जानिए, क्यों समाजवादी पार्टी की पहली लिस्ट देखकर बीजेपी के चेहरे 'कमल' जैसे खिलेंगे?
नई दिल्ली- समाजवादी पार्टी की पहली लिस्ट देखकर टिकट मिलने वाले 6 उम्मीदवारों के बाद शायद सबसे ज्यादा बीजेपी मन ही मन गुदगुदा रही होगी। इस लिस्ट से एसपी ने अपनी सबसे बड़ी विरोधी के हाथ कुछ ऐसे मुद्दे थमा दिए हैं, जिससे उसे बुआ और बबुआ के खिलाफ चुनावी लड़ाई को अपने पक्ष में हवा देने में मदद मिलेगी।
'परिवारवाद' के मुद्दे से बीजेपी में जगेगी आस
एसपी ने जिन 6 उम्मीदवार की पहली लिस्ट जारी की है, उनमें से आधी मुलायम के अपने कुनबे की है। इसमें मुलायम सिंह यादव को मैनपुरी, धर्मेंद्र यादव को बदायूं और अक्षय यादव को फिरोजाबाद से टिकट दिया गया है। जाहिर है कि इससे बीजेपी के लिए परिवारवाद को मुद्दा बनाना बेहद आसान होगा। कांग्रेस और गांधी परिवार तो वैसे भी उसके निशाने पर रहता है, लेकिन इससे उसे बबुआ और बुआ के गठबंधन को भी घेरने का बढ़िया मौका मिल गया है।
मुलायम गए बेटे के साथ, भाई को किया उदास
अब यह तय हो चुका है कि मुलायम ने टिकट के लिए भाई के बदले बेटे के साथ जाने का फैसला कर लिया है। जबकि, पहले वे पार्टी पर रामगोपाल यादव और अखिलेश यादव के कब्जे से बौखलाकर छोटे भाई शिवपाल के साथ अन्याय होने की बात कह रहे थे। उन्होंने लोहिया का हवाला देकर यहां तक कहा था कि अगर भाई से भाई अन्याय करता है, तो उसका भी विरोध होना चाहिए। कभी भी अन्याय का साथ नहीं देना चाहिए। पिछले साल दिसंबर में उन्होंने अपने छोटे भाई और प्रगतिशील समाजवादी पार्टी-लोहिया के नेता शिवपाल यादव के साथ जनाक्रोश रैली में मंच भी साझा किया था। जाहिर है कि मुलायम के इस बदले रवैये को बीजेपी अपने पक्ष में भुनाने की कोशिश कर सकती है। यूपी में यादवों के एक वर्ग में आज भी शिवपाल यादव का प्रभाव है और अगर उनके साथ वो अघोषित समझौता भी कर लेती है, तो महागठबंधन की मुश्किलें बढ़ भी सकती हैं।
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बदायूं की लड़ाई ने बीजेपी का बढ़ाया स्वाद
बदायूं लोकसभा सीट पर कांग्रेस और समाजवादी पार्टी की ओर से उम्मीदवारों की घोषणा ने यूपी की सियासी फिजा को दिलचस्प बना दिया है। महागठबंधन की दोनों ही पार्टियों ने यानी बीएसपी और एसपी ने गांधी परिवार की दोनों ही सीटों पर अपने उम्मीदवार नहीं उतारने का ऐलान किया है। यह आज की बात नहीं है, हमेशा से दोनों दल अमेठी और रायबरेली लोकसभा सीट पर चुनाव लड़ने से सख्त परहेज करते हैं। इसके पीछे की वजहों में उतरने की बजाय फिलहाल ये देखना ज्यादा जरूरी है कि बदले में कांग्रेस ने उनके परिवार के प्रति वो दरियादिली नहीं दिखाई है।
बल्कि, दो कदम आगे बढ़कर वहां सलीम इकबाल शेरवानी के रूप में मुस्लिम चेहरे को उतार दिया है। यानी इस सीट पर यादवों और मुस्लिमों के बीच चुनावी संघर्ष होना तय माना जा रहा है। हालांकि, ये सीट हिंदू बहुल है, लेकिन करीब साढ़े 21 प्रतिशत मुस्लिम आबादी का भी यहां बहुत बड़ा रोल रहता है। जाहिर है कि ऐसे में बीजेपी गैर-यादव और गैर-मुस्लिम वोटों को अपने पक्ष में करने के लिए पूरा जोर लगा देगी।
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