क्विक अलर्ट के लिए
नोटिफिकेशन ऑन करें  
For Daily Alerts
Oneindia App Download

ओवैसी से बीजेपी को झारखंड में फ़ायदा क्यों नहीं हुआ?

झारखंड विधानसभा चुनाव में असदउद्दीन ओवैसी की पार्टी ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लिमीन ने चुनाव लड़ने का फ़ैसला किया तो बीजेपी विरोधियों के कान खड़े हो गए थे. लोगों ने एक बार फिर से कहना शुरू कर दिया था कि ओवैसी की पार्टी के झारखंड में आने से बीजेपी को फ़ायदा होगा. लेकिन क्या बीजेपी को फ़ायदा हुआ? झारखंड में तो ऐसा बिल्कुल नहीं हुआ.

By रजनीश कुमार
Google Oneindia News
ओवैसी
Getty Images
ओवैसी

झारखंड विधानसभा चुनाव में असदउद्दीन ओवैसी की पार्टी ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लिमीन ने चुनाव लड़ने का फ़ैसला किया तो बीजेपी विरोधियों के कान खड़े हो गए थे.

लोगों ने एक बार फिर से कहना शुरू कर दिया था कि ओवैसी की पार्टी के झारखंड में आने से बीजेपी को फ़ायदा होगा.

लेकिन क्या बीजेपी को फ़ायदा हुआ? झारखंड में तो ऐसा बिल्कुल नहीं हुआ. एआईएमआईएम ने झारखंड में 14 सीटों पर उम्मीदवार उतारे थे. इन 14 सीटों में डुमरी एकमात्र सीट है जहां से एआईएमआईएम को सबसे ज़्यादा 24 हज़ार 132 वोट मिले.

दिलचस्प है कि जिस डुमरी सीट पर ओवैसी की पार्टी को सबसे ज़्यादा वोट मिले वहां भी बीजेपी नहीं जेएमएम के जगरनाथ महतो जीते. जगरनाथ महतो को 70 हज़ार से ज़्यादा वोट मिले और बीजेपी के प्रदीप कुमार साहु को 36 हज़ार.

डुमरी के बाद बरकट्ठा में ओवैसी के प्रत्याशी मोहम्मद अशरफ़ अंसारी को 18 हज़ार 416 वोट मिले और यहां से बीजेपी प्रत्याशी जानकी प्रसाद यादव को जीत मिली. लेकिन यहां से महागठबंधन में आरजेडी को सीट मिली थी और आरजेडी उम्मीदवार मोहम्मद ख़ालिद ख़लील 4867 वोट के साथ सातवें नंबर पर थे.

@ASADOWAISI

ओवैसी निष्प्रभावी क्यों रहे?

अगर आरजेडी के प्रत्याशी में ओवैसी की पार्टी के प्रत्याशी के वोट को भी मिला दिया जाए तब भी मोहम्मद ख़लील चौथे नंबर पर होते. ओवैसी की पार्टी को 14 सीटों पर कुल डेढ़ लाख से ज़्यादा वोट मिले हैं.

धनवार में भी ओवैसी के उम्मीदवार मोहम्मद दानिश को 15416 वोट मिले लेकिन यहां बाबूलाल मरांडी के सामने जेएमएम तीसरे नंबर पर रही. जेएमएम और दानिश के वोट को मिला दें तब भी मरांडी बहुत आगे हैं.

झारखंड की कोई ऐसी सीट नहीं है जहां से महागठबंधन यानी जेएमएम, कांग्रेस और आरजेडी का प्रत्याशी ओवैसी की पार्टी के कारण हारा हो. ऐसे में यह कहना कि एआईएमआईएम के चुवाव लड़ने से बीजेपी को फ़ायदा होता है कितना सही है?

झारखंड से प्रकाशित होने वाला उर्दू दैनिक रोज़नामा अलहयात को संपादक रहमतुल्लाह कहते हैं, ''झारखंड में ऐसा बिल्कुल नहीं हुआ. हमलोग को आशंका थी कि ओवैसी के आने से बीजेपी को फ़ायदा हो सकता है. ओवैसी की रैलियों में भीड़ और गर्मजोशी देख किसी को भी ऐसा लग सकता था. लेकिन इस बार आदिवासियों और मुसलमानों ने बहुत ही ख़ामोशी से रणनीतिक तौर पर वोट किया है.''

रहमतुल्लाह कहते हैं, ''आदिवासियों और मुसलमान दोनों के मन में बीजेपी को लेकर डर था. आदिवासियों को लग रहा था कि बीजेपी आई तो काश्तकारी क़ानून को बदल देगी और उनकी ज़मीन छिन जाएगी. रघुबर दास ने 2017 में संशोधन बिल लाया लेकिन विरोध के बाद उन्हें वापस लेना पड़ा था. दूसरी तरफ़ मुसलमान एनआरसी, बाबरी मस्जिद और नागरिकता संशोधन क़ानून से डरे हुए थे. अमित शाह ने झारखंड की रैलियों में भी कहा कि एनआरसी पूरे देश में लागू होगा. संथाल इलाक़े में बांग्लाभाषी मुसलमान अच्छी ख़ासी संख्या में हैं. मुसलमानों को लगा कि ओवैसी को वोट किए तो उनका वोट बँट जाएगा और बीजेपी को सीधा फ़ायदा होगा. ऐसे में मुसलमानों और आदिवासियों ने मिलकर बीजेपी को हराया.''

झारखंड में आदिवासी 27 फ़ीसदी और मुसलमान 15 फ़ीसदी हैं. झारखंड में आदिवासियों के लिए 28 सीटें रिज़र्व हैं जिनमें बीजेपी को महज दो सीटों पर जीत मिली और महागठबंधन को 25 सीटों पर. इस नतीजे से साफ़ है कि आदिवासियों और मुसलमानों ने बीजेपी को हराया है. वहीं 2014 के विधानसभा चुनाव में बीजेपी को 11 आदिवासी सीटों पर जीत मिली थी.

संथाल परगना के देवघर, गोड्डा, जामताड़ा, साहेबगंज और पाकुड़ के अलावा लोहरदगा और गिरिडीह में मुसलमानों की आबादी सबसे ज़्यादा है. साहेबगंज और पाकुड़ में मुसलमान कुल आबादी के 30 फ़ीसदी हैं जबकि देवघर, गोड्डा, जामताड़ा, लोहरदगा और गिरिडीह ज़िले में मुसलमानों की आबादी 20 फ़ीसदी है.

असदउद्दीन ओवैसी की रैलियों में भीड़ ख़ूब आती थी लेकिन मुसलमानों ने वोट क्यों नहीं किया? इस सवाल के जवाब में ओवैसी कहते हैं, ''मेरी पार्टी पहली बार चुनाव लड़ रही थी. सभी नए चेहरे थे. कोई संगठन नहीं था. इसके बाद भी हमें डेढ़ लाख से ज़्यादा वोट मिले हैं. क्या ये हमारी उपलब्धि नहीं है? मैंने झारखंड में ज़रूरी मुद्दे उठाए. जितनी भी तथाकथित सेक्युलर पार्टियां थीं उनमें से कितने लोगों ने एनआरसी, सीएए और लिंचिंग का मुद्दा उठाया. हमने लोगों को जागरूक किया है. आने वाले वक़्त में हम और मज़बूती से लड़ेंगे.''

'ओवैसी की पार्टी के चुनाव लड़ने से बीजेपी को फ़ायदा होगा' इस धारणा को वो कैसे तोड़ेंगे? ओवैसी जवाब में कहते हैं, ''झारखंड में बीजेपी को कितना फ़ायदा हुआ या महागठबंधन को कितना नुक़सान हुआ. हम चुनाव जीतने के लिए लड़ते हैं न कि किसी को फ़ायदा और नुक़सान पहुंचाने के लिए. कोई अपनी हार का ठीकरा हम पर कैसे फोड़ सकता है.''

क्या ओवैसी पर अपनी पार्टी की मुस्लिम परस्त छवि तोड़ने का दबाव है? इस पर ओवैसी कहते हैं, ''मैं केवल मुसलमानों का नेता नहीं हूं. मैं अपनी रैलियों में उन मुद्दों को उठाता हूं जिन्हें उठाने से कथित सेक्युलर पार्टियां डरती हैं. अगर मैं अपनी रैली में केवल एक समुदाय की बात करता तो मुझे चुनाव आयोग से नोटिस मिलता. हम दलितों और पिछड़ी जातियों की भी बात करते हैं.''

तो क्या झारखंड में ओवैसी को लेकर डर का भ्रम फैलाया जा रहा था? इस पर रांची यूनिवर्सिटी के प्रोफ़ेसर रिज़वान अली कहते हैं, ''ओवैसी की राजनीति मुसलमानों को आश्वस्त करने वाली नहीं है. उनकी राजनीति विभाजनकारी है. वो भारतीय मुसलमानों में कट्टरता को बढ़ावा दे रहे हैं. इस बार झारखंड के मुसलमानों ओवैसी की राजनीति को सिरे से ख़ारिज कर दिया. वो जिस तरह की राजनीति करते हैं उसमें उनसे डरना बहुत ही स्वाभाविक है. झारखंड के मुसलमान और हैदराबाद के मुसलमान एक नहीं हैं. दोनों के जीवन स्तर और सोच में अंतर है और यही अंतर भारतीय लोकतंत्र को ख़ूबसूरत बनाता है.''

प्रोफ़ेसर रिज़वान कहते हैं, ''सोशल मीडिया के दौर में ओवैसी की लोकप्रियता बढ़ी है. वो मुसलमानों के बीच इसे टूल के तौर पर इस्तेमाल भी कर रहे हैं. वो मुसलमानों के सर्वमान्य नेता बनने की कोशिश कर रहे हैं लेकिन उनकी राजनीति दीवार खड़ी करने वाली है. उनके पिता की राजनीति से भला कौन परिचित नहीं है. ओवैसी की राजनीति मुसलमानों और हिन्दुओं के बीच की दूरी को बढ़ा रही है. हमें दोनों तरफ़ के दक्षिणपंथ से सतर्क नहीं की ज़रूरत है. एक दक्षिणपंथ का विरोध करने के लिए हम दूसरे पक्ष के दक्षिणपंथ का समर्थन नहीं कर सकते हैं.''

कई विश्लेषक मानते हैं कि ओवैसी अपने उम्मीदवारों को चुनाव जीताने के लिए नहीं खड़ा करते हैं बल्कि इसलिए उतारते हैं ताकि वहां की स्थानीय पार्टियों को इस बात पर मजबूर कर सकें कि वो उनसे गठबंधन करे और कुछ सीटें उनकी पार्टी को मिले. बिहार के किशनगंज विधानसभा क्षेत्र में उपचुनाव जीत ओवैसी ने पहले से ही दबाव बना दिया है.

BBC Hindi
Comments
देश-दुनिया की ताज़ा ख़बरों से अपडेट रहने के लिए Oneindia Hindi के फेसबुक पेज को लाइक करें
English summary
Why did BJP not benefit from Owaisi in Jharkhand?
तुरंत पाएं न्यूज अपडेट
Enable
x
Notification Settings X
Time Settings
Done
Clear Notification X
Do you want to clear all the notifications from your inbox?
Settings X
X