क्विक अलर्ट के लिए
नोटिफिकेशन ऑन करें  
For Daily Alerts
Oneindia App Download

पूरा नाम लिखने की परंपरा सिर्फ़ आंबेडकर के लिए क्यों: मायावती

उत्तर प्रदेश के राज्यपाल राम नाइक की सलाह पर राज्य सरकार ने एक क़दम आगे बढ़कर अमल किया, लेकिन भीमराव आंबेडकर का जो पूरा नाम उसने ढूंढ़ कर निकाला, वो अब भारी पड़ता दिख रहा है.

राज्यपाल राम नाइक ने तो सिर्फ़ बाबा साहब के नाम की वर्तनी और उच्चारण को सही करने की सलाह दी थी लेकिन सरकार ने संविधान की आठवीं अनुसूची में दर्ज उनके 

By BBC News हिन्दी
Google Oneindia News
राम नाइक और योगी आदित्यनाथ
AFP
राम नाइक और योगी आदित्यनाथ

उत्तर प्रदेश के राज्यपाल राम नाइक की सलाह पर राज्य सरकार ने एक क़दम आगे बढ़कर अमल किया, लेकिन भीमराव आंबेडकर का जो पूरा नाम उसने ढूंढ़ कर निकाला, वो अब भारी पड़ता दिख रहा है.

राज्यपाल राम नाइक ने तो सिर्फ़ बाबा साहब के नाम की वर्तनी और उच्चारण को सही करने की सलाह दी थी लेकिन सरकार ने संविधान की आठवीं अनुसूची में दर्ज उनके हस्ताक्षर से उनका पूरा नाम भीमराव रामजी आंबेडकर ढूंढ़ निकाला और फिर सरकारी तौर पर यही नाम इस्तेमाल करने का शासनादेश जारी कर दिया. ये सरकार को भी पता था कि उसके फ़ैसले की राजनीतिक व्याख्या होनी तय है और ऐसा ही हुआ भी.

सबसे पहले समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव ने इस फ़ैसले पर टिप्पणी दी और इसी बहाने मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को पूरा संविधान पढ़ने की सलाह दे डाली तो गुरुवार शाम को बहुजन समाज पार्टी की नेता मायावती विस्तृत प्रतिक्रिया के साथ मीडिया से रूबरू हुईं.

मायावती
Getty Images
मायावती

आदेश पर सवाल

मायावती ने प्रतिक्रिया देने में पूरा एक दिन भले ही लगा दिया लेकिन उनकी प्रतिक्रिया बेहद ग़ुस्से से भरी थी.

उनका कहना था, "भीमराव आंबेडकर को लोग आदर से बाबा साहब कहकर बुलाते हैं और सरकारी दस्तावेजों में उनका नाम भीमराव आंबेडकर ही है. यदि पूरा नाम लिखने की परंपरा की बात की जा रही है तो पहले महात्मा गांधी का नाम हर जगह मोहनदास करमचंद गांधी लिखा जाए और यह भी सुनिश्चित किया जाए कि क्या सभी सरकारी दस्तावेजों में प्रधानमंत्री का नाम नरेंद्र दामोदरदास मोदी ही लिखा जाता है?"

दरअसल, महाराष्ट्र में नाम के साथ पिता का भी नाम जोड़ने की परंपरा रही है और इसी वजह से कुछ जगहों पर भीमराव आंबेडकर के नाम के साथ उनके पिता का नाम जुड़ा रहता है, लेकिन यह परंपरा ही है, अनिवार्यता नहीं.

मायावती ही नहीं बल्कि भीमराव आंबेडकर के पोतों ने भी सरकार के इस फ़ैसले पर हैरानी और आपत्ति जताई है.

मायावती ने ऐसा क्या कह दिया कि मोदी-शाह की नींद उड़ जाएगी?

डा. बीआर आंबेडकर की तस्वीरें
Getty Images
डा. बीआर आंबेडकर की तस्वीरें

बीजेपी में विरोध के सुर!

राजनीतिक हलकों में चर्चा ये है कि इसके ज़रिए दलितों को ये संदेश दिया जाए कि उनके आराध्य बाबा साहब के पिता का नाम भी हिंदुत्व परंपरा से जुड़ा है.

लखनऊ में हिन्दुस्तान टाइम्स की संपादक सुनीता ऐरन कहती हैं, "निश्चित तौर पर इस फ़ैसले के राजनीतिक निहितार्थ हैं. बीजेपी दलितों को ये बताना चाहती है कि ख़ुद बाबा साहब के पिता की जड़ें हिंदुत्व से कितने गहरे तक जुड़ी थीं. दलितों में एक बड़ी आबादी अभी ठीक से शिक्षित भी नहीं है और उस आबादी तक ये संदेश शायद आसानी से दिया जा सकता है."

विपक्षी दलों ने सरकार के इस क़दम को जहां बेतुका और राजनीतिक लाभ लेने वाला बताया है वहीं अब भारतीय जनता पार्टी के भीतर से भी विरोध के स्वर काफी मुखर हो रहे हैं. बीजेपी सांसद उदित राज तो सीधे तौर पर इसे बेमतलब का फ़ैसला क़रार देते हैं.

बीबीसी से बातचीत में उदितराज कहते हैं, "महाराष्ट्र की परंपरा की यदि बात की जाए तो शरद पवार, देवेंद्र फ़डणवीस जैसे लोग अपने नाम में पिता का नाम क्यों नहीं लगाते?"

'आरक्षित सीटों से आने वाले नेता निकम्मे साबित हुए हैं'

डा. बीआर आंबेडकर की मूर्ति
Getty Images
डा. बीआर आंबेडकर की मूर्ति

सोशल मीडिया में चर्चा

सुनीता ऐरन कहती हैं कि बीजेपी सरकारें हर चीज़ को बदलने में काफी विश्वास रखती हैं, चाहे वो किसी जगह या सड़क या इमारत का नाम हो या फिर इतिहास. उनके मुताबिक ये फ़ैसला भी इसी मानसिकता से संबंध रखता है.

वहीं, बीएसपी नेता मायावती राज्य की बीजेपी सरकार के इस फ़ैसले के पीछे ये वजह बताती हैं, "लाख कोशिशों के बावजूद भाजपा और आरएसएस के लोग इस स्तर का कोई नेता पैदा नहीं कर पाए तो अब ये लोग बाबा साहब पर अपना हक़ जताने की नाकाम कोशिश कर रहे हैं."

वहीं, सोशल मीडिया पर भी इस बात की काफी चर्चा है कि पूरा नाम लिखने की परंपरा और बोलचाल में किसी का नाम कुछ और होना, दोनों अलग बाते हैं. सोशल मीडिया पर भी लोग उसी तरह महात्मा गांधी, नरेंद्र मोदी और कुछ अन्य नेताओं के पूरे नाम सरकारी तौर पर न लिए जाने का ज़िक्र कर रहे हैं तो उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री आदित्यनाथ योगी का असली नाम सरकारी दस्तावेज़ में क्यों नहीं है, ये सवाल भी उठाए जा रहे हैं.

यूपी सरकार के प्रमुख सचिव सामान्य प्रशासन जितेंद्र कुमार की ओर से जारी इस शासनादेश की प्रति उच्च न्यायालय के निबंधक को भी भेजी गई है. जानकारों की मानें तो हर सरकारी दफ़्तर में एक अप्रैल से आंबेडकर की तस्वीर लगाने और उनका नाम सही करने का काम 14 अप्रैल यानी बाबा साहब भीमराव आंबेडकर के जन्म दिन तक पूरा करने की कोशिश होगी, लेकिन अहम सवाल ये है कि इसके पीछे यदि कोई राजनीतिक मक़सद छिपा है तो वो आगे क्या गुल खिलाएगा?

बुआ-भतीजा साथ आए, लोहिया-आंबेडकर ऐसे चूक गए थे

आंबेडकर का जाति विनाश और हेडगेवार की समरसता

BBC Hindi
Comments
देश-दुनिया की ताज़ा ख़बरों से अपडेट रहने के लिए Oneindia Hindi के फेसबुक पेज को लाइक करें
English summary
Why the tradition of writing the full name is only for Ambedkar Mayawati
तुरंत पाएं न्यूज अपडेट
Enable
x
Notification Settings X
Time Settings
Done
Clear Notification X
Do you want to clear all the notifications from your inbox?
Settings X
X