वो महामारी जिसमें मारे गए थे डोनाल्ड ट्रंप के दादा, भारत में मरे थे 1.4 करोड़ लोग
नई दिल्ली। विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्लूएचओ) ने पिछले दिनों कोरोना वायरस को महामारी घोषित कर दिया है। इस बीमारी के महामारी घोषित होते हुए लोगों का सन् 1918 में फैली एक ऐसी महामारी की याद आ गई है जिसने दुनिया भर में पांच करोड़ लोगों की जान ले ली थी। अब लोग कोरोना वायरस की तुलना उस महामारी से कर रहे हैं क्योंकि इस नई आफत ने अब तक 5000 से ज्यादा लोगों की जान ले ली है। स्पेनिश फ्लू यह नाम है उस महामारी का जिसकी वजह से अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के दादा की भी मौत हो गई थी। इस महामारी की वजह से भारत में करीब डेढ़ करोड़ लोगों की मौत हो गई थी।
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स्पेन से नहीं निकला मगर फिर भी स्पेनिश फ्लू
स्पेनिश फ्लू ने जिस समय दुनिया में दस्तक दी थी, उस समय प्रथम विश्व युद्ध जारी था। अमेरिका, ब्रिटेन और फ्रांस में स्पेनिश फ्लू एक साथ फैला था। लेकिन तीनों ही देशों ने मीडिया को इसकी भनक तक नहीं लगने दी थी। इसलिए यह मत सोचिएगा कि इस फ्लू का नाम स्पेनिश फ्लू इसलिए पड़ा क्योंकि यह स्पेन से निकला था। मगर इस फ्लू के बारे में सबसे पहले स्पेन की मीडिया ने रिपोर्ट दी थी, इसलिए इसे स्पेनिश फ्लू कहा गया था। ब्राजील में इसे जर्मन फ्लू नाम दिया गया जबकि सेनेगल में इसे ब्राजीलियन फ्लू कहा गया था। साल 2015 में डब्लूएचओ की तरफ से गाइडलाइंस आईं थी जिसमें कहा गया था कि किसी बीमारी को कोई नाम कैसे देना है। ऐसे में आज कोई भी कोरोना वायरस को चाइनीज फ्लू या फिर वुहान प्लेग नहीं कह रहा है।
जून 2018 में पहुंचा था भारत
स्पेनिश
फ्लू
ने
जून
1918
में
भारत
में
दस्तक
दी
और
यह
मुंबई
में
सबसे
पहले
पहुंचा
था।
उस
समय
मुंबई
बॉम्बे
था
और
लोगों
की
भीड़
यहां
पर
बाकी
शहरों
की
तुलना
में
बहुत
ज्यादा
थी।
इसके
अलावा
यह
शहर
बहुत
ही
अव्यवस्थित
भी
था।
10
जून
को
सात
पुलिस
कर्मियों
को
नॉन-मलेरियल
फीवर
के
चलते
एक
साथ
अस्पताल
में
भर्ती
कराया
गया।
अगले
कुछ
हफ्तों
में
यह
महामारी
काफी
तेजी
से
फैली।
शिपिंग
कंपनियों
में
काम
करने
वाले,
बॉम्बे
पोर्ट
ट्रस्ट,
हांगकांग
शंघाई
बैंक
और
टेलीग्राफ
ऑफिस
के
अलावा
मिंट
और
रेचल
मिल
पर
बुरा
असर
पड़ा।
24
जून
तक
इस
महामारी
की
वजह
से
बॉम्बे
बुरी
तरह
से
ध्वस्त
हो
चुका
था।
बुखार,
हाथ-पैर
और
जोड़ों
मे
दर्द
के
अलावा
फेफड़े
का
संक्रमण,
आंखों
में
दर्द
ऐसी
शिकायतें
लेकर
मरीजों
की
अस्पतालों
में
लाइन
लग
गई
थी।
जून
2018
में
पहुंचा
था
भारत
स्पेनिश
फ्लू
ने
जून
1918
में
भारत
में
दस्तक
दी
और
यह
मुंबई
में
सबसे
पहले
पहुंचा
था।
उस
समय
मुंबई
बॉम्बे
था
और
लोगों
की
भीड़
यहां
पर
बाकी
शहरों
की
तुलना
में
बहुत
ज्यादा
थी।
इसके
अलावा
यह
शहर
बहुत
ही
अव्यवस्थित
भी
था।
10
जून
को
सात
पुलिस
कर्मियों
को
नॉन-मलेरियल
फीवर
के
चलते
एक
साथ
अस्पताल
में
भर्ती
कराया
गया।
अगले कुछ हफ्तों में यह महामारी काफी तेजी से फैली। शिपिंग कंपनियों में काम करने वाले, बॉम्बे पोर्ट ट्रस्ट, हांगकांग शंघाई बैंक और टेलीग्राफ ऑफिस के अलावा मिंट और रेचल
मिल पर बुरा असर पड़ा। 24 जून तक इस महामारी की वजह से बॉम्बे बुरी तरह से ध्वस्त हो चुका था। बुखार, हाथ-पैर और जोड़ों मे दर्द के अलावा फेफड़े का संक्रमण, आंखों में दर्द
ऐसी शिकायतें लेकर मरीजों की अस्पतालों में लाइन लग गई थी।
महात्मा गांधी भी हुए प्रभावित
पहली दस्तक देने के बाद जुलाई में फ्लू कमजोर पड़ने लगा मगर तब तक इसने 1600 जिंदगियां लील ली थीं। बॉम्बे के अलावा कई और शहरों में यह फ्लू फैला। गांवों की तुलना में शहर सबसे ज्यादा प्रभावित हुए। इस बुखार के बारे में महात्मा गांधी ने लिखा था, 'जिंदगी जीने की सारी रूचि खत्म होती जा रही है।' महात्मा गांधी पर भी इस बुखार का असर पड़ा था। बॉम्बे से निकला यह वायरस भारत की हर दिशा में फैला और करीब 10 मिलियन लोगों की जान ले गया। इसके बाद असम में एक इंजेक्शन तैयार किया जिसकी वजह से लोगों की रोग प्रतिरोधात्मक क्षमता को बढ़ाया गया। दिसंबर 1918 में फ्लू फिर नजर आया और 1919 की शुरुआत में इस बुखार का तीसरा दौर देखा गया। साल 2012 में हुए एक अध्ययन के मुताबिक स्पेनिश फ्लू की वजह से भारत में करीब 1.4 डेढ़़ करोड़ लोगों की मौत हुई थी।
स्पेन में पादरी की सलाह की वजह से मरे कई लोग
कोरोना वायरस की तरह ही सार्स वायरस भी साल 2002 में चीन से निकला था। इसके बाद मर्स साल 2012 में सऊदी अरब से आया था। कोरोना वायरस की तुलना में सार्स और मर्स को दुनिया में तबाही मचाने से पहले ही नियंत्रित कर लिया गया था। साल 1918 में संसाधन कम थे और उस समय ज्यादातर लोगों ने वही किया था जो उनके धार्मिक नेताओं ने उन्हें करने को कहा था। लोगों ने उस समय डॉक्टरों की सलाह को नजरअंदाज कर दिया था। स्पेन के शहर जमोरा में स्थानीय पादरी ने लोगों को डॉक्टरों की सलाह के बाद भी शाम की प्रार्थना सभा के लिए कहा था। लगातार नौ दिनों तक सेंट रोको के सम्मान में प्रार्थना सभा होती रही और लोग सेंट के अवशेषों को चूमते रहे। जमोरा में सबसे ज्यादा मौंते हुईं। न सिर्फ स्पेन बल्कि पूरे यूरोप में यहां पर मरने वालों की संख्या सबसे ज्यादा थी। कुछ इसी तरह के वीडियोज ईरान से हाल ही में आए हैं जब कोरोना वायरस के बीच ही कुछ लोगों कूम में मस्जिदों की दीवारों को चूमते हुए नजर आए थे।