे हैं.
पिछले कुछ दिनों से सोशल मीडिया में ऐसे पोस्ट्स की भरमार देखने को मिली है, जिनमें कहा जा रहा है कि आजकल बीजेपी को इस एक लाइन से बड़ा डर लगता है- अरे, वीडियो चलाओ!
सोशल मीडिया की इस हलचल का नाता राज ठाकरे और उनके मोदी के ख़िलाफ़ चलाए जा रहे अभियान है. राज ठाकरे आजकल मोदी सरकार की योजनाओं की आलोचना कर रहे हैं और साथ में आंकड़े भी पेश कर रहे हैं.
गुड़ी पड़वा के मौके पर आयोजित एक रैली में राज ठाकरे ने मोदी सरकार पर अनोखे ढंग से हमला बोलना शुरू किया. वो लोगों को बीजेपी सरकार के विज्ञापनों के वीडियो दिखाने लगे.
वीडियो दिखाने के बाद उन्होंने अपनी पार्टी (महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना) का किया एक स्टिंग ऑपरेशन लोगों के सामने रखते हैं. वो कहते हैं कि बीजेपी के कुछ विज्ञापनों में अमरावती ज़िले के हरिसल गांव को डिजिटल गांव बताया जा रहा लेकिन उनकी पार्टी के किए 'स्टिंग ऑपरेशन' में हालात कुछ अलग नज़र आते हैं.
इतना ही नहीं, सोलापुर की रैली में राज ठाकरे ने उस शख़्स को बुला लिया जिसे हरिसल गांव के विज्ञापन में दिखाया गया है. विज्ञापन में गांव के इस युवक को सरकारी योजना का लाभार्थी बताया गया है लेकिन ठाकरे कहते हैं कि असल में उसने रोजगार की तलाश में गांव ही छोड़ दिया है.
ठाकरे के इस आक्रामक अभियान से बीजेपी को बैकफ़ुट पर आना पड़ा. राज्य के शिक्षामंत्री विनोद तावड़े ने कहा कि हरिसल गांव की सभी तकनीकी समस्याएं हल की जाएंगी.
राज ठाकरे के इन हमलों का असर क्या सिर्फ़ हरिसल गांव तक ही सीमित रहेगा या ये बीजेपी के वोटों पर भी असर डालेगा? ठाकरे की पार्टी लोकसभा चुनाव नहीं लड़ रही है. ऐसा भी नहीं है कि राज ठाकरे पूरे महाराष्ट्र में बीजेपी के ख़िलाफ़ अभियान चला रहे हैं. ऐसे कयास लगाए जा रहे हैं कि ठाकरे के इन आक्रामक अभियानों के पीछे राजनीतिक गणित है.
'जागरूकता अभियान हैं हमारी रैलियां'
एमएनएस के नेता और प्रवक्ता अनिल शिडोरे ने बीबीसी से बातचीत में पार्टी के इस रवैये की वजह बताइए. उन्होंने कहा, "अभी के लिए हमारा इरादा बस इतना है कि हम लोगों में सत्ताधारी पार्टी और शासक वर्ग से सवाल पूछने की आदत डाल सकें. ये लोकतंत्र के लिए बहुत ज़रूरी है. जिन लोगों को लगता है कि राजनीति का उनकी ज़िंदगी से कोई रिश्ता नहीं है, वो हमारे इन अभियानों को देखकर समझेंगे कि राजनीति उनकी ज़िंदगी पर असर डालती है. राज ठाकरे की इन रैलियों को एमएनएस के 'जागरूकता अभियान' के तौर पर देखा जा सकता है. अभी के लिए ये अनुमान लगाना मुश्किल होगा कि इनसे बीजेपी के वोटों में कितनी सेंध लगेगी."
पार्टी का कहना है कि लोकसभा चुनाव के दौरान इन रैलियों और अभियानों का मक़सद सिर्फ़ मोदी और शाह के विज्ञापनों के झूठ का पर्दाफ़ाश करना है. हालांकि राजनीतिक विश्लेषक राज ठाकरे के इन अभियानों को दूसरे नज़रिए से भी देखते हैं.
इस चुनाव के 'एक्स फ़ैक्टर' हैं राज ठाकरे
लोकसत्ता के संपादक गिरीश कुबेर ने कहते हैं, "ऐसा लगता कि इस लोकसभा चुनाव का सबसे ज़्यादा फ़ायदा राज ठाकरे ही उठा रहे हैं. जहां तक महाराष्ट्र का सवाल है, इस वक़्त राज ठाकरे 'एक्स फ़ैक्टर' हैं. वो पूरी चतुराई से लगातार मोदी पर हमला कर रहे हैं और ऐसा करके उनका मक़सद अपनी छवि को मज़बूत करना है."
कुबेर कहते हैं, "राज ठाकरे अगले विधानसभा चुनाव पर निशाना साध रहे हैं. वो इन रैलियों का इस्तेमाल राज्य में अपनी पार्टी का आधार बनाने के लिए कर रहे हैं और ये आसानी से हो रहा है. इसलिए अगर एमएनएस का किसी से गठबंधन नहीं होता तो भी राज ठाकरे अपनी जगह बनाने में क़ामयाब होंगे."
राज ठाकरे की इन रैलियों से किसे फ़र्क पड़ेगा?
गिरीश कुबेर को लगता है कि राज ठाकरे की इन रैलियों का असर बीजेपी से कहीं ज़्यादा असर शिव सेना पर पड़ेगा. वो कहते हैं, "इस समय शिव सेना ऐसे मुश्किल हालात में फंसी हुई है जहां वो अपनी परेशानी की शिकायत भी नहीं कर सकती. शिवसेना के कार्यकर्ता पार्टी नेतृत्व के हालिया फ़ैसलों से नाराज़ हैं. ऐसी स्थिति में अगर शिवसेना को लोकसभा चुनाव में प्रत्याशित सफलता नहीं मिली तो उसके कार्यकर्ता एमएनएस का हाथ थाम सकते हैं."
राजनीतिक विश्लेषक अभय देशपांडे कहते हैं कि अभी ये अनुमान लगाना मुश्किल है कि ठाकरे की इन रैलियों की वजह से कितने लोगों के वोट बीजेपी से छिटककर कांग्रेस-एनसीपी गठबंधन को जा मिलेंगे.
अभय कहते हैं, "कांग्रेस-एनसीपी गठबंधन के पास शरद पवार के अलावा कोई और स्टार कैंपेनर नहीं है. इस जगह को राज ठाकरे भर रहे हैं. लेकिन एमएनएएस का पुष्ट वोटबैंक ज़्यादा नहीं है. एमएनएस की ग़ैर-मौजूदगी में मतदाता स्वाभाविक तौर पर शिवसेना की ओर जाएंगे. लेकिन मौजूदा हालात में राज ठाकरे की रैलियों से प्रभावित और दुविधा में पड़ा वोटर बीजेपी के पाले से खिसककर कांग्रेस-एनसीपी के पाले में जा सकता है."
वरिष्ठ पत्रकार वर्षा तोल्गाकर ने बीबीसी से बातचीत में कहा, "कांग्रेस या तो पुलवामा हमले के मुद्दे पर चुनावी अभियान कर रही है या रफ़ाल पर लेकिन राज ठाकरे आम जनता के मुद्दों पर बात कर रहे हैं. वो सिर्फ़ बात नहीं कर रहे हैं बल्कि आंकड़े और प्रमाण भी दे रहे हैं. वो बीजेपी कते किए हर दावे को झुठला रहे हैं. इसलिए कुछ वोटर तो निश्चित तौर पर बीजेपी से दूर जाएंगे."
𝐔𝐧𝐝𝐞𝐫 𝐭𝐡𝐞𝐢𝐫 𝐫𝐮𝐥𝐞, 𝐣𝐚𝐰𝐚𝐧𝐬 𝐰𝐞𝐫𝐞 𝐠𝐞𝐭𝐭𝐢𝐧𝐠 𝐛𝐞𝐚𝐭𝐞𝐧,𝐛𝐮𝐭 𝐭𝐡𝐞𝐲 𝐡𝐚𝐝 𝐧𝐨 𝐨𝐩𝐭𝐢𝐨𝐧 𝐛𝐮𝐭 𝐭𝐨 𝐛𝐞𝐚𝐫 𝐢𝐭,𝐝𝐮𝐞 𝐭𝐨 𝐭𝐡𝐞 𝐩𝐨𝐥𝐢𝐭𝐢𝐜𝐚𝐥 𝐠𝐚𝐦𝐞 𝐩𝐥𝐚𝐲𝐢𝐧𝐠 𝐛𝐲 𝐌𝐨𝐝𝐢https://t.co/XDhDwGfhJe
— Raj Thackeray (@RajThackeray) 18 April 2019
| Raj Thackeray Twitter Team
राज ठाकरे स्टार प्रचारक?
भाजपा नेता विनोद तावडे ने चुनौतीपूर्ण लहज़े में कहा कि मनसे राज ठाकरे को अपना स्टार प्रचारक के तौर पर पेश करे. वो सोमवार को हुई एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में बोल रहे थे.
तावडे ने सोलापुर में हुई राज ठाकरे की रैली की आलोचना करते हुए कहा कि शरद पवार को राज ठाकरे के तमाम दौरों की सूची थमाई गई है. उनका इशारा दरअसल इस ओर था कि सोलापुर में राज ठाकरे और एनसीपी प्रमुख शरद पवार एक ही होटल ठहरे थे.
तावडे ने साथ ही यह आरोप भी लगाए, ''जब शरद पवार ओसमानाबाद से लौट रहे थे तो उन्होंने अपने हैलीकॉप्टर का रूट बदलवाया और सोलापुर में रुक गए ताकि वो होटल में राज ठाकरे के साथ चर्चा कर सकें.''
हालांकि अनिल शिदोरे ने इन आरोपों को खारिज करते हुए कहा, ''शरद पवार बहुत देर रात होटल पहुंचे थे जबकि हम सुबह जल्दी ही होटल से निकल गए, इसलिए हमारी मुलाक़ात ही नहीं हो पाई.''
मोदी-शाह की जोड़ी को टक्कर
राज ठाकरे की रैलियों में यह साफ दिखाई देता है कि वो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह पर ही निशाना साधते हैं. उनके निशाने पर बीजेपी नहीं होती.
अनिल शिदोरे कहते हैं, ''भारतीय लोकतंत्र के लिए यह एक महत्वपूर्ण चुनाव है. मोदी और शाह ने देशभक्ति और राष्ट्रवाद की नई परिभाषाएं गढ़ी हैं. हमारे लोकतंत्र में बहुत सी चीज़ें बदल गई हैं. इसीलिए हम इन दोनों की राजनीतिक हैसियत कम करना चाहते हैं.''
वहीं अभय देशपांडे कहते हैं, ''एक तरह से देखा जाए तो मोदी का सीधा-सीधा अर्थ बीजेपी से है. ऐसे में राज ठाकरे मोदी पर निशाना साधते हुए बीजेपी पर भी सवाल उठाते हैं. यहां पर एक और महत्वपूर्ण बात आती है. बीजेपी के भीतर भी एक धड़ा ऐसा है जो मोदी शाह की राजनीति से ताल्लुक नहीं रखता. राज ठाकरे के प्रचार से यह तबका बीजेपी से दूर जा सकता है.''
कांग्रेस और एनसीपी में गठबंधन?
राज ठाकरे के प्रचार से कांग्रेस-एनसीपी गठबंधन को फायदा मिलेगा यह तो तय है. हालांकि वो लोगों से सीधे तौर पर कांग्रेस-एनसीपी को वोट देने की अपील नहीं कर रहे. वो यह अपील कर रहे हैं कि उन्हें वोट दो जो मोदी-शाह को हरा सकते हैं.
इस तरह से राज ठाकरे दूसरे तरीके से ही सही लेकिन कांग्रेस-एनसीपी के लिए वोट की अपील कर रहे हैं. क्या इसके ज़रिए वो राज्य में होने वाले विधानसभा चुनावों में कांग्रेस-एनसीपी के साथ किसी तरह के गठबंधन का विचार पाल रहे हैं?
अनिल शिडोरे इस सवाल का सीधा जवाब देने से बचने की कोशिश करते हैं.
वो कहते हैं, ''गठबंधन हो भी सकता है और नहीं भी. यह सब भविष्य की योजनाएं हैं. यह सब फैसले उसी वक़्त लिए जाएंगे. राज ठाकरे ने खुद कहा है कि उनकी रैलियां अभी सिर्फ लोकसभा चुनावों तक ही सीमित हैं.''
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