बाबरी मस्जिद ढहाए जाने वाले मुक़दमे का अब क्या होगा
शनिवार को भारत के सुप्रीम कोर्ट ने भारतीय क़ानूनी इतिहास में मालिकाना हक़ के सबसे विवादित मुक़दमे का निपटारा कर दिया. बाबरी मस्जिद-राम जन्मभूमि विवाद में सुप्रीम कोर्ट ने हिंदू पक्ष में फ़ैसले देते हुए विवादित भूमि मंदिर के लिए दी और मस्जिद के लिए अलग से पाँच एकड़ ज़मीन की व्यवस्था की है. यानी जहाँ बाबरी मस्जिद थी वहां अब राम मंदिर बनने का रास्ता साफ़ हो गया है.
शनिवार को भारत के सुप्रीम कोर्ट ने भारतीय क़ानूनी इतिहास में मालिकाना हक़ के सबसे विवादित मुक़दमे का निपटारा कर दिया.
बाबरी मस्जिद-राम जन्मभूमि विवाद में सुप्रीम कोर्ट ने हिंदू पक्ष में फ़ैसले देते हुए विवादित भूमि मंदिर के लिए दी और मस्जिद के लिए अलग से पाँच एकड़ ज़मीन की व्यवस्था की है.
यानी जहाँ बाबरी मस्जिद थी वहां अब राम मंदिर बनने का रास्ता साफ़ हो गया है.
अयोध्या में विवादित भूमि पर राम मंदिर के हक़ में सुप्रीम कोर्ट का फ़ैसला आने के बाद बाबरी मस्जिद ढहाए जाने के मामलों की जांच करने वाले जस्टिस मनमोहन लिब्रहान ने कहा है कि इस फ़ैसले का असर मस्जिद विध्वंस मामले पर भी हो सकता है.
बीबीसी से बात करते हुए जस्टिस लिब्रहान ने कहा, "सुप्रीम कोर्ट ने जो फ़ैसला किया है वो ठीक है, सुप्रीम कोर्ट में ठीक ही फ़ैसले होते हैं."
ये पूछे जाने पर कि क्या इसका असर बाबरी मस्जिद ढहाए जाने और इससे जुड़े आपराधिक साज़िश के मामले पर भी हो सकता है, उन्होंने कहा, "मेरा मानना है कि इस फ़ैसले का असर उस मामले पर भी हो सकता है. इसमें कोई दो राय नहीं है."
क्या सुप्रीम कोर्ट में आज आए फ़ैसले के आधार पर बाबरी मस्जिद के ध्वंस को सही ठहराए जाने का तर्क भी दिया जा सकता है, जस्टिस लिब्रहान ने कहा, "अदालत में ये तर्क भी दिया जा सकता है."
जस्टिस लिब्रहान का ये भी कहना है कि जिस तेज़ी से सुप्रीम कोर्ट में मालिकाना हक़ के विवाद की सुनवाई हुई है उसी तेज़ी से बाबरी मस्जिद गिराए जाने के लिए हुई आपराधिक साज़िश के मामले भी सुने जाने चाहिए.
अदालत में इंसाफ़ होगा?
जस्टिस लिब्राहन को विश्वास है कि बाबरी मस्जिद ढहाए जाने के मामले में भी अदालत में इंसाफ़ होगा.
उन्होंने कहा, "जब फ़ैसला आएगा तब पता चलेगा कि इंसाफ़ होगा या नहीं लेकिन हम यही समझते हैं कि अदालतें फ़ैसला करती हैं और इंसाफ़ देती हैं. मेरा विश्वास है कि इन मामलों में भी अदालत फ़ैसला करेगी और इंसाफ़ करेगी."
विवादित भूमि पर मालिकाना हक़ को लेकर तो सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट फ़ैसला दे दिया है लेकिन बाबरी मस्जिद को ढहाए जाने से जुड़े आपराधिक मुक़दमे 27 साल से अदालत में लंबित हैं.
दक्षिणपंथी भीड़ ने 6 दिसंबर, 1992 को अयोध्या में 16वीं सदी की बाबरी मस्जिद को ढहा दिया था. इसके बाद हुए दंगों में क़रीब दो हज़ार लोग मारे गए थे.
बाबरी मस्जिद विध्वंस की जाँच करने वाले जस्टिस लिब्रहान आयोग ने 17 साल चली लंबी तफ़्तीश के बाद 2009 में अपनी रिपोर्ट पेश की जिसमें बताया गया कि मस्जिद को एक गहरी साज़िश के तहत गिराया गया था.
उन्होंने इस साज़िश में शामिल लोगों पर मुक़दमा चलाए जाने की सिफ़ारिश भी की थी.
बाबरी विध्वंस से जुड़े दो मुक़दमे
छह दिसंबर 1992 को विवादित बाबरी मस्जिद गिरने के बाद दो आपराधिक मुक़दमे क़ायम किए गए थे. एक कई अज्ञात कारसेवकों के ख़िलाफ़ और दूसरा आडवाणी समेत आठ बड़े नेताओं के ख़िलाफ़ नामज़द मामला. आडवाणी और अन्य नेताओं पर भड़काऊ भाषण देने के आरोपों में मुक़दमा दर्ज हुआ था.
इन दो के अलावा 47 और मुक़दमे पत्रकारों के साथ मारपीट और लूट आदि के भी लिखाए गए थे. बाद में सारे मुक़दमों की जाँच सीबीआई को दी गई. सीबीआई ने दोनों मामलों की संयुक्त चार्जशीट फाइल की.
इसके लिए हाई कोर्ट की सलाह पर लखनऊ में अयोध्या मामलों के लिए एक नई विशेष अदालत गठित हुई. लेकिन उसकी अधिसूचना में दूसरे वाले मुक़दमे का ज़िक्र नहीं था. यानी दूसरा मुक़दमा रायबरेली में ही चलता रहा.
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विशेष अदालत ने आरोप निर्धारण के लिए अपने आदेश में कहा कि चूँकि सभी मामले एक ही कृत्य से जुड़े हैं, इसलिए सभी मामलों में संयुक्त मुक़दमा चलाने का पर्याप्त आधार बनता है. लेकिन आडवाणी समेत अनेक अभियुक्तों ने इस आदेश को हाई कोर्ट में चुनौती दे दी.
12 फ़रवरी 2001 को हाई कोर्ट ने सभी मामलों की संयुक्त चार्जशीट को तो सही माना लेकिन साथ में यह भी कहा कि लखनऊ विशेष अदालत को आठ नामज़द अभियुक्तों वाला दूसरा केस सुनने का अधिकार नही है, क्योंकि उसके गठन की अधिसूचना में वह केस नंबर शामिल नहीं था.
आडवाणी और अन्य हिंदूवादी नेताओं पर दर्ज मुक़दमा क़ानूनी दांव-पेच और तकनीकी कारणों में फंसा रहा.
वरिष्ठ पत्रकार रामदत्त त्रिपाठी बताते हैं, "आडवाणी और अन्य नेताओं ने हाई कोर्ट में अपील दायर की थी. अदालत ने तकनीकी कारणों का हवाला देते हुए आपराधिक साज़िश के मुक़दमे को रायबरेली की अदालत भेज दिया था. हालांकि बाद में सुप्रीम कोर्ट ने रायबरेली में चल रहे मुक़दमे को बाबरी विध्वंस के मुक़दमे से जोड़ दिया."
रामदत्त कहते हैं, "अब दोबारा सम्मिलित सुनवाई लखनऊ की विशेष अदालत में चल रही है. सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही में इन मामलों की सुनवाई कर रहे जज का कार्यकाल बढ़ाते हुए आदेश दिया है कि वो इन मुक़दमों का फ़ैसला देकर ही रिटायर होंगे."
आपराधिक साज़िश में आरोप तय
पहले आडवाणी और अन्य नेताओं पर सिर्फ़ भड़काऊ भाषण देने का मुक़दमा रायबरेली में चल रहा था. लेकिन अप्रैल 2017 में सीबीआई की अपील पर सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद लालकृष्ण आडवाणी, मुरली मनोहर जोशी और उमा भारती सहित 8 लोगों के ख़िलाफ़ आपराधिक साज़िश का मुक़दमा दर्ज किया गया था.
2017 में ही बाबरी मस्जिद विध्वंस मामले में लालकृष्ण आडवाणी, मुरली मनोहर जोशी और उमा भारती समेत 12 अभियुक्तों पर आपराधिक साज़िश के आरोप तय कर दिए गए थे.
लखनऊ की विशेष सीबीआई अदालत ने कहा था कि आडवाणी, जोशी, उमा भारती और अन्य के ख़िलाफ़ आपराधिक साज़िश के आरोप तय करने के लिए पर्याप्त सबूत हैं.
1992 में बाबरी मस्जिद गिराए जाने से पहले उत्तर प्रदेश के तत्कालीन मुख्यमंत्री कल्याण सिंह ने सुप्रीम कोर्ट में हलफ़नामा दिया था कि बाबरी मस्जिद को नुक़सान नहीं पहुँचने दिया जाएगा लेकिन वो इसे निभा नहीं पाए थे. कल्याण सिंह भी बाबरी मस्जिद विध्वंस मामले में अभियुक्त हैं और फ़िलहाल बाक़ी नेताओं की ही तरह ज़मानत पर बाहर हैं.
वरिष्ठ पत्रकार रामदत्त त्रिपाठी कहते हैं, "बीजेपी और विश्व हिंदू परिषद के नेता मस्जिद गिराने का श्रेय तो लेते हैं लेकिन किसी ने मस्जिद को गिराने की नैतिक ज़िम्मेदारी कभी स्वीकार नहीं की. ये नेता अदालत में हमेशा तर्क देते रहे कि वो मस्जिद गिराने के ग़ुनहगार नहीं हैं."
रामदत्त त्रिपाठी कहते हैं, "अब ये उम्मीद तो जगी है कि इस मामले में भी फ़ैसला होगा लेकिन इस मामले के कई अभियुक्त अब इस दुनिया में ही नहीं है. इनमें विश्व हिंदू परिषद के नेता अशोक सिंघल भी शामिल है."
त्रिपाठी कहते हैं, "मामलों के कई अभियुक्त, गवाह और पैरोकार भी इतने बूढ़े और कमज़ोर हो चले हैं कि उन्हें लखनऊ में विशेष अदालत की तीसरी मंजिल पर चढ़ने में भी कठिनाई होती है."
वो कहते हैं, "इंसाफ़ होते-होते कितने अभियुक्त ज़िंदा बचेंगे ये देखना होगा. इंसाफ़ भी वक़्त पर होना चाहिए. अगर फ़ैज़ाबाद में चले राम जन्मभूमि विवाद का निपटारा उसी अदालत में हो गया होता तो ना ही ये मुक़दमा इतना लंबा चला होता और न ही इस पर राजनीति होती."
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