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पंडित दीनानाथ कौल कौन थे, जिनकी कविता वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने बजट पेश करते हुए पढ़ी?

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नई दिल्ली- वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने बजट पेश करते हुए कश्मीरी कवि पंडित दीनानाथ कौल की एक कविता को प्रमुखता से पढ़कर सुनाया है। उस कविता के जरिए उन्होंने जम्मू-कश्मीर और पूरे देश के लोगों को चाहे जो राजनीतिक और सामाजिक संदेश देने की कोशिश की हो, लेकिन आइए हम जानते हैं कि पंडित दीनानाथ कौल कौन थे और कश्मीरियों के जीवन में उनकी रचनाओं का क्या महत्त्व है। इसके साथ ही हम उनकी रचनाओं को उनके संघर्ष और भारत भूमि के लिए उनकी रचनाओं के महत्त्व को भी जानने की कोशिश करते हैं।

कश्मीरी कविता के ट्रेंड सेटर थे पंडित दीनानाथ कौल

कश्मीरी कविता के ट्रेंड सेटर थे पंडित दीनानाथ कौल

पंडित दीनानाथ कौल कश्मीर के एक जाने-माने कवि थे, जिनका पूरा नाम पंडित दीनानाथ कौल नदीम था। 18 मार्च, 1916 को जन्मे पंडित कौल के सिर से पिता का साया बहुत ही कम उम्र में उठ गया था। देश के दूसरे हिस्सों की तरह कौल की कविताओं पर भी तात्कालिक सामाजिक-राजनीतिक माहौल का खूब असर पड़ा। यही वजह है कि दूसरे कश्मीरी लेखकों और कलाकारों की तरह ही उनकी रचनाओं पर भी आजादी के बाद के वर्षों, खासकर 1947 के बाद वहां हुए दुश्मन के हमलों का उनकी कविताओं पर बहुत प्रभाव पड़ा। यही दौर था जब पंडित दीनानाथ और उनकी कविताएं चर्चा में आई थीं और उसके बाद वे हमेशा के लिए कश्मीरी साहित्य के क्षेत्र में सबके अगुवा बन गए। तब कश्मीर घाटी के हित में उन हमलों को देखते हुए कश्मीर में एक सांस्कृतिक मंच बनाया गया था, जिसके तहत समाज के इस वर्ग को अपनी रचनाओं के जरिए समाज में धर्मनिरपेक्षता, साम्प्रदायिक सौहार्द और देशभक्ति की भावनाओं को जगाए रखने की जिम्मेदारी मिली थी। पंडित दीनानाथ कौल उस जिम्मेदारी को निभाने में पूरी तरह कामयाब रहे। यही वजह है कि आज की तारीख में कश्मीरी कविता और गद्य के क्षेत्र में उन्हें एक युग-निर्माता और ट्रेंड-सेटर माना जाता है।

लेखनी पर मां का बहुत ही गहरा प्रभाव

लेखनी पर मां का बहुत ही गहरा प्रभाव

एक कवि के तौर पर कौल के विकास में उनकी मां का बहुत बड़ा रोल माना जाता है, खासकर उनके पिता पंडित शंकर कौल के निधन के बाद। उनके जीवन से पिता का साया तभी उठ गया था जब वे केवल 8 साल के थे। इसके बाद उन्हें और उनकी बहन को उनकी विधवा मां ने अपने दम पर संभाला। आम भारतीय परंपरा की तरह ही उनकी मां भी अक्सर अपने बच्चों को दूसरे कवियों की कविताएं गुनगना कर सुनाती थीं। कई बार वो अपने बच्चों के लिए खुद से ही कुछ कम्पोज भी कर लेती थीं। बड़ी बात ये थी कि वो कश्मीर के उस मुरान गांव से आई थीं, जहां की संस्कृति में कश्मीरी कविताओं को जुबानी सुनने-सुनाने की परंपरा का हिस्सा थी। कौल की पढ़ाई स्थानीय स्कूलों में हुई, जिसमें कई बार बाधाएं भी आईं। 1930 में उन्होंने मैट्रिक पास किया और 1943 में उन्होंने बीए पास किया। 1947 में उन्हें बैचलर और एजुकेशन की डिग्री मिली।

कश्मीरी में बाद में लिखना शुरू किया

कश्मीरी में बाद में लिखना शुरू किया

नदीम की कविताओं की खासियत है कि उनकी सारी रचनाओं का कोई प्रकाशित संग्रह नहीं है। वास्तव में वे खुद अपनी रचनाओं को संकलित करने के प्रति उदासीन रहे। हालांकि, बाद में 'शिहिल कुल' नाम से उनकी कविताओं का एक संग्रह जरूर प्रकाशित हुआ, जिसके लिए उन्हें साहित्य अकादमी पुरस्कार से नवाजा गया। उनकी ज्यादातर कविताएं या तो कवि सम्मेलनों का हिस्सा बनीं थीं या स्थानीय जर्नल में छापी गईं। उनकी कविताओं की कुल संख्या करीब 150 है, जिनमें कश्मीरी के अलावा अंग्रेजी, हिंदी और उर्दू की रचनाएं भी शामिल हैं। अपने समकालिन कवियों की तरह ही उन्होंने भी कश्मीरी में लिखने का फैसला काफी बाद में किया था। असल में कवि के तौर पर उनका करियर 1930 के दशक के अंत में शुरू हुआ। पहले वे अंग्रेजी में ही लिखते थे। 1938 से 1946 के दौरान उन्होंने मुख्य रूप से उर्दू में लिखने पर जोर दिया था और कुछ कविताएं हिंदी में भी लिखी थीं। उनकी लेखनियों बृज नारायण चकबस्त, जोश मलिहाबादी और एहसान बिन-दानिश का काफी प्रभाव पड़ा। यह हिंदुत्व, सूफी और खैय्याम की विचारधाराओं के प्रभाव वाला वक्त था। उस समय नदीम खुद को और अपनी कविताओं के लिए माध्यम वाली भाषा को चुनने की कोशिशों में जुटे थे। आखिरकार उन्होंने कश्मीरी को चुना और कहा, 'मेरी मातृभाषा का मुझपर ज्यादा अधिकार है।'

डोगरा समाज में जोश भरने के लिए लिखी वह कविता

डोगरा समाज में जोश भरने के लिए लिखी वह कविता

वित्‍त मंत्री निर्मला सीतारमण ने शनिवार को कश्‍मीरी भाषा में उनकी जिस कविता को पढ़ा और फिर उसका हिंदी में अनुवाद सुनाया वह उन्होंने डोगरा समुदाय के लोगों को प्रोत्‍साहित करने के मकसद से लिखी थी। उस कविता का हिंदी अनुवाद ये था, 'हमारा वतन खिलते हुए शालीमार बाग जैसा, हमारा वतन डल झील में खिलते हुए कमल जैसा, नौजवानों के गर्म खून जैसा, मेरा वतन, तेरा वतन, हमारा वतन, दुनिया का सबसे प्‍यारा वतन।' दीनानाथ ने गीतों पर आधारित कुछ नाटक भी लिखे थे जिसमें वितास्‍ता (झेलम नदी), सफर ता शेहजार (द जर्नी एंड द शेड), हीमल ता नाएगेराई (हीमल और नागराज) जैसे लोकप्रिय नाटक शामिल हैं। उनका सबसे लोकप्रिय प्रकाश बोंबुर ता यामबेरजाल था ,जिसे सबसे पहले कश्‍मीरी भाषा में प्रकाशित किया गया था। उनका 8 अप्रैल, 1988 को उनका निधन हो गया था।

ये हैं उनकी कुछ अनमोल रचनाएं

ये हैं उनकी कुछ अनमोल रचनाएं

उन्होंने पहली कश्मीर कविता 'मज कश्मीर' या 'कश्मीर माता' 1942 में लिखी थी। ये उस कठिन दौर में लिखी गई थी, जब डोगरा वंश को चुनौती देने के लिए 'कश्मीर छोड़ो' का जन-आंदोलन चल रहा था। मृदुभाषी कौल का जीवन अक्सर मुशायरा, रैलियों और कवि सम्मेलनों में बीता, जिसके जरिए उन्होंने हर कश्मीरी रंगों को समाज में बिखेरने की पूरी कोशिश की। जब, कश्मीर पर पाकिस्तान की ओर से हमला हुआ, उनकी रचनाएं पूरी तरह से देशभक्ति में डूब गईं। उन्होंने कश्मीर पर आए संकटों से उबरने के लिए कश्मीरी युवाओं में अपनी कलम के जरिए जोश भरने की भरपूर कोशिश की थी। उस दौर की उनकी कुछ कश्मीर रचनाओं का हिंदी अनुवाद इस तरह से है, 'तुम कारवां का नेतृत्व करो', 'क्रांति की आवाज', 'हिंदुओं और मुसलमानों को मुझे फिर से मनुष्य बनाना है', 'शेरवानी के सपने' और 'मुझे अवश्य पूछना चाहिए'। हालांकि, अनुवाद में वह दम नहीं होता जो असल कश्मीरी भाषा में उन्होंने जाहिर किया है।

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English summary
Who was Pandit Deenanath Kaul? Whose poem was read by Finance Minister Nirmala Sitharaman?
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