भारत में गर्मी से जीना क्यों होता जा रहा है मुश्किल?- दुनिया जहान
भारतीय उपमहाद्वीप ने इस बार रिकॉर्ड तोड़ गर्मी का सामना किया. हीट वेव की वजह से कई लोगों की मौत हो गई और फसलों को भी नुक़सान हुआ. क्या है इसकी वजह, पढ़िए
भारत को इस साल गर्मी के मौसम ने एक तरह से झुलसा दिया. गर्मी के पिछले सभी रिकॉर्ड टूटते नज़र आए.
मई में कई जगह तापमान 47 डिग्री सेल्सियस तक पहुंच गया और कुछ जगह इससे भी ऊपर निकल गया. अनुमान है कि 'हीट वेव' यानी लू के थपेड़ों की वजह से भारत और पाकिस्तान में कम से कम 90 लोगों की मौत हो गई.
जंगलों में आग लगने की घटनाएं सामने आईं. गेहूं की फसल को भी नुक़सान हुआ. रिकॉर्ड तोड़ गर्मी के लिए 'ग्लोबल वार्मिंग' को ज़िम्मेदार बताया गया.
भारत सरकार चाहती है कि मौसम की प्रतिकूल परिस्थितियों से मुक़ाबले की तैयारी में अमीर देश मदद करें जिससे 'वार्निंग सिस्टम' बनाया जा सके और आधारभूत ढांचे और फ़सलों को हुए नुक़सान की भरपाई हो सके.
इस बीच ये सवाल भी उठा कि क्या भारत में गर्मी की वजह से रहना मुश्किल होता जा रहा है?
इस सवाल के जवाब के लिए बीबीसी ने चार एक्सपर्ट्स से बात की.
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मानसून और चक्रवात
भारतीय उपमहाद्वीप भूमध्य रेखा के उत्तर में हैं. बंगाल की खाड़ी, हिंद महासागर और अरब सागर इसे घेरे हुए हैं.
मौसम विज्ञानी डॉक्टर रॉक्सी मैथ्यू कोल कहते हैं, "अगर आप किसी ग्लोब या नक्शे में देखें तो पाएंगे कि ये (भारतीय उपमहाद्वीप) तीनों तरफ से पानी से घिरा है."
डॉक्टर रॉक्सी पुणे स्थित इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ़ ट्रॉपिकल मीटियोरोलॉजी में मौसम विज्ञानी हैं.
भारत के उत्तर में एशिया की सबसे बड़ी पर्वत श्रृंखला है. पांच देशों में करीब ढाई हज़ार किलोमीटर तक फैले हिमालय की कई चोटियां सात हज़ार मीटर से ऊंचीं हैं.
भौगोलिक स्थिति के ये दो प्रमुख पहलू यानी पानी और पहाड़ ही भारत की जलवायु तय करते हैं.
भारत में सर्दियों के दौरान तापमान 20 डिग्री सेंटीग्रेड के करीब रहता है. लेकिन सूर्य के उत्तरायण होने के बाद मार्च से मई तक गर्मी बेतहाशा बढ़ जाती है. तापमान 40 डिग्री सेल्सियस या उससे ज़्यादा हो जाता है.
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डॉक्टर रॉक्सी कहते हैं कि देश के कुछ क्षेत्रों में गर्मी की वजह सिर्फ़ अधिक तापमान नहीं बल्कि ह्यूमिडिटी भी होती है. वो कहते हैं कि अगर हवा गर्म हो और उसमें नमी भी रहे तो शरीर से पसीना निकलना बंद हो सकता है. ऐसे में शरीर तापमान को संतुलित नहीं रख पाता और कई दिक्कतें हो सकती हैं.
गर्मियों में समुद्र का पानी भी गर्म हो जाता है. गर्म हवा नमी लेकर उत्तर की तरफ बढ़ती है. हिमालय पहुंचकर हवा अटक जाती है और मई के अंत तक मौसम बदलने लगता है.
डॉक्टर रॉक्सी मैथ्यू कोल कहते हैं, "जून से सितंबर के दौरान हिंद महासागर से नमी लेकर चलने वाली मानसून की हवाओं के असर से भारत में बारिश होती है. दक्षिण एशिया में साल भर में होने वाली कुल बारिश की अस्सी प्रतिशत बरसात मानसून की ये हवाएं ही कराती हैं."
अगस्त के आखिर तक मानसून के बादल गायब होने लगते हैं और नवंबर आते आते देश से पूरी तरह बाहर चले जाते हैं.
डॉक्टर रॉक्सी मैथ्यू कोल बताते हैं, "अक्टूबर और नवंबर के दौरान हवा का रूख पलट जाता है. अब हवा ज़मीन से समुद्र की ओर जा रही होती है. दक्षिण एशिया में इस वक़्त भी थोड़ी बारिश होती है. लेकिन इस दौरान कुल बरसात का दस फ़ीसदी ही पानी बरसता है."
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सर्दियों में जीवन थोड़ा आसान हो जाता है लेकिन मौसम बदलने के साथ एक नया ख़तरा सामने होता है.
समंदर का पानी गर्म होने से चक्रवात की स्थिति बन जाती है. चक्रवाती हवाएं नवंबर के महीने में शिखर पर होती हैं और फिर दोबारा मई महीने में इनका चरम दिखता है. भारत का तटीय इलाक़ा करीब साढ़े सात हज़ार किलोमीटर फैला है. यहां रहने वाली आबादी इसका क़हर झेलती है.
डॉक्टर रॉक्सी कहते हैं कि भारत का चुनौती भरा मौसम उन लोगों को ज़्यादा प्रभावित करता है जिन्हें खुले में काम करना पड़ता है. जलवायु परिवर्तन ने उनके जीवन का संघर्ष कुछ और बढ़ा दिया है.
डॉक्टर रॉक्सी कहते हैं, " हिंद महासागर का पानी बहुत तेज़ी से गर्म हो रहा है. अटलांटिक और प्रशांत महासागर से तुलना की जाए तो ये सबसे तेज़ी से गर्म होने वाला समुद्र है. हिमालय के ग्लेशियर भी तेज़ी से पिघल रहे हैं. घनी आबादी वाले क्षेत्र पर इसकी वजह से बहुत दबाव बन रहा है. इनमें से ज़्यादातर जगहों पर मौसम को लेकर पहले से चेतावनी देने वाले सिस्टम नहीं हैं. क्लाइमेट चेंज यहां इसलिए भी दिक्कत की एक बड़ी वजह है."
भारत भीषण गर्मी से किस कदर जूझ रहा है, ये समझने के लिए इस बात को देखना अहम होगा कि यहां लोग इससे निपटने के लिए क्या कर रहे हैं.
जलवायु परिवर्तन का असर
इंटरनेशनल वाटर मैनेजमेंट इंस्टीट्यूट की प्रिंसिपल रिसर्चर डॉक्टर अदिति मुखर्जी बताती हैं, "एक उष्णकटिबंधीय देश होने की वजह से भारत में हमेशा से गर्म हवाएं चलती रही हैं. जलवायु परिवर्तन ने इसके असर को और बढ़ा दिया है."
अदिति बताती हैं कि भारत की जलवायु में हाल फिलहाल सबसे बड़ा अंतर ये आया है कि अब ज़्यादा तापमान वाले दिनों की संख्या बढ़ गई है. उनके मुताबिक 'हीट वेव' से प्रभावित इलाके का दायरा भी बढ़ गया है. उदाहरण के लिए इस बार उत्तरी पाकिस्तान और भारत से लेकर बांग्लादेश तक पूरा इलाका हीट वेव की चपेट में था.
यहां बरसात का पैटर्न भी बदल रहा है.
डॉक्टर अदिति मुखर्जी कहती हैं, " हम पाएंगे कि बरसात ज़्यादा हो रही है लेकिन हम देखते हैं कि थोड़े समय के दौरान ही खूब बारिश हो रही है. उसके बाद काफी दिनों तक बारिश नहीं होती है. हम जानते हैं कि मौसम गर्म होने से बारिश के पूरे चक्र पर असर हुआ है. सूखे और बाढ़ की दिक्कतें बढ़ी हैं."
भारत दुनिया में गेहूं का दूसरा सबसे बड़ा उत्पादक है. इस साल देश के कुछ हिस्सों में उपज एक तिहाई तक घट गई. डॉक्टर अदिति मुखर्जी कहती है कि इसकी वजह ये है कि गेहूं का 'पौधा जितनी गर्मी बर्दाश्त कर पाता है, इस बार तापमान उससे ज़्यादा था.'
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लेकिन, ज़्यादा परेशान करने वाली वो रिपोर्ट हैं जिनमें बताया गया है कि गर्मी की वजह से होने वाली मौतों की संख्या बढ़ी है.
डॉक्टर अदिति कहती हैं कि जब गर्मी इंसानी शरीर की बर्दाश्त के बाहर हो जाती है तो दिन के वक़्त खुले में काम करना मुश्किल हो जाता है.
हीट वेव के दौरान स्कूल भी बंद करने पड़े. दिक्कतें और भी हैं.
डॉक्टर अदिति मुखर्जी कहती हैं, " पानी भरके लाने का काम अक्सर महिलाओं और लड़कियों के जिम्मे होता है. जब ज़्यादा गर्मी की वजह से जल स्रोत सूख जाते हैं और आपके पास नल का कनेक्शन नहीं हो तो इस गर्मी में ढोकर पानी लाना पड़ता है. इससे महिलाओं और बच्चों का स्वास्थ्य प्रभावित होता है. बच्चे स्कूल नहीं जा पाते तो उनकी पढ़ाई पर असर होता है."
डॉक्टर अदिति कहती हैं कमज़ोर तबके पर गर्मी से जुड़ी दिक्कतों का असर ज़्यादा होता है.
वो बताती हैं, " हीट वेव से वो लोग ज़्यादा प्रभावित हुए जो पहले से ही मुश्किलों में घिरे हैं. खेत मजदूरों को धूप में काम करना पड़ता है. उनके पास पर्याप्त स्वास्थ्य सुविधाएं भी नहीं हैं. ऐसे घर नहीं हैं जहां उन्हें गर्मी कम लगे. शहरी इलाक़ों में सड़क पर खड़े होकर कारोबार करने वाले इसका असर झेलते हैं. मौसम से तालमेल बिठाने के लिए उन्हें अपना काम जल्दी बंद करना होता है."
डॉक्टर अदिति कहती हैं कि ऐसे लोगों को कमाई का बड़ा नुक़सान होता है. दिक्कत शहर के झुग्गी वाले इलाकों में भी होती है. वहां अक्सर पानी की सप्लाई बाधित हो जाती है.
गर्मी का मुक़ाबला
इंडियन इंस्टीट्यूट फ़ॉर ह्यूमन सेटलमेंट्स की सीनियर रिसर्चर चांदनी सिंह बताती हैं कि ख़राब मौसम का पूर्वानुमान हो तो सरकार क्या करती है?
वो कहती हैं, " लोगों को आगाह किया जाता है कि अगले कुछ दिनों या हफ़्तों में गर्मी बढ़ने वाली है. हीटवेव के दौरान लोगों को जानकारी दी जाती है कि वो खुद को कैसे ठंडा रखें. उन्हें काफी मात्रा में तरल लेने की सलाह दी जाती है. दिन के 11 बजे से शाम चार बजे तक जब दिन सबसे ज़्यादा गर्म रहता है तब घर में रहने को कहा जाता है. ये भी सलाह दी जाती है कि अगर हीट स्ट्रेस के कोई लक्षण दिखाई दें तो तुरंत किसी अस्पताल जाएं."
भारत में सदियों से कुछ दूसरे उपाय भी आजमाए जाते हैं. चांदनी सिंह बताती हैं कि लोग घर के फर्श पर पानी डालते हैं. बाहर जाते हैं तो सिर को ढककर रखते हैं या फिर छाते का इस्तेमाल करते हैं. तरह तरह के ठंडे पेय पीते हैं. इन देसी उपायों को कई पीढ़ियों से आजमाया जा रहा है. लेकिन चांदनी कहती हैं कि इन उपायों की सीमाएं हैं.
अब भवन निर्माण की शैली में बदलाव से लेकर कई दूसरे उपाय भी आजमाए जा रहे हैं.
चांदनी सिंह कहती हैं, " ये तय किया जाना चाहिए कि इमारतों में हवा आने जाने की बेहतर व्यवस्था हो. ताकि एयर कंडीशनर जैसे उपकरणों के बिना भी भवन ठंडे रह सकें. दूसरी बात प्राकृतिक तरकीबों को आजमाना है. इको सिस्टम के मुताबिक उपाय किए जाएं जैसे शहर में आप ऐसी जगह तय करें जहां हरियाली हो जिससे गर्मी में ठंडक का अहसास मिल सके."
चांदनी कहती हैं कि दिक्कत ये है कि ज़्यादातर मौकों पर इन उपायों का फ़ायदा समाज के सुविधा संपन्न लोगों को होता है. वो कहती हैं कि बदलाव की रणनीति बनाते समय ये सोच होनी चाहिए कि उसकी पहुंच सबसे कमज़ोर तबके तक भी हो.
वो कहती हैं कि गरीब तबके के उन लोगों को भी ज़्यादा दिक्कत झेलनी पड़ती है जो लोग खुले में काम करते हैं.
चांदनी सिंह बताती हैं, " केरल राज्य में लेबर कोड है जिसके मुताबिक दोपहर के वक़्त खुले में काम करने पर रोक है. ऐसी रणनीतियां मददगार तो हैं लेकिन सुरक्षा के कुछ और उपाय भी किए जाने चाहिए. ये भी हो सकता है कि निर्माणाधीन जगहों पर काम करने वालों के लिए शेड बनाए जाएं जिससे उन्हें छाया मिल सके. उनके लिए पानी की व्यवस्था की जाए. लोगों को काम न करने की सलाह देने के बजाए ऐसे उपाय मददगार हो सकते हैं."
लेकिन ये उपाय जलवायु परिवर्तन के प्रभाव को एक हद तक ही कम कर सकते हैं.
चांदनी सिंह बताती हैं, " लोग मुझसे सवाल करते रहते हैं कि सरकार क्या कर रही है? जब बहुत ज़्यादा गर्मी हो तब सरकार एक हद तक ही उपाय कर सकती है. इसलिए हमें असर कम करने को लेकर बात करनी चाहिए. इस तरह की भयावह गर्मी से मुक़ाबले के लिए हम केंद्र सरकार से ये उम्मीद नहीं कर सकते हैं कि वो लगातार खुद को हालात के मुताबिक ढालती रहेगी.
जलवायु परिवर्तन वैश्विक समस्या है और दुनिया के सभी देशों को मिलकर इसका मुक़ाबला करना होगा. लेकिन सबसे ज़्यादा दिक्कतों का सामना करने वाले देशों में से एक होने के कारण भारत रास्ता दिखाने की अगुवाई कर सकता है.
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कार्बन उत्सर्जन पर कैसे लगे रोक?
कार्बन उत्सर्जन कम करने की भारत की कोशिशों में कई वजहों से रूकावटें आती रही हैं. पहला कारण है कि तमाम लोगों के पास ज़रूरत के मुताबिक ऊर्जा के साधन उपलब्ध नहीं हैं.
नई दिल्ली स्थित सेंटर फ़ॉर पॉलिसी रिसर्च के प्रोफ़ेसर नवरोज़ दुबाश कहते हैं, " तमाम लोगों के पास खाना बनाने के लिए ईंधन नहीं है. बिजली आती जाती रहती है. उद्योगों को भी भरोसेमंद तरीके से आपूर्ति नहीं हो पाती है. हम 20वीं सदी की समस्याओं से जूझ रहे हैं. इसलिए आप बदलाव इस तरह से नहीं करना चाहते जिससे भारत के विकास में बाधा आए और लोगों की मुश्किल बढ़े."
भारत में बिजली उत्पादन का एक बड़ा हिस्सा जीवाश्म ईंधन को जलाकर हासिल होता है. पावर इंडस्ट्री बड़े पैमाने पर रोज़गार देती है. दूसरे कारोबार भी इस निर्भर रहते हैं.
नवरोज़ बताते हैं कि भारतीय रेल अपनी वित्तीय ज़रूरतों के लिए बहुत हद तक कोयले की ढुलाई पर निर्भर है. अगर कोयले की ढुलाई बंद हो जाए तो किराया महंगा हो सकता है. उसके राजनीतिक असर भी होंगे. वो कहते हैं कि जीवाश्म ईंधन पर आधारित अर्थव्यवस्था भारत जैसे देशों के आर्थिक और सामाजिक ताने बाने में गुंथी है. उसमें बदलाव तबाही का कारण बन सकता है.
दूसरे उपाय आजमाना भी आसान नहीं है.
नवरोज़ दुबाश कहते हैं, "अगर आप ग्रीन बिल्डिंग तैयार करने जा रहे हैं तो काफी पैसों की ज़रूरत होगी. अगर आप इलेक्ट्रिक वाहनों के लिए चार्जिंग स्टेशन बनाते हैं तो आपको पूरा ढांचा तैयार करना होगा. आप ऐसा तब करेंगे जब आपके यहां सड़कें, रेलवे लाइन, इमारतें और बंदरगाह अच्छी तरह नहीं बने हैं. दूसरे शब्दों में कहें तो जब आप इस पैसे का इस्तेमाल दूसरी तत्कालिक ज़रूरतों में कर सकते हैं तो आप इसे कार्बन उत्सर्जन घटाने के लिए क्यों लगाएंगे, वो भी तब जब आपको भरोसा नहीं हो कि आपको तुरंत फ़ायदा मिलेगा."
और अब असली दिक्कत की बात. भारत की अर्थव्यवस्था तो बढ़ रही है लेकिन देश में रोज़गार के ढेरों अवसर पैदा करने की ज़रूरत है. ताकि ग़रीबी रेखा के नीचे के लाखों लोगों की मदद की जा सके.
नवरोज़ कहते हैं कि भारत जैसे विकासशील देश वही करने पर ध्यान लगाएंगे जो पश्चिमी देशों ने किया. उन्होंने तय किया कि जीवन आसानी से चलता रहे और लोग ऐसी स्थिति में रहें जहां क्लाइमेट चेंज के असर को झेल सकें.
कार्बन उत्सर्जन को लेकर जब अंतरराष्ट्रीय स्तर पर संवाद होता है तब भी दिक्कतें दिखती हैं.
नवरोज़ दुबाश कहते हैं, " यही वजह है कि वैश्विक स्तर पर कदम उठाना इतना मुश्किल है. अमीर देश कहते हैं कि देखिए अगर भविष्य में हम अपने यहां उत्सर्जन घटाते हैं तो आप लोग बढ़ते रहेंगे तो हम अकेले आगे नहीं बढ़ सकते हैं. ग़रीब देश कहते हैं कि आप ही हमें करके क्यों नहीं दिखाते कि ऐसा हो सकता है. अभी तक का ज़्यादातर उत्सर्जन आपने ही किया है. तो उत्सर्जन घटाने की प्रक्रिया आप ही शुरू क्यों नहीं करते हैं."
लेकिन शुक्र है कि इस गतिरोध के बावजूद तकनीक उम्मीद जगा रही है.
नवरोज़ दुबाश कहते हैं, " हमें उम्मीद की एक किरण दिखाई देनी शुरू हुई है. इसकी वजह ये है कि रिन्यूएबल एनर्जी की कीमत काफी कम हुई है. सोलर पैनल 80 फ़ीसदी तक सस्ते हो गए हैं. सोलर एनर्जी के लिए बैटरी स्टोरेज़ जरूरी है. बैटरी की कीमत भी 80 प्रतिशत कम हुई है. पवन ऊर्जा 50 प्रतिशत तक सस्ती हुई है. हमने देखा है कि दुनिया के कुछ हिस्सों में रिन्यूएबल एनर्जी जीवाश्म से मिलने वाली ऊर्जा से सस्ती हो गई है. अब आप अपेक्षाकृत सस्ती ऊर्जा हासिल कर सकते हैं और जलवायु परिवर्तन का असर कम करने में योगदान दे सकते हैं."
ये बातें भविष्य को लेकर हैं. लेकिन भारत जलवायु से जुड़ी दिक्कत से अब ही जूझ रहा है.
लौटते हैं उसी सवाल पर कि क्या भारत में गर्मी की वजह से रहना मुश्किल होता जा रहा है?
हमारे एक्सपर्ट बताते हैं कि भारत की भौगोलिक स्थिति ऐसी है कि यहां भीषण गर्मी और बारिश की दिक्कत हमेशा से रही है.
क्लाइमेट चेंज ने इस स्थिति को और बदतर कर दिया है. इसकी वजह से न सिर्फ़ लोगों को काम करने में मुश्किल पेश आती है बल्कि जान के भी लाले पड़ जाते हैं.
भारत में गर्मी से मुक़ाबले के लिए कई तरीकबें आजमाई जाती हैं लेकिन ये उपाय स्वास्थ्य पर होने वाले असर को रोकने और जान बचाने के लिए काफी नहीं हैं.
हीट वेव जल्दी बारिश होने की संभावना घटा देती है. इसका असर फसलों पर होता है और उत्पादन घट जाता है.
हालांकि, भारत के लिए ये दिक्कत कोई अजूबा नहीं है. सच ये है कि तापमान बढ़ने की वजह से दुनिया भर में करोड़ों लोग ख़तरे की जद में हैं. इस संकट से मुक़ाबला करना सिर्फ़ एक देश नहीं बल्कि पूरी दुनिया की ज़िम्मेदारी है.
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