दिल्ली: जब दंगाई शाहरुख ने सामने से सिर पर तान दी पिस्तौल, जांबाज हेड कॉन्स्टेबल दहिया के मन में क्या आया ?
नई दिल्ली- उत्तर-पूर्वी दिल्ली के मौजपूर इलाके की एक तस्वीर में मौत के सामने चुनौती बनकर खड़े होने वाले दिल्ली पुलिस के हेड कॉन्स्टेबल दीपक दहिया ने अपनी उस वक्त की आपबीती बयां की है। उन्होंने बताया है कि एक दंगाई के सिर पर पिस्तौल तानने के बावजूद उन्होंने उसका मुकाबला कैसे किया और उन्हें इतना हौसला कैसे मिला? बता दें कि सोमवार को उनकी तैनाती उपद्रवग्रस्त मौजपुर चौराहे पर की गई थी, तभी एक हिंसक भीड़ को शांत करने की कोशिश में खुद उन्हीं की जान पर बन आई। उन्होंने कहा है कि उन्होंने परिस्थितियों के मुताबिक अपनी जिम्मेदारी निभाई, जिसकी उन्हें ट्रेनिंग मिली हुई है। क्योंकि, अगर कोई उनके सामने मर जाता तो उन्हें हमेशा दुख होता और वो ऐसा होने नहीं दे सकते थे।
'अगर मेरे सामने कोई मर जाता........'
उत्तर-पूर्वी
दिल्ली
के
मौजपुर
चौराहे
की
ये
तस्वीर
सीएए
से
जुड़ी
हिंसा
की
प्रतीक
बन
चुकी
है।
कई
राउंड
फायर
कर
चुका
एक
दंगाई
सिर
पे
पिस्तौल
ताने
खड़ा
है
और
दिल्ली
पुलिस
के
जांबाज
हेड
कॉन्स्टेबल
दीपक
दहिया
हाथ
में
सिर्फ
एक
लाठी
के
सहारे
उसके
सामने
डटकर
खड़े
रहकर
अपनी
ड्यूटी
निभा
रहे
हैं।
एक
बेखौफ
दंगाई
की
नापाक
हरकत
की
ऐसी
तस्वीर
आमतौर
पर
दुनिया
में
कहीं
देखने
को
नहीं
मिलती।
अंग्रेजी
अखबार
टाइम्स
ऑफ
इंडिया
से
हुई
बातचीत
में
हेड
कॉन्स्टेबल
दहिया
ने
उस
वक्त
की
जो
आपबीती
बयां
की
है,
वह
हर
पुलिस
वाले
के
लिए
एक
मिसाल
है।
जब
इस
जांबाज
पुलिस
वाले
से
सवाल
हुआ
कि
मात्र
एक
डंडे
की
बदौलत
आप
अपनी
जान
पर
कैसे
खेल
गए
तो
उनके
जवाब
ने
पूछने
वाले
को
नि:शब्द
कर
दिया।
वे
बोले-
'अगर
मेरे
सामने
कोई
मर
जाता
तो
बहुत
दुख
होता
हमेशा......'
(पहली
तस्वीर
साभार-टाइम्स
ऑफ
इंडिया)
'काम है मेरा, करना ही है......'
शहीद सब इंस्पेक्टर रतन लाल और सब इंस्पेक्टर दीपक दहिया इस वक्त दिल्ली में सीएए पर भड़की हिंसा की तस्वीर बन चुके हैं। सोमवार की घटना के बारे में दहिया ने बताया, 'मेरी तैनाती मौजपुर चौक पर की गई थी। हालात अचानक से विस्फोटक होने लगे और लोगों ने एक-दूसरे पर पत्थरबाजी शुरू कर दी। जैसे ही मैं दंगाइयों की ओर बढ़ा, एक गोली की आवाज सुनी। मैंने लाल स्वेटर पहने एक आदमी को देखा........'वह पिस्तौल लहरा रहा था। मैं उसका ध्यान हटाने के लिए तुरंत दूसरी तरफ कूद गया।' दहिया ने बताया कि पुलिस वालों को ट्रेनिंग होती है कि ऐसी हालातों में अपनी जान की परवाह किए बगैर आम लोगों की जान की हिफाजत ज्यादा जरूरी है। उन्होंने कहा, 'वह आगे बढ़ रहा था....मैं उसका ध्यान हटाने के लिए उसकी तरफ बढ़ने लगा.....मैं उसके बीच में किसी को भी नहीं आने देना चाहता था। मेरी प्राथमिकता ये थी कि कोई भी हताहत न हो।' जब उनसे ये सवाल किया गया कि जब उनके सिर में पिस्तौल तनी हुई थी तो उनके मन में क्या चल रहा था? उन्होंने कहा- 'काम है मेरा, करना ही है.........'
'मैंने पत्नी को चकमा देने की कोशिश की, लेकिन वो पहचान गई'
दीपक हरियाणा के सोनीपत से आते हैं और 2010 में दिल्ली पुलिस में कॉन्स्टेबल के तौर पर भर्ती हुए थे। उन्होंने हेड कॉन्स्टेबल पद के लिए परीक्षा पास की है और फिलहाल दिल्ली के वजीराबाद में उनकी ट्रेनिंग चल रही है। दहिया की पत्नी और उनकी दोनों बेटियां परिवार के साथ सोनीपत में ही रहते हैं। मंगलवार सुबह तक उनके परिवार के लोगों को नहीं पता था कि सोमवार को वह मौत के मुंह से बच निकले थे। उनके मुताबिक, 'मैंने उन्हें कुछ भी नहीं बताया, लेकिन सोशल मीडिया पर मेरी तस्वीर वायरल हो गई। मेरी पत्नी ने चिंतित होकर फोन किया। मैंने उसके सवालों को घुमाने की कोशिश की, लेकिन तस्वीरों में मेरी तस्वीर नहीं दिखने के बावजूद उसने मुझे मेरे जैकेट पर मौजूद ब्लू स्ट्रिप्स से मुझे पहचान लिया.... मैं चुप रहा, क्योंकि मुझे पता है कि उसे मुझपर पूरा भरोसा है।'
वर्दी से अटूट नाता है परिवार का
जांबाज दीपक के पूरे परिवार का वर्दी से अटूट नाता है। उनके पिता भारतीय कोस्ट गार्ड से रिटायर हो चुके हैं। उनके दोनों छोटे भाई भी वर्दीधारी हैं। एक उनके साथ ही दिल्ली पुलिस में तैनात है, जबकि दूसरा पिता की तरह भारतीय कोस्ट गार्ड में तैनात है। गौरतलब है कि उत्तर-पूर्वी दिल्ली में पिछले रविवार से ही नागरिकता संशोधन कानून को लेकर हिंसा हो रही है। इस घटना में एक पुलिस वाले समेत अबतक 18 लोगों की मौत हो चुकी है और पौने दो सौ से ज्यादा लोग जख्मी हुए हैं। मंगलवार रात से कई इलाकों में कर्फ्यू लगाया गया है और देखते ही गोली मारने जैसे आदेश दिए गए हैं, लेकिन फिर भी हालात पूरी तरह से काबू में नहीं आए हैं।
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