हाथ खड़े करके भी महाराष्ट्र में सत्ता के खेल से क्यों अभी भी बाहर नहीं हुई है भाजपा ?
नई दिल्ली- महाराष्ट्र में नई सरकार बनाने के लिए गवर्नर भगत सिंह कोश्यारी से मिले बुलावे पर भारतीय जनता पार्टी ने भले ही शिवसेना का साथ नहीं मिलने की वजह से हाथ खड़े कर दिए हों। लेकिन, बीजेपी ने उम्मीद का दामन पूरी तरह से अभी भी छोड़ा नहीं है। खासकर के जिस तरह से वहां सोमवार को राजनीतिक समीकरण तेजी से बदले और शिवसेना गवर्नर से मिले समय में भी कांग्रेस और एनसीपी का समर्थन जुटा नहीं सकी, उससे भाजपा नेताओं का भरोसा और बढ़ गया है। पार्टी मान चुकी है कि अभी न सही, लेकिन बहुत जल्द ही बाजी पलटेगी और वह फिर से अपनी सरकार बनाने में कामयाब हो जाएगी।
खेल से बाहर नहीं हुई है भाजपा- पहली वजह
जिस तरह से पिछले करीब दो हफ्तों से शिवसेना बगैर बीजेपी के भी 170-175 विधायकों के समर्थन के दावे कर रही थी, लेकिन राज्यपाल से मिले 24 घंटे में भी वह कांग्रेस और एनसीपी का समर्थन पत्र गवर्नर को सौंप नहीं पाई, उससे साफ है की बीजेपी अभी भी सीन से पूरी तरह गायब नहीं हुई है। सोमवार को शिवसेना समर्थन पत्र के लिए कांग्रेस और एनसीपी के पीछे भागम-भाग करती रही और मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस के अवास वर्षा पर पार्टी कोर कमेटी के नेता सुबह से लेकर देर शाम तक सेना कैंप और विपक्षी खेमे की गतिविधियों का करीब से आकलन करने में जुटे रहे। बाद में भाजपा के वरिष्ठ नेता सुधीर मुनगंटीवार ने कहा, 'महराष्ट्र में बदलते राजनीतिक घटनाक्रम पर हम करीबी निगाह रख रहे हैं। हम सही वक्त पर फैसला लेंगे और अपना स्टैंड साफ करेंगे। तब तक हमें इंतजार करना है......' यानि, बीजेपी मानकर चल रही है कि महाराष्ट्र में उसके लिए सबकुछ खत्म नहीं हुआ है।
खेल से बाहर नहीं हुई है भाजपा- दूसरी वजह
पार्टी के अंदरूनी सूत्रों का कहना है कि बीजेपी राज्यपाल की ओर से सभी विकल्प को खंगालने के बाद राष्ट्रपति शासन के इंतजार में बैठी है। इसकी वजह ये है कि पार्टी मानकर चल रही है कि कांग्रेस, शिवेसना की सरकार को समर्थन नहीं देगी। अगर ऐसी स्थिति पैदा होती है तब भाजपा, एनसीपी के समर्थन से या शिवसेना या कांग्रेस के कुछ विधायकों की मदद से जरूरी आंकड़े जुगाड़ने का प्रयास कर सकती है। जब आखिरी वक्त तक भी सोमवार को कांग्रेस ने शिवसेना के समर्थन में पत्र नहीं लिखा तो एक वरिष्ठ भाजपा नेता ने कहा, 'हमारी पार्टी के नेतृत्व को यकीन था कि कांग्रेस शिवसेना सरकार को समर्थन नहीं देगी। अगर किसी की सरकार नहीं बनी तो राष्ट्रपति शासन लगेगा......बदलते राजनीतिक हालात में हमारी सरकार बनाने के लिए सभी अदल-बदल और गठबंधन की संभावनाओं की तलाश की जाएगी। अगर वे (एनसीपी-कांग्रेस-शिवसेना) सरकार बनाते भी हैं तो हमें लगता है कि वो सरकार एक साल से ज्यादा नहीं चलेगी। '
खेल से बाहर नहीं हुई है भाजपा- तीसरी वजह
हालांकि, अभी तक एक बात साफ नजर आ रही है कि बीजेपी से गठबंधन शिवसेना ने तोड़ा है, लेकिन भाजपा अब उसे फिर से साथ लेने की सारी संभावनाएं खत्म कर चुकी है। पार्टी सूत्रों के मुताबिक अब पुराने सहयोगी से संवाद की शुरुआत की कोई संभावना नहीं बची है और उसके लिए एनडीए का दरवाजा बंद हो चुका है। बीजेपी को ये भी भरोसा है कि शिवसेना ने जिस तरह से उसके साथ रोल निभाया है, उससे पार्टी का एक वर्ग मातोश्री से खुश नहीं है। खासकर केंद्र सरकार से पार्टी कोटे के मंत्री अरविंद सामंत के इस्तीफे के बाद जिस तरह से कांग्रेस और एनसीपी ने सत्ता के लिए तोलमोल शुरू किया है, उससे वे ठगा महसूस कर रहे हैं। ऐसे में बीजेपी नेतृत्व को उम्मीद है कि शिवसेना के ऐसे विधायक आज न कल नया विकल्प जरूर तलाशेंगे। बीजेपी की ओर से पहले से ही दावा किया जा रहा है कि शिवसेना के 25 विधायक लगातार उसके साथ संपर्क में हैं।