क्विक अलर्ट के लिए
नोटिफिकेशन ऑन करें  
For Daily Alerts
Oneindia App Download

मुग़ल काल में मुसलमानों में तलाक़ के क्या नियम थे?

मुग़ल कालीन भारत में मुसलमानों के बीच क्या तीन तलाक़ का चलन था? जानने के लिए पढ़ें प्रोफ़ेसर शिरीन मूस्वी का लेख.

By प्रोफ़ेसर शिरीन मूस्वी - इतिहासकार, बीबीसी हिंदी डॉट कॉम के लिए
Google Oneindia News
औरंगज़ेब
BBC
औरंगज़ेब

ये तो जगज़ाहिर है कि इस्लामी क़ानून में तलाक़ शौहर का विशेषाधिकार होता है, अगर निकाहनामा में कुछ अलग बात न जोड़ी गई हो.

चलन के लिहाज से देखें तो मुग़ल कालीन भारत में मुसलमानों में तलाक़ के बहुत इक्का दुक्का वाक़ये हुआ करते थे.

तीन तलाक़ से तलाक़ चाहती हैं मुस्लिम महिलाएं

फूलवती के मुकदमे ने कैसे खोला 'तीन तलाक़' का पिटारा?

उस दौर के जाने माने इतिहासकार और अकबर के लेखन के आलोचक और उनके समकालीन अब्दुल क़ादिर बदायूनी 1595 में कहते हैं-

"चूंकि तमाम स्वीकृत रिवाजों में तलाक़ ही सबसे बुरा चलन है, इसलिए इसका इस्तेमाल करना इंसानियत के ख़िलाफ़ है. भारत में मुसलमान लोगों के बीच सबसे अच्छी परम्परा ये है कि वो इस चलन से नफ़रत करते हैं और इसे सबसे बुरा मानते हैं. यहां तक कि कुछ लोग तो मरने मारने को उतारू हो जाएंगे अगर कोई उन्हें तलाक़शुदा कह दे."

ये बातें उन्होंने मुस्लिम देशों के रिवाजों को ध्यान में रखते हुए कही थीं.

जहांगीर ने लगाई थी रोक

तीन तलाक़ पर वर्तमान विवाद के मद्देनज़र, ये देखना बड़ा दिलचस्प होगा कि 'मजलिस-ए-जहांगीरी' में बादशाह जहांगीर ने इस बारे में क्या कहा था.

मुस्लिम महिलाएं
Getty Images
मुस्लिम महिलाएं

इसमें 20 जून 1611 को जहांगीर ने बीवी की ग़ैर जानकारी में शौहर द्वारा तलाक़ की घोषणा को अवैध करार दिया और वहां मौजूद काज़ी इसकी अनुमति दी.

उस दौर में पत्नी की ओर से 'खुला' या तलाक़ का भी चलन था.

सूरत में 1628 के एक दस्तावेज में एक शौहर का ज़िक्र है जो शादी को ख़त्म करने पर सहमत होने के लिए पत्नी से 70 महमूदिस (स्थानीय सिक्के, जो 42 रुपये के बराबर थे) लिए थे. इसमें किसी कारण का ज़िक्र नहीं था.

'मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड तीन तलाक़ पर लीपापोती कर रहा है'

ट्रिपल तलाक़ पर मोदी के सात वचन

एक दूसरे मामले में एक खानसामा चिश्त मुहम्मद की पत्नी फत बानू ने अपने पति को सूरत के क़ाज़ी के सामने 8 जून 1614 को ये क़बूल करवाने के लिए हाज़िर किया कि अगर उसने फिर से शराब या ताड़ी पी तो वो तलाक़ ले लेगी और मना करने का उसके पति का अधिकार जाता रहेगा.

क्या थे निकाहनामे के नियम

ऐसा लगता है कि उस दौर में प्रचलित ऐसे चार नियम रहे थे जिनका निकाहनामों में ज़िक्र किया गया था या उनका हवाला दिया गया था.

ये नियम थे- (1) मौजूदा बीवी के रहते शौहर दूसरी शादी नहीं करेगा, (2) वो बीवी को नहीं पीटेगा, (3) वो अपनी बीवी से लंबे समय तक दूर नहीं रहेगा और इस दौरान उसे बीवी के गुजर बसर का इंतज़ाम करना होगा और (4) शौहर को उप पत्नी के रूप में किसी दासी को रखने का अधिकार नहीं होगा.

मुस्लिम महिलाएं
Getty Images
मुस्लिम महिलाएं

पहली तीन शर्तों के टूटने की स्थिति में, शादी को ख़त्म घोषित किया जा सकता है, हालांकि चौथी शर्त के संबंध में ये अधिकार बीवी के पास होता था कि वो उस दासी को ज़ब्त करने के बाद आज़ाद कर दे या उसे बेच दे और शौहर से मिलने वाले मेहर के बदले ये राशि रख ले.

ये चार नियम या शर्तें अकबर के समय से लेकर औरंगज़ेब के ज़माने तक की किताबों और दस्तावेजों में मिलते हैं और इसलिए उस दौर में ये पूरी तरह स्थापित थे.

लेकिन निकाहनामा या लिखित समझौता सम्पन्न और शिक्षित वर्ग का विशेषाधिकार होता था या ये चलन इसमें ज़्यादा था.

ज़ुबानी वादों का चलन

ग़रीबों में शौहर द्वारा शादी के दौरान सबके सामने किए गए ज़ुबानी वादे ही आम तौर पर चलन में थे. ग़रीबों में शादियां कैसे ख़त्म होती थीं, इसकी नज़ीर सूरत के दो दस्तावेजों से मिलती है.

पांच फ़रवरी 1612 को इब्राहिम नाम का एक शख़्स मुहम्मद जियू की ओर से पेश हुआ और इस बात की ज़मानत दी कि अगर जियू अपनी पत्नी मरियम को गुज़ारे भत्ते के लिए प्रति दिन एक तांबे का सिक्का और साल में दो साड़ी और दो कुरती नहीं देगा तो उसके बदले वो क्षतिपूर्ति देगा.

मुस्लिम महिलाएं
Getty Images
मुस्लिम महिलाएं

सात साल बाद 17 मार्च 1619 को ये दोनों पति पत्नी क़ाज़ी के सामने फिर पेश हुए. शौहर मुहम्मद जियू की शिकायत थी कि उसकी पत्नी ने घर छोड़ दिया था.

मरियम ने आरोप का खंडन करते हुए एक दस्तावेज पेश किया जिसमें मुहम्मद जियू ने स्वीकार किया था कि अगर वो बादे के मुताबिक गुज़ारा भत्ता और कपड़े नहीं मुहैया कराता है तो शादी ख़त्म मानी जाएगी.

जबकि उसने चार या पांच सालों से अपने वादे पूरे नहीं किए थे. मरियम ने दावा किया कि इस लिहाज से शादी ख़त्म हो चुकी थी. गवाहों के बयान सुनने के बाद काज़ी ने शौहर और बीवी के बीच तलाक़ (तफ़रीक़) पर फैसले की मुहार लगा दी.

शाही परिवार के अधिकार

उस दौर में क़ानून और समझौते के इन मामलों के अलावा शाही परिवार को असीमित अधिकार हासिल थे.

शादी
Getty Images
शादी

शाहजहां के प्रधान मंत्री असफ़ ख़ान की बेटी मिसरी बेगम की एक अधिकारी मिर्ज़ा जरुल्लाह से शादी हुई थी.

किसी वजह से बादशाह जरुल्लाह से नाराज़ हो गया और मिसरी बेगम की शादी ख़त्म (मतलाक़) करने और उनकी एक दूसरे अधिकारी मिर्ज़ा लश्करी से शादी कराने का आदेश दे दिया.

और ये पूरी प्रक्रिया तीन तलाक़ से भी तेज़ रफ़्तार से अमल में लायी गयी.

(बीबीसी हिन्दी के एंड्रॉएड ऐप के लिए यहां क्लिक करें. आप हमें फ़ेसबुक और ट्विटर पर भी फ़ॉलो कर सकते हैं.)

BBC Hindi
Comments
देश-दुनिया की ताज़ा ख़बरों से अपडेट रहने के लिए Oneindia Hindi के फेसबुक पेज को लाइक करें
English summary
What were the rules of divorce in Muslims in the Mughal period?
तुरंत पाएं न्यूज अपडेट
Enable
x
Notification Settings X
Time Settings
Done
Clear Notification X
Do you want to clear all the notifications from your inbox?
Settings X
X