जब बड़े फैसले ‘वो’ ले रहे हैं तो फिर सोनिया गांधी को पूर्णकालिक अध्यक्ष क्यों मानें ?
मुझे ही पूर्णकालिक अध्यक्ष समझिए, कांग्रेस कार्यसमिति की बैठक में सोनिया गांधी ने ऐसा क्यों कहा ? समझने समझाने की नौबत क्यों आ गयी ? वे कार्यकारी अध्यक्ष हैं। फिर भी खुद को पूर्णकालिक अध्यक्ष समझने की अपील कर रही हैं। आखिर क्यों ? क्या वे खुद को शीर्ष पर दिखा कर संकटग्रस्त कांग्रेस को बचाना चाहती हैं ? जब पार्टी नेतृत्व सवालों के घेरे में है तब सोनिया गांधी ऐसी बात क्यों कह रही है ?
फैसला तो ‘वो' ले रहे हैं
कांग्रेस के असंतुष्ट नेता सोनिया गांधी के इस बयान को बेतुका मान रहे हैं। उनका कहना है, "उन्हें क्यों पूर्णकालिक अध्यक्ष समझा जाना चाहिए ? फैसले तो दूसरे लोग ले रहे हैं। पार्टी का कोई निर्वाचित अध्यक्ष नहीं है। दूर बैठे लोग फैसले ले रहे हैं। जब दूसरे लोग फैसले ले रहे हैं तो उन्हें किस हिसाब से फुलटाइम प्रेसिडेंट मान लेना चाहिए। इस सोच की वजह से ही कांग्रेस की स्थिति खराब हो रही है।" हाल के पंजाब घटना क्रम पर गौर करें। कांग्रेस सूत्रों के मुताबिक, जब पंजाब में नवजोत सिद्धू और अमरिंदर सिंह के बीच लड़ाई चल रही थी तब प्रियंका गांधी ने नवजोत सिद्धू का पक्ष लिया। प्रियंका ने ही नवजोत सिद्धू को कांग्रेस अध्यक्ष बनाने के लिए दबाव बनाया। सोनिया गांधी अपने पुराने रिश्ते की वजह से अमरिंदर सिंह को सीएम बनाये रखना चाहती थीं। लेकिन राहुल गांधी इसके लिए तैयार नहीं थे। उनका मानना था कि अगर पंजाब में दलित सिख कार्ड खेल दिया जाय तो 2022 के चुनाव में कांग्रेस को फायदा मिलेगा। सोनिया गांधी की राय को दरकिनार कर दिया गया। राहुल गांधी ने दलित कार्ड खेल कर चरणजीत सिंह चन्नी को मुख्यमंत्री बनवा दिया। अब ऐसे में कोई सोनिया गांधी को क्यों पूर्णकालिक अध्यक्ष मानेगा ?
राहुल गांधी के पास कोई पद नहीं, फिर भी वही ले रहे फैसले
क्या कांग्रेस पार्टी कोई जागीर है ? राहुल गांधी किसी पद पर नहीं है फिर भी सारे फैसले वही ले रहे हैं। राहुल गांधी ने 2019 में हार की नैतिक जिम्मेवारी लेकर ही कांग्रेस अध्यक्ष पद से इस्तीफा दिया था। जब नैतिकता के लिए पद छोड़ दिया तो फिर उसके अधिकार का उपभोग क्यों कर रहे हैं ? यह तो अनैतिक है। जी-23 के असंतुष्ट नेताओं का कहना है कि वे सोनिया गांधी का सम्मान करते हैं। लेकिन पार्टी के भविष्य के लिए अब डायनेमिक लीडरशिप के बारे में सोचना होगा। असंतुष्ट नेता परोक्ष रूप से राहुल गांधी की नेतृत्व क्षमता पर ही सवाल उठाते रहे हैं। शनिवार को सम्पन्न हुई कांग्रेस कार्यसमिति की बैठक में एक बार फिर राहुल गांधी को ही अध्यक्ष बनाये जाने की जमीन तैयार की गयी। उन्होंने इस प्रस्ताव पर विचार करने का भरोसा दिया है। फिर तो बात वहीं पहुंच गयी जहां खत्म हुई थी। अगर राहुल गांधी को अध्यक्ष बनना ही था तो फिर उन्होंने दो साल तक पार्टी को अधर में क्यों लटकाये रखा ?
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2022 और 2024 के लिए क्या होगी प्रियंका गांधी की भूमिका ?
क्या नरेन्द्र मोदी को जवाब देने के लिए कांग्रेस हिंदुत्व का सहारा लेगी ? हाल ही में प्रियंका गांधी उत्तर प्रदेश के दौरे पर थीं। बनारस में उनकी एक तस्वीर खूब चर्चा में रही। काशी विश्वनाथ मंदिर में पूजा अर्चना के बाद उन्होंने रैली की। माथे पर त्रिपुंड तिलक लगाये प्रियंका गांधी ने जनसभा में नरेन्द्र मोदी पर जम कर हमला बोला। उन्होंने गंगा तट पर आरती भी की। उनका यह हिंदूवादी चेहरा कांग्रेस के नये इरादों की तरफ संकेत कर रहा था। इसके पहले प्रियंका ने अपनी पुत्री के साथ प्रयाग राज में संगम तट पर पूजा की थी। वे मंदिर, मंदिर घूम रही हैं। कांग्रेस जानबूझ प्रियंका की हिंदूवादी छवि को उभार रही है। कांग्रेस के कई नेता पिछले कई वर्षों से दुर्गापूजा में नौ दिनों का उपवास रखते रहे हैं। लेकिन पार्टी ने इसके लिए कभी भी आधिकारिक बयान देने की जरूरत नहीं समझी। लेकिन इस बार कांग्रेस की तरफ से बताया गया कि प्रियंका नवरात्र का व्रत कर रही हैं और वे नौ दिनों तक फलाहार पर रहेंगी। जाहिर यह सब प्रियंका गांधी की हिंदूवादी छवि को गढ़ने के लिए किया जा रहा है। नरेन्द्र मोदी के हिंदुत्व को जवाब देने के लिए कांग्रेस भी उसी रास्ते पर चल पड़ी है। कांग्रेस के रणनीतिकार यह मानते हैं कि प्रियंका की यह छवि 2022 और 2024 के चुनाव में मददगार साबित होगी।
जब तक हार होती रहेगी, सवाल उठते रहेंगे
जब किसी दल को जीत मिलती है तो उसकी सारी कमियां छिप जाती हैं। लेकिन जैसे ही हार मिलती है उसकी एक-एक खामियां बेपर्दा हो जाती हैं। दल का नेता सवालों के घेरे में आ जाता है। आज कांग्रेस नेतृत्व पर इसलिए सवाल उठ रहे हैं क्यों की पार्टी को लगातार चुनावी हार का सामना करना पड़ रहा है। राहुल-प्रियंका के हस्तक्षेप से पंजाब में जो बदलाव किये गये हैं उसकी सफलता या असफलता चुनाव के नतीजों पर निर्भर करती है। अगले साल जिन पांच राज्यों में चुनाव होने वाले हैं उनमें सिर्फ पंजाब में ही कांग्रेस की सरकार है। इसलिए पंजाब, कांग्रेस के लिए सबसे अहम राज्य है। कांग्रेस ने कैप्टन अमरिंदर सिंह जैसे अनुभवी नेता को हटा कर बहुत बड़ा जोखिम लिया है। पंजाब, गोवा, मणिपुर और उत्तराखंड में विधानसभा का कार्यकाल मार्च 2022 तक है। उत्तर प्रदेश विधानसभा का कार्यकाल 14 मई 2022 तक है। 2017 में कांग्रेस नेतृत्व की इसलिए आलोचना हुई थी कि गोवा में सबसे अधिक विधायक चुने जाने के बाद भी पार्टी सरकार नहीं बना सकी थी। नेतृत्व की कार्यकुशलता इस बात से आंकी जाती है कि वह विपरीत परिस्थितियों में वह किस सूझबूझ से काम करता है। अगर सोनिया गांधी सचमुच पूर्णकालिक अध्यक्ष जैसी हैं तो उनकी योग्यता भी चुनावी कसौटी पर ही परखी जाएगी।