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जब हवा में ग़ायब हो गया था सीएम राजशेखर रेड्डी का हेलिकॉप्टर, 25 घंटे के तलाश की पूरी कहानी

आंध्र प्रदेश के तत्कालीन मुख्यमंत्री वाईएस राजशेखर रेड्डी का हेलिकॉप्टर जब ग़ायब हुआ तो पता चलने के 25 घंटे के दौरान क्या-क्या हुआ था. बीबीसी की एक्सक्लूसिव रिपोर्ट.

By BBC News हिन्दी
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ये दो सितंबर 2009 की बात है, बुधवार का दिन था.

जब आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री हैदराबाद में नहीं हों तो सी ब्लॉक में बहुत गहमागहमी नहीं हुआ करती थी. लेकिन उस दिन 11 बजे के बाद हर ओर अफ़रातफ़री का माहौल था.

तत्कालीन मुख्यमंत्री वाईएस राजशेखर रेड्डी हेलिकॉप्टर से सुबह आठ बजकर 38 मिनट पर बेगमपट से निकल चुके थे, उन्हें चित्तूर ज़िले में एक कार्यक्रम में शामिल होना था. निर्धारित कार्यक्रम के मुताबिक साढ़े दस बजे तक उन्हें वहां पहुंचना था. लेकिन वे वहां नहीं पहुंचे थे.

इलेक्ट्रॉनिक मीडिया पर रिपोर्ट्स आने लगी थी कि एटीसी से उनके हेलिकॉप्टर का संपर्क टूट गया है और हेलिकॉप्टर का पता नहीं चल रहा है.

लेकिन कुछ ही देर में साक्षी समूह के चैनल सहित कुछ चैनलों में ख़बर चलने लगी कि मुख्यमंत्री पूरी तरह सुरक्षित हैं और सड़क मार्ग से चित्तूर जा रहे हैं.

तब तक राज्य के गृहमंत्री सबिता इंद्रा रेड्डी, वित्ती मंत्री रोशैय्या और दूसरे वरिष्ठ मंत्री और राज्य के मुख्य सचिव रमाकांत रेड्डी सचिवालय पहुंच गए थे, ये सब मुख्यमंत्री कार्यालय से जानकारी पर नज़र रख रहे थे.

इस दौरान मुख्यमंत्री सचिवालय पहुंचे पत्रकारों के बीच अफ़वाहें भी तैरने लगी थीं. चूंकि एटीसी से हेलिकॉप्टर का कनेक्शन नल्लामल्ला वन्य क्षेत्र में टूटा था तो किसी ने कहा कि यह क्षेत्र तो माओवादियों के कब्ज़े में है तो क्या मुख्यमंत्री का अपहरण हो गया है? ये अफ़वाह भी फैलने लगी थी.

सरकार की ओर से दोपहर होते-होते एक बयान जारी किया गया.

इस बयान में कहा गया कि हेलिकॉप्टर लापता है और मुख्यमंत्री का पता नहीं चल पाया है, उनका पता लगाने की कोशिशें जारी है. हेलिकॉप्टर में मुख्यमंत्री के अलावा मुख्यमंत्री कार्यालय के मुख्यसचिव सुब्रमण्यम और मुख्य सुरक्षा अधिकारी एएससी वेस्ले सवार थे.

राजशेखर रेड्डी
Getty Images
राजशेखर रेड्डी

शुरू हुई तलाश

मुख्यमंत्री सहित हेलिकॉप्टर का लापता होना राष्ट्रीय स्तर की सनसनी बन चुका था. केंद्र सरकार को भी अलर्ट किया गया. राज्य सरकार ने छह ज़िलों में अलर्ट की घोषणा करते हुए तलाशी अभियान के लिए हर मुमकिन कोशिश करने को कहा.

राज्य पुलिस और केंद्र सरकार की ख़ुफ़िया एजेंसियों ने कहा कि पुलिस, सीआरपीएफ़ और एंटी नक्सल पुलिस फ़ोर्स को नल्लामल्ला के जंगलों में भेजना चाहिए. सिकंदराबाद और बेंगलुरु से सेना के हेलिकॉप्टर मंगाए गए. इसके अलावा जंगल में एक सुखोई विमान को भी भेजा गया, जो थर्मल इमेजिंग करने में सक्षम था. तब तक राज्य में कांग्रेस के नेता और कार्यकर्ताओं का प्रदर्शन शुरू हो चुका था.

लेकिन ख़राब मौसम के चलते हेलिकॉप्टर को भेजना संभव नहीं हो रहा था. फिर सरकार की ओर से कहा गया कि इसरो के सैटेलाइट की मदद से हेलिकॉप्टर का पता लगाया जा रहा है.

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मैं उस दिन मुख्यमंत्री सचिवालय में सुबह से ही मौजूद था. शाम में अपने अख़बार 'आंध्र ज्योति' के दफ़्तर गया. रात आठ बजे पता चला कि एबीएन चैनल की एक टीम नल्लामल्ला के जंगलों में जाएगी. मुख्यमंत्री के बारे में कोई ख़बर नहीं मिली थी, लेकिन हेलिकॉप्टर को लेकर एक सूचना मिली थी. मैं उस टीम में शामिल था.

मेरे ब्यूरो चीफ़ ने मुझसे कहा, "तुम प्रिंट मीडिया रिपोर्टर के तौर पर नहीं जा रहे हो बल्कि एक टीवी चैनल के रिपोर्टर के तौर पर जा रहे हो."

मेरे साथ टीम में क्राइम रिपोर्टर सत्यानारायण, रिपोर्टर वामसी, फ़ोटोग्राफ़र नारायण, कैमरामैन श्रीनिवास एवं अक्की रामू शामिल थे. सत्यानारायण ने मुझसे कहा कि नल्लामल्ला में एक या दो दिन रुकना पड़ सकता है इसलिए आप अपने कपड़े ले लीजिए.

हमलोग साढ़े तीन बजे सुबह आत्मकुरु पहुंचे. वहां के आरएंडबी गेस्ट हाउस की इमारत में पहले से ही कई मीडियाकर्मी अपने-अपने डीएसएनजी वैन के साथ मौजूद थे. वहां मैंने अपने स्थानीय रिपोर्टर कोठाचारी को फ़ोन किया. वे हैदराबाद में सब एडिटर रहे थे और बाद में कुरनूल में स्टॉफ़ रिपोर्टर बन गए थे. वे आए और हमें आत्मकुरु के प्रेस कांफ़्रेंस सेंटर ले गए.

राजशेखर रेड्डी
Getty Images
राजशेखर रेड्डी

'कुछ पता नहीं चल पा रहा था'

हमने हेलिकॉप्टर के लापता होने पर चर्चा की और हम दो समूहों में बंट गए. सत्यारायण, वामसी, कोठाचारी और कैमरामैन श्रीनिवास उस जगह जा रहे थे जहां कृष्णा नदी में तेल रिसकर पहुंचने का पता चला था. मैं, कुरनूल के ब्यूरो इनचार्ज सुब्बाराव, फोटोग्राफ़र अजानेयूलू और कैमरामैन रामू टाटा इंडिका कार से नल्लामल्ला के जंगल की तरफ़ निकले.

हम आत्माकुरु से नालाकालूवा तक गए और वहां से नल्लामल्ला की तरफ़ बढ़े. स्थानीय और नेशनल टीवी चैनल के पत्रकार वहां पहले से मौजूद थे. छह किलोमीटर अंदर जाने के बाद पूरी सड़क पर कीचड़ के चलते कार का चलना मुश्किल था. जब देखा कि कार आगे नहीं बढ़ सकती है तो हमलोगों ने कार से उतरकर पैदल चलने का फ़ैसला किया. दो तीन किलोमीटर पैदल चलने के बाद हमें कुछ जीप आती हुई दिखी. राज्य सरकार के आह्वान के बाद कांग्रेसी कार्यकर्ता भी तलाशी अभियान में जुटे थे.

दो जीपों पर गुंटूर से आए कांग्रेसी कार्यकर्ता थे, हम उनकी जीप से गालेरू नदी तक पहुंचे. सुब्बाराव ने बताया का नल्लामल्ला में बाघों का इलाका शुरू होने वाला है. वहां कम से कम 50 मीडियाकर्मी मौजूद थे. उनके अलावा 50 अन्य कार्यकर्ता और ग्रामीण मौजूद थे. हमें ना तो पुलिस दिखी थी और ना ही तलाशी करने वाले हेलिकॉप्टरों की आवाज़ सुनाई दे रही थी. कोई हलचल नहीं देखकर हमने अंदाज़ा लगाया कि हो सकता है कि मुख्यमंत्री का पता चल गया हो. हम थोड़ा और अंदर गए तो हमें हेलिकॉप्टर की आवाज़ सुनाई पड़ी. मतलब साफ़ था कि तलाशी अभियान जारी था.

आठ बजे सुबह एडिटर श्रीनिवास का फ़ोन आया. उन्होंने बताया कि वायु सेना के अधिकारियों ने बताया है कि कुरनूल ज़िले के वेलुगोड की पहाड़ियों पर एक हेलिकॉप्टर दिखा है.

उसी दौरान वहां से कडप्पा के मेयर रबींद्रनाथ रेड्डी अपने समर्थकों के साथ गुज़र रहे थे, मैंने उनसे बात की तो उन्होंने भी यही बताया. उन्होंने बताया कि वे वेलुगोड की तरफ़ जा रहे हैं. हमलोग उनके साथ हो लिए. सुब्बाराव उनकी कार में बैठे और हमलोग अपनी कार में. ड्राइवर ने हमें पानी की बोतल और खाने का टिफ़िन दिया. हम लोगों ने उसे बैग में रख लिया. कुछ दूर चलने के बाद लगा कि हमलोग सही दिशा में चल रहे हैं.

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हमें रास्ते में अनापर्थी के विधायक सेशारेड्डी भी मिले. उनके साथ रबींद्रनाथ रेड्डी और बड़ी संख्या में कार्यकर्ता मौजूद थे. हम सब वेलुगोड की तरफ़ बढ़ रहे थे. एक ग्रामीण ने बताया कि आठ किलोमीटर आगे जाकर पहाड़ी मिलेगी. लेकिन काफ़ी दूर चलने के बाद पहाड़ी का कोई पता नहीं चल रहा था.

रास्ते में मैंने अपना टिफ़िन बॉक्स खोला, उसमें दो बैग थे एक पूरी और एक इडली का. मैंने इडली वाला बैग लिया. रामू ने भी नाश्ता लिया, हमलोगों ने इसे दूसरे साथियों के साथ भी शेयर किया. हमने चलते हुए नाश्ता किया. पानी पीकर शरीर में नया उत्साह आया.

यहां तक पहुंचने में जूता पहनकर चलने में मुश्किल होने लगी थी. मैं ने कुछ देर के लिए जूते उतार दिए. कुछ बाइक सवार दिखे तो मैंने उनसे कैमरामैन रामू को आगे तक ले जाने को कहा. मुझे उम्मीद थी कि इस तरह कम से कम विज़ुअल तो पहले मिलेंगे. लेकिन उन लोगों ने रामू को लिफ़्ट नहीं दी. हालांकि इसकी वजह ये हो सकती है कि कीचड़ से भरी सड़क पर बाइक चलाना ख़ासा मुश्किल काम है.

मुश्किल हो रही थी हेलिकॉप्टर की तलाश

हालांकि हम थक रहे थे, रामू और मैं एक दूसरे का उत्साह बढ़ा रहे थे. मैं दौड़ना चाहता था. लेकिन एक तो बैग था दूसरी तरफ़ जींस पैंट की वजह से भी मुश्किल हो रही थी. मैंने चमड़े का कोट डाला हुआ था. हालांकि इस कोट की वजह से बारिश से बचने में मदद भी मिली थी. इस हालात में हम सैंक्चुरी तक पहुंच गए थे.

वहां आते ही हमने देखा कि कई मीडिया कर्मी स्थानीय कांग्रेसी कार्यकर्ताओं के साथ एक जगह मौजूद हैं. हम वहां जल्दी पहुंचे. लगा कि हेलिकॉप्टर हो पर वहां ऐसा नहीं था. उसी वक्त आसमान में ऊपर एक हेलिकॉप्टर ने चक्कर लगाया. जंगल के अंदर हेलिकॉप्टर से भी हम अंदाज़ा लगा रहे थे कि किधर जाना है.

लेकिन अब हमें नहीं मालूम था कि किधर जाना है. इसलिए हमसब रुके हुए थे. कुरनूल रेंज के डीआईजी भी वहां मौजूद थे. हमारी दूसरी टीम के कैमरामैन श्रीनिवास और रिपोर्टर वामसी भी वहां आ गए थे. मेयर रबींद्रनाथ ने दो लोगों को आगे चलने को कहा तो मैं रामू के साथ आगे बढ़ा. कुछ दूसरे मीडियाकर्मी भी थे, लेकिन कुछ दूरी के बाद वे वापस लौट लौट गए. 'सूर्या' पत्रिका के एक संवाददाता के साथ हमलोगआगे बढ़ते गए.

हेलिकॉप्टर के रास्ते का अनुसरण करते हुए जब हम आगे बढ़े तो वहां एक पहाड़ी थी. कुछ स्थानीय लोग भी मौजूद थे. हम उनके साथ उस पहाड़ी पर चढ़े. जब वहां पहुंचे तो हेलिकॉप्टर दूसरी पहाड़ी की तरफ़ मुड़ चुका था. उस वक्त मुझे ग़ुस्सा और हताशा एक साथ महसूस हो रहा था.

'हम लोग जंगल में फंस चुके हैं'

उस जगह ऐसा लगा कि बगल से पानी का कोई स्रोत है. यह इलाक़ा बाघों के अभ्यारण्य के तौर पर जाना जाता है और स्थानीय लोगों के मुताबिक यहां बाघ घूमते रहते हैं. तो डर भी था.

स्थानीय लोगों ने बताया कि अगर आप 15 किलोमीटर तक चलेंगे तो श्रीसैलम हाइवे आ जाएगा और वापस जाने के लिए 30 किलोमीटर तक चलना होगा. मैंने श्रीसैलम हाइवे की ओर जाने का फ़ैसला कर लिया.

सेल फ़ोन पर सिग्नल आ रहे थे. मैंने हैदराबाद सिटी के ब्यूरो चीफ़ शशिकांत को फ़ोन किया. मैंने उन्हें इसलिए फ़ोन किया ताकि अगर मुझे कुछ हो जाए तो वह जल्दी से मदद करने की स्थिति में हों. मैंने उन्हें बताया कि हमलोग नल्लामल्ला के जंगलों में फंस गए हैं और मुख्यमंत्री के साथ-साथ हम भी लापता हो सकते हैं.

हमने उन्हें बताया कि हमलोग किस तरफ़ बढ़ रहे हैं और कहां तक पहुंचे हैं. उन्होंने यह बताया कि कई मीडिया चैनलों में पत्रकारों के जंगल में लापता होने की अफ़वाह भी चल रही है. थोड़ी देर बात होने के बाद भी सिग्नल का मिलना बंद हो गया था.

थोड़ी देर बाद मैंने फिर से शशिकांत को फोन मिलाया, तभी सामने वाली पहाड़ी पर हेलिकॉप्टर ने चक्कर लगाना शुरू किया. शशिकांत ने हेलिकॉप्टर के नज़दीक जाने का सुझाव दिया. मुझे लग रहा था कि वहां जाने में कोई फ़ायदा नहीं है लेकिन शशिकांत का मानना था कि वहां चल कर देखना चाहिए. फिर हमने भी वहां जाने का फ़ैसला कर लिया.

हम एक पहाड़ी पर मौजूद थे, वहां से नीचे उतरकर हमें दूसरी पहाड़ी पर चढ़ना था. हमारे पास खाने और पीने को कुछ नहीं बचा था. कुछ दूर चलने पर हमें साक्षी समूह के गुंटूर के पत्रकार मिले. हमने एक दूसरे से यही पूछा कि हमें स्थानीय लोगों ने सही रास्ता बताया है या नहीं? लेकिन हमलोगों ने चलना जारी रखा, हम हेलिकॉप्टर के चक्कर काटते वहां तक पहुंचना चाहते थे. कुछ दूरी तय करने के बाद ही हेलिकॉप्टर वापस लौट गया.

हमलोग जहां खड़े थे वहीं बैठ गए. पांवों में ताक़त नहीं बची थी. कीचड़ और फिसलन भरा रास्ता था. हालांकि बारिश से भीगे कपड़े अब सूखने वाले थे. लेकिन किसी भी पहाड़ी पर चलने के लिए कम से कम 20 से 30 किलोमीटर चलना होता है. कम से कम दो बार चढ़ना उतरना पड़ता है. सड़क पर पैदल चलने की स्थिति भी नहीं थी.

फ़ोन पर सिग्नल भी नहीं था और इन सबसे बढ़कर वो चेतावनी भी दिमाग़ में आ रही थी 'इन इलाकों में बाघ घूमते हैं, सावधान रहना.' दिमाग़ में यह सब चल ही रहा था कि फिर से हेलिकॉप्टर नज़र आया. हेलिकॉप्टर हवा में एक जगह स्थिर हो गया था. हमें उम्मीद की किरण दिखी और लगा कि हमें भागना चाहिए. हम सब दौड़ने लगे.

हममें चलने की ताक़त नहीं थी, लेकिन हम दौड़ने की कोशिश कर रहे थे. हम एक पहाड़ी से नीचे उतरकर दूसरी पर चढ़ने की कोशिश कर रहे थे. जब हमने चढ़ाई की कि तो देखा राहत और बचाव कर्मी काम कर रहे थे. तुरंत हमारी नज़र हेलिकॉप्टर के मलबे पर गयी.

जब हेलिकॉप्टर मिला

हम एकदम वहां पहुंच चुके थे, जहां हेलिकॉप्टर दुर्घटनाग्रस्त हुआ था, वह पहाड़ी की चोटी थी. पहाड़ से टकरा कर हेलिकॉप्टर का मलबा बिखरा हुआ था, पिछला हिस्सा एक जगह था, विंग्स दूसरी जगह और इंजन वाला हिस्सा तीसरी जगह. सबकुछ टुकड़ों में बिखरा हुआ था. इंजन जल चुका था. सीएम वायएस राजशेखर रेड्डी का शव इंजन का पास था, सिर पर कम बाल के आधार उनकी पहचान संभव हुई थी.

राहतकर्मियों ने बताया कि एक पायलट का शव अभी भी अपनी सीट पर है, दूसरे पायलट क चेहरा भी मिल गया था. सुरक्षा अधिकारी की पहचान बंदूक से संभव हुई थी. मैं ये सब बातें सेलफोन पर रिकॉर्ड कर रहा था.

सारे शव बिखरे हुए थे. शरीर के हिस्सों को इकट्ठा किया जा रहा था, कुछ हिस्से जल भी गए थे क्योंकि हेलिकॉप्टर में आग भी लग गई थी. हालांकि बाद में पता चला कि बारिश की वजह से हेलिकॉप्टर पूरी तरह जला नहीं था. पूरे इलाके में बदबू और दुर्गंध पसरा हुआ था.

शवों के टुकड़ों को अलग-अलग काले पॉलिथीन में पैक किया जा रहा था. उन पैकेट को फिर से सफ़ेद कपड़ों में बांधा जा रहा था और एक रस्सी के सहारे हवा में रुके हेलिकॉप्टर तक पहुंचाया जा रहा था. अनुमान के आधार पर कह सकता हूं कि मलबा कम से कम पांच एकड़ में फैला हुआ था और पूरा इलाका चट्टानों से घिरा हुआ था और राहतकर्मियों को इसे समेटने में मुश्किल हो रही थी.

लेकिन अज़ीब संयोग था कि सेल फ़ोन पर सिग्नल पूरी तरह से आ रहा था. एडिटर श्रीनिवास ने दोपहर डेढ़ बजे के करीब फ़ोन किया. हेलिकॉप्टर का शोर था, लेकिन मैंने उन्हें स्थिति के बारे में बताया.

शशिकांत का भी फ़ोन आया. इसके बाद मैं जले हुए हेलिकॉप्टर के इंजन की ओर गया और वहां से अपना पहला पीटूसी रिकॉर्ड किया. फिर राहत कर्मियों के बीच से एक पीटूसी रिकॉर्ड किया तब तक अधिकारियों ने जगह खाली करने को कह दिया था.

एक किनारे खड़े होकर मैंने ऑपरेशन के इनचार्ज राजीव त्रिवेदी से बात की. उनसे बात करते हुए बारिश तेज हो गई थी. मैं उनसे बात करते वक्त यही सोच रहा था कि मैं यहां सबसे पहले पहुंचा हूं, लेकिन मुझे बताया गया कि यहां सबसे पहले एचएमटीवी का कैमरामैन पहुंचा था. हमारे बाद टीवी 5 की टीम भी पहुंच गयी थी.

शाट्स और बाइट्स लेते-लेते दोपहर के ढाई बज चुके थे. बारिश तेज़ हो रही थी और कैमरे को बचाने के लिए हमें वहां से जल्दी निकलना पड़ा. राजीव त्रिवेदी भी हमारे साथ नीचे उतरे. जब हम उतर रहे थे तब हमने कई रिपोर्टरों को ऊपर चढ़ते देखा. मीडिया में कई जगहों पर यह ख़बर छपी कि राजशेखर रेड्डी की मौत हेलिकॉप्टर के पिजन हिल में दुर्घटनाग्रस्त होने से हुई, लेकिन वास्तविकता में उनकी मौत पिजन हिल के सामने वाली पहाड़ी में हुई थी जिसे स्थानीय लोग पसुरुतला हिल कहते हैं.

हेलिकॉप्टर कैसे दुर्घटनाग्रस्त हुआ था?

मुख्यमंत्री अमूमन अगस्ता हेलिकॉप्टर का इस्तेमाल करते हैं. लेकिन राजशेखर रेड्डी जिस हेलिकॉप्टर पर सवार थे वह बेल-430 था. इसलिए संदेह पैदा हुआ, कई लोगों ने कहा कि वे साज़िश के शिकार हुए हैं.

सरकार ने डीजीसीए की तकनीकी कमेटी का गठन करके दुर्घटना की जांच कराई. आरके त्यागी की अध्यक्षता वाली इस कमेटी ने 139 पन्नों की रिपोर्ट दी जिसमें बताया गया कि गियरबॉक्स में ख़राबी आ गयी और उसको ठीक करने की कोशिश में पायलट ने हेलिकॉप्टर पर से नियंत्रण खो दिया. इस रिपोर्ट में यह भी कहा गया कि इस हेलिकॉप्टर को उड़ान भरने से पहले जितनी जांच होनी चाहिए थी, वह पूरी नहीं की गई थी.

इस हादसे में मुख्यमंत्री वाईएस राजशेखर रेड्डी के साथ सीएमओ के मुख्य सचिव सुब्रमण्यम, मुख्यमंत्री के मुख्य सुरक्षा अधिकारी एएससी वेस्ले और हेलिकॉप्टर के पायलट एसके भाटिया, सह पायलट एम सत्यानारायण रेड्डी की मौत हुई थी.

डीजीसीए की रिपोर्ट के मुताबिक दो सितंबर, 2009 को नौ बजकर 27 मिनट और 57 सेकेंड पर कॉकपिट वॉयस रिकॉर्डर ने काम करना बंद कर दिया था, गुरुवार की सुबह नौ बजकर 20 मिनट पर वायुसेना ने हेलिकॉप्टर का पता लगाया था.

मुख्यमंत्री के हेलिकॉप्टर के लापता होने के 25 घंटे के बाद केंद्रीय गृहमंत्री पी चिदंबरम ने आधिकारिक तौर पर दिल्ली में उनके निधन की घोषणा की थी.

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English summary
When CM Rajasekhara Reddy's helicopter disappeared in the air
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