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घाटी में कभी आतंकवाद को नियंत्रित नहीं कर सकता है मुफ्ती खानदान, जानिए क्‍यों

जम्‍मू कश्‍मीर में बीजेपी-पीडीपी गठबंधन टूट गया है। राज्‍य में साल 2015 में बीजेपी-पीडीपी के गठबंधन वाली सरकार बनी थी। मंगलवार को बीजेपी ने महबूबा मुफ्ती से समर्थन वापस ले लिया। बीजेपी के जम्‍मू कश्‍मीर प्रभारी राम माधव का कहना है कि घाटी में आतंकवाद, हिंसा और चरमपंथ काफी बढ़ गया है।

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श्रीनगर। जम्‍मू कश्‍मीर में बीजेपी-पीडीपी गठबंधन टूट गया है। राज्‍य में साल 2015 में बीजेपी-पीडीपी के गठबंधन वाली सरकार बनी थी। मंगलवार को बीजेपी ने महबूबा मुफ्ती से समर्थन वापस ले लिया। बीजेपी के जम्‍मू कश्‍मीर प्रभारी राम माधव का कहना है कि घाटी में आतंकवाद, हिंसा और चरमपंथ काफी बढ़ गया है। साथ ही नागरिकों के मौलिक अधिकार भी खतरे में हैं और हाल ही में हुई शुजात बुखारी की हत्‍या इसका उदाहरण है। जिस समय यह सरकार बन रही थी, उस समय ही इस बात अंदेशा हो गया था कि राज्‍य में सुरक्षा व्‍यवस्‍था काफी बिगड़ सकती है। कई लोगों ने तो बीजेपी के इस फैसले पर हैरानी भी जताई थी। ये लोग वे लोग थे जिन्‍होंने सन 1989 का वह दौर देखा था जब महबूबा मुफ्ती की बहन डॉक्‍टर रूबइय्या सईद को रिहा कराने के लिए केंद्र सरकार ने पांच आतं‍कियों को छोड़ने का फैसला किया था। आज भी लोग उस एक घटना को घाटी की खराब हालत का दोषी मानते हैं।

आठ दिसंबर 1989 से हुई शुरुआत

आठ दिसंबर 1989 से हुई शुरुआत

साल 2014 में जब जम्‍मू कश्‍मीर में विधानसभा चुनाव हो रहे थे तो उसी समय कश्‍मीर घाटी में मौजूद आतंकवाद और चरमपंथ ने भी अपने 25 वर्ष पूरे कर लिए थे। पिछले चार वर्षों में घाटी में आतंकी हमलों की जैसे बाढ़ आ गई है। एक के बाद एक होते आतंकी हमलों से घाटी सहम गई है। इन सबकी शुरुआत आठ दिसंबर 1989 को हुई जब उस समय के गृहमंत्री और राज्‍य के मुख्‍यमंत्री रहे दिवंगत मुफ्ती मोहम्‍मद सईद की बेटी डॉक्‍टर रुबइय्या सईद को आतंकियों ने किडनैप कर लिया। इस घटना के बाद घाटी का नजारा मानों बदल सा गया। बर्फ से ढंकी और चिनार से सजी घाटी की वादियां देखते ही देखते खून से लाल होने लगी। निर्दोष जानें गईं और सुरक्षाबलों ने भी अपने कई बहादुरों को खो दिया।

क्‍या हुआ था 8 दिसंबर 1989 को

क्‍या हुआ था 8 दिसंबर 1989 को

2 दिसंबर 1989 को केंद्र में वीपी सिंह की सरकार बनी और उसमें मुफ्ती मोहम्‍मद सईद को गृह मंत्रालय सौंपा गया। मुफ्ती मोहम्‍मद सईद को उस समय देश के पहले मुसलमान गृहमंत्री होने का गौरव भी हासिल हुआ था। सईद की बेटी रुबइय्या की उम्र उस समय 23 वर्ष की थी और वह एक मेडिकल की स्‍टूडेंट थीं और लाल देद मेमोरियल वुमेंस हॉस्पिटल में इंटर्नशिप कर रही थीं। आठ दिसंबर 1989 को शाम करीब 3:45 मिनट पर रुबइय्या नौगाम स्थित हास्टिपल की बस से अपने घर वापस लौट रही थीं। उनके घर से सिर्फ 500 मीटर की दूरी पर आतंकियों ने उनका अपहरण कर लिया। एक मारुति वैन में उन्‍हें लेकर आतंकी फरार हो गए।

यासीन मलिक ने रची साजिश

यासीन मलिक ने रची साजिश

पाकिस्‍तान से आने वाले आतंकियों ने यूं तो 1988 से ही हरकतें तेज कर दी थीं। पड़ोसी मुल्‍क ने कश्‍मीर के रहने वाले लोगों को बहलाना, फुसलाना शुरू किया और उनका ब्रेनवॉश करने में कोई कसर नहीं छोड़ी। आज जो यासीन मलिक जेकेएलएफ के नेता बनकर लश्‍कर-ए-तैयबा के चीफ हाफिज सईद से मिलने पाकिस्‍तान तक पहुंच जाता है, उसी जेकेएलएफ ने एक ऐसी साजिश को अंजाम दे डाला, जिसके बारे में कभी सोचा नहीं गया था।

जेकेएलएफ के आतंकियों की रिहाई की मांग

जेकेएलएफ के आतंकियों की रिहाई की मांग

कश्‍मीर टाइम्‍स को किया गया फोन जेकेएलएफ के प्रतिनिधियों की ओर से कश्‍मीर के मशहूर लोकल न्‍यूजपेपर कश्‍मीर टाइम्‍स को शाम करीब 5:30 बजे फोन कर जानकारी दी गई कि एक ग्रुप मुजाहिद्दीन ने डॉक्‍टर रुबया सईद का अपहरण कर लिया है। जब तक सरकार जेकेएलफए के एरिया कमांडर शेख अब्‍दुल हमीद, गुलाम नबी बट, नूर मुहम्‍मद कलवाल, मुहम्‍मद अल्‍ताफ और जावेद अहमद जरगार को रि‍हा नहीं करेगी, तब तक उसे छोड़ा नहीं जाएगा। न्‍यूजपेपर के एडीटर मुहम्‍मद सोफी ने गृहमंत्री को फोन किया और फिर केंद सरकार को इस बात की इत्तिला हुई।

फारूख अब्‍दुल्‍ला लंदन से लौटे वापस

फारूख अब्‍दुल्‍ला लंदन से लौटे वापस

मुख्‍यमंत्री फारुख अब्‍दुल्‍ला लंदन में छुट्टियां मना रहे थे तुरंत भारत लौटे। आईबी के वरिष्‍ठ अधिकारी के साथ ही नेशनल सिक्‍योरिटी गार्ड्स के डायरेक्‍टर जनरल वेद मारवाह श्रीनगर पहुंचे। कश्‍मीर टाइम्‍स के जफर मेराज के जरिए आतंकियों के साथ समझौते की बात शुरू हुई। लेकिन जब बात बनती नजर नहीं आई तो इलाहाबाद हाई कोर्ट के जज मोती लाल भट्ट को इसमें शामिल किया गया। वह मुफ्ती मोहम्‍मद सईद के दोस्‍त थे और उन्‍होंने आतंकवादियों के साथ सीधा संवाद शुरू किया। किडनैपिंग की खबर को न्‍यूयॉर्क टाइम्‍स से लेकर कई प्रमुखों अखबारों ने अपनी सुर्खियां बनाया था।

13 दिसंबर को हुई रिहाई

13 दिसंबर को हुई रिहाई

13 दिसंबर 1989 को दो कैबिनेट मंत्री आईके गुजराल और आरिफ मोहम्‍मद खान श्रीनगर पहुंचे। फारुख अब्‍दुल्‍ला आतंकियों की रिहाई के सख्‍त खिलाफ थे। वह मानते थे कि अगर सरकार ने आतंकियों को छोड़ा तो घाटी में इस तरह की वारदातों के जरिए आतंकी अपनी मांग मनवाने लगेंगे और नतीजे काफी भयानक हो सकते हैं। वीपी सिंह कोई भी कड़ा फैसला नहीं ले सके और शाम सात बजे रुबइय्या को छोड़ दिया गया। उनकी रिहाई जेल में बंद पांच आतंकियों की रिहाई के दो घंटे बाद ही हो गई थी।

आतंकवाद का नया दौर

आतंकवाद का नया दौर

इस अपहरण कांड के बाद 1990 से लेकर 1998 तक घाटी ने चरमपंथ और आतंकवाद का एक नया दौर देखा। यूनाइटेड नेशंस की एक रिपोर्ट के मुताबिक दो दशकों में घाटी में 60,000 से ज्‍यादा लोग मारे जा चुके हैं। इनमें से 21,323 आतंकी मारे गए। 13,226 लोगों की हत्‍या आतंकियों के द्वारा हुई 3,642 नागरिक सुरक्षा बलों की कार्रवाई में मारे गए 5,369 सुरक्षा बलों और पुलिस के जवान आतंकियों की कार्रवाई में शहीद हुए।

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English summary
Even after more than 27 years of Rubaiys Saeed's kidnapping, experts still feel that the episode had given moral support to terrorists for entire Jammu Kashmir valley.
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