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नीतीश कुमार क्या आरसीपी सिंह को राज्यसभा उम्मीदवार बनाएंगे

नीतीश कुमार समय-समय पर अपनी राजनीति से लोगों को चौंकाते आए हैं, लेकिन इस बार क्या करेंगे.

By BBC News हिन्दी
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नीती कुमार
Hindustan Times
नीती कुमार

नीतीश कुमार राजनीतिक तौर पर क्या कुछ करेंगे, इसका अंदाज़ा उनके निकट सहयोगियों तक को नहीं होता है. इसलिए समय समय पर वे लोगों को अपने फ़ैसले से चौंकाते रहे हैं

आने वाले कुछ दिनों में एक बार फिर वे अपने आस पास के लोगों को चौंका सकते हैं. दरअसल नीतीश कुमार को बिहार से राज्यसभा के सदस्य के तौर पर अपने एक नेता को चुनना है. ये नेता कौन होगा, इसको लेकर बिहार की राजनीति में कयासों का दौर थमता नहीं दिख रहा है.

इन कयासों के केंद्र में केंद्रीय इस्पात मंत्री और जनता दल (यूनाइटेड) के राष्ट्रीय अध्यक्ष रहे आरसीपी सिंह हैं. आरसीपी सिंह का कार्यकाल जुलाई, 2022 में पूरा हो रहा है और वे राज्य सभा के लिए फिर से पार्टी के उम्मीदवार होंगे या नहीं, इसको लेकर संशय की स्थिति बनी हुई है.

यह संशय की स्थिति कई वजहों से है, सबसे अहम वजह तो यही है कि राज्यसभा की उपचुनाव की सीट के लिए पार्टी ने अनिल हेगड़े के नाम का ऐलान किया और वे निर्विरोध चुन लिए जाएंगे लेकिन दूसरे उम्मीदवार के नाम पर पार्टी में एक राय नहीं है. इसको लेकर बीते सप्ताह शुक्रवार को नीतीश कुमार ने अपने आवास पर जनता दल यूनाइटेड के पटना में मौजूद सभी मंत्रियों और विधायकों की आनन फ़ानन में बैठक बुलाई.

उस बैठक में पार्टी ने नीतीश कुमार को ही उम्मीदवार के नाम फ़ैसला लेने के लिए अधिकृत किया है. यानी जो भी होगा उसका फ़ैसला नीतीश कुमार को ही करना है लेकिन पांच छह दिन बीतने के बाद भी उम्मीदवार का नाम सामने नहीं आया है.

इसकी वजह के बारे में जनता दल यूनाइटेड की राष्ट्रीय कार्यकारिणी के एक सदस्य ने बताया, "पार्टी के अंदर आरसीपी सिंह के नाम को लेकर विरोध है. इसलिए भी वक्त लग रहा है."

वहीं दूसरी ओर पार्टी के प्रवक्ता प्रगति मेहता ने बताया, "कहीं कोई विरोध नहीं है और समय आने पर पार्टी आरसीपी सिंह को अपना उम्मीदवार भी बनाएगी."

मैं कैसे बता सकता हूं

लेकिन राजनीति में बिना आग के धुंआ नहीं उठता. आरसीपी सिंह से एक सप्ताह पहले पटना में पत्रकारों ने जब पूछा कि आप राज्यसभा के लिए फिर से भेजे जा रहे हैं या नहीं, तो उनका जवाब था, "ये मैं कैसे बता सकता हूं." लेकिन साथ ही उन्होंने यह भी जोड़ा कि आप मीडिया वाले लोगों की मंशा कामयाब नहीं होगी.

लेकिन जब बुधवार को नई दिल्ली में मीडिया के सामने आए तो उन्होंने कहा कि मैं जनता दल यूनाइटेड से ही राज्यसभा आऊंगा, लेकिन साथ ही उन्होंने यह भी जोड़ा कि अंतिम फ़ैसला हमारे नेता नीतीश कुमार को ही लेना है.

ज़ाहिर है कि आरसीपी सिंह को भी मालूम है कि उनके नाम को लेकर विरोध है और यही वजह है कि वे नीतीश कुमार से 1998 से अपनी नज़दीकियों का हवाला तो देते हैं लेकिन नामांकन को लेकर कोई दावा नहीं करते हैं.

दरअसल जनता दल यूनाइटेड के अंदर शुरुआत से ही नीतीश कुमार के नेतृत्व के नीचे दो खेमा रहा है, दोनों की स्थिति लगभग एक समान मानी जाती रही. एक तो राजीव रंजन सिंह उर्फ़ ललन सिंह का खेमा रहा और दूसरी तरफ़ आरसीपी सिंह का खेमा. जब दिसंबर, 2020 में नीतीश कुमार ने आरसीपी सिंह को नंबर दो बनाते हुए पार्टी अध्यक्ष की ज़िम्मेदारी सौंपी. तब भी लोगों को अचरज हुआ था क्योंकि राजनीतिक कामों में ललन सिंह का अनुभव कहीं ज़्यादा था.

इसके बाद केंद्रीय मंत्रिमंडल में शामिल होने की बारी आई तो दोनों खेमे अपने-अपने दावे कर रहे थे, लेकिन बाज़ी आरसीपी सिंह के नाम रही. तब यह भी कहा गया कि आरसीपी सिंह ने बीजेपी के साथ अपनी नज़दीकी का फ़ायदा उठाया और इसकी जानकारी नीतीश कुमार को भी अंतिम समय में मिली.

लेकिन इस दलील में इसलिए कोई दम नहीं है क्योंकि मई, 2019 में केंद्र सरकार में जेडीयू के शामिल होने पर आरसीपी सिंह के मंत्री बनने की चर्चा सबसे ज़्यादा थी, लेकिन बाद में कोटे से केवल एक मंत्री बनाए जाने के विरोध में नीतीश कुमार ने मंत्रिमंडल में शामिल नहीं होने का फ़ैसला लिया था. लेकिन नीतीश कुमार ने ऐसा नहीं किया और ललन सिंह नाराज़ हो गए और उनकी नाराज़गी को दूर करने के लिए नीतीश कुमार ने उन्हें पार्टी अध्यक्ष की ज़िम्मेदारी सौंपी.

बिहार की राजनीति पर नज़र रखने वाले वरिष्ठ पत्रकार मणिकांत ठाकुर कहते हैं, "जनता दल यूनाइटेड की अंदर जो अभी घमासान दिख रहा है, वो इसलिए ही दिख रहा है कि क्योंकि नीतीश कुमार ही ऐसा चाहते होंगे, वे पहले भी ऐसा करते रहे हैं. एक को आगे, दूसरे को पीछे फिर दूसरे को आगे, पहले को पीछे."

ऐसे में इस बार ललन सिंह का कैंप, आरसीपी सिंह का विरोध कर रहा है. ललन सिंह ने आपसी होड़ को इस बार पार्टीगत हितों से जोड़ दिया है. जैसे उनके समर्थक इस बात को प्रचारित करते हैं कि बतौर केंद्र में मंत्री होने के बाद आरसीपी सिंह ने बिहार को विशेष राज्य का दर्ज़ा नहीं दिलाया है और जातिगत जनगणना जैसे कुछ मुद्दों पर पार्टी की राय से अलग बीजेपी की राय से सहमति जताने का आरोप भी आरसीपी सिंह पर है.

इसके साथ उन पर राष्ट्रीय अध्यक्ष के तौर पर पार्टी के अंदर समानांतर संगठनों को खड़ा करने का आरोप भी है, हालांकि ललन सिंह ने अध्यक्ष बनने के बाद अपने हिसाब से पार्टी के संगठन और ढांचे में बदलाव भी किया है.

जनता दल यूनाइटेड ने यूपी विधानसभा चुनावों के दौरान बीजेपी से तालमेल करने की ज़िम्मेदारी भी आरसीपी सिंह को सौंपी थी, लेकिन इसमें पार्टी को कोई कामयाबी नहीं मिली, इस पर ललन सिंह ने पार्टी अध्यक्ष होने के नाते आरसीपी से जवाब भी मांगा.

इतना ही कुछ सार्वजनिक आयोजनों में नीतीश कुमार और आरसीपी सिंह के बीच वैसी नज़दीकी नहीं दिखी, जो पहले कभी देखी जाती रही थी. पार्टी के एक युवा नेता कहते हैं, "आरसीपी सिंह लगातार दो टर्म से राज्य सभा में रहे हैं. पार्टी में तमाम ज़िम्मेदारियां निभा चुके हैं, ऐसे में किसी दूसरे को मौका मिलने में हर्ज़ ही क्या है."

आरसीपी सिंह को जनता दल यूनाइटेड अगर राज्यसभा नहीं भेजती है तो उनको मंत्रिपद से इस्तीफ़ा देना पड़ सकता है, हालांकि एक संभावना यह व्यक्त की जा रही है कि बीजेपी उनको अपने पाले से राज्यसभा में भेज सकती है. हालांकि बिहार बीजेपी में इस मुद्दे पर कई नेताओं का कहना है कि ये पूरा मामला जेडीयू का आंतरिक मामला है और इससे बीजेपी का कोई लेना देना नहीं है.

बिहार के वरिष्ठ पत्रकार मणिकांत ठाकुर कहते हैं, "एक तो आरसीपी का वैसा कोई जनाधार नहीं है और दूसरी बात यह है कि जब तक नीतीश कुमार हैं तब तक कुर्मी समुदाय का कोई दूसरा नेता हो भी नहीं सकता है. आरसीपी बिहार में कुछ अलग कर पाएंगे, यह संभव नहीं है.

ललन सिंह का गुट कर रहा है विरोध

बिहार बीजेपी और नीतीश कुमार के आपसी संबंध में इन दिनों भले तल्खी का भाव कुछ ज़्यादा दिख रहा हो लेकिन अभी बीजेपी इस गठबंधन को बनाए रखें. इसकी झलक पिछले दिनों तब भी देखने को मिली जब बीजेपी के धर्मेंद्र प्रधान नीतीश कुमार से मिलने पटना पहुंचे, उनकी इस मुलाकात के बारे में बिहार बीजेपी के नेताओं को भी मुलाकात के बाद पता चला.

दो घंटे से भी ज़्यादा की इस मुलाकात में राष्ट्रपति चुनाव, उपराष्ट्रपति चुनाव और राज्यसभा के चुनाव पर ही चर्चा हुई थी. ऐसे में आरसीपी को शामिल करके बीजेपी नीतीश कुमार को एकदम नाराज़ नहीं करना चाहेगी.

लेकिन यह भी संभव है कि नीतीश कुमार, आरसीपी सिंह को ही लगातार तीसरी बार राज्य सभा में भेजने का फ़ैसला कर लें.

मणिकांत ठाकुर कहते हैं, "नीतीश कुमार क्या करेंगे ये वही जानते होंगे. लेकिन लालू जी कहते हैं कि ऐसा कोई सगा नहीं है जिसको नीतीश कुमार ने ठगा नहीं. आज ललन सिंह ख़ास हैं लेकिन उन्होंने पार्टी छोड़कर कहा था कि पेट में दांत हैं. उपेंद्र कुशवाहा बाहर जा कर अंदर आए हैं. आरसीपी अभी तक बाहर नहीं हुए हैं."

वैसे आरसीपी सिंह के सामने अपनी राजनीति और राजनीतिक महत्वाकांक्षा को बचाने रखने की चुनौती भी होगी. इससे पहले वे इतने उलझन में शायद ही कभी रहे. इससे पहले भी एक मौका ऐसा ज़रूर आया था जब पार्टी में उनके दूसरे नंबर के हैसियत को चुनौती मिली थी.

ये मौका आया था सितंबर, 2018 में जब नीतीश कुमार प्रशांत किशोर को पार्टी उपाध्यक्ष के तौर पर लेकर आए थे. उस प्रेस कॉन्फ्रेंस की तस्वीरों को याद कीजिए, नीतीश कुमार की दाहिनी ओर प्रशांत किशोर बैठे थे और बायीं ओर वशिष्ठ नारायण सिंह. तब तक दाहिनी ओर आरसीपी सिंह ही बैठते आए थे. लेकिन आरसीपी अध्यक्ष बने, केंद्र मे मंत्री बने और प्रशांत किशोर पार्टी से बाहर गए.

यानी करीब दो दशक से भी ज़्यादा लंबे समय के साथ के चलते आरसीपी नीतीश कुमार को मना भी सकतें हैं और जब नीतीश कुमार मान जाएंगे तो बाक़ी लोग भी मान जाएंगे.

जेएनयू से आईआर और आईएएस अधिकारी का टैग

यह स्थिति तब है कि जब आरसीपी सिंह कोई जनाधार वाले नेता नहीं हैं. वे नौकरशाही के रास्ते से नीतीश कुमार के भरोसे से राजनीति में आए थे और उनकी मनमर्जी पर ही आरसीपी का राजनीतिक भविष्य निर्भर कर रहा है.

उनका राजनीतिक जीवन भी उनके नौकरशाही के करियर की तरह ही धीरे-धीरे जमा है. जवाहरलाल नेहरू यूनिवर्सिटी से इंटरनेशनल रिलेशन में एमए करने के बाद आरसीपी सिंह 1984 में यूपी काडर के आईएएस अधिकारी बने.

इस दौरान वे रामपुर, बाराबंकी, हमीरपुर और फतेहपुर के ज़िलाधिकारी रहे. इस दौरान उनकी नज़दीकी समाजवादी पार्टी के कद्दावर नेता रहे बेनी प्रसाद वर्मा से बढ़ी.

साल 1996 में बेनी प्रसाद वर्मा केंद्रीय दूर संचार मंत्री थे तब आरसीपी सिंह उनके निजी सचिव थे. बेनी प्रसाद वर्मा ने ही आरसीपी सिंह की मुलाक़ात नीतीश कुमार से कराई थी. आरसीपी सिंह एक तो नीतीश कुमार के ही गृह ज़िले नालंदा के थे और स्वजातीय भी थे.

इन दो बातों के अलावा आरसीपी की कुशलता ने भी नीतीश कुमार को अपना मुरीद बनाया होगा तभी उन्होंने रेल मंत्री के तौर पर आरसीपी सिंह को अपना निजी सचिव बनाया और जब 2005 में बिहार के मुख्यमंत्री बने तो यूपी काडर के अधिकारी को अपने राज्य में पदस्थापित कराने के लिए उन्होंने पूरा जोर लगाया.

आरसीपी सिंह प्रधान सचिव के तौर पर पटना चले आए और देखते देखते वे नीतीश कुमार के आंख और कान बन गए.

शासन के कामकाज के साथ साथ वे जनता दल यूनाइटेड में अहम होते गए. चूंकि पार्टी एक तरह से नीतीश कुमार के इर्दगिर्द ही घूम रही थी लिहाजा किसी के लिए भी नीतीश कुमार तक पहुंचने का रास्ता आरसीपी सिंह से होकर गुजरता था.

आरसीपी की ख़ासियत

आरसीपी सिंह की पकड़ इतनी मुस्तैद हुई थी कि उनके बारे में बिहार विधानसभा के नेता प्रतिपक्ष तेजस्वी यादव ने सार्वजनिक तौर पर आरोप लगाया कि बिहार में हर नियुक्ति-तबादले में एक आरसीपी टैक्स देना होता है.

इसी दौर में जनता दल यूनाइटेड के अंदर संसाधनों के इंतज़ाम का ज़िम्मा भी आरसीपी सिंह के इर्द गिर्द सिमटता गया. 2010 में उन्होंने आईएएस से इस्तीफ़ा दिया और नीतीश कुमार ने उन्हें राज्य सभा भेजा. 2016 में वे पार्टी की ओर से दोबारा राज्यसभा पहुंचे और शरद यादव की जगह राज्यसभा में पार्टी के नेता भी मनोनीत किए गए.

जनता दल यूनाइटेड के प्रवक्ता प्रगति मेहता कहते हैं, "आरसीपी सिंह एक नौकरशाह थे, लेकिन पार्टी के कार्यकर्ताओं तक वे कार्यकर्ता के तौर पर ही पहुंचते रहे हैं. कार्यकर्ता भी उनसे जुड़ते चले गए. वे सहजता से सबके लिए उपलब्ध रहते हैं. उनकी सांगठनिक क्षमता का फ़ायदा पार्टी को मिलता रहा है."

कार्यकर्ताओं के साथ इसी जुड़ाव के चलते कभी आरसीपी सिंह जनता दल यूनाइटेड के लिए सबसे महत्वपूर्ण शख़्स बनकर उभरे थे.

https://www.youtube.com/watch?v=QJy5hjUFRa0

नीतीश-आरसीपी की केमिस्ट्री

दरअसल आरसीपी सिंह ने जनता दल यूनाइटेड के अंदर कई तरह के प्रकोष्ठ और बूथ कमिटी तक बनाकर पार्टी के अंदर एक संगठन को मूर्त रूप देने की जो कोशिश की है, उसके चलते भी विपरीत हालात के बावजूद पार्टी इस बार सरकार में आने में कामयाब हुई है.

नीतीश और आरसीपी के बीच दो दशक से भी लंबे समय से बनी हुई है. दोनों की आपसी केमिस्ट्री कुछ ऐसी है कि एक के बिना दूसरे का काम भी नहीं चल सकता.

आरसीपी कभी जनाधार वाले नेता नहीं हो सकते, लिहाजा नीतीश कुमार को उस तरह की चुनौती कभी नहीं दे सकते जैसा कोई जनाधार वाला नेता दे सकता था. दूसरी तरफ नीतीश कुमार के चेहरे के बिना आरसीपी अपने दम पर संगठन के बूते कोई करिश्मा नहीं दिखा सकते.

लेकिन दोनों मिलकर पार्टी को कई मौकों पर संकट से निकाल चुके हैं और ऐसे में संभव था कि हो सकता है कि दोनों ने मिलकर काम करने का लक्ष्य बनाया हो.

आरसीपी की आईपीएस बेटी भी चर्चित

आरसीपी सिंह की सबसे बड़ी ख़ासियत पर्दे के पीछे चुपचाप अपने काम करने वाले शख़्स की रही है. केंद्र में मंत्री बनने से पहले तक वे नीतीश कुमार के लिए ट्रबल शूटर की ज़िम्मेदारी निभाते रहे लेकिन मंत्री बनने के बाद वे नीतीश कुमार के इर्द गिर्द दूसरे नेताओं का घेरा बढ़ता गया.

आरसीपी सिंह की बेटी लिपि सिंह 2016 बैच की आईपीएस अधिकारी हैं. बिहार विधानसभा चुनाव के दौरान 26 अक्तूबर, 2020 को मुंगेर में पुलिस और आमलोगों की झड़प और पुलिस फायरिंग को लेकर सवाल उठे थे.

तब मुंगेर की एसपी लिपि सिंह ही थीं, बाद में चुनाव आयोग के निर्देश लिपि सिंह और ज़िलाधिकारी को ज़िले से हटाना पड़ा था.

इससे पहले लिपि सिंह कभी नीतीश कुमार के नज़दीकी रहे बाहुबली नेता अनंत सिंह पर कार्रवाई के लिए भी चर्चा में रही थीं. आरसीपी सिंह के दामाद और लिपि सिंह के पति सुहर्ष भगत बिहार काडर के आईएस अधिकारी हैं . आरसीपी सिंह की दूसरी बेटी लता सिंह ने क़ानून की पढ़ाई पूरी करने के बाद वकालत को अपना पेशा बनाया है.

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