
कोरोना के इलाज से क्यों हटाई गई प्लाज्मा थेरेपी ? सही वजह जानिए
नई दिल्ली, 18 मई: सरकार ने कोविड मरीजों के इलाज में इस बीमारी से ठीक हो चुके मरीजों के प्लाज्मा का इस्तेमाल आधिकारिक तौर पर बंद कर दिया है। पिछले साल दिल्ली सरकार ने जब से कोविड मरीजों के इलाज के लिए प्लाज्मा थेरेपी की मंजूरी दी थी, तभी से इसपर बहस चल रही थी। पिछली गाइडलाइंस में आईसीएमआर ने कोरोना के मध्यम लक्षण वाले मरीजों के लिए इस इलाज की अनुमति जारी रखी थी। लेकिन, वह भी लक्षण शुरू होने के सात दिनों के भीतर। लेकिन, बाद में डॉक्टर कोविड-19 के मरीजों की गंभीर स्थिति में भी इस थेरेपी की सलाह देने लगे थे। लेकिन, आखिरकार केंद्र सरकार ने एक्सपर्ट पैनल की सलाह पर इसे कोविड मैनेजमेंट के प्रोटोकॉल से ही हटा दिया है।

एक्सपर्ट पैनल ने प्लाज्मा थेरेपी बंद करने की दी थी सलाह
वैज्ञानिकों और डॉक्टरों के एक ग्रुप ने हाल ही में मुख्य वैज्ञानिक सलाहकार के विजय राघवन को एक चिट्ठी लिखी थी, जिसमें कोविड मरीजों के इलाज के लिए देशभर में ठीक हो चुके लोगों का प्लाज्मा चढ़ाने के 'गैर-वैज्ञानिक प्रक्रिया' को लेकर आपत्ति जताई थी। यह चिट्ठी इंडियन काउंसिल ऑफ मेडिकल रिसर्च (आईसीएमआर) के चीफ डॉक्टर बलराम भार्गव और दिल्ली स्थित एम्स के डायरेक्टर डॉक्टर रणदीप गुलेरिया को भी लिखी गई थी। चिट्ठी में इस बात की ओर इशारा किया गया था कि प्लाज्मा थेरेपी के अनियमित और अविवेकपूर्ण इस्तेमाल की वजह से कोरोना वायरस के विभिन्न वेरिएंट पैदा होने में सहायता मिलने की आशंका है।

वैज्ञानिक शोध भी पक्ष में नहीं थे
वैसे इस तरह की चिट्ठी से काफी पहले से ही प्लाज्मा थेरेपी को लेकर बहस चल रही थी और एक्सपर्ट इसे कोविड-19 मैनेजमेंट के प्रोटोकॉल में शामिल किए जाने को लेकर सवाल उठा रहे थे। यही नहीं, इसपर हुए वैज्ञानिक शोध भी इसके पक्ष में नहीं थे। मसलन, लैंसेट में प्रकाशित एक स्टडी के मुताबिक प्लाज्मा थेरेपी से मौत घटती है या फिर मरीज जल्दी ठीक हो जाता है, इसके पक्ष में कोई डेटा नहीं है। इन्हीं वैज्ञानिक तर्कों के आधार पर आसीएमआर ने आखिरकार प्लाज्मा थेरेपी को कोविड-19 मैनेजमेंट प्रोटोकॉल से हटा दिया। आईसीएमआर और नेशनल टास्क फोर्स फॉर कोविड-19 ने इसपर आम सहमति से फैसला लिया है।

मरीज के परिजनों का भी बढ़ रहा था टेंशन
यही नहीं, प्लाज्मा थेरेपी की वजह से कोरोना मरीजों के तिमारदारों को कई तरह से बेवजह की परेशानियों का भी सामना करना पड़ रहा था। ऐसी भी खबरें हैं कि उपयुक्त प्लाज्मा उपलब्ध करवाने के लिए उसकी मनमानी बोली भी लगाई जाने लगी थी। क्योंकि, इसमें ऐसे डोनर की जरूरत होती है, जो निश्चित अवधि में कोविड से ठीक हुआ हो और उसमें एंटी-बॉडी का कंसंट्रेशन भी काफी हो। हाल के समय में सोशल मीडिया पर प्लाज्मा उपलब्ध करवाने से संबंधित कई गलत दावे भी खूब फॉर्वर्ड हो चुके हैं। वैसे आईसीएमआर ने पिछले महीने भी इसको लेकर प्रोटोकॉल में बदलाव किया था और इसे सिर्फ कोरोना के मध्यम लक्षण वाले मरीजों तक ही सीमित कर दिया था। यही नहीं लक्षण आने के सात दिन बाद इस थेरेपी की मनाही थी।