‘प्रमोशन में आरक्षण’ बदलेगा यूपी में समीकरण, क्या होगा एसपी और बीएसपी के रिश्ते पर असर?
नई दिल्ली। सरकारी नौकरियों में प्रमोशन के मामले में SC/ST आरक्षण पर सुप्रीम कोर्ट की पांच जजों की संविधान पीठ ने बुधवार को अहम फैसला सुनाया। कोर्ट ने आरक्षण देने को राज्यों के विवेक पर छोड़ दिया। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि अगर राज्य सरकारें चाहें तो वो प्रमोशन में आरक्षण दे सकती हैं। प्रमोशन में आरक्षण देने के लिए सरकार को एससी और एसटी के पिछड़ेपन के आधार पर डेटा जुटाने की जरूरत नहीं है। उत्तर प्रदेश की पूर्व मुख्यमंत्री और बहुजन समाज पार्टी की राष्ट्रीय अध्यक्ष मायावती ने कोर्ट के फैसले के बाद प्रेस कॉन्फ्रेंस कर फैसले की तारीफ की। उन्होंने केंद्र सरकार से राज्यों में प्रमोशन में आरक्षण, सख्ती से लागू करने की मांग भी कर डाली। लेकिन अब सवाल है कि इस फैसले का राजनीतिक असर किस तरह से होगा। SC/ST एक्ट को लेकर पहले से ही देश में माहौल गर्म है और इसके बाद अब क्या इस फैसले को राज्य सरकारें लागू करेंगी? उत्तर प्रदेश के संदर्भ में बात करें तो मायावती ने बिना समय गवाएं अपना संदेश अपने वोटरों तक पहुंचा दिया लेकिन बाकी दल अभी इस पर समय ले रहे हैं।
रिश्तों पर क्या होगा असर
उत्तर प्रदेश की राजनीति पर प्रमोशन में आरक्षण के इस फैसले का बड़ा असर हो सकता है। इस फैसले के बाद राज्य में राजनीतिक दलों के बीच हो रहा ध्रुवीकरण नई शक्ल ले सकता है। खासकर ये देखना होगा की इस मुद्दे पर जिस तरह से समाजवादी पार्टी और बहुजन समाज पार्टी आमने सामने रही हैं अब उनका एक दूसरे के प्रति क्या रवैया रहेगा। दोनों ने जबकि साथ में 2019 के लोकसभा चुनाव लड़ने की बात कही है और कांग्रेस भी इस गठबंधन का हिस्सा बनना चाहती है। लेकिन सपा और बसपा का प्रमोशन में आरक्षण के मुद्दे पर एक दूसरे से जुदा नजरिया इस गठबंधन के में रोड़ा बन सकता है।
सपा ने किया है विरोध
समाजवादी
पार्टी
उत्तर
प्रदेश
में
जब
भी
सरकार
में
रही
है
उसने
हमेशा
प्रमोशन
में
आरक्षण
का
विरोध
किया
है।
सपा
संसद
से
लेकर
राज्य
सरकार
के
स्तर
तक
इसके
खिलाफ
रही
है।
अखिलेश
यादव
ने
तो
अनुसूचित
जाति
और
अनुसूचित
जनजातियों
में
रोजगार
बढ़ाने
के
लिए
नौकरियों
में
निश्चित
आरक्षण
को
हटा
दिया
था।
सपा
सरकार
ने
आधिकारिक
आदेश
के
जरिए
अनुसूचित
जाति
और
अनुसूचित
जनजाति
के
कर्मियों
के
लिए
पदोन्नति
को
समाप्त
कर
दिया
था
जिसका
असर
करीब
2
लाख
लोगों
पर
हुआ
था।
बाद
ने
कोर्ट
ने
इसका
संज्ञान
लिया
था।
दलित
समुदाय
में
इसे
लेकर
रोष
रहा
है।
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संभल कर चलेंगी मायावती
समाजवादी पार्टी के खिलाफ रोष का राजनीतिक फायदा मायावती को हुआ है। लेकिन अगर वो इस बार समाजवादी पार्टी के साथ जाती हैं तो बीजेपी उन्हें निशाने पर लेगी और कहेगी कि उन्होंने प्रमोशन में आरक्षण के खिलाफ रही पार्टी से हाथ मिलाया है। वहीं अगर कांग्रेस जो पहले से राज्य में उभरने की लड़ाई लड़ रही है सपा के साथ जाती है तो उसके लिए भी ये स्थिति ठीक नहीं रहेगी। ऐसे में अब हो सकता है मायावती बहुत सोच समझकर कोई फैसला लें। मायावती हमेशा इस मुद्दे पर मुखर रही हैं और आरक्षण में पदोन्नति के खिलाफ अखिलेश यादव सरकार के फैसले की आलोचना करती रही हैं। अब ये देखना दिलचस्प होगा कि इस मुद्दे पर इन राजनीतिक दलों का स्टैंड क्या रहता है।
बीजेपी के लिए भी राह आसान नहीं
भारतीय जनता पार्टी के राष्ट्रीय प्रवक्ता विजय सोनकर शास्त्री ने ‘वन इंडिया' को कहा कि "हम हमेशा दलितों के सशक्तिकरण के पक्ष में रही और उन्हें रोजगार या पदोन्नति में सभी प्रकार के संरक्षण दिए जाने चाहिए। इसलिए हमारी सरकार ने रोजगार में आरक्षण की नीति को जारी रखा। उन्होंने कहा न केवल अदालत में हलफनामे के जरिए बल्कि सरकार ने आदेश पारित करके कहा कि विश्वविद्यालयों और कॉलेजों पदोन्नति में आरक्षण में लागू किया जाना चाहिए"। विजय सोनकर शास्त्री जो भी कहें लेकिन ताजा हालात को देखते हुए बीजेपी के सामने भी अब सवाल ये है कि एससी/एसटी एक्ट को लेकर पहले ही अगड़ी जातियां उसके खिलाफ हो रही हैं तो ऐसे में क्या वो अब प्रमोशन में आरक्षण के मुद्दे का मुखर होकर समर्थन करेगी?
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