क्या नेपाल को मिलेगी एक स्थिर सरकार?
नेपाल में 26 नवंबर को पहले दौर की वोटिंग. क्या है सबसे बड़ा राजनीतिक मुद्दा?
जोश और उत्साह से सराबोर माहौल. गली-गली में जुलूस, माइक के चोंगों की आवाज़ें. हर कोई इस चहल पहल में बराबर का शरीक है. आखिर हो क्यों न? ये सबकुछ इनके भविष्य से जुड़ा हुआ है. इसलिए ये जोश और ख़रोश का माहौल है.
नेपाल में चुनाव की गहमागहमी भारत में होने वाले चुनावों से कुछ अलग नहीं है. नारे लगाने का वही अंदाज़. चुनावी वादे और घोषणा पत्र भी कुछ अलग नहीं.
जुलूस और घर-घर वोट मांगने आये नेताओं को देखकर ऐसा नहीं लगेगा कि यह चुनाव किसी दूसरे देश में हो रहे हैं.
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नेता से उनके काम पूछ रहे मतदाता
इस बार नेपाल के चुनावी समर में कूदे नेता भी फूँक-फूँक कर क़दम रख रहे हैं. वो लोगों के बीच अपना रिपोर्ट कार्ड लेकर जा रहे हैं.
शायद पहला चुनाव है जब मतदाता नेताओं से उनके काम के बारे में पूछ रहे हैं.
काठमांडू शहर के पशुपतिनाथ मंदिर के इलाक़े में घर घर वोट मांगने निकले नेपाली कांग्रेस के कद्दावर नेता गगन थापा से मेरी मुलाक़ात चुनावी रैली के बीच हुई.
वो इस इलाक़े का प्रतिनिधित्व करते आ रहे हैं. बीबीसी से बातचीत के दौरान वो दावा करते हैं कि अपने मतदाताओं से पिछले चुनावों में जो वादा उन्होंने किया, उसे पूरा किया है.
वो कहते हैं, "मुद्दे काफी सारे हैं. मैं यहाँ से चुना जाता रहा हूँ. मैंने पिछले चुनावों में वादा किया था कि मैं संसद में महत्वपूर्ण भूमिका निभाऊंगा. संविधान के लागू होने के बाद भी बड़ा सवाल था कि क्या हम चुनाव करा पाएंगे भी या नहीं. कई चुनौतियां थीं मगर हमने सब दलों को साथ लेकर चुनाव करवा ही लिया."
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अग्नि परीक्षा
नेपाल में प्रदेश सभा यानी राज्य और प्रतिनिधि सभा यानी संसद- दोनों की 165-165 सीटों के लिए चुनाव एकसाथ हो रहे हैं.
हाल ही में नेपाल में सात नए प्रदेश बनाए गए हैं. इसी दौरान संविधान भी बना जिसको लेकर काफी विवाद भी चला और आखिरकार संविधान लागू हुआ.
संविधान के बनने के बाद हो रहे पहले चुनाव सबके लिए काफी महत्व रखते हैं. चाहे वो यहां के लोग हों या फिर नेता.
बाम गठबंधन के साझा उम्मीदवार और यूनिफाइड मार्क्सिस्ट लेनिनिस्ट पार्टी के महासचिव ईश्वर पोखरेल भी राजधानी में जगह-जगह घूम-घूमकर अपनी चुनावी सभाएं कर रहे हैं.
ये चुनाव उनके गठबंधन के लिए बड़ी अग्नि परीक्षा है क्योंकि पहली बार ऐसा हुआ है कि सभी वामपंथी दल एकसाथ मिलकर चुनाव लड़ रहे हैं.
पोखरेल का कहना था, "वामपंथियों के नेतृत्व में सरकार बने यही हमारा सबसे बड़ा राजनीतिक मुद्दा है. नेपाली कांग्रेस के नेतृत्व में बार-बार बहुमत की सरकार बनी, लेकिन राजनीतिक स्थिरता नहीं हो पायी. इसलिए नेपाल अब वामपंथियों के नेतृत्व में बहुमत की सरकार चाहता है."
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एक प्रश्न चिह्न
सभी दलों ने वोटरों को रिझाने के लिए अपनी पूरी ताक़त झोंक दी है.
मगर पिछले कई सालों से राजनीतिक अस्थिरता झेलने वाले नेपाल के लोगों के बीच इन चुनावों के लेकर मिली-जुली प्रतिक्रिया सुनने को मिल रही है.
लोग चाहते हैं कि अब जो सरकार बने वो स्थिर हो ताकि नेपाल का विकास हो सके. पशुपतिनाथ मंदिर के इलाक़े के रहने वाले एक नौजवान को किसी दल पर भरोसा नहीं हो पा रहा है. पूछने पर वो कहते हैं कि सभी स्थिरता की बात कर रहे हैं. मगर राजनीतिक दल इसको लेकर कितने गंभीर हैं उन्हें पता नहीं.
वो कहते हैं, "स्थिरता की बात सिर्फ़ बोलने वाली बात है. मुझे नहीं लगता कि ऐसा हो पायेगा. चलिए उम्मीद ही कर सकते हैं."
नेपाल कई सालों से पिछड़ा हुआ इलाक़ा ही माना जाता रहा है जहाँ बुनियादी सुविधाओं का घोर अभाव रहा है. अप्रैल 2015 में आये विनाशकारी भूकंप के बाद इस देश के कई इलाक़े और भी ज़्यादा पिछड़ गए.
यहां के रहने वाले स्थिरता चाहते है. चाहे सरकार किसी भी गठबंधन की बने.